नसीहत नामा

“बहुत से अफ़राद मखसूसन जवान जब हमारे पास आते हैं तो नसीहतें चाहते हैं ताकि उनको अपनी ज़िन्दगी के लिए मशले राह बना कर क़ुर्बे ख़ुदा के रास्ते पर आगे बढ़ें। ( इस गुमान के साथ के हमने यह रास्ता पा लिया है और हम इसके शाह राहों व गली कूचों से आगाह हैं, काश के ऐसा होता !) लेकिन जहाँ से हर दरख़वास्त का जवाब मिलता है वहाँ से किसी को बग़ैर जवाब के नही पलटाना चाहिए मखसूसन अहले ईमान, हक़ीक़त जू और राहे हक़ से मुतमस्सिक होने वाले अफ़राद को आयात क़ुरआने करीम की आयात,मसूमीन के अक़ावाल,बुज़ुर्गाने दीन के हालात से इस्तेफ़ादा करते हुए और अपनी ज़िन्दगी के तजर्बों की बिना पर यह चन्द सतरें लिखीं जिनको “बिज़ाअत मज़जात” की शक्ल में आप हज़रात को हदिया कर रहाँ हूँ मैं तमाम हज़रात से इस बात की गुज़ारिश करता हूँ कि जिस तरह मैं आपकी कामयाबी की दुआ करता हूँ इसी तरह आप भी मुझे दुआए ख़ैर में याद रखें।

1- तक़वाए इलाही

सब से पहले मैं अपनी ज़ात को और आप तमाम हज़रात को तक़वाए इलाही की वसीयत करता हूँ उस तक़वे की वसीयत जो अल्लाह का मोहकम क़िला और रोज़े क़ियामत का बेहतरीन सरमाया ही नही बल्कि “ख़ैर उज़्ज़ाद इला ख़ालिक़िल इबाद” है। वह तक़वा जो हमारी रगो जाँ मे सरायत कर जाता है और हमारी तमाम हरकातो सकनात को अपने रंग मे रंग लेता है। “मन अहसना मिन सिबग़ति अल्लाह ” ऐसा तक़वा जो हमारी तमाम आरज़ूओं को पूरा करता है,हमारी ज़िन्दगी की राह को मुशख़्ख़स करता है और फिर राह को रौशन कर के हमारे हदफ़ को आली बनाता है।

वह तक़वा जो सब से बड़ा सरमाया और बुलन्द तरीन इफ़तेख़ार है, वह तक़वा जो इंसान को अल्लाह से जोड़ता और उसके ख़ास बन्दों मे शामिल करा देता है फ़िर उसके दिल की गहराईयों से यह सदा बलन्द होती है “इलाही कफ़ा बी इज़्ज़न अन अकूना लका अब्दन व कफ़ा बी फ़ख़रन अन तकूना ली रब्बन” ऐ मेरे अल्लाह मेरी इज़्ज़त के लिए यह काफ़ी है कि मैं तेरा बन्दा हूँ और मेरे फ़ख़्र के लिए यह काफ़ी है कि तू मेरा रब है। यानी मेरी सबसे बड़ी इज़्ज़त तेरी बन्दगी में और मेरा सबसे बड़ा फ़ख़्र तेरी रबूबियत है।

2-माद्दी मक़ामात उस से कहीँ ज़्यादा कम अहमियत हैं जितना तुम सोचते हो

मेरे अज़ीजो ! मैने अपनी इस मुख़तसर सी ज़िन्दगी में जिन्दगी के नशेबो फ़राज़ को देख है और इस ज़िन्दगी की तलख़ीयों, इज़्ज़त व ज़िल्लत, मालदारी व फ़क़ीरी, ऐशो इशरत व परेशानियों का तजुर्बा करने के बाद क़ुरआने करीम में बयान की गई इस हक़ीक़त को महसूस किया है कि “ व मा अल हयातु अद्दुनिया इल्ला मताउल ग़ुरूर” हाँ दुनिया मताए ग़ुरूर व फ़रेब है जो तुम सोचते हो ऐसा नही है बल्कि यह अन्दर से ख़ाली है।