शहीदो के सरदार इमाम हुसैन की अज़ादारी 4

आशूरा के महाआंदोलन से मिलने वाले पाठ प्रेरणा के स्रोत हैं। सन् ६१ हिजरी क़मरी में पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो अमर बलिदान दिया है उससे उच्च मानवीय मूल्यों की शिक्षा मिलती है। मिस्री लेखक अब्बास महमूद ओक़ाद” अबूश्शोहदा हुसैन बिन अली” नाम की किताब में इस प्रकार लिखते हैं” इस घटना से न केवल मुसलमानों ने बल्कि ग़ैर मुसलमानों ने भी पुरूषार्थता, शूरवीरता, त्याग और अत्याचारियों के मुकाबले में प्रतिरोध का पाठ लिया है। आपत्ति करने वाले यज़ीद की सभा में बैठे ईसाई प्रतिनिधि से लेकर हमारे समय तक” जो चीज़ पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शहीद होने और उनके परिजनों के बंदी बनाये जाने का कारण बनी वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन व प्रतिरोध था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जिस अन्याय व पथभ्रष्ठता का मुकाबला करने के लिए प्रतिरोध किया था वे हमारी आज की चर्चा के विषय हैं।

 
 
पथभ्रष्ठ शासक मोआविया ने अपनी आयु के अंतिम दिनों में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर के विपरीत अपने साथियों से कहा था कि वे उसके पुत्र यज़ीद के लिए लोगों से बैअत लेने का मार्ग प्रशस्त करें। उसने कुछ लोगों को लालच देकर और कुछ को धमकी देकर इस कार्य के लिए तैयार कर लिया था। मोआविया के मर जाने के बाद विभिन्न नगरों के गवर्नरों ने लोगों से यह बताकर कि मोआविया ने यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी बनाया है, लोगों से उसके लिए बैअत ले ली। इस बीच पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय नाती हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से यज़ीद के लिए बैअत लेना बहुत कठिन व महत्वपूर्ण था और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम किसी प्रकार बैअत करने के लिए तैयार नहीं थे। अंत में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत को स्वीकार कर लिया और किसी प्रकार यज़ीद की बैअत को स्वीकार नहीं किया।
 

महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश के अनुसार खिलाफत का अधिकार पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का अधिकार था परंतु यज़ीद और उसके बाप ने शक्ति के बल पर खिलाफत पर कब्ज़ा कर रखा था।

 

यहां पर प्रश्न यह उठता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने अपने समय के शासकों के विरुद्ध आंदोलन क्यों नहीं किया जबकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कम साथी होने के बावजूद भ्रष्ठ शासक यज़ीद के विरुद्ध आंदोलन किया? यज़ीद कौन था जिसकी खिलाफत स्वीकार करने से इस्लाम के मूल सिद्धांत खतरे में पड़ जाते और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के लिए मौत से बदतर था?

 

यज़ीद के बारे में लिखा है कि वह मैसून नाम की मोआविया की एक पत्नी से २५ हिजरी क़मरी में पैदा हुआ था। मैसून कल्बियून क़बीले की एक महिला थी जो ईसाई था और उस कबीले के कुछ लोग मुसलमान हो गये थे। यज़ीद के मोआविया का बेटा होने में मतभेद है। बहरहाल मैसून का जीवन मोआविया के महल में ठीक नहीं था इसलिए मोआविया ने उसे और यज़ीद दोनों को मैसून के कबीले के पास भेज दिया और यज़ीद उस कबीले में बड़ा हुआ जो अभी पूरी तरह मुसलमान नहीं हुआ था और वह इस्लामी शिक्षाओं से वंचित था और इस्लाम विरोधी आस्थाओं एवं आदेशों की बुनियाद वहीं से उसके दिल में रखी  गयी। उसने बद्दू अरबों से केवल भोग विलास और जानवरों के साथ रहना व खेलना सीखा। यह आदत उसमें इस सीमा तक थी कि जब वह मोआविया की जगह पर बैठा तब भी जानवरों विशेषकर बंदर से खेलता था और उसने कम से कम दिखावे के रूप में भी इन आदतों को नहीं छोड़ा। यज़ीद का व्यवहार अपने पहले वाले खलीफाओं से भिन्न था। वह इस्लामी शिक्षाओं की परवाह नहीं करता था और पैग़म्बरे इस्लाम पर वहि उतरने का इंकार करता था। वह शराब पीता था और सरकारी कार्यों को कोई महत्व नहीं देता था। ईरानी बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी अपनी किताब “हमासये हुसैनी” में लिखते हैं कि यज़ीद बहुत भ्रष्ठ आदमी था और उसे लोगों एवं इस्लाम की उपेक्षा से आनंद प्राप्त होता था। उसे इस बात में मज़ा आता था कि इस्लामी सीमाओं का उल्लंघन करे। वह खुली व आधिकारिक बैठक में शराब पीता था वह नशे में धुत होकर अर्थहीन बातें करता था। समस्त विश्वस्त इतिहासकारों ने लिखा है कि वह बंदर से खेलता था। उसके पास जो बंदर था उसका उपनाम उसने अबा क़ैस रख रखा था और वह उसे बहुत चाहता था। प्रसिद्ध इतिहासकार मसऊदी अपनी किताब “मुरूजुज़्ज़हब” में लिखता है यज़ीद अपने बंदर को रेशम का सुन्दर कपड़ा पहनाता था और अपने किनारे सरकारी लोगों से भी ऊपर बैठाता था”

