धैर्य और दृढ़ता की मलिका, ज़ैनब बिन्ते अली

अहलेबैत (अ) के पवित्र और मासूम ख़ानदान में इंसानी गुणों और रोल माडल की तलाश विशेषकर पवित्र महिलाओं की जीवनी हर सच्चे और न्यायप्रिय व्यक्ति के लिये एक पाठ है। इस ख़ानदान की पवित्र और महान महिलाओं में से एक अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) की बेटी हज़रत ज़ैनबे कुबरा (स) हैं, जिनके जीवन के बारे में शोध हर मुसलमान और ग़ैर मुसलमान लड़की और महिला के लिये सबक़ और नसीहत है।

आप ज्ञान, अख़लाक़, आत्मीय गुणों और इंसानी सिफ़तों की एक बोलती मिसाल थी, जिसका नतीजा, ज्ञान, तक़वा, समाजिकता, धैर्य, विवेक, प्रतिरोध, मोहब्बत, इश्क़, जिम्मेदारियों के एहसास की सूरत में ज़ाहिर हुआ था।

हम अपने इस लेख में अक़ील –ए- बनी हाशिम हज़रत ज़ैनब (स) के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नज़र डालेंगे, और अपके जीवन से सीख लेने का प्रयत्न करेंगे।

 

जन्म

प्रसिद्ध कथन के अनुसार हज़रत ज़ैनब (स) का जन्म इस्लामी कैलेंडर के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने आपका नाम ज़ैनब रखा। (1) आपकी कुन्नियत (उपनाम) उम्मे अब्दुल्लाह, उम्मे कुलसूम, उम्मुल अज़ाएम, उम्मे हाशिम, उम्मुल मसाएब है, और आपका लक़ब आलेमा, अक़ील ए बनी हाशिम, सिद्दक़ ए कुबरा, नाएबतुज़्ज़हरा और बतालतुल कर्बला बताया गया है। (2)

 

माँ और नाना का निधन

हज़रत ज़ैनब (स) की आयु अभी 5 साल ही थी कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) का निधन हो गया, अभी आप इस सदमें से संभल भी नहीं पाई थीं कि कुछ अरसे के बाद ही आपकी मां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) अपने पिता के निधन पर रोने और सहाबियों की तरफ़ से सदमों और अत्चायारों को बर्दाश्त करने के बाद इस दुनिया से गुज़र गईं, रिवायतों में है कि आपकी शहादत पैग़म्बर (स) की वफ़ात के 75 या 95 दिनों के बाद हुई है। (3)

 

शादी और ज़िम्मेदारियां

अब्दुल्लाह बिन जाफ़र बिन अबी तालिम ने हज़रत ज़ैनब (स) की 13 साल की आयु में शादी की इच्छा प्रकट की, और आपकी शादी अब्दुल्लाह से हो गई। (4) आपसे चार संतानें हुई जिनके नाम इतिहास की पुस्तकों में जाफ़र, औन, मोहम्मद और उम्मे कुलसूम बताई गई हैं। कुछ ने अब्बास नाम का एक बेटा भी आपका बताया है। (5) इतिहासकारों ने लिखा है कि औन और मोहम्मद 18 और 20 साल की आयु में कर्बला के मैदान में अपने चचा हज़रत इमाम हुसैन (अ) की तरफ़ से यज़ीदी सेना से लड़ते हुए शहीद हुए। (6)

 

हज़रत ज़ैनब (स) के फ़ज़ाएल और महानता

1.    ज्ञान और इल्म

 
चौथे इमाम, इमाम सज्जाद (अ) से रिवायत है कि आपने फ़रमायाः « أنتِ بحمدالله عالمة غيرمعلّمة فَهِِمة» हे चचीजान आप वह ज्ञानी हैं जिससे किसी से ज्ञान सीखा नहीं है और वह समझदार हैं जिसने किसी की शागिर्दी नहीं की है!

