अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून

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हज़रत ख़दीजा (स) इस्लाम की सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून हैं। कई सालों तक दीने इस्लाम की पाबंद सिर्फ़ दो शख़्सियते थीं एक हज़रत अली (अ) दूसरे हज़रत ख़दीजा (स)। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हर रोज़ पाँच मरतबा मस्जिदुल हराम में शरफ़याब हो कर काबे की जानिब रुख़ करके खड़े होते थे हज़रत अली (अ) आपके दायें जानिब और हज़रत ख़दीजा आपके पीछे खड़ी होती थी। यह तीन शख़्सियतें ख़ान ए तौहीद में अपने मअबूद की इबादत में उम्मते इस्लामी को तशकील दे रही थीं।

अब्दुल्लाह बिन मसऊद ने सबसे पहले जब ऐसा मन्ज़र देखा तो अब्बास से इस मन्ज़र की वज़ाहत तलब की, अब्बास ने जवाब दिया: यह शख़्स मेरा भतीजा है (मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह) है, वह नौजवान अली बिन अबी ताबिल है और वह ख़ातून हज़रत ख़दीजा हैं, मज़कूरा तीन अफ़राद के अलावा पूरी ज़मीन पर इस दीन का मानने वाला और कोई शख़्स नही मिलेगा। अब्बास ने यही जवाब अफ़ीफ़ कंदी को भी दिया।मर्दों में सबसे पहले नमाज़ गुज़ार हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत ख़दीजा (स) थीं, बाद में जाफ़रे तय्यार हज़रत अली (अ) के भाई अपने वालिदे गिरामी हज़रत अबु तालिब के हुक्म के मुताबिक़ इस सफ़ में शामिल हुए। उस के दिन के बाद यह इबादत चार आदमियों के ज़रिये अंजाम पाने लगी आख़िरकार क़ुरैश की मुहासरा मुसलमानों पर रफ़ता रफ़ता सख़्त होता गया और वह शेअबे अबी तालिब में ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर हो गये।
 

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