अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इस्लाम मक्के से कर्बला तक किस्त 9

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अबू बक़र बिन हसन: खानदान-ए-बनी हाशिम के जिन नौजवानों ने अपने चाचा पर अपनी जान कुर्बान की, उन में अबू बक़र बिन हसन का नाम भी सुनहरे शब्दों में लिखा है। इन को अब्दुल्लाह इब्ने अक़बा ने तीर मार कर शहीद किया।


मोहम्मद बिन अली: यह इमाम हुसैन (अ) के भाई थे, इनकी माँ का नाम इमामाह था। कहा जाता है की इमाम हुसैन (अ) की माँ हज़रत फ़ातिमा ने अपने निधन के समय इच्छा व्यक्त की थी की हज़रत अली इमामाह इब्ने अबी आस से शादी करें। मोहम्मद ने अपने भाई इमाम हुसैन (अ) के मकसद को बचाने के लिए भरपूर जंग की और कई दुश्मनों को मौत के घाट उतारा। बाद में बनी अबान बिन दारम नाम के एक व्यक्ति ने तीर मार कर शहीद कर दिया। इन्हें मोहम्मद उल असग़र(छोटे मोहम्मद) भी कहा जाता है।


अब्दुल्लाह बिन अली: अब्दुल्लाह हज़रत अली और जनाबे उम उल बनीन के बेटे थे और यह हज़रत अब्बास से छोटे थे। जनाबे उम उल बनीन के क़बीले, क़बालिया से ताल्लुक रखने वाला यज़ीद का एक कमांडर भी था जिसका नाम शिम्र था। उस ने क़बीले के नाम पर इब्ने ज़ियाद से जनाबे उम उल बनीन के चारों बेटों हज़रत अब्बास, हज़रत अब्दुल्लाह, हज़रत उस्मान और जाफ़र बिन अली के नाम अमान नामा(आश्रय पत्र) लिखवा लिया था। कर्बला पहुँचने के बाद शिम्र ने सबसे पहला काम यह किया वह इमाम हुसैन (अ) के शिविर के पास आया और आवाज़ दी की कहाँ हैं मेरी बहन के बेटे? यह सुन कर हज़रत अब्बास और उनके तीनों भाई सामने आये और पूछा की क्या बात है? इस पर शिम्र ने कहा की तुम लोग मेरी अमान(आश्रय) में हो, इस पर जनाबे उम उल बनीन के बेटों ने कहा की खुदा की लानत हो तुझ पर और तेरी अमान पर। हम को तो अमान है और पैग़म्बर के नवासे को अमान नहीं। इस तरह अली के यह चारों शेर दिल बेटे यह साबित कर रहे थे की सत्य के रास्ते में रिश्तेदारियाँ कोई मायने नहीं रखतीं और वह कर्बला में इस लिए नहीं आये हैं कि हुसैन उनके भाई हैं, बल्कि वह लोग इस लिए आये हैं कि उन्हें यकीन है कि इमाम हुसैन (अ) हक़ पर हैं। जब कर्बला का जिहाद शुरू हुआ और औलादे हज़रत अली हक़ के रास्ते में क़ुर्बान होने के लिए मैदान में उतरी तो अपने भाइयों में से हज़रत अब्बास ने सबसे पहले अब्दुल्लाह को मैदान में भेजा। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अली मैदान में गए और वीरता से लड़ते हुए हानि बिन सबीत की तलवार से शहीद हुए।


उस्मान बिन अली: यह अब्दुल्लाह बिन अली से छोटे थे। उस्मान बिन अली को हज़रत अब्बास ने अब्दुल्लाह की शहादत के बाद मैदान में भेजा। उस्मान बिन अली ने दुश्मन से जम कर लोहा लिया। आखिर में लड़ते लड़ते खुली बिन यज़ीद अस्बेही के तीर से शहीद हुए।


जाफ़र बिन अली: यह उम उल बनीन के सबसे छोटे बेटे थे। उसमान बिन अली की शहादत के बाद हज़रत अब्बास ने जाफ़र से कहा की “भाई! जाओ और मैदान में जाकर हक़ परस्तों की इस जंग में अपनी जान दो ताकि जिस तरह मैंने तुम से पहले दोनों भाइयों का ग़म बर्दाश्त किया है उसी तरह तुम्हारा ग़म भी बर्दाश्त करूँ”। इसके बाद जाफ़र मैदान में गए और अपनी वीरता की गाथा अपने खून से लिख कर हानि बिन सबीत के हाथों शहीद हुए। इमाम हुसैन (अ) की सेना के आखिरी शहीद हज़रत अब्बास थे।


अली असग़र: हज़रत अब्बास की शहादत के बाद इमाम हुसैन (अ) ने एक ऐसी कुर्बानी दी जिसकी मिसाल रहती दुनिया तक मिलना मुमकिन नहीं। इमाम अपने छेह महीने के बच्चे हज़रत अली असग़र को मैदान में लाये। हज़रत अली असग़र पानी न होने के वजह से प्यास से बेहाल थे। पानी न मिलने के कारण अली असग़र की माँ जनाबे रबाब का दूध भी खुश्क हो गया था। हज़रत अली असग़र के लिए इमाम ने दुश्माओं से पानी तलब किया तो जवाब में हुर्मलाह नाम के एक मशहूर तीर अंदाज़ ने अली असग़र के गले पर तीर मार कर इस बात को साबित कर दिया की इमाम हुसैन (अ) से टकराने वाला लश्कर अमानविये हदों से भी आगे थे। यज़ीदी सेना की राक्षसों के साथ तुलना करना राक्षसों की बेईज्ज़ती करना है क्योंकि राक्षस सेना ने जो भी कुकर्म किया हो, जितने ही ज़ुल्म क्यों न किये हों कम से कम उन्होंने छः महीने के किसी प्यासे बच्चे के गले पर तीर तो नहीं मारा होगा।

 

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