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पंद्रह मोहर्रम के वाक़ेआत

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अहले हरम की शाम की तरफ़ रवानगी


इतिहास की किताबों में आया है कि "इबने ज़ियाद" ने एक (या कई) दिनों तक कर्बला के शहीदों के सरों को कूफ़ा शहर की गलियों कूचों और महल्लों में घुमाता रहा उसके बाद उसके पास "यज़ीद इबने मोआविया" मलऊन का आदेश आता है कि अली (अ) के बेटे इमाम हुसैन (अ) के सर को दूसरे कर्बला के शहीदों के सरों के साथ क़ैदियों के सामना और अहलेबैत (अ) की महिलाओं के साथ शाम (सीरिया) भेजा जाए।


जब उबैदुल्लाह इबने ज़ियाद को यज़ीद का यह आदेश मिला तो उसने कर्बला के शहीदों के सरों को "ज़हर बिन क़ैस" के हवाले किया और उनको यज़ीद के पास शाम भेज दिया। (1)


इबने ज़ियाद ने इमाम हुसैन (अ) और दूसरे शहीदों को यज़ीद के पास भेजने के बाद क़ैदियों को 15 मोहर्रम को "शिम्र ज़िलजौशन" और "मख़्र बिन सअलबा आएज़ी" के माध्यम से शाम भेजा और उसने चौथे इमाम, इमाम सज्जाद (अ) के हाथों, पैरों और गर्दन में ज़ंजीर डाली और और पैग़म्बर (स) के अहलेबैत (अ) और पवित्र महिलाओं को बे कजावा ऊँटों पर बिठाया, और वह मलऊन, अहलेबैत को अपमानित करता हुआ क़ैदियों की भाति शाम की तरफ़ ले कर चल पड़ा और यह काफ़िला जिधर से भी गुज़रता था लोग तमाशा देखने के लिये एकत्र हो जाते थे। (2)


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(1)    हुसैन नफ़से मुतमइन्ना, मोहम्मद अली आली, पेज 329

(2)    लहूफ़ सैय्यद इबने ताऊस

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