दज्जाल का मतलब

सलमा की अक़दुद दुरर में अबी अब्बास अहमद इब्ने यहिया इब्ने तग़लिब से इस तरह बयान किया गया अबुल अब्बास बयान करता है दज्जाल का नाम उसके धोके और फ़रेबकारी की वजह से है। मसलन

و جلت العبیر اذا طلبة بالفطران

यानी जब ऊंट की मालिश रोग़नी माद्दे से करते हो, उस वक़्त इस जुमले का इस्तेमाल[1] करते हैं।

इब्ने सबाग़(अलमालिकी) की फ़ुसुलुल मुहिम्मा में अबी जाफ़र से रिवायत की जिसमें आपने फ़रमाया: जिस वक़्त ज़हूर करेगें कूफ़े की जानिब रवाना होगें वहाँ मसाजिद को वसीअ और रास्तों में निकले हुए परनालों को बंद कर देगें। कोई बिदअत ऐसी होगी मगर आप उसका क़िला क़मअ फ़रमायेगें और कोई भी सुन्नत ऐसी बाक़ी न रह जायेगी मगर उसको क़ायम फ़रमायेगें, क़ुस्तुन्तुन्या, चीन और दैलम के पहाड़ों को फ़तह करेगें।[2]

यनाबीउल मवद्दत में हाफ़िज़ क़ंदूज़ी(अलहनफ़ी) ने अमीरुल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब(अ) से रिवायत की, अमीरुल मोमेनीन फ़रमाते हैं: आँ हज़रत(स) ने फ़रमाया: अफ़ज़ल तरीन इबादत क़शाइश का इन्तेज़ार है।

मुअल्लिफ़े किताब हाफ़िज़ अलक़ंदूज़ी बयान करते हैं हदीस से महदी(अ) के ज़हूर की कशाकश मुराद है।[3]

महदी का ज़िक्र तमाम किताबों में मौजूद है

सलमा की अक़दुद दुरर में उमर बिन मुक़री की सुनन से और हाफ़िज़ नईम बिन हम्माद ने राहिबों की किताब से इस तरह रिवायत की है, वह बयान करता है: मैंने महदी का तज़किरा अम्बिया की कुतुब में देखा है, आपके हुक्म में किसी क़िस्म का ज़ुल्म और तशद्दुद नही है।)[4]
_______________________________________________

[1]- दज्ल: हर उस चीड़ को कहते हैं जो झूट और बेहक़ीक़त हो, मसलन इस्तेमाल किया जाता है दज्लुस सैफ़ यानी तलवार पर इस तरह ज़ंग चढ़ जाना कि वह लोगों को फ़ौलाद नज़र न आये या बेहतरीन क़िस्म का लोहा महसूस हो इसी तरह दज्जाल उस शख़्स को कहते हैं जिससे झूट और फ़रेबकारी के अलावा और कुछ ज़ाहिर न हो।(मुअल्लिफ़)

[2]- जिस हुकुमत की तासीस इमाम मेहदी(अ) फ़रमायेगें वह तहज़ीब व तमद्दुन के ऐतबार से आला तरीन हुकुमत होगी। तमद्दुन की मुतअद्दिद अनवाए हैं। मसलन इमाम मसाजिद में वुसएत फ़रमायेगें, ताकि तमाम दुनिया परचमे इस्लाम व ईमान के तहत दाख़िल हो जाये। मसलन रास्तों में निकले हुए परनालों को बंद करेगें ताकि गुज़रने वालों को किसी क़िस्म की ज़हमत न हो, और वसाइल के नक़्ल में किसी क़िस्म की दुशवारी पेश न आये, शहरों को हुस्न व जमाल बख़्शेगें। क़ुस्तुन्तुन्या(जो कि ईसाईयों का मर्क़ज़ है।) उसको फ़तह फ़रमायेगें। चीन, बौध और कुफ़्र व इलहाद का मर्क़ज़ है उसको भी फ़तह फ़रमायेगें। दैलम, यहूदीयों और उन जैसे दूसरे दीगर लोगों का मर्कज़ है इसी तरह उसको भी आप ही फ़तह फ़रमायेगें। इस तरह तमाम दुनिया फ़िकरी, अमली, सियासी और अख़लाक़ी तरक़्क़ीयों के साथ मेहदी(अ) के परचम तले जमा हो जायेगें।(मुअल्लिफ़)

[3]- मेहदी(अ) के ज़ुहूर के सबब इसलाह का इंतेज़ार करने में रुहानी और अमली दो बड़े फ़ायदे हैं।

रुहानी फ़ायदा: रुही फ़ायदा इस तरह है जब हम मेहदी का इंतेज़ार करेगें तो उनसे मुहब्बत व मुरव्वत में इज़ाफ़ा होगा। जो मुहब्बत खुदा वंदे आलम की जानिब से इमाम की निस्बत लोगों पर वाजिब क़रार दी गयी है। (ऐ रसूल(उन लोगों से) कह दो कि मैं तुम से अपनी तबलीग़ें रिसालत की उजरत अपने अहले बैत की मवद्दत के अलावा कुछ नही चाहता।) इसी तरह उसके अलावा दीगर रुहानी फ़वाइद भी मुज़मर हैं।

अमली फ़ायदा:

[4]- असफ़ार, सफ़र की जमा है, जिसके मायना बड़ी किताब के हैं। यानी मेहदी का ज़िक्र अंबीया पर नाजिल शुदा कुतुब में मौजूद है।

कलमा ए(असफ़ारुल अँबीया) के मायना हैं कि रिवायत में तमाम अंबीया की कुतुब मुराद हैं, इसलिये कि मज़कूरा कलमा जमा है और मुज़ाफ़ भी है जो उमूम का फ़ायदा देता है, जैसा कि इल्मे अदब में मौजूद है।

(मुअल्लिफ़)