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हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मोजज़ें

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हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मोजज़ें और करामतें

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ज़िन्दगी का एक हिस्सा, उनके बचपन का ज़माना है जिस में उनके ज़रिये बहुत से मोजज़ें और करामतें देखने को मिलीं हैं, जब कि अल्लाह की इस आख़री हुज्जत की ज़िन्दगी का यह हिस्सा


हमारी ग़फ़लत का शिकार हुआ है। हम यहाँ पर उनकी करामतों में से सिर्फ़ एक नमूना पेश कर रहे हैं।
इब्राहीम इब्ने अहमद निशा पूरी कहते हैं कि :
जिस वक़्त अम्र बिन औफ़ ने (वह एक ज़ालिम और सितमगर बादशाह था और उसे शियों को क़त्ल करने का बहुत ज़्यादा शौक़ था) मुझे क़त्ल करने का इरादा किया, उस वक़्त मैं बहुत ज़्यादा डरा हुआ था। मेरा पूरा जिस्म डर से काँप रहा था। मैं अपने दोस्तों और परिवार वालों से ख़ुदा हाफ़िज़ी कर के हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के घर की तरफ़ रवाना हुआ ताकि उन से भी ख़ुदा हाफिज़ी कर लूँ। मेरा इरादा था कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) से मुलाक़ात के बाद कहीँ भाग जाऊँगा। जब मैं हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के मकान पर पहुँचा तो हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के पास एक बच्चे को देखा उसका चेहरा चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रहा था। मैं उस का नूर देख कर हैरान रह गया, और क़रीब था कि अपने इरादे (क़त्ल के डर से भागने का इरादा) को भूल जाऊँ।
उस मौक़े पर उस बच्चे ने मुझ से कहा कि ऐ इब्राहीम भागने की ज़रूरत नही है। अल्लाह बहुत जल्दी तुम्हें उसके ज़ुल्म से बचा लेगा।
यह सुन कर मेरी हैरानी और बढ़ गई, मैं ने हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) से कहा : मैं आप पर कुर्बान ये बच्चा कौन है, जो मेरे इरादों से जानता है ? हज़रत इमाम अस्करी (अ. स.) ने फ़रमाया : ये मेरा बेटा है और मेरे बाद मेरा जानशीन है।
इब्राहीम कहते हैं कि : मैं हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के मकान से इस हालत में बाहर निकला कि मुझे ख़ुदा के लुत्फ़ व करम की उम्मीदवार थी और मैं ने जो बारहवें इमाम (अ. स.) से सुना था उस पर यक़ीन रखता था। अतः कुछ दिनों के बाद ही मेरे चचा ने मुझे अम्र बिन औफ़ के क़त्ल होने की खुश खबरी दी...[1]
सवालोंकेजवाब
आसमाने इमामत के आख़री रौशन सितारे हज़रत इमाम महदी (अ. स.) अपनी ज़िन्दगी के शुरू से शियों को उनके सवालों के सही, ठोस और संतुष्ट करने वाले जवाब देते थे। उनके जवाबों को सुन कर शियों के दिलों में सकून व इत्मिनान पैदा होता था। हम यहाँ पर ऐसे ही सवालों व जवाबों से संबंधित एक रिवायत नमूने को तौर पर लिख रहे हैं।
सअद इब्ने अब्दुल्लाह क़ुम्मी (यह शियों में एक बहुत बड़ी शख्सीयत थे।), अहमद इब्ने इस्हाक़ क़ुम्मी (यह हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के वकील थे।) के साथ कुछ सवालों के जवाब मालूम करने के लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के पास गये, वापस आकर उन्होंने इस मुलाक़ात का विवरण इस तरह बताया :
