अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इमाम मेहदी के ज़माने मे ग़रीबी व फ़क़ीरी का अंत

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जिस वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के लिए ज़मीन के सारे खज़ाने ज़ाहिर हो जायेंगे और ज़मीन व आसमान से लगातार बरकतें नाज़िल होंगी और मुसलमानों का बैतुलमाल (राजकीय धनकोष) अदालत की बुनियाद पर वितरित होगा तो फिर ग़रीबीव फ़क़ीरी का कोई वजूद नहीं रहेगा और उनकी हुकूमत में हर इंसान ग़रीबी के दलदल से आज़ाद हो जायेगा।

उनकी हुकूमत के ज़माने में आर्थिक संबंध समानता व भाईचारे की बुनियाद पर होंगे और स्वार्थता की जगह अपने दीनी भाीयों से हमदर्दी का जज़बा पैदा हो जायेगा। उस ज़माने में सभी लोग आपस में एक दूसरे को घर के एक मेंमबर के रूप में देखेंगे और सबको अपना तस्व्वुर करेंगे और मोहब्बत व हमदर्दी की खुशबू हर जगह फैली हुई होगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया:

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) साल में दो बार लोगों को बख्श दिया करेंगे, और महीने में दो बार उनको रोज़ी व जीविका दिया करेंगे। वह इस काम से लोगों के बीच समानता स्थापित करेंगे। उस ज़माने में लोग ऐसे इतने मालदार हो जायेंगे कि कोई ज़कात लेने वाला ज़रूरतमंद नहीं मिल पायेगा।

विभिन्न रिवायतों से यह नतीजा निकलता है कि लोगों में ग़ुरबत के एहसास के न होने की वजह यह होगी कि उनके यहाँ क़नाअत का एहसास पाया जाता होगा। दूसरे शब्दों में यूँ कहा जाये कि इस से पहले कि कोई उनको माल व दौलत दे, ख़ुद उनके अन्दर का ज़रूरत न होने का एहसास पैदा हो जायेगा। उन्हें जो कुछ ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने फज़्ल व करम से दिया होगा वह उस पर राज़ी रहेंगे, इस लिए वह दूसरों के माल की तरफ़ आँख भी नहीं उठायेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत की तारीफ़ करते हुए फरमाया:

ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों के दिलों में बेनियाज़ी(ज़रूरत न होना) का एहसास पैदा कर देगा।

जबकि ज़हूर से पहले इंसान में स्वार्थता, माल व दौलत जमा करने और ग़रीबों पर खर्च न करने की आदत होगी।

ख़ुलासा यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत में इंसान आन्तरिक व बाह्य दोनों रूपों से बेनियाज़ हो जायेगा, क्योंकि एक तरफ़ तो उन्हें बहुत सी दौलत न्यायपूर्वक विभाजन से मिल जायेगी और दूसरी तरफ इंसानों के दिल में कनाअत व निरीहता पैदा हो जायेगी।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने मोमिनों पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की बख़्शिश के बारे में बयान करते हुए फरमाया:

ख़ुदा वन्दे आलम मेरी उम्मत को बेनियाज़ कर देगा और अदालते महदवी सब पर इस तरह लागू होगी कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) हुक्म फरमायेंगे कि मुनादी यह ऐलान कर देकि कौन है जिस को माल की ज़रुरत है?लेकिन उस ऐलान को सुन कर एक इंसान केअलावा कोई आगे क़दम नहीं बढाएगा।

उस वक़्त इमाम (अ. स.) उससे फरमायेंगे:खज़ानेदार (मालखाने का इन्चार्ज) के पास जाओ और उससे कहना कि इमाम महदी (अ. स.) की तऱफ़ से तुम्हारे लिए यह हुक्म है कि मुझे कुछ मालव दौलत दे दो। यह सुन कर खज़ानेदार उससे कहेगा कि अपनी चादर फैलाओ और उसकी चादर को भर दिया जायेगा।जब वह उस चादर को कमर पर लाद कर चलेगा तो पछता कर कहेगा : उम्मते मुहम्मदी (स.) में सिर्फ़ मैं ही इतना लालची हूँ। इसके बाद वह माल वापस करने के लिए जायेगा, लेकिन उससे वह माल वापस नहीं लिया जायेगा और उससे कहा जायेगा कि हम जो कुछ दे देते हैं वह वापस नहीं लेते

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