ईश्वरीय दूतों का वियोग
ईश्वरीय दूतों का एक महत्वपूर्ण दायित्व अज्ञानता, अधर्मिता, अंध विश्वास के विरुद्ध संघर्ष और अन्याय, अत्याचार एवं मानवाधिकारों के हनन के विरुद्ध आंदोलन छेड़ना था। अंतिम एवं सर्व श्रेष्ठ ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी मानवता को अज्ञानता, भेदभाव और अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए अपना आंदोलन चलाया और एक क्षण भी इसे रुकने नहीं दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने मानवता के लिए जीवन व प्रलय, लोक-परलोक, दायित्व व कर्तव्य, आर्थिक व्यवस्था, राजनीति व अध्यात्म हर मामले को दृष्टिगत रखते हुए सर्वोत्तम कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उन्होंने मानवीय मूल्यों, न्याय और बुद्धिमत्ता की बात पेश की और समाज को सत्य का मार्ग दिखाया। आज इसी महान ईश्वरीय दूत के स्वर्गवास का दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम का २८ सफ़र सन ११ हिजरी क़मरी को स्वर्गवास हो गया जबकि आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत भी हुई। यह हृदय विदारक घटना सन ५० हिजरी में घटी। अतः हम इस अवसर पर हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। जैसा कि हमने बताया ईश्वरीय दूतों का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य न्याय की स्थापना और अत्याचार से संघर्ष होता था। ईश्वर क़ुरआन के सूरए हदीद की आयत नम्बर २५ में इस बारे में कहता है कि हमने अपने पैग़म्बरों को स्पष्ट तर्को के साथ भेजा और उनके साथ पुस्तक तथा (सत्य व असत्य की पहचान के लिए) कसौटी भेजी ताकि लोग न्याय की स्थापना कर सकें। ईश्वरीय दूतों ने अत्याचार और अन्याय का विरोध इस लिए किया कि यह बुराइयां आदर्श मानव जीवन के मार्ग की बड़ी रुकावटें हैं। ईश्वर ने आदर्श पवित्र जीवन को फलदार वृक्ष के समान बताया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने भी अपने अभियान का लक्ष्य पवित्र जीवन के वृक्ष को फलदार बनाना बताया। इस्लाम के विकास, विस्तार और प्रसार का एक मूल कारण हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का व्यक्तित्व था जिन्होंने अपने व्यवहार के द्वारा गुमराह लोगों को सच्चाई के मार्ग पर अग्रसर कर दिया था जिन्होंने भविष्य में चलकर एक महान सभ्यता की नींव डाली। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने महान आंदोलन द्वारा जनता को जागृत किया और इस परिवर्तन के साथ इस्लाम एक संगठित, संपूर्ण तथा अमर धर्म के रूप में संसार के सम्मुख प्रस्तुत हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम ने आपसी मेल-मिलाप और भाईचारे का आदेश दिया और दास-प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उन्होंने जातिवाद समाप्त कर दिया और धनी एवं निर्धन के बीच भेद समाप्त हो गया।
ब्रिटेन के लेखक बर्नार्ड शा पैग़म्बरे इस्लाम तथा इस्लाम धर्म के बारे में कहते हैं कि मैं मोहम्मद के धर्म का आदर करता हूं। यह एक जीवित और प्रगतिशील धर्म है। मेरी यह भविष्यवाणी है कि कल यूरोप वाले भी जहां इस धर्म के चिंह देखे जा सकते हैं, मोहम्मद के धर्म को स्वीकार करेंगे और मोहम्मद पर ईमान ले आएंगे। मैं इस महान हस्ती के बारे में इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उन्हें मानवता को मुक्ति दिलाने वाला कहना चाहिए। यदि उन जैसा कोई व्यक्ति नए संसार का उत्तरदायित्व उठा ले तो सारे विश्व की कठिनाइयों का समाधान हो जाएगा और मनुष्य प्रगति और सफलता प्राप्त कर लेगा। आज हम स्पष्ट रूप से देख रहे हैं कि इस्लाम धर्म और तेजी से फैल रहा है और यूरोप में जहां इस्लाम का सबसे अधिक विरोध किया जा रहा है वहां यह धर्मी सबसे तेज़ गति से फैल रहा है। यह इस्लाम धर्म की सच्चाई का प्रमाण है क्योंकि जिस धर्म के विरुद्ध व्यापक स्तर पर प्रचार हो रहा है और सरकारी एवं ग़ैर सरकारी दोनों स्तर पर गतिविधियां पूरी गति से जारी हों उसके प्रति लोगों का झुकाव बढ़े और लोग उसे स्वीकार करें वह धर्म साधारण धर्म नहीं हो सकता। निश्चित रूप से उसमें गहराई बहुत अधिक है तथा वह पूर्णतः सत्य का पर्याय है जिसकी ओर हर पवित्र मन और हृदय बरबस उन्मुख को जाता है। यहां हम पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन पेश करना चहेंगे। पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि दो भूखों का कभी पेट नहीं भरता। एक वो जो ज्ञान का भूखा हो और दूसरा वो जो धन-दौलत का भूखा हो।
हमने आरंभ में बताया कि आज ही पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत की बरसी भी है। महान लोगों को याद करना वास्तव में उनकी जीवनशैली को जीवित रखने के अर्थ में होता है। अतः आइए एक दृष्टि डालते हैं पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जीवन पर। पैग़म्बरे इस्लाम सदैव ही इमाम हसन और उनके भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की प्रशंसा करते थे और उनसे अत्यधिक प्रेम करते थे। