अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

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आज 3 रजब, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है। रजब की तीसरी तारीख़ को इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई थी।

वे ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने एक विशेष कालखण्ड में बड़ी ही सूझबूझ और दूरदर्शिता से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों की विचारधारा और उनकी संस्कृति को फेरबदल से बचाया तथा उसके सही रूप को सुरक्षित रखने के लिए प्रयासरत रहे।

१५ ज़िलहिज सन २१२ हिजरी क़मरी को इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र नगर मदीना के निकट हुआ था। जब वर्ष २२० में उनके पिता इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की शहादत हुई तो इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन जैसे महान कार्य का दायित्व उनके कांधों पर आ गया।

इमाम अली नक़ी (अ) ने ३३ वर्षों तक जनता का मार्गदर्शन किया। इमाम अली नक़ी (अ) के ईश्वरीय मार्गदर्शन के काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों पर बहुत कड़ाई होती व दबाव डाला जाता था। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में जो ६ अब्बासी शासक गुज़रे हैं उन छह अब्बासी शासको में एक मुतवक्किल भी था जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के साथ शत्रुता एवं द्वेष के लिए प्रसिद्ध था। मुतवक्किल ने लगभग १५ वर्षों तक शासन किया। यही कारण है कि अन्य अब्बासी शासकों की तुलना में मुतवक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ) के काल में अधिक समय व्यतीत किया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने प्रचारिक, सांस्कृतिक और प्रशिक्षण संबन्धी कार्यक्रम बनाकर अब्बासी शासकों के विरुद्ध परोक्ष रूप में संषर्घ आरंभ किया था।

अब्बासी शासकों के मुक़ाबले में इमाम अली नक़ी की ओर से अपनाई गई नीतियां इस वास्तविकता को स्पष्ट करती हैं कि संघर्ष का मार्ग केवल सशस्त्र संघर्ष और सैनिक कार्यवाही ही नहीं है बल्कि वास्तव में संघर्ष का अर्थ एसी शैली अपनाना है कि जिससे शत्रु को अधिक से अधिक क्षति पहुंचे और वह शत्रु को उसके लक्ष्यों तक पहुंचने में विफल बनाए।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि तत्कालीन अत्याचारी शासकों का मुक़ाबला करने में इमाम अली नक़ी की शैली एक प्रकार का नर्म युद्ध थी।

इमाम अली नक़ी (अ) ने अपने काल में संघर्ष की सर्वोत्तम शैली अपनाई थी जो बहुत से अवसरों पर शत्रु को प्रभावित तथा हतप्रभ कर देती थी।

संभवतः यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन जो सदैव ही बनी अब्बास और बनी उमय्या के परिवेष्टन में रहते थे, सुदृढ़ तर्कों, दृढ दृष्टिकोणों और आस्था संबन्धी मज़बूत विचारों के स्वामी थे और वे विभिन्न शैलियों से उन दृष्टिकोणों का प्रचार किया करते थे।

जब भी इस्लाम के बारे में कोई भी भ्रांति उत्पन्न होती तो उसका संतोषजनक उत्तर केवल पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों की ही ओर से दिया जाता था। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की ओर से इस प्रकार की तार्किक प्रतिक्रिया ने इस्लाम की वैचारिक योजना का मार्ग प्रशस्त किया। इमाम अली नक़ी (अ) के काल में पाया जाने वाला घुटन भरा वातावरण, और वैचारिक तथा आस्था से संबन्धित शंकाओं को समाज में फैलाना दो एसी महत्वपूर्ण बुराइयां थीं कि यदि इमाम अली नक़ी की दूरदर्शिता और उनकी दूरदर्शी शैलियां न होतीं तो इस्लाम की मौलिक विचारधारा और आस्था संबन्धित मूलभूत विषयों के लिए बहुत ही ख़तरनाक समस्याएं आ सकती थीं।

