मोहर्रम
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद
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कत्ले हुसैन असल में मर्गे यज़ीद है, इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...
आशूरा के पैग़ाम
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बनी उमैय्या की हुकूमत की कोशिश यह थी कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की सुन्नत को मिटा कर ज़मान-ए-जाहिलियत की सुन्नत को जारी किया जा...........
आशूरा का पैग़ाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़बानी
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इमाम हुसैन अ.स. का करबला में आ कर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का कारण इस्लामी समाज में पैदा की गई वह गुमराहियां और बिदअतें थीं जिसकी बुनियाद सक़ीफ़ा में रखी गई थी, जिसके बाद से इस्लामी हुकूमत अपनी जगह से भटक कर बहुत से ग़लत रास्तों पर चली गई
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
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- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
यह इमाम हुसैन के चेहलुम का दिन है और शेख़ैन के कथानुसार इमाम हुसैन के अहले हरम इसी दिन शाम से मदीने की तरफ़ चले थे, इसी दिन जाबिर बिन अबदुल्लाहे अंसारी इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए कर्बला पहुँचे और आप ही इमाम के पहले ज़ाएर हैं, आज के दिन इमाम हुसैन की ज़ियारत करना मुस्तहेब है।
ज़ियारते अरबईन की अहमियत
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ज़ियारते अरबईन का महत्व इस लिए नहीं है कि वह मोमिन की निशानियों में से हैं बल्कि इस रिवायत के अनुसार चूँकि ज़ियारते अरबईन वाजिब और मुस्तहेब नमाज़ें की पंक्ति में आई है,
बीस मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
तुम इस यात्रा पर हमारे साथ चैन और सुकून के लिये आये थे, अब तुम अपने आप को हमारे लिये ख़तरे में न डालो।
उन्नीस मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
उन्नीस मोहर्रम को हुसैनी काफ़िले को कूफ़े से शाम की तरफ़ ले जाया गया
इमाम हुसैन की मोहब्बत की आग कभी नहीं बुझेगी
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उनके अहलेबैत के अथक प्रयासों ने इन लोगों पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ा और वे उमवियों के विरुद्ध उठ खड़े हुए।
पंद्रह मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
जब उबैदुल्लाह इबने ज़ियाद को यज़ीद का यह आदेश मिला तो उसने कर्बला के शहीदों के सरों को "ज़हर बिन क़ैस" के हवाले किया और उनको यज़ीद के पास शाम भेज दिया। (1)
तेरह मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
अब्दुल्लाह बिन अफ़ीफ़ अज़दी अमीरुल मोमिनीन को उच्चकोटि के सहाबियों में से थे, जमल और सिफ़्फ़ीन के युद्धों में
दरबारे इब्ने जियाद मे खुत्बा बीबी ज़ैनब (अ)
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- लेखक:
- सय्यदा अक़लीम फ़ातेमा काज़मी
इस तरह इब्ने ज़ियाद ने वह मजमा जो तहक़ीरे आले मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के लिये जमा किया था, बीबी ने उसे उसी के सामने ज़लील व रूसवा कर दिया और अहलेबैत (अ0) पर होने वाले मज़ालिम का पर्दा चाक किया।
बारह मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
इन सरों को अहले हरम के आगे आगे लेकर चला जाए और सबको एक साथ गलियों और बाज़ारों को होता हुआ कूफ़े लाया जाए।
ग्यारह मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
ग़म खाई हुई पवित्र हस्तियों को सुबह तक कूफ़ा शहर के द्वार पर रोका गया
दस मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
यहीं वह समय था कि जब एक पत्थर आ कर आपके पवित्र माथे पर लगा,
इस्लाम मक्के से कर्बला तक आखरी किस्त
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अपनी छोटी बहनों जनाबे जैनब और जनाबे उम्मे कुलसूम को गले लगाया और कहा कि वह तो इम्तिहान की आखिरी मंज़िल पर हैं
नवी मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
हे अब्बास मेरी जान आप पर क़ुरबान हो जाए अपने घोड़े पर सवार हो और उनसे पूछो कि क्या चाहते हैं
इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 9
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अबू बक़र बिन हसन: खानदान-ए-बनी हाशिम के जिन नौजवानों ने अपने चाचा पर अपनी जान कुर्बान की, उन में अबू बक़र बिन हसन का नाम भी सुनहरे शब्दों में लिखा है। इन को अब्दुल्लाह इब्ने अक़बा ने तीर मार कर शहीद किया।
आठवीं मोहर्रम के वाक़ेआत
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
आठ मोहर्रम के दिन हुसैन (अ) और उनके साथी प्यास की अधिकता के व्याकुल थे
इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 8
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अबुल फ़ज़लिल अब्बास: कर्बला में इमाम हुसैन (अ) की छोटी सी सेना का नेतृत्व हज़रत अब्बास के हाथों मैं था. वह इमाम हुसैन (अ) के छोटे भाई थे. इमाम हुसैन (अ) की माँ हज़रत फ़ातिमा (स) के निधन के बाद हज़रत अली (अ) ने अपने भाई हज़रत अक़ील से कहा की में किसी ऐसे खानदान की लड़की से शादी करना चाहता हूँ जो अरब के बड़े बहादुरों में शुमार होता हो, जिससे की बहादुर और