मुसलमान बुध्दिजीवी
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उलेमा व मराजे
लेख: 31
इमाम मूसा सद्र
- में प्रकाशित

9, शहरीवर सन 1357 (शम्सी हिजरी) को इस्लामी दुनिया के बड़े विध्दवान और लेबनान के शियों के धार्मिक नेता जनाब इमाम मूसा सद्र एक छोटे से सफर (यात्रा) पर लीबिया गए हुए थे
सलमाने फारसी
- में प्रकाशित
एक दिन सलमान के दोस्त नें उनसे कहा, तुम्हे पता है कि एक आदमी मदीने आया है और सोच रहा है कि वह अल्लाह का भेजा हुआ है। सलमान नें कहा, तुम मेरे वापस आने तक यहीं रहना, और मदीने चले गए। उन्हें क्या पता कि क़िस्मत उन्हें कहां पहुँचाएगी।
शहीदे राबे रहमतुल्लाह अलैह
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद मौहम्मद मीसम नक़वी
आपने मुखतलिफ मौज़ूआत पर 68 किताबे लिखी और आपकी पहली किताब इल्मे तिब मे थी और आपकी मशहूर किताबो मे से नुजहऐ इस्ना अशरया (कि जो मुहद्दिस देहलवी की किताब तोहफाऐ इस्ना अशरया का जवाब है) को खास अहमियत हासिल है और आपकी दिगर किताबे तंबीहे अहले कमाल, ईज़ाहुल मक़ाल, मुन्तखबे फैजुल क़दीर, मुन्तखबे अनसाबे समआनी, मुन्तखबे कंज़ुल उम्माल वग़ैरा हैं।
इस्लाम की पहली शहीद खातून
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद मौहम्मद मीसम नक़वी
जिस वक्त अबुजहले लानती जनाबे सुमय्या के सीने मे नेज़ा मार रहा था तो जनाबे सुमय्या फख्र के साथ ये जुमला कह रही थी हमने अपने रास्ते को पा लिया और मौहम्मद (स.अ.व.व) पर ईमान ले आऐ और उनकी रहबरी को क़ुबुल कर लिया और कभी अपने ईमान और मकसद को खत्म नही होने देंगे।
शायरे अहलैबैत जनाब वासिफ आबदी सहारनपुरी
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद मौहम्मद मीसम नकवी
जनाब वासिफ आबदी का अस्ल नाम सैय्यद अख़लाक़ हुसैन आबदी था, वासिफ आपका तख़ल्लुस था।
जनाबे फ़िज़्ज़ा और क़ुरआन
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- जनाब राहत हुसेैन नासरी
- स्रोत:
- जनाबे फिज़्ज़ा
वह सभी ऐतिहासिक पुस्तकें जिनमें जनाबे फ़िज़्ज़ा का वर्णन है उनमें यह बात स्पष्ट रूप से मुद्रित है कि आले मोहम्मद (अ.स) के निवास स्थल से निकल ने के बाद से जीवन भर जनाबे फ़िज़्ज़ा ने सिवाय क़ुरआनी भाषा के और किसी ज़बान में बात न की और यह अवधि लगभग 22 वर्ष है।
बहलोल और हारून
- में प्रकाशित
मसरूर ले जाओ इस ग़ुस्ताख़ को- इसके कपङे उतार लो और इस पर गधे का पालान डाल दो.............
शैख़ हसन शहाता का परिचय
- में प्रकाशित
शैख़ हसन शहाता जिनको वहाबियों ने निर्मम हत्या करके शहीद कर दिया मिस्र के एक प्रसिद्ध शिया धर्मगुरू थे जिनके वकतव्य में मिस्र के अधिकतर लोग एकत्र होते थे क्योंकि आप अपने वकतव्य में हक़ बात कहते और हक़ का साथ देते थे और सदैव असली इस्लाम का बचाव करते थे।
हुज्र बिन अदी
- में प्रकाशित
जब हज़रत अली अ. को ख़लीफ़ा बनाया गया तो हुज्र मैदान में कूद पड़े और हर तरह से हज़रत अली का समर्थन किया
पैकरे शुजाअत शैख़ महमूद शलतूत
- में प्रकाशित
शैख़ महमूद शलतूत ने सन 1328 हिजरी में (बमुताबिक सन् 1906 ई.) में इल्मी कमालात के हुसूल की ख़ातिर इस्कन्द्रिया का सफ़र किया और इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी में तालीम हासिल करने लगे।
नहजुल बलाग़ा के संकलनकर्ता
- में प्रकाशित
आप का नाम मुहम्मद, लक़ब (उपाधि) रज़ी, कुनीयत (वह नाम जो मां, बेटे, बेटी के संबंध से लिया जाता है, फ़लां के बाप, फ़लां के बेटे) अबुल हसन थी।
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