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अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी

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अगस्त वर्ष १९२५ की गर्मियों में उत्तर पूर्वी ईरान के तबरेज़ नगर में अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी का जन्म हुआ। उनके पिता ने किसी पाठशाला में शिक्षा प्राप्त नहीं की थी किंतु उनकी स्मरण शक्ति बहुत अधिक थी और वे नगर के बुद्धिजीवियों और उपदेशकों के उपदेशों को याद करके अन्य लोगों को सुनाते। वे नानवाई थे और रोटिया पकाते थे और किसी भी दशा में पवित्र हुए बिना आटे को हाथ नहीं लगाते थे। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी की माता भी सैदानी अर्थात पैगम्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा के वंश से संबंध रखती थीं और कुरआने मजीद की तिलावत बड़े अच्छे ढंग से करती थीं। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने बचपन में कुरआन पढ़ना तथा आरंभिक शिक्षा अपनी माता से ही प्राप्त की यहां तक कि जब वे स्कूल में नाम लिखाने गये तो उनका नाम पहली के बजाए चौथी कक्षा में लिखा गया। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी अपनी विलक्षण बुद्धि व स्मरण शक्ति के साथ शिक्षा में व्यस्त थे किंतु उन्हें आर्थिक समस्याओं के कारण पढ़ाई छोड़कर काम काज में व्यस्त होना पड़ा किंतु पढ़ाई में भी उन्हें अत्याधिक रूचि थी इसी लिए अन्ततः उन्होंने निर्णय लिया कि आधे दिन काम करेंगे और आधे दिन पढ़ाई करेंगे।
 
दिवतीय विश्व युद्ध के अंतिम वर्षों में अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने अरबी व्याकरण की कुछ किताबें तथा तर्क व दर्शन शास्त्र की कुछ पुस्तकों को तबरेज़ के तालेबिया स्कूल में पढ़ा और १५ वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्ति के लिए उन्होंने तेहरान का रुख किया और तेहरान के मरवी नामक मदरसे में बड़े बड़े धर्मगुरुओं से शिक्षा प्राप्त करना आरंभ कर दी। इस मदरसे में उन्होंने उस काल के प्रसिद्ध गुरु मिर्ज़ा मेहदी आश्तियानी से दर्शन शास्त्र पढ़ा। मुहम्मद तकी जाफरी ने तेहरान में विभिन्न धर्मगुरुओं से विभिन्न विषयों की ३ वर्षों तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद पवित्र नगर क़ुम का रुख किया और कुम के दारूश्शफा नामक मदरसे में शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही, धर्मगुरुओं की विशेष पोशाक भी धारण कर ली। कुम में जब वे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तो उस समय वहां अकाल पड़ा था जिसके कारण बड़ी कठिनाई से वे जीवन व्यतीत करते थे किंतु इन सब समस्याओं के बावजूद वे बड़ी तेज़ी के साथ शिक्षा के विभिन्न चरणों से आगे बढ़ते गये और अन्ततः इस्लामी नियमों की शिक्षा के अंतिम चरण तक पहुंच गये किंतु उनकी ज्ञान की प्यास थी कि बुझने का नाम नहीं ले रही थी इसी लिए वे धर्मगुरुओं और ज्ञान के केन्द्र के रूप में विख्यात इराक़ के नजफ नगर जाने का निर्णय लिया ताकि इमाम अली अलैहिस्सलाम के मज़ार के पास रह कर ज्ञान अर्जित करें।
 
नजफ में भी उन्हें बहुत सी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा किंतु ज्ञान में रूचि के कारण उन्होंने सभी समस्याओं का सहन किया और नजफ में भी उन्होंने विवाह कर लिया किंतु उसके बावजूद कठिनाइयों और समस्याओं ने उनका साथ नहीं छोड़ा। उनकी पत्नी कहती हैं गर्मियों में हम नजफ नगर में तहखाना किराए पर लेते थे तो अत्याधिक पुराने होते थे और उसमें सांप बिच्छु भी होते थे किंतु चूंकि गर्मी गुज़ारने के लिए हमारे पास अन्य कोई स्थान नहीं होता था इस लिए हमें विवश होकर इस प्रकार की जगहों पर रहना पड़ता था।
 
अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी १५ वर्षों तक नजफ में रहे और इस दौरान उन्होंने मुहम्मद रज़ा तुनेकाबुनी, सैयद अब्दुल हादी शीराज़ी, सैयद अबुल क़ासिम खुई और सैयद मोहिसन हकीम जैसे विख्यात इस्लामी बुद्धिजीवियों से ज्ञान व शिक्षा प्राप्त की तथा स्वंय उन गुरुओं के सहारे ज्ञान के उच्च स्थान तक पहुंचे यहां तक कि नजफ में वे इस्लामी नियमों की उच्च शिक्षा देने लगे तथा अन्य कई विषयों में भी अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी से पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ गयी।
 
अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने नजफ में आवास के दौरान, शिक्षा प्राप्ति और शिक्षा देने के अलावा बहुत सी किताबों का अध्ययन किया किंतु दर्शन शास्त्र से उनकी रूचि इस बात का कारण बनी कि वे अधिकतर इसी विषय पर लिखी जाने वाली पुस्तकों का अध्ययन करें और इस दौरान अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी पूरब व पश्चिम के दर्शनशास्त्रियों के विचारों से भलीभांति अवगत हुए। बाद में अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने कुछ पश्चिमी दर्शनशस्त्रियों के विचारों का विश्लेषण किया और पश्चिम के प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री व गणितज्ञ रसेल के साथ पत्रों द्वारा विचारों का आदान प्रदान किया। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध किताब इरतेबाते इन्सान व जहान अर्थात मनुष्य और विश्व के मध्य संबंध, का पहला भाग नजफ में ही लिखा। वे उसके बपद ईरान लौट आए और पवित्र नगर मशहद में शिक्षा देने के अलावा आयतुल्लाह मीलानी की सेवा से भी लाभ उठाया।
 
अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी के बारे में कहा जाता है कि वे नैतिकता की अत्याधिक प्रतिबद्धता करते थे। उदाहरण स्वरूप उनकी एक बेटी थीं जो ज्ञान व शिक्षा संबंधी क्षेत्र में उनकी सहयोगी समझी जाती थीं और घरेलू विषयों से लेकर शिक्षा दीक्षा तथा सम्मेलनों और किताबों के लिखने तक के मामलों में अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी की विशेष सलाहकार समझी जाती थीं । उनकी इस बेटी का ४० वर्ष की आयु में निधन हो गया। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी अपनी इस बेटी के निधन के बाद कहते हैं कि मैंने अपना मंत्री खो दिया। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी अपने इस बेटी को इतना अधिक चाहते थे किंतु इसके बावजूद इसी बेटी को दफ्न करने से पूर्व ही एक भाषण देने के लिए चले गये क्योंकि उस भाषण का कार्यक्रम निर्धारित था और बहुत से छात्र उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
 
वे अत्याधिक साधारण जीवन व्यतीत करते थे तथा अत्याधिक विनम्र और कृपालु थे। उनके विचारों से ज्ञान विज्ञान में रूचि रखने वालों की प्यास बुझती थी। दिखावे और बड़बोला पन का उनसे कोई संबंध नहीं था और वह इस प्रकार की सभी बुराइयों से कोसों दूर थे। धर्म परायणता तथा ईश्वरीय मूल्यों से उनकी प्रतिबद्धता अनुदाहरणीय थी। उनके एक शिष्य का कहना है कि अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी की जीवन शैली, आदर्श थी। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी उनकी बुद्धिजीवियों में समझे जाते हैं जिन्हें सासांरिक मोहमाया से मुक्ति के आंनद का ज्ञान था। उन्होंने परलोक के सुख के लिए इस लोक के सुखों का त्याग किया और कठिनाइयां सहन की और ज्ञान व सत्य की खोज में एक क्षण भी संकोच नहीं किया और न ही थक पर कभी बैठे और उनकी यही विशेषताएं इस बात का कारण बनीं कि ज्ञान व विज्ञान के क्षेत्र में उनका नाम सदा अमर रहे।
 
पहली बार पश्चिम से आकर अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी से उनके घर में साक्षात्कार लेने वाले का नाम प्रोफेसर रोज़ेन्टल है । उनका संबंध जर्मनी से था और युरोप में वे एक प्रतिष्ठित दर्शन शास्त्री समझे जाते थे। उस समय अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी तेहरान के एक साधारण से मोहल्ले में एक अत्यन्त जर्जर से घर में अपने परिवार के साथ रहते थे। उनके बहुत से मित्रों ने उनसे कहा कि विदेशी मेहमानों के आवागमन को देखते हुए उन्हें अपने घर के बड़े कमरे में एक कालीन बिछानी चाहिए किंतु अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने स्वीकार नहीं किया । कुल मिलाकर इस महान बुद्धिजीवी ने अपनी आयु के लगभग पचास वर्ष ज्ञान विज्ञान की सेवा में व्यतीत किये और १६ नवम्बर वर्ष १९९८ में रोग के कारण उनका स्वर्गवास हो गया और इस प्रकार से ज्ञान से संबंधित सभी लोगों ने एक महान ज्ञानी को गंवा दिया ।
 
अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने बहुत सी किताबें लिखी हैं जिनमें से कुछ का हम वर्णन कर रहे हैं। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने रसाइले फिक़ही नाम की एक किताब लिखी है जिसमें नमाज़ और रोज़े जैसी उपासनाओं और कर्तव्यों के नियमों का वर्णन है। इसी प्रकार इस्लाम और पश्चिम की दृष्टि में मानवाधिकार शीर्षक के अंतर्गत उनकी विख्यात पुस्तक है जिसका अग्रेज़ी भाषा में भी अनुवाद हो चुका है। इसी प्रकार जीवन के आदर्श और आदर्श जीवन के शीर्षक से भी उनकी किताब काफी विख्यात है। इसके अलावा उन्होंने सौन्दर्य और कला इस्लाम में, शीर्षक के अंर्तगत एक किताब लिखी है जिसे काफी ख्याति प्राप्त हुई। अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी ने दर्शन शास्त्र के विषय पर दो किताबें लिखी हैं। एक में उन्होंने डेविड ह्यूम के विचारों का विश्लेषण किया और उन पर टिप्पणी लिखी है तथा दूसरे किताब में रसेल के विचारों की समीक्षा की है। इसी प्रकार उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों के प्रसिद्ध संकलन नहजुल बलागा की व्याख्या लिखी तथा फारसी साहित्य की प्रसिद्ध कविता, मसनविए मानवी की भी व्याख्या की । अल्लामा मुहम्मद तकी जाफरी को देश विदेश में विभिन्न सम्मेलनों में निमंत्रण दिया जाता और उनके ज्ञान से लाभ उठया जाता किंतु विशेषज्ञों के अनुसार उनकी सब से अधिक महत्वपूर्ण किताब, मनुष्य और संसार में संबंध है जो कई जिल्दों पर आधारित है और इस किताब में उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की है।

 

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