वहाबियत, वास्तविकता और इतिहास-12
ज़ियारत व दर्शन का इस्लाम में विशेष स्थान है और वह मुसलमानों के निकट एक अच्छा कार्य है।
मुसलमान शफ़ाअत अर्थात प्रलय के दिन सिफारिश/ तवस्सुल अर्थात सहारा व माध्यम और भले लोगों की क़ब्रों के सम्मान को ऐसी चीज़ मानते हैं जिसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम और ईश्वर पर ईमान रखने वालों की क़ब्रों का दर्शन मुसलमानों के मध्य प्रचलित है यहां तक कि मुसलमान, महान धार्मिक हस्तियों की क़ब्रों पर ईश्वर से प्रार्थना व दुआ करते हैं। उदाहरण स्वरुप अतीत में हाजी लोग ओहद नामक युद्ध में शहीद होने वाले पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा और शहीदों के सरदार हज़रत हम्ज़ा की क़ब्र की मिट्टी से तस्बीह अर्थात माला बनाते थे। ६ठीं हिजरी क़मरी के महान शायर ख़ाक़ानी शेरवानी अपने एक शेर में वर्तमान इराक़ में स्थित मदायन नगर में पैग़म्बरे इस्लाम के महान साथी सलमान फारसी की समाधि का दर्शन करने वालों से सिफारिश करते हैं कि वे सलमान फार्सी की क़ब्र से तसबीह बनायें क्योंकि इन महान हस्तियों की पवित्र क़ब्र की मिट्टी आध्यात्मिक मूल्य व महत्व रखती है।
सलफी एवं वहाबी पंथ की बुनियाद रखने वाला इब्ने तय्मिया पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि के दर्शन को हराम और क़ब्र का दर्शन करने के इरादे से की जाने वाली यात्रा को भी हराम समझता है। वह मिनहाजुस्सुन्नत नामक अपनी पुस्तक में कोई तर्कसंगत कारण बयान किये बिना लिखता है "”क़ब्रों का दर्शन करने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम से जो हदीसें अर्थात कथन आये हैं वे सबके सब झूठे हैं और सबके सही होने का प्रमाण कमज़ोर है। इब्ने तय्मिया इसी प्रकार कहता है”" पैग़म्बरे इस्लाम या उनके अतिरिक्त किसी और की क़ब्र के दर्शन का अर्थ ईश्वर के सिवा किसी और को बुलाना है तथा ईश्वरीय कार्यों में दूसरे को भी उसका सहभागी मानना है और यह कार्य हराम एवं अनेकेश्वरवाद है” जबकि पैग़म्बरे इस्लाम और महान धार्मिक हस्तियों की क़ब्र का दर्शन ईश्वर के निकट उनके उच्च स्थान के कारण है न कि उसके कार्यों में किसी को उसका सहभागी बनाना है।
वहाबी पंथ की बुनियाद रखने वाले इब्ने तय्मिया और मोहम्मद इब्ने अब्दुल वह्हाब शीया मुसलमानों पर आक्रमण करते और उन पर आरोप लगाते हैं कि शीया अपने इमामों की क़ब्रों एवं उनकी समाधियों के दर्शन को हज से भी बड़ा कार्य समझते हैं! मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब अपनी पुस्तक कश्फुश्शुबहात में उस सम्मान को, जो शीया मुसलमान पैग़म्बरों, इमामों और महान हस्तियों की क़ब्रों की करते हैं, बहाना बनाता है कि शीया मुसलमान ईश्वर का सहभागी मानते हैं और वह अनेकेश्रवाद पर विश्वास रखते हैं। वास्तव में इब्ने तय्मिया , मोहम्मद इब्ने अब्दुल वह्हाब और उनके अनुयाइयों की एक सबसे बड़ी कमज़ोरी व समस्या यह है कि वे धर्म के बारे में अपने भ्रष्ठ विचारों को एकेश्वरवाद तथा दूसरों के अनेकेश्वरवाद का मापदंड मानते हैं। वे ईश्वरीय धर्म इस्लाम के बारे में अपने ग़लत निष्कर्ष को दूसरों के विश्वासों पर थोपते हैं जबकि पवित्र क़ुरआन, इस्लामी शिक्षाएं और विश्वस्त मुसलमान धर्मगुरू उनके विचारों से भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं। क़ब्रों के दर्शन के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं” कि क़ब्रों को देखने जाओ कि वह तुम्हें परलोक की याद दिलाती है”। इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर कहते हैं” क़ब्रों को देखने जाओ क्योंकि उसमें तुम्हारे लिए सीख है।
मनुष्य क़ब्रों को देखकर अपनी अक्षमता को समझ जाता है और भौतिक शक्तियों के नष्ट होने को निकट से देखता है। समझदार मुसलमान क़ब्रों को देखकर समझ जाता है कि शीघ्र समाप्त हो जाने वाले जीवन को बेखबरी एवं निश्चेतना से बर्बाद नहीं करना चाहिये बल्कि थोडे से जीवन के समय का सदुपयोग करके परलोक के लिए कुछ करना चाहिये।
पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के रौज़ों में उपस्थिति एक प्रकार से लोगों के मार्गदर्शन के लिए उठाई गयी उनकी कठिनाइयों व त्यागों के प्रति आभार और उनके वचनों के पालन के प्रति दोबारा वचनबद्धता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की क़ब्रों का दर्शन करने वाला वास्तव में उनके साथ एक प्रकार की प्रतिज्ञा करता है कि वह उनके बताये गये मार्ग के अतिरिक्त जीवन में किसी अन्य मार्ग पर नहीं चलेगा।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि क़ब्रों को देखने जाना पैग़म्बरे इस्लाम का आचरण है। सुन्नी मुसलमानों की किताबों में लिखा हुआ है कि पैग़म्बरे इस्लाम अपनी माता हज़रत आमिना की क़ब्र पर जाकर रोया करते थे। इसी प्रकार अबु हुरैरा के हवाले से लिखा है कि पैग़म्बरे इस्लाम अपनी माता की क़ब्र का दर्शन करते, वहां पर रोते और दूसरों भी रुलाते और कहते थे कि” क़ब्रों को देखने जाओ क्योंकि क़ब्र देख कर मौत की याद आ जाती है।” पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर कहते हैं”" क़ब्रों का देखना सहानुभूति, आंखों से आंसू निकलने और परलोक की याद का कारण बनता है तो क़ब्रों को देखने जाओ"
पवित्र क़ुरआन के सूरये तकासुर में महान ईश्वर अनेकेश्वरवादियों के उस गुट की ओर संकेत करता है जो क़ब्रों को देखने तो गया परंतु सीख लेने के उद्देश्य से नहीं। सूरये तकासुर की पहली और दूसरी आयत में हम पढ़ते हैं जिसमें ईश्वर कहता है" धन एवं कुल की बहुतायत ने तुम लोगों को ईश्वर की याद से निश्चिंत बना रखा है यहां तक कि तुम लोगों ने अपने मरे हुए लोगों की क़ब्र को गिना"
”स्पष्ट है कि सर्वसमर्थ व महान ईश्वर क़ब्रों की गणना करके उस पर गर्व करने को बिल्कुल पसंद नहीं करता परंतु क़ब्रों को देखने से किसी प्रकार मना नहीं करता। सातंवी हिजरी क़मरी के प्रसिद्ध पवित्र क़ुर्आन के व्याख्याकर्ता मोहम्मद क़ुरतबी इन आयतों के संदर्भ में कहते हैं” "क़ब्रों का देखना कठोर हृदयों के लिए सर्वोत्तम औषधि है क्योंकि क़ब्रों का देखना मौत और परलोक की याद का कारण है तथा मौत एवं परलोक की याद आकांक्षाओं के कम होने तथा दुनिया से विरक्तता और उसमें बाक़ी रहने की कामना छोड़े देने का कारण बनता है।
ईश्वरीय दूतों की पवित्र क़ब्रों के दर्शन के बारे में इब्ने तय्मिया की बातों से कुछ चीज़ें निष्कर्ष के रूप में निकलती हैं। पहली चीज़ यह है कि वह पैग़म्बरों व ईश्वरीय दूतों की क़ब्रों के दर्शन को हराम समझता है। इसी प्रकार वह कहता है कि जो व्यक्ति पैग़म्बरों और भले लोगों की क़ब्रों का दर्शन करने, वहां पर नमाज़ पढ़ने और दुआ करने के उद्देश्य से यात्रा करने का इरादा करे तो ऐसे व्यक्ति ने हराम कार्य करने का इरादा किया है और उसे चाहिये कि वह नमाज़ पूरी पढ़े। इब्ने तय्मिया इस प्रकार की यात्रा को पाप समझता है जबकि वह यात्रा हराम होती है जिसमें हराम कार्य किया जाये। उदाहरण स्वरूप शराब बेचने या लोगों के धन को लूटने के लिए की जाने वाली यात्रा हराम है। इस आधार पर इब्ने तय्मिया की बात के इस भाग में भी स्पष्ट किया गया है कि पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों की क़ब्रों का दर्शन पाप व हराम है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के विचार न केवल ग़लत एवं आधारहीन हैं बल्कि बहुत बुरे व शिष्टाचार से परे हैं। नवीं हिजरी क़मरी के सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ मिस्री धर्मगुरू इब्ने हजर अस्क़लानी अपनी पुस्तक "फत्हुल बारी" में कहते हैं कि” आश्चर्य उन लोगों से है जो इब्ने तय्मिया को निर्दोष व बरी दिखाने का प्रयास करते हैं और उक्त बातों को इब्ने तय्मिया पर आरोप मानते एवं कहते हैं" इब्ने तय्मिया ने केवल दर्शन के इरादे से की जाने वाली यात्रा को हराम कहा है न कि पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र का दर्शन बल्कि वह तो पैग़म्बरों की क़ब्रों के दर्शन को परंपरा व अच्छा कार्य मानता है।” यहां प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार इब्ने तय्मिया पैग़म्बरों की क़ब्रों के दर्शन को परंपरा व अच्छा कार्य मानता है जबकि इन क़ब्रों के दर्शन के इरादे से की जाने वाली यात्रा को हराम व पाप मानता है? क्या इस प्रकार की बात में विरोधाभास नहीं है? क्या इब्ने तय्यिया द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम के उन कथनों को झुठलाना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वह पैग़म्बरों की क़ब्रों के दर्शन पर विश्वास नहीं रखता है? बहुत से सुन्नी विद्वानों एवं धर्मगुरूओं ने पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे पैग़म्बरों की क़ब्रों का दर्शन करने के संबंध में इब्ने तय्यिया के फतवों का रहस्योदघाटन किया है जिसमें उसने साफ- साफ कहा है कि पैग़म्बरों की क़ब्रों का दर्शन हराम है।