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ श्रद्धालु मक्के में हिरा नामक गुफा के पास पैग़म्बरे इस्लाम के निकट उपस्थित थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी वहां पहुंचे तो पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रेम भरी दृष्टि से उन्हें देखा और वहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जान लो कि यह हसन मेरी शिक्षाओं में नयी आत्मा डालेगा। उसकी कथनी और करनी में मेरी जीवनी प्रतिबिंबित रहेगी। ईश्वर उस व्यक्ति पर कृपा करे जो इसके अधिकार को पहचाने और मेरे कारण उसका सम्मान करे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की विशेषताओं के बारे में इतिहास में आया है कि महानता व रंग-रूप में कोई भी इमाम हसन अलैहिस्सलाम से अधिक पैग़म्बरे इस्लाम से समानता नहीं रखता था। ईश्वर का प्रेम उनमें इस सीमा तक था कि कोई भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। वे अत्यधिक संयमी और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें लोगों के बीच दानदाता के रूप में बड़ी ख्याति प्राप्त थी। इतिहास में है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने तीन बार अपनी पूरी संपत्ति का आधा भाग ईश्वर के मार्ग में दान कर दिया इसी लिए उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का दानी कहा जाता है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम बचपन से ही प्रतिदिन मस्जिद में जाकर पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को ध्यानपूर्वक सुनते थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की ईश्वरीय वाणी और शिक्षाओं को सुनने के बाद जब घर लौटते तो पूरी बात अपनी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को सुनाते। उनके पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी अपने पुत्र की ज्ञान परीक्षा के लिए उनसे विभिन्न विषयों के बारे में प्रश्न करते और इमाम हसन अलैहिस्सलाम सारे प्रश्नों का उत्तर देते थे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम निर्धनों की सहायता और वंचितों के दुखों के निवारण के लिए अत्यधिक प्रयास करते। जब भी कोई परेशान और दुखी व्यक्ति उनसे अपनी समस्या बयान करता तो वे जैसे भी संभव हो उसकी सहायता करते थे। इतिहास में आया है कि एक दिन एक व्यक्ति कुछ पैसे लेने के लिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पास गया। इससे पहले कि वो कुछ बोलता इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसे कुछ पैसे दे दिए। उस व्यक्ति ने आश्चर्य व्यक्त किया तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसके सामने एक शेर पढ़ा जिसका अर्थ है। हम वो लोग हैं जो दूसरों के दिलों में आशा के दीप जलाते हैं। इससे पहले कि हमारे सामने कोई हाथ फैलाए हम उसे दान दे देते हैं ताकि मांगने वाले को लज्जा का आभास न हो।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जीवन बड़े उतार चढ़ाव वाला जीवन था किंतु उन्होंने हर स्थिति और हर चरण में बड़ी दूरदर्शिता और सूझ-बूझ का प्रदर्शन किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहाद के पश्चात लोगों ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपना मार्गदर्शक चुना और उनके आज्ञापालन के लिए वचनबद्ध हुए। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी समाज के नेतृत्व का भारी दायित्व अपने कंधों पर संभाला। उन्हें आरंभ से ही पता था कि उनके साथियों और आस-पास उपस्थित लोगों में सच्चे मित्रों की संख्या कम है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन के लिए वचनबद्ध होने वाले में बहुत से लोग ऐसे थे जिनके विशेष राजनैतिक व सामाजिक लक्ष्य थे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम जानते थे कि सांसारिक मायामोह में ग्रस्त और कमज़ोर इच्छाशक्ति वाले इस प्रकार के साथियों के सहारे शासकों के अत्याचारों और शोषण के विरुद्ध आंदोलन नहीं छेड़ा जा सकता इसी लिए उन्होंने सीधे युद्ध से बचने का निर्णय किया और कहा कि ईश्वर की सौगंध यदि मेरे पास साथी और सहायक होते तो दिन रात संघर्ष करता। इसी लिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने तत्कालीन शासक मुआविया के साथ संधि को प्राथमिकता दी जो उस समय की परिस्थितियों के दृष्टिगत सबसे उचित निर्णय था। उन्होंने संधि द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम की उच्च शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का निर्णय किया। इमाम हसन अलैहिस्सलाम संधि पत्र पर हस्ताक्षर के पश्चात मदीना नगर लौट गए और अपने कर्तव्यों के निर्वाह के लिए एक भिन्न शैली आरंभ की। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस काल में मदीना नगर को इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार का केन्द्र बनाया ताकि इस प्रकार इस्लामी राष्ट्र को अंतिम ईश्वरीय धर्म की शिक्षाओं से तृप्त किया जा सके। इस वैचारिक केन्द्र ने जनमत की सोच में विकास और जनता को राजनैतिक व वैचारिक दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इमाम हसन अलैहिस्सलाम लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम की जीवनी के अनुसरण और उनके आदेशों के पालन का निमंत्रण देते और नैतिक गुणों के ग्रहण हेतु लोगों को प्रोत्साहित करते थे। परिणाम स्वरूप इमाम हसन अलैहिस्सलाम की सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों ने धीरे धीरे लोगों में चेतना की लहर उत्पन्न की किंतु इस स्थिति से उमवी शासक मुआविया को चिंता हो गई। उसे बताया गया था कि अली अलैहिस्सलाम के बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मदीना नगर में अपने पिता के न्याय प्रेम, अत्याचार के विरोध और सत्यवाद की याद को पुनः जीवित कर दिया है। अंततः इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इन्हीं शिक्षाओं के कारण उमवियों ने शत्रुतापूर्ण नीति अपनाई। जब मुआविया इमाम हसन अलैहिस्सलाम के गंभीर और संतुलित शिक्षा अभियान को रोकने में विफल हो गया तो उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की हत्या का षड्यंत्र रचा और इस प्रकार इमाम हसन अलैहिस्सलाम को एक षड्यंत्र के अंर्तगत विष देकर शहीद कर दिया गया।