शबे आशूर के वाक़ेआत

इमाम हुसैन (अ) का ख़ुतबा


आशूर की रात को इमाम हुसैन के एक साथी "मोहम्मद बिन बशीर हज़रमी" को सूचना दी गई की तुम्हारा बेटा शत्रु के सेना के हाथों "रय" शहर की सीमा पर गिरफ़्तार हो गया है उन्होंने उत्तर में कहाः उसपर और मुझ पर पड़ी इस मुसीबत के सवाब की मैं ईश्वर से आशा रखता हूँ और मुझे यह पसंद नहीं है कि मेरा बेटा क़ैदी बने और मैं जीवित रह जाऊँ।


इमाम हुसैन ने जब उनकी बातों को सुना तो फ़रमायाः


ईश्वर तुमको क्षमा करे, मैं तुम्हारी गर्दन से अपनी बैअत उठाता हूँ, जाओ और अपने बेटे को स्वतंत्र कराने का प्रयास करो।


मोहम्मद बिन बशीर ने कहाः अगर मैं ऐसी करूँ तो मैं जीवित ही ख़ूख़ार जानवारों के निवाला बन जाओं अगर आपसे जुदा होऊँ।


जब इमाम ने अपने साथी की इस बात को सुना तो पाँच बेहतरीन कपड़े दिये जिनकी क़ीमत हज़ार दीनार थी और फ़रमायाः


तो इन कपड़ों को जो बेटा तुम्हारे साथ है उसको दे दो ताकि वह तुम्हारे बेटे की आज़ादी के लिये इनका इस्तेमाल कर सके। (1)


आशूर की रात को जब इमाम हुसैन ने उमरे साद की सेना से एक रात की मोहलत ले ली तो वह अपने सहाबियों के बीच आते हैं और सबके एक स्थान पर जमा करने के बाद फ़रमाते हैं


मैं ईश्वर का बेहतरीन प्रशंसा के साथ धन्यवाद करता हूँ, और दुख सुख में उसकी प्रशंसा करता हूँ, हे ईश्वर इसलिये कि तूने हमें नबूवत से सम्मानित किया, क़ुरआन का ज्ञान और धर्म की जानकारी दी और हमे सुनने वाले कान और देखने वाली आँखें दी हम तेरा धन्यवाद करते हैं,


हे ईश्वर हमें अपने धन्यावाद करने वाले बंदो में क़रार दे।


मैं अपने साथियों से बेहतर और वफ़ादार और किसी को नहीं जानता हूँ, और अपने अहलेबैत से अधिक सिल ए रहम करने वाले और उनसे अधिक आज्ञापालक किसी को नहीं समझता हूँ। ईश्वर तुमको मेरी सहायता करने के लिये बेहतरीन सवाब दे, मैं जानता हूँ कि कल मेरा मामला इनके साथ जंग तक पहुँचेगा।


मैं तुम्हारी गर्दनों से अपनी बैअत उठाता हूँ मैं तुमको अनुमति देता हूँ कि रात के अंधेरे का लाभ उठाओ और इस ख़तरे के स्थान से दूर चले जाओ, और शहरों एवं देहातों में बिखर जाओ, यह (शत्रु) लोग केवल मुझे चाहते हैं, उनको तुमसे कोई लेना देना नहीं है। (2)


जब इमाम की इस बात को साथियों ने सुना तो हर तरफ़ से रोने की आवाज़ बुलंद हो गई लेकिन कोई भी जाने के लिये न उठा, जब इमाम ने देख लिया कि कोई भी कर्बला को छोड़कर जाने के लिये तैयार नहीं है तो आपने अपने साथियों को शहादत की शुभसूचना दी और उनको ईश्वरीय इन्आम की ख़बर दी, इमाम ने एक एक सहाबी को उसकी शहादत के बारे में बताया, इन सबके बीच क़ामिस भी खड़े हुए थे उन्होंने देखा कि इमाम सबको उसकी शहादत के बारे में बता रहे हैं लेकिन क़ासिम का नाम नहीं ले रहे हैं आख़िरकार क़ासिम से धैर्य नहीं रखा गया और उन्होंने पूछ लियाः


हे चचाजान क्या कल मैं भी शहीद होऊँगा?


इमाम ने उत्तर देने से पहले क़ासिम से कहाः बेटा यह बताओ मौत तुम्हारे नज़दीक कैसी है?


क़ासिम ने कहाः चचाजान शहद से अधिक मीठी है।


तब हुसैन ने कहा हा क़ासिम कल तुम भी शहीद होगे और मेरा बेटा अब्दुल्लाह (शायद इमाम का तात्पर्य अली असग़र थे) भी शहीद होगा।


क़ासिम ने पूछ लियाः हे चचाजान क्या शत्रु की सेना ख़ैमों में भी आ जाएगी?


इमाम हुसैन ने कहाः नहीं बेटा अली असग़र को मैं स्वंय शत्रु की सेना के सामने पानी मांगने के लिये ले जाऊँगा और वह तीर से उस छः महीने के बच्चे की प्यास बुझाएंगे।


क़ासिम ने जब यह सुना तो उनको बर्दाश्त नहीं हुआ और वह रोने लगे उनके साथ सभी रोने लगे। (3)


जब इमाम हुसैन ने सबको शहादत की सूचना दे दी तो एक बार आप युद्ध को देखते हुए आदेश देते हैं कि ख़ौमों और अहले हरम की सुरक्षा के लिये, ख़ैमों के पीछे एक खाई खोदी जाए, आपने आदेश दिया, जैसे ही शत्रु हमला करे खाई में पड़ी हुई लकड़ियों आदि में आल लगा दी जाए ताकि वह पीछे से हमला न कर सकें, और आपनी यह सोंच बहुत ही लाभकारी रही, जब तक हुसैन जीवित रहे कोई भी पीछे से ख़ैमों पर हमला नही कर सका। (4)

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(1)    अलमलहूफ़, पेज 39
(2)    इरशाद, शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 93
(3)    नफ़सुल महमूम, पेज 230
(4)    अल इमामुल हुसैन व असहाबेहि, पेज 257