कारक और ईश्वर

पश्चिमी बुद्धिजीवी ईश्वर के अस्तित्व की इस दलील पर कि हर वस्तु के लिए एक कारक और बनाने वाला होना चाहिए यह आपत्ति भी करते हैं कि यदि यह सिदान्त सर्वव्यापी है अर्थात हर अस्तित्व के लिए एक कारक का होना हर दशा में आवश्यक है तो फिर यह सिद्धान्त ईश्वर पर भी यथार्थ होगा अर्थात चूंकि वह भी एक अस्तित्व है इस लिए उसके लिए भी एक कारक ही आवश्यकता होनी चाहिए जबकि ईश्वर को मानने वालों का कहना है कि ईश्वर मूल कारक है और उसके लिए किसी भी कारक की आवश्यकता नहीं इस प्रकार से यदि ईश्वर को मानने वालों की यह बात स्वीकार कर ली जाए तो इस का अर्थ यह होगा कि ईश्वर ऐसा अस्तित्व है जिसे कारक की आवश्यकता नहीं है अर्थात वह कारक आवश्यक होने के सिद्धान्त से अलग है तो इस स्थिति में ईश्वरवादियों द्वारा इस सिद्धान्त को प्रयोग करते हुए मूल कारक अर्थात ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करना भी ग़लत हो जाता है । अर्थात यह नहीं कहा जा सकता था कि मूल कारक ईश्वर है बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि मूल पदार्थ और ऊर्जा भी बिना किसी कारक के अस्तित्व में आई और फिर उसमें जो परिवर्तन आए उससे सृष्टि की रचना हो गयी ।




इस शंका के उत्तर में यह कहा जाता है कि वास्तव में यदि कोई इस सिद्धान्त को कि हर अस्तित्व के लिए कारक की आवश्यकता होती है सही रूप से समझे तो इस प्रकार की शंका उत्पन्न नहीं होती वास्तव में यह शंका कारक सिद्धान्त की ग़लत व्याख्या के कारण उत्पन्न होती है अर्थात शंका करने वाले यह समझते हैं कि यह जो कहा जाता है कि हर अस्तित्व के लिए कारक की आश्यकता होती है उसमें ईश्वर का अस्तित्व भी शामिल है जबकि ईश्वर के अस्तित्व का प्रकार भिन्न होता है इस लिए यदि इस मूल सिद्धान्त को सही रूप से समझना है तो इस वाक्य को इस प्रकार से कहना होगा कि हर निर्भर अस्तित्व या संभव अस्तित्व को कारक की आवश्यकता होती है और इस इस सिद्धान्त से कोई भी इस प्रकार का अस्तित्व बाहर नहीं है किंतु यह कहना कि कोई पदार्थ या ऊर्जा बिना कारक के अस्तित्व में आ सकती है सही नहीं है क्योंकि पदार्थ और ऊर्जा का अस्तित्व संभव या निर्भर अस्तित्व है इस लिए वह इस सिद्धान्त से बाहर नहीं हो सकता किंतु ईश्वर का अस्तित्व चूंकि निर्भर व संभव अस्तित्व के दायरे में नहीं है इस लिए वह संभव व निर्भर अस्तित्व के लिए निर्धारित सिद्धान्तों से भी बाहर है।



एक शंका यह भी की जाती है कि संसार और मनुष्य के रचयता के अस्तित्व पर विश्वास, कुछ वैज्ञानिक तथ्यों से मेल नहीं खाता । उदाहरण स्वरूप रसायन शास्त्र में यह सिद्ध हो चुका है कि पदार्थ और ऊर्जा की मात्रा सदैव स्थिर रहती है तो इस आधार पर कोई भी वस्तु, न होने से , अस्तित्व में नहीं आती और न ही कोई वस्तु कभी भी सदैव के लिए नष्ट होती है जबकि ईश्वर को मानने वालों का कहना है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना ऐसी स्थिति में की जब कि कुछ भी नहीं था और एक दिन सब कुछ तबाह हो जाएगा और कुछ भी नहीं रहेगा ।



इसी प्रकार जीव विज्ञान में यह सिद्ध हो चुका है कि समस्त जीवित प्राणी , प्राणहीन वस्तुओं से अस्तित्व में आए हैं और धीरे धीरे परिपूर्ण होकर जीवित हो गये यहां तक कि मनुष्य के रूप में उनका विकास हुआ है किंतु ईश्वर को मानने वालों का विश्वास है कि ईश्वर ने सभी प्राणियों को अलग-अलग बनाया है।



इस प्रकार की शंकाओं के उत्तर में यह कहना चाहिए कि पहली बात तो यह है कि पदार्थ और ऊर्जा का नियम एक वैज्ञानिक नियम के रूप में केवल उन्ही वस्तुओं के बारे में मान्य है जिनका विश्लेषण किया जा सकता हो और उसके आधार पर इस दार्शनिक विषय का कि क्या पदार्थ और ऊर्जा सदैव से हैं और सदैव रहेंगे या नहीं, कोई उत्तर नहीं खोजा जा सकता ।



दूसरी बात यह है कि ऊर्जा और पदार्थ की मात्रा का स्थिर रहना और सदैव रहना, इस अर्थ में नहीं है कि उन्हें किसी रचयता की आवश्यकता ही नहीं है बल्कि ब्रहमांड की आयु जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक उसे किसी रचयता की आवश्यकता होगी क्योंकि रचना के लिए रचयता की आवश्यकता का मापदंड, उस के अस्तित्व में आवश्कयता का होना है न कि उस रचना का घटना होना और सीमित होना।



दूसरे शब्दों में पदार्थ और ऊर्जा , संसार के भौतिक कारक को बनाती है स्वंय कारक नहीं है और पदार्थ और ऊर्जा को स्वंय ही कर्ता व कारक की आवश्यकता होती है।



तीसरी बात यह है कि ऊर्जा व पदार्थ की मात्रा के स्थिर होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि नयी वस्तुंए पैदा नहीं हो सकतीं और उन में वृद्धि या कमी नहीं हो सकती और इसी प्रकार आत्मा , जीवन , बोध और इरादा आदि पदार्थ और ऊर्जा नहीं हैं कि उन में कमी या वृद्धि को पदार्थ व ऊर्जा से संबधिंत नियम का उल्लंघन समझा जाए।



और चौथी बात यह कि वस्तुओं के बाद उनमें प्राण पड़ने का नियम यद्यपि अभी बहुत विश्वस्त नहीं हैं और बहुत से बड़े वैज्ञानिकों ने इस नियम का इन्कार किया है किंतु फिर भी यह ईश्वर पर विश्वास से विरोधाभास नहीं रखता और अधिक से अधिक यह नियम जीवित प्राणियों में एक प्रकार के योग्यतापूर्ण कारक के अस्तित्व को सिद्ध करता है किंतु इस से यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि इस नियम का विश्व के रचयता से कोई संबंध है क्योंकि इस नियम में विश्वास रखने वाले बहुत से लोग और वैज्ञानिक इस सृष्टि और मनुष्य के लिए एक जन्मदाता के अस्तित्व में विश्वास रखने थे और रखते हैं।