इससे पहले कि इमाम अली नक़ी (अ) को अब्बासी शासन के कारिंदों द्वारा सामर्रा लाया जाता वे पवित्र नगर मदीना में जीवन व्यतीत करते थे जो इस्लामी जगत का शैक्षिक एवं धार्मिक केन्द्र माना जाता था। मदीने में इमाम अली नक़ी की गतिविधियों ने अत्याचारी अब्बासी शासकों को चिन्तित कर दिया था। इसीलिए उन्होंने इमाम अली नक़ी (अ) को सामर्रा जाने पर विवश किया। इमाम अली नक़ी (अ) ने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष सामर्रा में सरकार की निगरानी में व्यतीत किये। तत्कालीन शासकों की ओर से इमाम पर कड़ी दृष्टि रखने से आम लोगों तक उनकी पहुंच कठिन हो गई थी। इसलिए समाज में इमाम की अनुपस्थिति, आस्था संबन्धी बहुत सी समस्याओं की भूमिका बन सकती थी, और इसका परिणाम यह निकलता कि समाज में विभिन्न प्रकार के वैचारिक गुट अस्तित्व में आते तथा समाज में अनुचित विचारधाराएं प्रचलित हो जातीं। इन्हीं बातों के दृष्टिगत उस समय इस्लाम के लिए गंभीर ख़तरे उत्पन्न हो गए थे।

इमाम की दूरदर्शिता और इस प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु उनकी ओर से अपनाई जाने वाली शैलियां और साथ ही इस्लामी जगत के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले अपने अनुयाइयों के मध्य एकता उत्पन्न करने के लिए इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने कुछ प्रतिनिध नियुक्त किये थे जो जनता से संपर्क करते और वे जनता तथा इमाम के बीच संपर्क का काम किया करते थे। यह लोग छिपकर लोगों से मिलते और उनकी समस्याओं के समाधान के प्रयास करते।विगत में भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के माध्यम से इस प्रकार की व्यवस्था मौजूद थी किंतु इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में राजनीतिक, वैचारिक तथा ज्ञान संबन्धी इस व्यवस्था ने विशेष महत्व प्राप्त किया और यह अधिक विस्तृत एवं व्यापक हुई।

वास्तव में यह व्यवस्था इमाम और जनता के मध्य संपर्क तथा संबन्धों को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से तत्कालीन संकटग्रस्त परिस्थितियों में इमाम अली नक़ी (अ) की ओर से एक पहल थी।इस कालखण्ड में, बाद में आने वाले कठिन संकटों से मुक्ति पाने के बारे में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का नेतृत्व बहुत ही उपयोगी एवं प्रभावी सिद्ध हुआ। क्योंकि उनके काल में राजनीतिक स्थिति कुछ इस प्रकार से आगे बढ़ रही थी कि उनके बाद वाले इमाम अर्थात इमाम असकरी अलैहिस्सलाम के काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों को अधिक दबाव एवं घुटन के वातावरण में रहना पड़ता।

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अनुयाइयों के बीच ज्ञान संबन्धी सामाजिक एवं सुरक्षा व्यवस्था बनाने में इस व्यवस्था की महत्वूपर्ण भूमिका रही है। इस व्यवस्था के माध्यम से इमाम के संदेश बहुत ही तेज़ तथा सुव्यवस्थित ढंग से विश्वसनीय चैनेल के माध्यम से उनके अनुयाइयों तक इस प्रकार पहुंचते थे कि सुरक्षा की दृष्टि से उनके लिए कोई समस्या न आए और न ही किसी अन्य को उनके स्थान का पता चल सके। यह व्यवस्था लोगों के धार्मिक एवं ज्ञान संबन्धी प्रश्नों के उत्तर के लिए मुख्य स्रोत उपलब्ध करवाती थी ताकि वैचारिक एवं आस्था संबन्धी भ्रांतियों का निवारण किया जा सके। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों की विचारधारा को सुदृढ़ करने के लिए इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की एक अन्य कार्यवाही, इमामत के महत्व को समझाना था।

