एतेकाफ़ की फज़ीलत और सवाब
इमाम ख़ुमैन एतेकाफ़ की परिभाषा बयान करते हुए कहते हैः
"وَ هُوَ اللَّبَثُ فِی المَسجِدِ بِقَصدِ التَعّبُدِ بِهِ وَ لا یعتَبَرُ فِیه ضَمُّ قَصدِ عِبادَةٍ اُخری خارِجَةً عَنهُ وَ اِن کانَ هُو الاَحوِط؛.
एतेकाफ़ यानी मस्जिद में इबादत की नियत से रुकना एतेकाफ़ है
एतेकाफ़ की महानता के बारे में यही काफ़ी है कि इसको ईश्वर के घर काबे और रुकूअ और सजदे के बराबर समझा गया है जैसा कि अल्लाह फ़रमाता है
"... وَ عَهَدنا اِلی ابراهیمَ وَ اِسمعیلَ اَن طَهّرا بَیتی لِلطّائِفینَ وَ العاکِفینَ وَ الرُکّعِ السُجود
(सूरा बक़रा आयत 125)
और हमने इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ करने वालो, एकतेकाफ़ करने वालों और रुकुअ और सजदा करने वालों के लिए हर प्रकार की अपवित्रता से पवित्र करें।
इन्सान की अहमियत उसके कार्यों से होती है, एतेकाफ़ करने वाला अपने महान कार्य के बराबर ही महान और सम्मानीय है, महान धर्मगुरू मुक़द्दस अरदबीली कहते हैं
किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि एतेकाफ़ किसी दूसरी इबादत के प्रस्तावना है, जो तहारत के साथ रोज़े की हालत में मस्जिद में ठहरता है और एतेकाफ़ करता है यह एक इबादत है, एतेकाफ़ हज और उमरे की भाति एक इबादत है।
एतेकाफ़ का महत्व
इस्लाम ने कभी भी मुसलमानों को दुनिया से मुंह फेर लेने और राहिब बन जाने या संसार के किनारा करके एक कोना पकड़ लेने को नही कहा है और इस्लाम इसका बहुत बड़ा विरोधी है, लेकिन एतेकाफ़ उन लोगों के लिए जो इस संसारिक कार्यो में फंस चुके हैं जो इस दुनिया की रोज़ की दिनचर्या से थक चुके हैं एक मौक़ा है ता कि वह कुछ दिनों के लिए केवल अपने ईश्वर की बारगाह में आ सकें और अपनी आत्मा और रूह को अल्लाह के सम्पर्क में ला सकें, और ख़ुद को इस संसार में आने वाली बड़ी बड़ी समस्याओं और जिहाद के लिए तैयार कर सकें, सदैव ईश्वर की याद में रह सकें और स्वंय को ईश्वर की निगाहों के सामने रख सकें। और इस प्रकार अपने आप को पापों और गुनाहों से दूर कर सकें।
एतेकाफ़ के स्तंभ
एक इबादत के स्तंभ वह चीज़ें होती हैं कि अगर उनको जानबूध कर या भूले से छोड़ दिया जाए तो वह बातिल हो जाती हैं, इसी प्रकार एतेकाफ़ के भी कुछ स्तंभ हैं।
1. नियत
2. तीन दिन तक मस्जिद में ठहरना।
3. एतेकाफ़ के तीनों दिनों में रोज़ा रखना।
एतेकाफ़ का समय
एतेकाफ़ साल के किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन इसका बेहतीन समय रमज़ान के अन्तिम दस दिन हैं, और रजब के महीने में अय्यामे बीज़ (13, 14 15 तारीख़) में भी एतेकाफ़ करने का बहुत सवाब है।
वह चीज़ें तो एतेकाफ़ करने वाले को नहीं करनी चाहिए
1. शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के चक्कर में न पड़ना।
2. इत्र का सूंघना, या किसी भी ख़ुश्बूदार चीज़ को सूंघना।
3. लड़ाई झगड़ा।
4. रोज़े को तोड़ने वाली चीज़ों का प्रयोग करना।
5. व्यापार करना।
एतेकाफ़ के आमाल
13वीं की रात के आमालः
दस रकअत नमाज़ कि जो भी सही प्रकार से इसको पढ़े तो उसके लिए बहुत सवाब है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) से रिवायत हैः
जो भी रजब के महीने में 13वीं की रात में दस रकअत नमाज़ पढ़े, इस प्रकार कि पहली रकअत में एक बार अलहम्द और एक बार सूरा आदियात और दूसरी रकअत में एक बार अलहम्द एक बार सूरा तकासुर पढ़े और बाक़ी नमाज़ों को भी इसी प्रकार पढ़े तो ख़ुदा उसके पापों को क्षमा कर देता है और अगर उसके माता पिता ने उसको आक़ भी कर दिया हो तो अल्लाह उससे राज़ी हो जाता है, और क़ब्र में मुनकिर और नकीर उसके क़रीब नहीं आते हैं और उसको डराते नहीं है, और वह सिरात के पुल से बिजली की तेज़ी से गुज़र जाएगा और उसके नामा -ए- आमाल के उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, उसके आमाल का तराज़ू झुक जाएगा, और स्वर्ग में उसको हज़ार शहर दिये जाएंगे।
13 रजब के दिन को भी रोज़ा रखने का बहुत सवाब है और जो अमले उम्मे दाऊद (जिसको करने का बहुत सवाब है और जिसके बाद हर प्रकार की दुआ क़ुबूल होती है) करना चाहता है उसको चाहिए कि 13 को रोज़ा रखे और उसके बाद भी दो दिन रोज़ा रखे।