 

इसी कारण हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा था कि इस्लाम पर सलाम हो अर्थात इस्लाम से विदा ले लेनी चाहिये। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कहने का मतलब यह था कि जब यज़ीद जैसा भ्रष्ठ व्यक्ति इस्लामी शासक बनेगा तो इस्लाम को भुला देना चाहिये और उससे विदा ले लेनी चाहिये। यज़ीद अपने बाप मोआविया के शासन काल में और पवित्र नगर मदीना में पैग़म्बरे इस्लाम के घर के किनारे इस्लामी शिक्षाओं पर लेशमात्र भी ध्यान नहीं देता था और लोगों की मौजूदगी में दस्तरखान पर शराब पीता था। उसने केवल उस समय शराब अपने दस्तरखान से हटाने का आदेश जब उसे यह पता चला कि इब्ने अब्बास और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उसके घर में प्रवेश करना चाहते हैं। यज़ीद का भ्रष्ठ होना इतना स्पष्ट था कि जब दूसरे शहरों से लोग और गुट उससे मिलने के लिए जाते थे तब भी उनकी उपस्थिति में वह शराब पीता था जबकि पवित्र कुरआन ने इस कार्य को शैतानी कृत्य का नाम दिया है।

 

प्रसिद्ध शाफेई इतिहासकार इब्ने कसीर लिखता है कि यज़ीद एसा आदमी था जो अपनी ग़लत इच्छाओं और बुरी आदतों को नियंत्रित नहीं कर सकता था। बुरी सभाओं का खुशी खुशी स्वागत करता था और सबसे अनिवार्य चीज़ नमाज़ नहीं पढ़ता था और सचमुच यज़ीद धर्मभ्रष्ठ और काफिर मार्गदर्शक था और वह धिक्कार का पात्र था”

 

सुन्नी इतिहासकार ज़हबी लिखता है यज़ीद पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का घोर दुश्मन था और कुत्ता प्रवृत्ति का व्यक्ति था और शराब पीता था और किसी भी पाप में संकोच नहीं करता था उसकी सरकार का आरंभ इमाम हुसैन की हत्या से आरंभ हुआ और काबे को तबाह करने के साथ समाप्त हो गयी”

 

मसऊदी के इतिहास में आया है कि जब यज़ीद सत्ता में पहुंचा तो तीन दिनों तक घर से बाहर नहीं निकला और अरब के प्रतिष्ठित एवं दूसरे लोग उससे मिलने के लिए आये। चौथे दिन वह बुरी स्थिति में मिम्बर पर गया और अपने भाषण के दौरान कहा। मैं अपनी अज्ञानता को स्वीकार करता हूं और ज्ञान भी प्राप्त करने का प्रयास नहीं करूंगा”

 

यज़ीद की चाल चलन उसके निकटवर्ती और गवर्नरों के लिए आदर्श हो गयी और उन्होंने भी अपने भ्रष्टाचार में वृद्धि कर दी।

 

