शुबहा,बातिनी इमामत, न कि ज़ाहिरी इमामत




बाज़ लोगों का कहना है: हदीसे ग़दीर में विलायत से मुराद विलायते बातिनी है न कि ज़ाहिरी, जो हुकूमत और आम मुसलमानों पर ख़िलाफ़त और सर परस्ती के मुतारादिफ़ है, इस ताविल के ज़रिये अहले सुन्नत ने कोशिश की है कि हज़रत अमीर (अ) और ख़ुलाफ़ा ए सलासा की ख़िलाफ़त के दरमियान जमा करें।

जवाब:

अव्वल. अगर यह तय हो कि इस तरह के अलफ़ाज़ को ज़ाहिर के ख़िलाफ़ हम्ल किया जाये तो फिर नबूव्वत के लिये भी इसी तरह की तावील करना सही होना चाहिये जबकि ऐसा करना किसी भी सूरत में सही नही है।

दूसरे. किस दलील के ज़रिये ख़ुलाफ़ा ए सलासा की ख़िलाफ़त साबित है ताकि उनकी ख़िलाफ़त और हदीसे ग़दीर के दरमियान जमा करने की कोशिश की जाये।

तीसरे. यह तफ़सीरे लफ़्ज़े मौला के ज़ाहिर और मफ़हूफ़े विलायत के बर ख़िलाफ़ है क्योकि लफ़्ज़े मौला और विलायत के ज़ाहिर से वही सर परस्त के मअना हासिल होते हैं।

चौथे. हम इस बात का अक़ीदा रखते हैं कि हदीसे ग़दीर और दीगर अहादीस में विलायत से वही ख़ुदा वंदे आलम की विलायते आम्मा मुराद है जो सियासी हाकिमियत और दीनी मरजईत की क़ीस्म में से है।