इमामे ज़माना पर बहस की ज़रुरत
शायद कुछ लोग यह सोचें कि बहुत सी कल्चरल और आधारभूत ज़रुरतों के होते हुए हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फ़रजहू शरीफ़) के बारे में बहस करने की क्या ज़रुरत है ? क्या इस बारे में काफ़ी हद तक बहस नही हो चुकी है ? क्या इस बारे में किताबें और लेख नहीं लिखे गए हैं ?
तो इसके जवाब में हम यह कहते हैं कि महदवियत एक ऐसा विषय है जो इंसान की ज़िन्दगी में एक महत्व पूर्ण स्थान रखता है और इसका इंसानी ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं से सीधा सम्बन्ध है। अतः इस बारे में जो लिखा जा चुका है उसके बावजूद भी इस विषय पर लिखने व कहने के लिए बहुत कुछ बाक़ी है। इस लिए हमारे उलमा ए कराम व बुद्धिजीवी लोगों को चाहिए कि वह इस बारे में और ज़्यादा लिखें।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में बहस करने की ज़रुरत को अत्यधिक स्पष्ट करने के लिए यहाँ कुछ चीज़ों की तरफ़ इशारा किया जा रहा है।
1. हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का विषय, इमामत के उस आधार भूत मसले की तरफ़ पलटता है जो शिओं के एतेक़ादी (आस्था संबंधी) उसूल में से है। इस पर बहुत अधिक ज़ोर दिया गया है और इसे कुरआने करीम और इस्लामी रिवायतों में बहुत अधिक महत्व प्राप्त है। शिया और सुन्नी दोनों सम्प्रदायों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से यह रिवायत नक्ल की है।
”مَنْ مَاتَ وَ لَمْ یَعْرِفْ اِمَامَ زَمَانِہِ مَاتَ مِیْتَةً جَاہِلِیَةً۔“
जो इंसान इस हालत में मर जाये कि अपने ज़माने के इमाम को न पहचानता हो तो उसकी मौत जाहिलियत (कुफ़्र) की मौत होगी। (अर्थात उसने इस्लाम से कोई फायदा नहीं उठाया है।).
वास्तव में यह एक ऐसा विषय है जो इंसान के आध्यात्मिक जीवन से संबंधित है अतः इस मसले पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यक्ता है।
2. हज़रत इमाम महदी (अ. स.), इमामत की उस पवित्र श्रंखला की बारहवीं कड़ी हैं, जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की दो निशानियों में से एक है। शिया और सुन्नी दोनों ही सम्प्रदायों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से यह रिवायत नक्ल की हैः
”اِنِّی تَارِکٌ فِیْکُمُ الثَّقَلَیْنِ کَتَابَ اللهِ وَ عِتْرَتِی؛ مَا اِنْ تَمَسَّکْتُمْ بِہِمَا لَنْ تَضِلُّوْا بَعْدِی اَبَداً
बेशक़ मैं तुम्हारे बीच दो महत्वपूर्ण चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ, एक अल्लाह की किताब और दूसरे मेरी इतरत (वंश), जब तक तुम इन दोनों के संपर्क में रहोगे मेरे बाद कदापि गुमराह नहीं हो सकते।
इस आधार पर कुरआने क़रीम के बाद जो कि अल्लाह का कलाम है, कौनसा रास्ता इमाम (अ. स.) के रास्ते से ज़्यादा रौशन और हिदायत करने वाला है। क्या बुनियादी तौर पर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सच्चे जानशीन के अलावा अन्य कोई कुरआने करीम की जो कि अल्लाह का कलाम है, तफ़सीर कर सकता है।
3. हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ज़िन्दा व मौजूद हैं और उनके बारे में नौजवानों और जवानों के ज़हनों में बहुत से सवाल पैदा होते रहते हैं। यद्यपि पिछले ज़माने के आलिमों ने अपनी अपनी किताबों में बहुत से सवालों के जवाब दिये हैं, लेकिन फिर भी बहुत से शक व शुब्हे बाकी हैं और कुछ पुराने जवाब आज कल के ज़माने के अनुरूप नही हैं।
4. इमामत के महत्व और उसकी केन्द्रीय हैसियत की वजह से दुश्मनों ने हमेशा ही शिओं को फिक़्री और इल्मी लिहाज़ से निशाना बनाया है ताकि इमाम महदी (अ. स.) के बारे में विभिन्न प्रकार के शुब्हे व एतेराज़ उत्पन्न कर के उनके मानने वालों को शक में डाल दिया जाये। जैसे उनकी लम्बी उम्र को एक असंभव और बुद्धि में न आने वाली बात घोषित करना, या उनकी ग़ैबत को एक तर्क विहीन चीज़ बताना या इसी तरह के अन्य बहुत से एतेराज़। इसके अलावा अहलेबैत (अ. स.) की तालीमात को न जानने वाले कुछ लोग महदवियत के बारे में कुछ ग़लत और बेबुनियाद बातें बयान कर देते हैं और उनसे कुछ लोग गुमराह हो जाते हैं या उन को गुमराह कर दिया जाता है। मिसाल को तौर पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का इन्तेज़ार, उनका ख़ूनी क़ियाम, उनकी ग़ैबत के ज़माने में उनसे मुलाक़ात की संभावना आदि के बारे में बहुत से गलत और रिवायतों के मुखालिफ़ मतलब बयान कर देते हैं। अतः महदवियत के बारे में इस तरह की ग़लत बातों की सही तहक़ीक़ की जाये और उन एतेराज़ों का बुद्धि पर आधारित तर्क पूर्ण जवाब दिया जाये।
इन्हीँ बातों को आधार बना कर यह कोशिश की गई है कि इस किताब में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की नूरानी ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं को बयान किया जाये और उन के बारे में जवानों के ज़ेहनों में जो सवाल मौजूद उनका जवाब दिया जाये और इसी तरह इमाम के ज़माने से संबंधित सवालों का भी जवाब दिया जाये। इसके अलावा इस किताब में महदवियत के अक़ीदे के लिए नुक्सान देह चीज़ों और कुछ ग़लत फिक्रों के जवाब भी दिये गए हैं, ताकि तमाम इंसान अल्लाह की आख़िरी हुज्जत हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की मारेफ़त के रास्ते में सही एक क़दम उठा सकें।