इब्ने तय्मिया अपने भ्रष्ठ विचारों को सही सिद्ध करने के लिए बहुत सी रवायतों व कथनों की अनदेखी करता और झूठ बोलता है। पैग़म्बरे इस्लाम की पवित्र क़ब्र के दर्शन के बारे में बहुत से कथन और इस्लामी शिक्षाएं मौजूद हैं। इब्ने अब्बास ने कहा है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है जो मेरे मरने के बाद मेरी क़ब्र का दर्शन करे वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने मेरा दर्शन मेरे जीवन में किया और जो मेरे दर्शन के लिए आये और मेरी क़ब्र के किनारे पहुंच जाये तो मैं प्रलय के दिन उसके लिए गवाही दूंगा"”
अब्दुल्लाह बिन उमर पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से कहता है" जो व्यक्ति हज करने के लिए आये और मेरे देहांत के बाद मेरी क़ब्र का दर्शन करे तो मानो जीवन में उसने मेरा दर्शन किया। अनस बन मालिक भी कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि जो ध्यान और मेरा दर्शन करने के इरादे से मदीना आये और मेरा दर्शन करे तो मैं प्रलय के दिन उसकी शिफाअत करूंगा और उसके हित में गवाही दूंगा। बहुत से सुन्नी धर्मगुरूओं ने यह सिद्ध करने के लिए इन कथनों का सहारा लिया है कि पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र का दर्शन परम्परा व अच्छा कार्य है। राफेई अपनी पुस्तक फत्हुल अज़ीज़ में कहते हैं जो व्यक्ति हज करने जाता है उसके लिए मुस्तहब व अच्छा यह है कि ज़मज़म का पानी पीये और उसके बाद हज के संस्कारों के निर्वाह के पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र की ज़ियारत करे। क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से एक कथन बयान किया गया है जिसमें आपने कहा है कि जो व्यक्ति मेरे मरने के बाद मेरे दर्शन के लिए आयेगा वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने मेरे जीवन में मेरा दर्शन किया है और जो व्यक्ति मेरी क़ब्र का दर्शन करे उसका प्रतिदान स्वर्ग है। पैग़म्बरे इस्लाम की पवित्र क़ब्र की ज़ियारत करने के इरादे से यात्रा करना वह चीज़ है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के साथी और उनके साथियों को देखने वालों ने जीवन भर किया। पैग़म्बरे इस्लाम के एक प्रतिष्ठित साथी और उनके मुअज़्ज़िन अर्थात अज़ान देने वाले बेलाल बिन रेबाह हैं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की पवित्र क़ब्र की ज़ियारत के लिए शाम अर्थात वर्तमान सीरिया से पवित्र नगर मदीना की यात्रा की। इब्ने असाकिर कहते हैं" बेलाल ने पैग़म्बरे इस्लाम को स्वप्न में देखा कि उससे कह रहे हैं कि क्या अत्याचार है जो तुम मेरे साथ कर रहे हो? क्या वह समय नहीं आया कि तुम मेरे दर्शन के लिए आओ? बेलाल स्वप्न से उठ गये और वह क्षुब्ध व दुःखी थे तथा वह स्वयं से डर रहे थे। उसके पश्चात बेलाल घोड़े पर सवार हुए और शाम से पवित्र नगर मदीना के लिए रवाना हो गये। जब वह पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र के पास पहुंच गये तो क़ब्र के किनारे रोये और अपने चेहरे को पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र से मल रहे थे कि अचानक इमाम हसन और इमाम हुसैन वहां आ गये। बेलाल ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया और उन्हें चूमा। इमाम हसन और इमाम हुसैन ने उनसे कहा हम वैसी अज़ान सुनना चाहते हैं कि जैसी अज़ान हमारे नाना के काल में तुम भोर में दिया करते थे।
श्रोता मित्रो उक्त प्रमाणों और प्रसिद्ध सुन्नी धर्मगुरूओं के कथनों के बयान के बाद यह किस तरह स्वीकार किया जा सकता है कि महान हस्तियों विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम की पवित्र क़ब्र का दर्शन व सम्मान हराम है? क्या इब्ने तय्मिया और मोहम्मद इब्ने अब्दुल वह्हाब की ओर से उस चीज़ हो हराम बताना, जिसे ईश्वर ने हलाल व वैध कहा है, महापाप नहीं है?