जनाबे उम्मुल बनीन स.अ

जनाबे उम्मुल बनीन हज़रत अब्बास अ.स की माँ थीं कि जो कूफ़ा या उसके आस पास के इलाक़े मे पैदा हुईं।

 

 

असली नाम

 

आप का असली नाम फ़ातिमा-ए-कलाबिया था।

 

 

माता पिता

 

जनाबे उम्मुल बनीन स.अ के पिता हज़्ज़ाम बिन ख़ालिद बिन रबी कलाबिया थे तथा आप को अरब के प्रसिध्द बहादुरों मे गिना जाता था एवं अपने क़बीले के सरदार भी थे और आपकी माता का नाम तमामा था।

 

 

विवाह

 

रिवायत मे आया है कि जनाबे ज़ैहरा स.अ की शहादत के कुछ समय बाद इमाम अली अ.स ने अपने भाई जनाबे अक़ील को बुलाया जोकि उस समय के सबसे बड़े नसब शनास थे और उनसे कहा कि ऐ भाई अक़ील मुझे किसी ऐसी औरत के बारे मे बताऔ के जिससे मे विवाह कर सकूं ताकि ख़ुदा उसके ज़रिए मुझे एक दिलैर और बहादुर बेटा दे। तब जनाबे अक़ील ने हज़रत अली अ.स को जनाबे उम्मुल बनीन स.अ और उनके परिवार के बारे मे बताया और कहा कि ऐ,अली तुम फ़ातिमा-ए-कलाबिया से विवाह करो क्योंकि मै अरब मे उनके ख़ानदान से अधिक बहादुर किसी को नही जानता, इमाम अली अ.स जनाबे अक़ील की बात से सहमत होकर जनाबे उम्मुल बनीन स.अ से विवाह कर लिया।

 

 

उम्मुल बनीन स.अ

 

विवाह के बाद जब उम्मुल बनीन स.अ हज़रत अली अ.स के घर मे आईं तो आप ने इमाम अली अ.स से कहा कि ऐ,मेरे आक़ा आज से आप मुझे उम्मुल बनीन यानी बच्चों की माँ कहा करें ताकि ऐसा न हो कि आप मुझे फ़ातिमा कह कर पुकारें और बिन्ते रसूल स.अ के बच्चे अपनी माँ को याद करके ग़मज़दा हो जायें।

 

 

उम्मुल बनीन स.अ जनाबे ज़ैहरा स.अ की औलाद के साथ

 

उम्मुल बनीन स.अ ने जनाबे ज़ैहरा स.अ की औलाद को अपने बच्चों से अधिक मौहब्बत दी और सदा अपने बच्चों को नसीहत की, देखो तुम अली अ.स की औलाद ज़रूर हो परन्तु अपने आप को हमेशा ज़ैहरा स.अ के बच्चों का ग़ुलाम समझना।

 

 

इश्क़े हुसैन

 

जब करबला की घटना के बाद बशीर ने आपको आपके चारों बेटों की शहादत की ख़बर दी तो जनाबे उम्मुल बनीन स.अ ने कहा कि ऐ,बशीर तूने मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े कर दिये और ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया बशीर ने कहा कि ख़ुदावंद आपको इमाम हुसैन अ.स की शहादत पर अजरे अज़ीम इनायत करे, तो उम्मुल बनीन स.अ ने जवाब दिया, मेरे सारे बेटे और जो कुछ भी इस दुनिया मे है सब मेरे हुसैन अ.स पर क़ुरबान।

 

 

औलाद

 

आपके चार बेटे अब्बास, अबदुल्लाह, जाफ़र एंव उस्मान थे जो सब के सब करबला के मैदान मे इमाम हुसैन अ.स के साथ शहीद हुए।

 

 

वफ़ात

 

जनाबे उम्मुल बनीन स.अ ने सन 64 हिजरी मे मदीना शहर मे वफ़ात पाई और आप की क़ब्र जन्नतुल बक़ी नामक क़ब्रिस्तान मे है।