यज़ीद सरकार चलाने में भी बहुत अक्षम था और वह अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति के लिए खूब धन खर्च करता था। कभी कभी वह हिसाब किताब के बिना सरकारी कर्मचारियों को अधिक धन दे देता था और सरकारी व वित्तीय मामलों में वह भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं सोचता था। इन सब विशेताओं के साथ जब उसने पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया तो इब्ने जौज़ी, सिव्ती, इब्ने हज़्म, शौकानी, शेख मोहम्मद अब्दे और अहमद बिन हन्बल जैसे बहुत से सुन्नी विद्वानों ने मोआविया बिन यज़ीद को काफिर और भ्रष्ठ बताया है और कहा कि यज़ीद पर लानत करना अर्थात धिक्कार वैध है। यज़ीद के चार वर्षीय क्रिया कलापों पर दृष्टि डालने से उसकी अधर्मिता की गहराई भलिभांति स्पष्ट हो जाती है। उसके शासनकाल के पहले वर्ष में आशूरा की घटना पेश आई यानी उसकी सत्ताकाल के पहले वर्ष में पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय नाती और उनके वफादार साथियों को बड़ी निर्मतता के साथ शहीद किया गया और उनके परिजनों को बंदी बनाया गया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों के शहीद हो जाने के बाद सन् ६३ हिजरी कमरी में मदीना वासियों ने एक गुट को शाम अर्थात वर्तमान सीरिया भेजा ताकि वह यज़ीद के व्यवहार का पता लगाये। सीरिया से लौटने के बाद उस गुट ने इस प्रकार कहा” हम एसे व्यक्ति के पास से आ रहे हैं जिसके पास धर्म नहीं है, वह शराब पीता है और हमेशा वह गाने बजाने में मस्त रहता है गाने और नाचने वाली महिलाएं उसकी सभा की शोभा हैं यज़ीद कुत्ते से खेलता है और रातों को कुछ चोरों एवं बुरे लोगों के साथ बैठता है हम तुम्हें गवाह बनाते हैं कि आज की तारीख से उसे खिलाफत से हटा रहे हैं”

 

यज़ीद ने मुस्लिम बिन उक़्बा को मदीने के लोगों के दमन का काम सौंपा और उसने तीन दिनों तक मदीना की महिलाओं को अपने सैनिकों के लिए वैध करार दिया और उसके सैनिकों ने भी मदीना वासियों को पराजित करने के बाद किसी प्रकार के अपराध में संकोच से काम नहीं लिया। इतिहास की यह हृदय विदारक घटना वाकेआ हुर्रा अर्थात हुर्रा घटना के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना में ६ से १० हज़ार लोग मारे गये और  जिन लोगों की हत्या की गयी उनमें बहुत से पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाई व साथी थे। इस अपराध के बाद यज़ीद ने सन् ६४ हिजरी कमरी में इसी सेना को अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर का परिवेष्टन और बर्बाद करने के लिए पवित्र नगर मक्का भेजा। इस सेना ने पवित्र नगर मक्का का परिवेष्टन कर लिया और काबे में आग लगा दी इस प्रकार से कि काबा तबाह हो गया क्योंकि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने काबे में शरण ले रखी थी परंतु इसके पहले कि ये सैनिक कुछ और करते उन्हें यज़ीद के मरने की सूचना मिली अतः यह सैनिक परिवेष्टन छोड़कर वापस चले गये।

 

पवित्र कुरआन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन हर प्रकार की गन्दगी से दूर हैं और सच्चे पथप्रदर्शक हैं। तो यह कैसे संभव है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बेटे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद जैसे भ्रष्ठ व अत्याचारी की बैअत करते? जबकि स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि हुसैन मार्गदर्शन के चेराग़ और मुक्ति की नाव हैं।

 

स्वयं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आशूरा के दिन फरमाते हैं जान लो कि अवैध बाप के अवैध बेटे ने मुझे दो चीज़ों के चयन के बीच छोड़ा है। कत्ल हो जाऊं या अपमान  स्वीकार कर लूं। ईश्वर और उसके पैग़म्बर हमारे लिए कदापि अपमान पसंद नहीं करेंगे और हमारा लालन पालन पवित्र गोद में हुआ है और स्वाभिमानी एवं प्रतिष्ठित लोग इसे कभी भी हमसे स्वीकार नहीं करेंगे। कदापि हम अपमान के जीवन को प्रतिष्ठा की मौत पर प्राथमिकता नहीं देंगे।