ईश्वरीय दूत और आधुनिक प्रगति

पिछले कार्यक्रम में हमने एक शंका का उल्लेख किया था कि कोई यह कह सकता है कि यदि ईश्वरीय दूत मानव समाज के कल्याण के लिए आए थे तो फिर उन्होंने क्यों नहीं मानव समाज के सामने ज्ञान पर पड़े सारे पर्दे हटा दिये ताकि मनुष्य प्रगति व विकास के उस स्थान पर एकदम से पहुंच जाता जहां तक उसे पहुंचने में शताब्दियां लगी हैं। शकां यह है कि यदि ईश्वर ने अपने दूतों को मानव समाज के कल्याण के लिए भेजा था तो फिर उसने क्यों नहीं अपने दूतों द्वारा मनुष्य को उदाहरण स्वरूप टीबी या इंफ्लुंज़ा या प्लेग जैसे रोगों का उपचार बताया जो शताब्दियों तक लाखों लोगों की मृत्यु का कारण बने और यह भी आपत्ति यह की जाती है कि ईश्वर को तो हर वस्तु का ज्ञान है तो फिर उसने क्यों नहीं अपने दूतों द्वारा मनुष्य को उदाहरण स्वरूप बिजली या आज के आधुनिक संचार माध्यमों से लाभ उठाने का अवसर प्रदान किया? अर्थात उसके दूतों ने क्यों नहीं इन सब वस्तुओं का आविष्कार किया? यदि वे ऐसा करते तो एक ओर तो समाज का भला होता और मनुष्य को वह सुविधाएं जिन्हें प्राप्त करने में सैंकड़ों वर्ष लग गये, बहुत पहले ईश्वरीय दूतों द्वारा प्राप्त हो जातीं और दूसरी ओर इस से समाज पर ईश्वरीय दूतों के प्रभाव में वृद्धि होती और समाज पर उनकी पकड़ मज़बूत होती तथा इससे उन्हें अपना अभियान पूरा करने में भी सरलता होती और वे अपने ईश्वरीय लक्ष्य तक पहुंच जाते।

 

इस शंका का उत्तर यह है कि ईश्वरीय दूतों और ईश्वरीय संदेश की आवश्यकता उन विषयों के लिए होती है जिन तक मनुष्य अपने साधारण ज्ञान द्वारा नहीं पहुंच सकता किंतु यदि उसे उन विषयों का ज्ञान नहीं होगा तो वह परिपूर्णता तक भी नहीं पहुंच पाएगा। अर्थात ईश्वरीय दूत उन विषयों का वर्णन करते हैं जिन का ज्ञान परिपूर्णता और परलोक में सफलता के लिए अनिवार्य है किंतु वह विषय ऐसे हैं जिन्हें मनुष्य अपने साधारण ज्ञान से समझ नहीं सकता इसलिए ईश्वर ने इस प्रकार की सूचनाओं व जानकारियों से मनुष्य को अवगत कराने के लिए ईश्वरीय दूत और अपने संदेश का प्रंबंध किया है।

 

इस बात को हम यदि अधिक स्पष्ट करते हुए कहेगें कि ईश्वरीय दूतों का मुख्य कर्तव्य यह है कि वह लोगों की सही जीवन शैली और परिपूर्णता की ओर बढ़ने में सहायता करें ताकि वह हर स्थिति में अपने कर्तव्यों को पहचानें और अपनी योग्यताओं को अपने इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रयोग करें। ईश्वरीय दूतों का यह अभियान और कर्तव्य मानव समाज के हर वर्ग से संबंधित और सब के लिए समान होता है अर्थात समाज के हर वर्ग के लिए मानवीय मूल्यों की प्राप्ति और ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्यों की जानकारी आवश्यक है। इसके साथ ही यह भी जानना आवश्यक है कि सृष्टि के अन्य प्राणियों और वस्तुओं के प्रति उनका व्यवहार कैसा हो और अन्य लोगों के बारे में उनके क्या दायित्व हैं ताकि वे इन बातों पर ध्यान रखें और परिपूर्णिता और परलोक की सफलता तक पहुंच जाएं।

 