जब मैं ने सवाल करना चाहा तो हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपने बेटे की तरफ़ इशारा करते हुए फरमाया : मेरे इस बेटे से सवाल करो। यह सुन कर बच्चे ने मेरी तरफ़ मुँह करके फरमाया : तुम जो सवाल भी पूछना चाहते हो पूछ सकते हो। मैं ने सवाल किया कुरआन के हुरुफ़ मुकत्तेआत में से ”کھیعص“ का क्या मक़सद है ? इमाम (अ. स.) ने फरमाया : यu हुरुफ़ ग़ैब के मसाइल में से हैं। ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने बन्दे और पैग़म्बर जनाब ज़करिया को उनके बारे में बताया और फिर उनके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को दो बारा बताया।
वाक़िया यूं है कि हज़रत ज़करिया (अ. स.) ने ख़ुदा वन्दे आलम से दुआ की कि मुझे पंजतन (आले एबा) के नाम बता दे, ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे जिब्रईल को नाज़िल किया और उन्होंने उनको पंजतन के नाम बताये। जैसे ही जनाबे ज़करीया ने इन मुकद्दस नामों हज़रत मुहम्मद (स.) हज़रत अली (अ. स.), हज़रत फातिमा (स. अ.) और हज़रत हसन (अ. स.) को अपनी ज़बान से लिया तो उनकी मुशकिलें दूर हो गईं और जब उनकी ज़बान पर हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) का नाम आया तो उनका दिल भर आया और वह चकित हो कर रह गये। उन्होंने एक दिन अल्लाह की बारगाह में दुआ की कि ऐ अल्लाह ! जिस वक़्त मैं इन चार इंसानों के नामों को लेता हूँ तो मेरी परेशानियाँ और मुश्किलें दूर हो जाती हैं और दिल को सकून मिलता है, लेकिन जब मैं हुसैन (अ. स.) का नाम लेता हूँ तो मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं और मेरे रोने की आवाज़ बुलन्द हो जाती है ! पालने वाले इस की क्या वजह है ? ख़ुदा वन्दे आलम ने उनको हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) का वाकिया सुनाया और फरमाया : ”کھیعص“ इसी वाकिये की तरफ़ इशारा है। इन हरफ़ों में ”کاف “ से मुराद वाकिया ए करबला, और ”ھا“ से उनके खानदान की हलाकत (शहादत) मुराद है और ”یا“ से यज़ीद के नाम की तरफ़ इशारा है, जो इमाम हुसैन (अ. स.) पर ज़ुल्मो सितम करने वाला है, और ”ع“ से इमाम हसन (अ. स.) की अतश और प्यास मुराद है, और ”صاد“ से हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) का सब्र व मुराद है।
मैं ने सवाल किया : मेरे मौला व आक़ा लोगों को अपने लिए ख़ुद इमाम बनाने से क्यों रोका गया है ?
इमाम (अ. स.) ने फरमाया : इमाम से तुम्हारा अभिप्रायः कौनसा इमाम है, बुराईयाँ फैलाने वाला इमाम या समाज को सुधारने वाला इमाम ? मैं ने कहा : समाज को सुधारने वाला इमाम, इमाम (अ. स.) ने फरमाया : क्योंकि कोई भी किसी दूसरे के दिल की बातें नहीं जानता हैं कि वह नेकी व भलाई के बारे में सोचता है या बुराई के बारे में, इस सूरत में क्या इस बात की शंका नहीं पाई जाती कि जनता जिसे अपना इमाम चुने वह बुराईयाँ फैलाने वाला हो। मैं ने कहा : जी हाँ इस बात की शंका तो पाई जाती है। मेरे इस जवाब को सुनकर इमाम (अ. स.) ने फरमाया : बस यही वजह है...[2]...[3]
उल्लेखनीय है कि इस रिवायत के अन्त में इमामे ज़माना (अ. स.) ने दूसरे कारणो का भी वर्णन किया हैं और दूसरे सवालों के जवाब भी दिये हैं, हम ने संक्षेप की वजह से पूरी रिवायत का उल्लेख नहीं किया है।


[1] . असबातुल हुदात जिल्द न. 3, फसल 7, पेज न. 190
[2] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 43, हदीस 21, पेज न. 190।
[3] . इस बात की व्याख्या किताब के फहले अध्याय में, इमाम के खुदा की तरफ़ से मंसूब होने के शीर्षक के अन्तर्गत उल्लेख हो चुकी है।

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