रचयिता ही पालनहार

पालनहार वही हो सकता है जिसमें सूझबूझ और सुशासन हो। इसके साथ ही सुरक्षा करना, जीवन व मृत्यु देना, रोज़ी-रोटी की व्यवस्था करना, कल्याण करना

 

मार्गदर्शन करना और बुराईयों से रोकना तथा अच्छाईयों की ओर आकृष्ट करना जैसे कार्य पालनहार की विशेषताएं हैं और यह सब कुछ उसमें होना चाहिए।

 

ईश्वर, पालनहार है। इस दृष्टि से वह अपनी सभी रचनाओं का ध्यान रखता है किंतु उसकी रचनाओं में अत्याधिक विविधता है इसीलिए

 

ईश्वर भी पालनहार होने के नाते हर रचना का उसकी मूल आवश्यकता व बनावट के अनुसार ध्यान रखता है और उसकी आवश्यकताएं पूरी करता है।

 

हमारी इस चर्चा का सार यह है कि ईश्वर के पालनहार होने का अर्थ यह है कि सृष्टि की सभी रचनाएं अपने सभी कामों के लिए ईश्वर पर निर्भर होती हैं

 

और ईश्वर की रचनाओं की एक दूसरे पर जो निर्भरता नज़र आती है वह भी अन्ततः उसी एकमात्र व महान पालनहार पर जाकर समाप्त होती है

 

और वही है जो अपनी कुछ रचनाओं को कुछ दूसरी रचनाओं द्वारा चलाता है। रोज़ी लेने वालों को अपनी पैदा की हुई रोज़ी द्वारा जीवित रखता है

 

और बोध रखने वाली अपनी रचनाओं को आंतरिक साधनों अर्थात बुद्धि व बोध तथा इन्द्रियों और बाह्य साधनों अर्थात ईश्वरीय दूतों और ग्रंथों द्वारा सही मार्ग दिखाता है।

 

यदि रचनाकार और पालनहार के अर्थों पर ध्यान दिया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि इन दोनों का अर्थ एक दूसरे के लिए आवश्यक है।

 

यह नहीं हो सकता कि इस सृष्टि का रचनाकार कोई और हो और पालनहार कोई दूसरा। बल्कि जिसने इस विविधतापूर्ण सृष्टि की रचना की है

 

और अपनी समस्त रचनाओं को एक दूसरे पर निर्भर किया है वही उनकी रक्षा भी करता है और वास्तव में पालनहार होने और प्रशासन व दूरदर्शिता का अर्थ

 

ईश्वरीय रचनाओं की दशाओं और एक दूसरे पर निर्भरता से समझ में आता है और यह पता चलता है कि सृष्टि का रचनाकार जो पालनहार भी है कितना दूरदर्शी और सूझबूझ वाला है?

 

इस चर्चा के मुख्य बिंदुः

 

• ईश्वर द्वारा किसी वस्तु को बनाना, साधारण मनुष्य द्वारा किसी वस्तु को बनाने की भांति नहीं है।

 

• सृष्टि की समस्त रचनाओं में किसी भी प्रकार की स्वाधीनता नहीं पाई जाती बल्कि पालनहार ईश्वर उनकी रचना के बाद उन्हें जिस दशा में चाहता है रखता है,

 

जिस प्रकार चाहता है उनमें परिवर्तन करता है और उन्हें प्रयोग करता है।

 

• रचनाकार और पालनहार के अर्थ एक दूसरे के लिए आवश्यक हैं अतः यह नहीं हो सकता कि कि इस सृष्टि का रचनाकार कोई और हो और पालनहार कोई दूसरा।