अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

आलिम के सामने

0 सारे वोट 00.0 / 5

हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) के पास एक शख़्स अन्सार में से आया और उसने सवाल किया, ऐ रसूले ख़ुदा अगर किसी का जनाज़ा तदफ़ीन के लिए तैयार हो और दूसरी तरफ़ इल्मी नशिस्त हो जिसमें शिरकत करने से कस्बे फ़ैज़ हो और दोनों एक ही वक़्त हों और वक़्त भी इतना न हो कि दोनों जगह शिरकत की जा सके। एक जगह शरीक हो तो दूसरी जगह से महरूम हो जाएगा, तो ऐसी सूरत में ऐ रसूले ख़ुदा (स.) आप किसको पसंद करेंगे? ताकी में भी उसी में शिरकत करूं।

 

रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमाया, अगर दूसरे लोग मौजूद हैं जो जनाज़े के साथ जाकर उसे दफ़्न करें तो तुम इल्मी बज़्म में शिरकत करो क्योंकि एक इल्मी बज़्म में शिरकत करना हज़ार जनाज़ों के साथ शिरकत, हज़ार बीमारों की अयादत, हज़ार दिन की इबादत, हज़ार दिन के रोज़े, हज़ार दिन का सदका, हज़ार गै़र वाजिब हज, और हज़ार गै़र वाजिब जिहाद से बेहतर है।

 

उसने अर्ज़ किया, या रसूल अल्लाह (स.) ये सब चीज़ें कहाँ और आलिम की ख़िदमत में हाज़िरी कहाँ?

 

रसूले ख़ुदा (स.) ने फरमाया, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि इल्म की बदौलत ख़ुदा की इताअत की जा सकती है । और इल्म के ज़रिए इबादत ख़ुदा होती है। दुनिया और आख़िरत की भलाई इल्म से वाबस्ता है जिस तरह दुनिया और आख़रत की बुराई जिहालत से जुदा नहीं।

आपका कमेंन्टस

यूज़र कमेंन्टस

कमेन्ट्स नही है
*
*

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क