इमामत को पहचनवाने का एक मार्ग, ज़ियारते जामे कबीरा का परिचय है जो इमाम की पहचान का महत्वपूर्ण स्रोत है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस ज़ियारत के आरंभ में १०० बार अल्लाहो अकबर कहने को आवश्यक समझते हैं क्योंकि यह एकेश्वरवाद का तर्क है। इसके पश्चात वे इमामत का दावा करने वालों के दावों को रद्द करने के लिए दुआ के रूप में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के वास्तविक महत्व को स्पष्ट करते हैं। ज़्यारते जामे कबीरा में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों को ज्ञान का स्रोत बताना, विभिन्न पंथों की आस्था को रद्द करने के अर्थ में है जो उमवी शासकों तथा अन्य को इमाम मानते थे। तत्कालीन तथा समकालीन इस्लामी समाज की वैचारिक सोच को उचित स्वरूप देने के लिए सर्वोत्तम प्रमाण ज़्यारते जामे नामक दुआ है जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के अनुयाइयों के बीच वैचारिक सुदृढ़ता तथा दिगभ्रमित न होने के लिए एक दीप के समान है।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की ओर से इस प्रकार की कार्यवाही के दो आयाम थे। एक तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के सामाजिक एवं मार्गदर्शन के महत्व की सुरक्षा तथा इमाम और लोगों के बीच संपर्क स्थापित करना।

दूसरे उन लोगों के विचारों को रद्द करना जो इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के बारे में अतिश्योक्ति करते थे।इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों से लाभ उठाकर लोगों को अब्बासियों के अवैध शासन होने के बारे में बताते और मुसलमानों को उनके साथ हर प्रकार की सहकारिता करने से दूर रहने की नसीहत करते थे।

इस प्रकार वे अब्बासी शासकों की छवि को जनता के लिए स्पष्ट करते थे। उन्होंने अत्याचारी शासकों के विरुद्ध संघर्ष करके लोगों को इस वास्तविकता से अवगत करवाया कि वे अपनी आकांक्षाओं को क्षणिक आनंद की बलि न चढ़ने दें और साथ ही इस बात को समझ लें कि अत्याचार के साथ सांठ-गांठ से एसी आग लगेगी जो उन्हें भी अपनी चपेट में ले लेगी।

अब्बासी शासन के एक कर्मचारी ने, जिनका नाम अली बिन ईसा था इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को पत्र भेजकर अब्बासी शासन के लिए काम करने और उसके बदले पैसे लेने के बारे में प्रश्न किया। उसके उत्तर में इमाम ने इस प्रकार लिखा था कि उस सीमा तक सहकारिता करने में कोई बुराई नहीं है जो विवश होकर करनी पड़ती हो किंतु उसके अतिरिक्त सहकारिता, करना उचित नहीं है। यदि वहां पर काम करने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है तो फिर अधिक की तुलना में कम काम उचित है। यह व्यक्ति पुनः पत्र लिखकर इमाम से पूछता है कि शासन के साथ सहकारिता से उसका उद्देश्य, इस शासन को क्षति पहुंचाने के लिए अवसर की तलाश है। इसके उत्तर में इमाम लिखते हैं कि एसी स्थिति में उनके साथ सहकारिता न केवल हराम नहीं है बल्कि अच्छी है।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपनी इस सिफ़ारिश से संघर्ष की शैली निर्धारित की और स्षष्ट किया कि शासन को किसी भी प्रकार की वैधता प्राप्त नहीं है।अंततः इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम जैसे महान व्यक्ति को सहन करना अत्याचारी शासकों के लिए कठिन होता जा रहा था, इसीलिए उन्होंने इमाम को अपने रास्ते से हटाने का निर्णय लिया।

तत्कालीन अब्बासी शासक मोतज़ के आदेश पर एक षडयंत्र के अन्तर्गत ३ रजब २५४ हिजरी क़मरी को इमाम को शहीद कर दिया गया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के समाचार ने अत्याचारग्रस्त जनता को बहुत दुखी किया।

उनकी शहादत का समाचार मिलते ही बड़ी संख्या में लोग उनके घर पर एकत्रित हुए और पूरा नगर उनकी शहादत के शोक में डूब गया। श्रोताओ इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर आपकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए कार्यक्रम का अंत उन्हीं के एक कथन से करते हैं। आप कहते हैं कि धनवान होने का अर्थ यह है कि अपनी इच्छाओं को सीमित करो और जो कुछ आपके लिए पर्याप्त है उसपर सहमत रहो।

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