अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

मोहर्रम

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 7

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 7

वलीद ने इमाम हुसैन (अ) को संदेसा भेजा कि वह दरबार में आयें उनके लिए यज़ीद का एक ज़रूरी पैग़ाम है। इमाम हुसैन (अ) उस समय अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर के साथ मस्जिद-ए-नबवी में बेठे थे।

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इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 6

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 6 अमीर मुआविया ने अपने क़बीले बनी उमय्या का शासन स्थापित करने के साथ साथ उस इस्लामी शासन प्रणाली को भी समाप्त कर दिया जिसमें ख़लीफ़ा एक आम आदमी के जैसी ज़िन्दगी बिताता था। मुआविया ने ख़िलाफ़त को राज शाही में तब्दील कर दिया और अपने कुकर्मी और

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मोहर्रम

मोहर्रम जो भी इस दिन कारोबार को छोड़ दे, ईश्वर उसकी इच्छाओं को पूरा करेगा और जो भी इस दिन दुख़ी और ग़मगीन रहे ख़ुदा क़यामत के दिन को उसके लिये ख़ुशी का दिन बनाएगा।

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इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 3

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 3 जंगे-उहद के मौके पर तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अभूतपूर्व क़ुरबानी देनी पड़ी. इस जंग में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के वीर चाचा हज़रत हम्ज़ा शहीद हो गए, उनकी शहादत के बाद पैग़म्बर अकरम (स)  के सब से बड़े दुश्मन अबू सुफ्यान की पत्नी हिंदाह ने अपने ग़ुलाम की मदद से हज़रत हम्ज़ा का सीना काट कर उनका कलेजा निकाल कर उसे चबाया

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मंज़िल ब मंज़िल हुसैनी क़ाफ़िले के साथ

मंज़िल ब मंज़िल हुसैनी क़ाफ़िले के साथ अल्लाह के दीन की सुरक्षा और अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सुन्नत की रक्षा के लिये हुसैनी क़ाफ़िला मक्के से इराक़ एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल तक यात्रा की सारी कठिनाईयों को झेलता हुआ बढ़ता चला जा रहा था

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इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 2

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त  2 लोगों का मानना है कि इसी समय हज़रत अबू तालिब ने भी इस्लाम कुबूल कर लिया था लेकिन मक्के के हालात देखते हुए उन्होंने इसकी घोषणा करना मुनासिब नहीं समझा. जब यह चाल भी नाकाम हो गई तो मक्के के सरदारों ने एक और चाल चली.

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इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 1

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 1 मुसलमानों का मानना है कि हर युग और हर दौर मैं अल्लाह ने इस धरती पर अपने दूत(संदेशवाहक/पैग़म्बर), अपने सन्देश के साथ इस उद्देश्य के लिए भेजे हैं कि अल्लाह के यह दूत इंसानों को सही रास्ता दिखायें

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सफ़र के महीने की बीस तारीख़

सफ़र के महीने की बीस तारीख़ जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अहलेबैत (अ) क़ैद से छुटने के बाद शाम से वापस पलटे तो वह इराक़ पहुँचे, उन्होंने अपने रास्ता दिखाने वाले से कहाः हमें कर्बला के रास्ते से ले चलो,

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ख़ुत्बाए फ़ातेहे शाम जनाबे ज़ैनब (सलामुल्लाहे अलैहा)

ख़ुत्बाए फ़ातेहे शाम जनाबे ज़ैनब (सलामुल्लाहे अलैहा) ‘‘तमाम हम्द व सिपास सिर्फ़ अल्लाह तआला के लिये मख़सूस हैं जो तमाम आलमीन का परवरदिगार है और अल्लाह की तरफ़ से दुरूद व रहमत हो उसके रसूल सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम पर और उनकी तमाम अहलेबैत (अ0) पर, अल्लाह बुज़ुर्ग व बरतर ने सच

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सबसे पहला ज़ाएर

सबसे पहला ज़ाएर कर्बला में दस मुहर्रम को आशूरा की घटना के बाद सबसे पहले जब इंसान ने इमाम हुसैन (अ.) की क़ब्र की ज़ियारत की वह रसूले ख़ुदा के सहाबी (साथी) जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी थे।  

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इमाम हुसैन (अ.स) के आंदोलन के उद्देश्य

इमाम हुसैन (अ.स) के आंदोलन के उद्देश्य मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम स.अ.) की उम्मत में सुधार के लिये जा रहा हूँ। तथा मेरा मक़सद लोगों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है

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हुसैन ने इस्लाम का चिराग़ बुझने न दिया

हुसैन ने इस्लाम का चिराग़ बुझने न दिया मुआविया के दौर में उसके हाथ दो सबसे ख़तरनाक मामले तय पाये जिनकी शुरूआत रसूले इस्लाम (स) के कूच करने के साथ ही हो चुकी थी। उन्हीं दो मामलों ने इस्लामी समाज को पस्ती व अपमान में ढ़केल दिया।

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कर्बला सच्चाई की संदेशवाहक

कर्बला सच्चाई की संदेशवाहक मोहर्रम, हुसैन और कर्बला एसे नाम और एसे विषय हैं जो किसी एक काल से विशेष नहीं हैं।  पैग़म्बरे इस्लाम का संदेश, आने वाले समस्त कालों के लिए था इसीलिए इमाम हुसैन (अ) इस संदेश के लिए एसी सुरक्षा व्यवस्था करना चाहते थे जो प्रत्येक काल के न्यायप्रेमियों के लिए संभव हो। 

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शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 5

शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 5  मदीना के गवर्नर ने जब यज़ीद की बैअत के लिए आग्रह किया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसे कुरआन की ततहीर नाम से प्रसिद्ध आयत की तिलावत करके सुनाया

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आँसुओं का महीना

आँसुओं का महीना जब शैतान ने आदम से पहली बार ईर्ष्या का आभास किया था और यह प्रतिज्ञा की थी कि वह ईश्वर के बंदों को उसके मार्ग से विचलित करता रहेगा

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शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 4

शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 4 यज़ीद के बारे में लिखा है कि वह मैसून नाम की मोआविया की एक पत्नी से २५ हिजरी क़मरी में पैदा हुआ था। मैसून कल्बियून क़बीले की एक महिला थी जो ईसाई था

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शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 3

शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 3 हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उन महान हस्तियों में से एक हैं जो ईश्वरीय प्रेम की प्रतिमूर्ति थे और पवित्र कुरआन के अस्तित्व से मिश्रित हो गये थे।

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आख़िर क्यों हुई कर्बला की जंग

आख़िर क्यों हुई कर्बला की जंग  ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखना चाहते हो तो यह काम अल्लाह को ख़ुश करने के लिए बहुत अच्छा है।

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