और यह सही भी है कि वह महान स्त्री जो अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) जो कि पैग़म्बर (स) के ज्ञान के वारिस थे जैसे पिता और फ़ातेमा ज़हरा (स) जैसी माँ जिसको पैग़म्बर (स) के लिये कौसर बनाया गया, से पैदा हो और इन जो महान हस्तियों के दामन में पले बढ़े उसको ऐसा ही होना चाहिए, और कौन है जो इस जैसी हस्ती को सिखा और पढ़ा सके।


हज़रत ज़ैनब (स) कूफ़े की मस्जिद में क़ुरआन और अहकाम के पाठ पढ़ाया करती थी और कभी कभी तो मर्द में इन क्लासों में समिलित हुआ करते थे। कहा जाता है कि अब्दुल्लाह बिन अब्बास भी उन्ही लोगों में से हैं जिन्होंने हज़रत ज़ैनब (स) से ज्ञान सीखा है, जैसा कि वह बयान करते हैं: हमारी ज्ञानी बानो हज़रत ज़ैनब (स) बिन्ते अली इस प्रकार रिवायत करती हैं। (7)

इमाम हुसैन (अ) ने अपनी बहन से कहा था कि धार्मिक उपदेशों और अहकाम को इमाम सज्जाद (अ) की तरफ़ से रिश्तेदारों के लिये बयान और उनकी व्याख्या करें, आप इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) की लोगों के लिये अहकाम और शरई मसअले बयान करने में विशेष प्रतिनिधि थी और इस महान स्त्री का घर ज्ञान और इल्म के चाहने वालों से भरा रहता था।

 

2.    वीरता और जिहाद


आप कर्बला की घटना में अपने भाई इमाम हुसैन (अ) की साथी थी और हर क़दम पर सैय्यदुश शोहदा (अ) के साथ खड़ी रहीं और उस रक्तरंजित लड़ाई में अपने धैर्य, विवेक, घायलों की देखभाल आदि के माध्यम से ऐतिहासिक किरदार अदा किया जो आज भी अविस्मर्णीय है आप कभी भी अमवी शत्रुओं से भयभीत नहीं हुईं, एक रिवायत में इमाम अली (अ) ने फ़रमायाः जिहाद तीन प्रकार का है, हाथ से, ज़बान से और दिल से। (8)

हज़रत ज़ैनब (स) ने क़ुरआन, धार्मिक ज्ञान और लोगों पर अपने कंट्रोल की अदिर्तीय शक्ति से इस प्रकार बात कहीं और लोगों के इस प्रकार वास्तविक्ता का आईना दिखाया कि लोगों का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया! जैसा कि यज़ीद के दरबार में इस प्रकार वैभव और जलालत के साथ मुंह खोला कि न तो यज़ीद आपकी बात को काट सका और न ही किसी और में यह जुर्रत हुई की आपकी बात का विरोध कर सके। (9)

 

पवित्र लक्ष्य के लिये दृढ़ता


हज़रत ज़ैनब (स) के कर्बला की ख़ून घटना के बाद अदिर्तीय वीरता और दृढ़ता के साथ अपने भतीजे इमाम सज्जाद (अ) का साथ दिया और अपना धार्मिक दायित्व निभाया, जिनमें से हम कुछ की तरफ़ यहां इशारा कर रहे हैं

1.    कूफ़ा

उमरे सअद ने बंदियों के काफ़िले को इस प्रकार व्यवस्थित किया था कि 12 मोहर्रम की सुबह को कूफ़ा पहुँच जाए। यह काफ़िला दुखों, समस्याओं का बोझ उठाए, कटे हुए सरों को भालों पर लिये हुए उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद के पास ले जाया गया। वह अपने हाथ में एक लकड़ी लिये हुए था जिसे इमाम हुसैन के होठों और दांतों पर मार रहा था!

हज़रत ज़ैनब (स) जिन्होंने एक पुराना वस्त्र धारण कर रखा था पूर्ण वैभव और जलालत के साथ आगे बढ़ीं और एक कोने में बैठ गईं! उबैदुल्लाह बिन जियाद ने प्रश्न कियाः यह स्त्री कौन है? उत्तर दिया गयाः यह ज़ैनब अली (स) और फ़ातेमा (स) की बेटी है।


उबैदुल्लाह ने कहाः “प्रशंसा है उस ईश्वर की जिसने तुमको अपमानित किया और क़त्ल किया!?”

