अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

हज़रत इमाम महदी (अ0) की ग़ैबत और उसकी

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बादशाहे वक़्त ख़लीफ़ा मोतामीद बिन मुतावक्किल अब्बासी जो आपने आबा व अजदाद की तरह सितमकार ख़ुगर और आले मुहम्मद का जानी दुशमन था। उसके कानों में महदी (अ0) की विलादत कि भनक पड चुकी थी। उस ने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ0) की शहादत के बाद तकफ़ीन व तदफ़ीन से पहले बक़ौल अल्लामा मजलिसी हज़रत के घर पर पुलिस का छापा डलवाया और चाहा कि इमाम महदी (अ0) को गिरफ़्तार करा ले। लेकिन चूँकि वह हुक्मे ख़ुदा से 23 रमज़ानुल मुबारक 259, हिजरी को सरदाब में जाकर ग़ायब हो चुके थे। जैसा कि शवाहेदुन नबूवत, नुरूल अबसार, दमातुस साकिबा, रौज़तुश शोहादा, मनाक़िबुल आइम्मा, अनवारुल हुसैनिया वग़ैरा से मुस्तफ़ाद मुस्दबज़ होता है। इसी लिए वह उसे दसतियाब न हो सके। उसने उसके रद्दे अमल में इमाम हसन असकरी (अ0) की तमाम बीवियों को गिरफ़ता करा लिया और हुक्म दिया कि इस अम्र की तहक़ीक़ की जाये कि कोई उनमें से हामिला तो नही है, अगर कोई हामिला हो तो उस का हमल ज़ाया कर दिया जाय। क्योंकि वह हज़रते सरवरे काएनात (स0) की इस पेशीन गोई से ख़ाइफ़ था कि आख़री ज़माने में मेरा एक फ़रज़न्द जिसका नाम महदी होगा। कायनाते आलम के इन्क़ेलाब का ज़ामिन होगा, और उसे यह मालूम था कि वह फ़रज़न्दे इमाम हसन असकरी (अ0) की औलाद से ही होगा। लिहाज़ा उस ने अपकी तलाश और आपके क़त्ल की पूरी कोशिश की। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1, सफ़ा 31 में है कि 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ0) कि शहादत के बाद जब मोतमिद ख़लीफ़ा-ए-अब्बासी ने आपके क़त्ल करने के लिये आदमी भेजे तो आप (सरदाबे) 1 सरमन राय में ग़ायब हो गये। बाज़ अकाबिर उलमा-ए-अहले सुन्नत भी इस अम्र में शियों के हम ज़बान हैं। चुनान्चे मुल्ला जामी ने शवाहेदुन नबूवत में इमाम अब्दुल वहाब शेरानी ने लवाक़े उल अनवार अल यवाक़ीत वल जवाहर में ओर शेख़ अहमद मुहिउद्दीन इब्ने अरबी ने फ़तुहाते मक्किया में और ख्वाज़ पारसा ने फ़सलुल ख़िताब में मुहद्दिस देहलवी ने रिसाला-ए-आइम्मा-ए-ताहेरीन में और जमालुद्दीन मुहद्दिस ने रौज़तुल अहबाब में, अबू अब्दुल्लाह शामी साहिबे किफ़ायतुत तालिब ने अपनी किताब अत्तिबयान फ़ी अख़बारि साहिबुज़्ज़मान में और सिब्ते इब्ने जौज़ी ने तज़किरा-ए- ख़्वासुल उम्मत में और इब्ने लबाग़ नूरूद्दीन अली मालकी ने फ़ुसूलुल मुहिम्मा में और कमालुद्दीन इब्ने तलहा शाफ़ई ने मतालेबुल सुवेल में और शाह वली उल्लाह ने फ़ज़लुल मुबीन में और शेख़ सुलैमान हनफ़ी ने यनाबि-उल- मवद्दा में और बाज़ दीगर उलामा ने भी ऐसा ही लिखा है जो लोग इन हज़रत के तवील उम्र होने में ताअज्जुब करके इंकार करते हैं उनको यह जवाब देते है कि ख़ुदा की कुदरत से कुछ बईद नही है जिस ने आदम को बग़ैर माँ बाप के और ईसा (अ0) को बग़ैर बाप के पैदा किया, तमाम अहले इस्लाम ने हज़रत ख़िज़्र (अ0) को अब तक ज़िन्दा माना हुआ है, इदरीस (अ0) को बहिश्त में और हज़रत ईसा (अ0) को आसमान पर अब तक ज़िन्दा मानते हैं और अगर ख़ुदा-ए-तआला ने आले मुहम्मद (स0) में से एक शख़्स को तूले उम्र इनायत की तो ताअज्जुब क्या है? हालां कि अहले इस्लाम को दज्जाल के मौजूद होने और क़रीबे क़ियामत ज़हूर करने से इंकार नही है। किताब शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 68 में है कि ख़ानदाने नबूवत के ग्यारहवें इमाम हसन अकरी (अ0) 260 हिजरी में ज़हर से शहीद कर दिए गए थे। उनकी वफ़ात पर इनके साहब ज़ादे जिनका नाम मुहम्मद व लक़ब महदी है शियों के आख़री इमाम हुए।

मोलवी अमीर लिखते है कि ख़ानदाने रिसालत के इन इमामों के हालात निहायत दर्द नाक हैं। ज़ालिम मुतावक्किल ने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ0) के वालिदे माजिद इमाम अली नक़ी को मदीने से सामरा, पकड़ बुलाया था और वहाँ उनकी वफ़ात तक उनको नज़र बन्द रखा था। फिर ज़हर से हलाक कर दिया था इसी तरह मुतवक्किल[2] के जानशीनों ने बदगुमानी और हसद के मारे हज़रत इमाम हसन असकरी (अ0) को क़ैद रखा था। उन के कमसिन साहब ज़ादे मुहम्मद अल महदी जिनकी उम्र अपने वालिद की वफ़ात के वक़्त पांच साल की थी। ख़ौफ़ के मारे अपने घर के क़रीब ही एक ग़ार में छुप गये और ग़ायब हो गये। इब्ने बतूता ने अपने सफ़र नामे में लिखा है कि जिस ग़ार में इमाम महदी (अ0) की ग़ैबत बताई जाती है उसे मैने आपनी आँखों से देखा है। (नूरुल अबसार जिल्द 1, सफ़ा 152) अल्लामा हजरे मक्की का इरशाद है कि इमाम महदी (अ0) सरदाब में ग़ायब हुऐ थे। “फ़लम याअरफ़ यज़हब” फिर मालूम नहीं कहां तशरीफ़ ले गये।

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