यह नियम समाज के किसी एक वर्ग, जाति या समुदाय या इतिहास के किसी युग से विशेष नहीं है बल्कि हर युग के और हर वर्ग, जाति व समुदाय के मनुष्य के लिए समान है किंतु योग्यताओं ,साधनों तथा प्राकृतिक व उद्योगिक साधनों में भिन्नता विशेष परिस्थितियों के अंतर्गत होती है और उनकी मनुष्य के परिपूर्णता और परलोक की सफलता में कोई भूमिका नहीं होती जैसाकि आज के आधुनिक युग के अधिकांश आविष्कार संसारिक सुख भोग में सरलता का कारण है किंतु आध्यात्मिक विकास में उनकी कोई भूमिका नहीं है बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि इस प्रकार के साधनों से मनुष्य में आध्यात्मिक भावना कमज़ोर पड़ी है। इस प्रकार से निष्कर्ष यह निकला कि ईश्वर की तत्वदर्शिता व तत्वज्ञान के अनुसार मनुष्य भौतिक साधनों व वस्तुओं को प्रयोग करते हुए अपना संसारिक जीवन व्यतीत करे और बुद्धि, ईश्वरीय संदेश और ईश्वरीय दूतों की सहायता से अपना आध्यात्मिक जीवन सुव्यस्थित करे और अपनी परलोक की सफलता की दिशा का निर्धारण करे। यह जो विभिन्न समाजों की प्रगतियों व साधनों में अंतर होता है और इसी प्रकार विभिन्न युगों में सुविधाओं और साधनों में अंतर नज़र आता है तो वह वास्तव में सृष्टि की उस महा व्यवस्था के कारण है जो ईश्वर ने निर्धारित कर दी है अर्थात कारक और परिणाम के सिद्धान्त के अंतर्गत है। अर्थात ईश्वर ने इस सृष्टि में हर वस्तु निहित की है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह हर प्रगति और विकास तक मनुष्य का हाथ पकड़ कर उसे पहुंचाएं। ईश्वर ने हर प्रकार के ज्ञान और हर वस्तु के लिए कुछ चरणों का निर्धारण किया है और मनुष्य जब भी उन चरणों से गुज़रेगा तो उसके परिणाम तक पहुचं जाएगा अब वह मनुष्य चाहे जिस धर्म जाति या समुदाय का हो या चाहे जिस युग का हो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। यही कारण है कि हम वैज्ञानिक प्रगति और सुख सुविधाओं और साधनों की भरमार को ईश्वर के प्रेम व निकटता का प्रमाण नहीं कह सकते। अर्थात यदि किसी धर्म के अनुयाईयों ने अत्यधिक वैज्ञानिक प्रगति की हो और उन्हें सुख सुविधाएं भी प्राप्त हों तो हम यह नहीं कह सकते कि यह उनके धर्म के सच्चे होने का प्रमाण हैं क्योंकि ज्ञान व प्रगति एक गंतव्य है जिसका एक निर्धारित मार्ग है और ईश्वर ने व्यवस्था यह की है कि जो भी उस निर्धारित मार्ग पर चलेगा वह उसके निर्धारित गंतव्य तक पहुंचेगा। इसके अतिरिक्त यह भी स्पष्ट है कि ससांरिक साधन किसी भी रूप से आध्यात्मिक विकास में सहायक नहीं होते और ऐसा बहुत देखा गया है कि संसारिक साधनों से वंचित बहुत से लोग, आध्यात्म की ऊंची चोटियों तक पहुंचे होते हैं और संसारिक साधनों और समृद्धता में डूबे हुए लोग आध्यात्मिक रूप से खाली होते हैं किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि ईश्वरीय दूतों ने अपने मुख्य कर्तव्य के अलावा मनुष्य के संसारिक विकास पर ध्यान ही नहीं दिया। ईश्वरीय दूतों ने बेहतर संसारिक जीवन के लिए जहां भी ईश्वर ने उचित समझा प्रकृति के रहस्यों से पर्दा हटाकर मानव सभ्यता के विकास में उनकी सहायता की जिसके बहुत से उदाहरण ईश्वरीय दूतों की जीवनियों में मिलते हैं किंतु यह इस प्रकार के सारे काम ईश्वरीय दूतों के कर्तव्य से अतिरिक्त काम थे जो सेवाओं के अंतर्गत थे।