हज़रत ज़ैनब (स) ने कहाः “प्रशंसा है उस ईश्वर की जिसने अंतिम नबी पैग़म्बरे इस्लाम को सम्मानित किया और हमको पवित्र और पाकीज़ा बनाया। तू हे उबैदुल्लाह बुरा, ज़लील और पापी है!?”


उबैदुल्लाह ने कहाः देखों ईश्वर ने तुम्हारे परिवार के साथ क्या किया?

आपने फ़रमायाः «ما رأيت الاّ جميلا...» मैंने ईश्वर से सुन्दरता के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखा, निश्चिंत रहों बहुत जल्द ईश्वत तुम्हारे और उनके (शहीद) बीच फ़ैसला करेगा, तेरी माँ तेरे मातम में बैठ हे मरजाना के बेटे।

 

2.    शाम में यज़ीद का दरबार


कूफ़े के बाद क़ैदियों को यज़ीद बिन मोआविया के महल की तरफ़ ले जाया गया, यज़ीद, इब्ने ज़िबअरी के शेर पढ़ रहा था और उसके मुंह से कुफ़्र और शिर्क और नास्तिक्ता की बू आ रही थी! यह दृश्य इमाम सज्जाद (अ) और हज़रत ज़ैनब (स) के लिये बहुत ही दुखद और गंभीर था!

इमाम सज्जाद (अ) ने यज़ीद को संबोधित करके फ़रमायाः “तू क्या कहता है जब कि हमारे जद पैग़म्बरे इस्लाम (स) हैं!

इसी दरबार में एक शामी ने जब यज़ीज से चाहा कि फ़ातेमा बिन्तुल हुसैन (अ)  को दासी के तौर पर उसे दे दे, तो ज़ैनब (स) ने फ़रमायाः

“न तुझे और न यज़ीद को यह अधिकार है और न ही हिम्मत और जुर्रत”। जब आपने यज़ीद की निर्भीकता को देखा तो फ़रमायाः तू राजा और सत्ताधारी है, ज़ुल्म और अत्याचार के साथ बुराभला कहता है और धौंस जमाता है। जब यज़ीद ने आपका यह रूप देखा तो चुप हो गया और आगे कुछ न बोला।

निःसंहेद अहलेबैत (अ) की हिम्मत, वीरता और वैभव इस प्रकार का है कि वह शत्रु के दिल में डर बिठा देता है और उनको पीछ हटने पर विवश कर देता है, हज़रत ज़ैनब ने अपनी आगे की बातों में लोगों को झिझोड़ कर रख दिया और क़ुरआनी आयतों की तिलावत, तफ़सीर से तर्क लाने और क़ुरआन की वास्तविक तावील के माध्यम से अमवियों की जुल्म और सितम पर आधारित हुकूमत के स्तंभों को हिला कर रख दिया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) और अहलेबैत (अ) की सच्चाई की गवाही दी, और लोगों को सच्चाई बताई और बनी उमय्या के ख़ानदान के ज़ुल्मों और अत्याचारों के बारे में जागरुक किया। (10)

 

3.    मदीने में


इमाम हुसैन (अ) का यह लुटा हुआ क़ाफ़िला कूफ़े और शाम की सारी मुसीबतों को झेलने और अत्याचारों को सहने के बाद थकाहारा और ग़मों में डूबा हुआ मदीना शहर में प्रवेश करता है, जाने पहचाने शहर की ख़ुशबू काफ़िले वालों को महसूस होती है, लेकिन इस बार जो यह काफ़िला मदीने आया है उसका दृश्य अलग है जब यह काफ़िला मदीने से चला था तो इसके साथ इमाम हुसैन (अ) थे अब्बास (अ) थे अली अकबर (अ) और क़ासिम (अ) थे, लेकिन जब वापस आया है तो केवल कुछ क़ैदी है जो आये हैं!

भाई भतीजों की शहादत अहले हरम का कलेजा जला रही थी, लेकिन ईश्वर की इच्छा के सामने झुकने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था, वह इस बात से प्रसन्न थे कि जब मदीने वापस आये हैं तो हुसैन के आन्दोलन में नई जान फूंक कर आये हैं हुसैनी क्रांति को नई जान दे कर लौटे हैं।

क़ैदियों का यह काफ़िला दुखों, ग़मों और मदीने के लोगों के आसुँओं के बीच पैग़म्बर की क़ब्र पर पहुँचता है और हज़रत ज़ैनब (स) आसुँओं से भरी आँखों के साथ पैग़म्बर (स) को संबोधित करके फ़रमाती है: « يا جدّاه، انّي ناعية اليک وَلَدک الحسين[ع]» हे नाना मैं ग़मों और दुखों के साथ आपके बेटे हुसैन (अ) के शहीद होने की सूचना लाई हूँ।

कुछ लोग संवेदना प्रकट करने के लिये अब्दुल्लाह बिन जाफ़र के घर आते हैं तो उबैदुल्लाह कहते हैं: ईश्वर का आभार है कि मेरे बेटे हुसैन (अ) पर क़ुरबान हो गये और उन पर अपनी जान निछावर कर दी।

 

उसके बाद हज़रत ज़ैनब (स) उम्मुल बनीन (स) से भेंट करने जाती है और उनको सात्वना देती है, बनी हाशिम अज़ादर बन कर बक़ी में एकत्र होते हैं और नौहा पढ़ते हैं और हुसैनी काफ़िले के कुछ लोग कर्बला की घटना, मुसीबतों, समस्याओं, वीरता और शहादत को बया किया, जिसके बाद पैग़म्बर (स) के परिवार वालों ने सोग मनाया!

 

हज़रत ज़ैनब (स) इमाम सज्जाद (अ) के साथ कर्बला की घटना को लोगों के सामने बयान किया करती थीं और कहती थी कि हमने यह सारी मुसीबतें ईश्वर के लिये बर्दाश्त की है, और कभी भी ईश्वर से ग़ाफ़िल नहीं हुई हैं, जिसका नतीजा यह हुआ कि इमाम सज्जाद (अ) हज़रत ज़ैनब (स) और दूसरे क़ैदी कर्बला की घटना के वास्तिक रक्षा करने वाले बने और इन लोगों ने कभी भी हुसैनियत के चिराग़ को बुझने नहीं दिया, वह घटना जिसने इस्लाम को भटकने और बदलने से बचा लिया और बनी उमय्या की ज़ालिम हुकूमतों की चूलें हिलाकर उसका सर्वनाश कर दिया। (11)

«سلامٌ عليها يوم وُلِدت و يوم تٌوفيّت و يوم تٌبعث حيّا»

 

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(1)    इबने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, जिल्द 3, पेज 357

(2)    समऊदी, मुरव्वेजुज़्ज़हब, जिल्द 3, पेज 63, इब्नुल फ़रज अल इस्फ़हानी, मक़ातेलुत्तालेबीन, पेज 95, मोहम्मद ज़ादे, मरज़िया, बानूई आफ़ताब, पेज 26

(3)    अरबली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारेफ़तिल अइम्मा, जिल्द 2, पेज 63

(4)    इब्ने सअद, अलतबक़ातुल क़ुबरा, जिल्द 6, पेज 100

(5)    इब्ने सअद, अलतबक़ातुल क़ुबरा, जिल्द 8, पेज 341, इबने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, जिल्द 4, पेज 122

(6)    मुफ़ीद, अल इरशाद, जिल्द 2, पेज 248, अबुल फ़रज अल इस्फ़हानी, मक़ातिलुत्तालेबीन पेज 122

(7)    अबुल फ़रज अल इस्फ़हानी, मक़ातिलुत्तालेबीन पेज 95, सदूक़, कमालुद्दीन, बाब 45, हदीस 37

(8)    नहजुल बलाग़ा, हिकमत 375

(9)    अबू मख़निफ़, वक़अतुत्तफ़ (तहक़ीक़ मोहम्मद हादी यूसुफ़ी ग़रवी), पेज 262, सैय्यद इब्ने ताऊस, अलमलहूफ़ पेज 191

(10)    सैय्यद इब्ने ताऊस, अलमलहूफ़ पेज 315, तबरसी, अल एहतेजाज, जिल्द 2,  पेज 122

(11)    मजलिसी, बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 124, सैय्यद इब्ने ताऊस, अलमलहूफ़ पेज 240