ग़ुस्ले मसे मय्यित
527. अगर कोई इंसान किसी ऐसे मुर्दा इंसान के बदन को छुए जो ठंडा हो चुका हो और जिसे अभी ग़ुस्ल न दिया गया हो तो उसे चाहिए कि ग़ुस्ले मसे मय्यित करे। मुर्दा जिस्म को चाहे जान बूझ कर छुआ जाये या अचानक जिस्म का कोई हिस्सा मय्यित से लग जाये, सोते में छुआ जाये या जागते हुए छुआ जाये इसमें कोई फ़र्क़ नही है। यहाँ तक कि अगर उसका नाख़ुन या हड्डी भी मुर्दे के जिस्म से छू जाये तब भी उसे ग़ुस्ल करना चाहिए। लेकिन अगर मुर्दा जानवर को छुआ जाये तो ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब नही होता।
528. अगर किसी इंसान के ऐसे मुर्दा ज़िस्म को छुआ जाये जो अभी पूरी तरह ठंडा न हुआ हो, तो ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब नही होता। चाहे वह हिस्सा ठंडा हो चुका हो जिसे छुआ गया हो।
529. अगर कोई इंसान अपने बालों को मुर्दा इंसान के ज़िस्म से लगाये या मुर्दा इंसान के बालों से अपने बदन को मस करे तो उस पर गुस्ले मसे मय्यित वाजिब नही होता।
530. बच्चे के मुर्दा जिस्म को छूने पर भी ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब है। यहाँ तक कि अगर साक़ित होने वाले बच्चे के ऐसे ज़िस्म को छुआ जाये जिसमें रूह दाख़िल हो चुकी हो तब भी छूने वाले पर ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब हो जायेगा। इस बिना पर अगर किसी औरत के मुर्दा बच्चा पैदा हो और उसका बदन ठंडा हो चुका हो और बच्चे का बदन उसकी माँ के बदन के ज़ाहिरी हिस्से से मस हुआ हो तो माँ पर ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब है।
531. जो बच्चा माँ के मर जाने व उसका बदन ठंडा हो जाने के बाद पैदा हो अगर उसका बदन माँ के बदन के ज़ाहिरी हिस्से को लग जाये तो उसे चाहिए कि बालिग़ होने पर ग़ुस्ले मसे मय्यित करे। बल्कि अगर माँ के बदन के ज़ाहिरी हिस्से को मस न करे तब भी एहतियात की बिना पर ज़रूरी है कि वह बच्चा बालिग़ होने पर ग़ुस्ले मसे मय्यित करे।
532. अगर कोई इंसान एक ऐसी मय्यित को मस करे जिसे तीनों ग़ुस्ल दिये जा चुके हों तो उस पर ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब नही होता। लेकिन अगर वह तीसरा ग़ुस्ल तमाम होने से पहले उसके बदन के किसी हिस्से को मस करे तो चाहे उस हिस्से को तीसरा ग़ुस्ल दिया जा चुका हो उस पर ग़ुस्ले मसे मय्यित करना वाजिब है।
533. अगर कोई दीवाना या ना बालिग़ बच्चा मय्यित को छुए तो दीवाने को आक़िल होने पर और बच्चे को बालिग़ होने पर ग़ुस्ले मसे मय्यित करना चाहिए।
534. अगर किसी ज़िन्दा इंसान के बदन से या किसी ऐसे मुर्दे के बदन से जिसे ग़ुस्ल न दिया गया हो, बदन का कोई ऐसा हिस्सा ज़ुदा हो जाये, अगर उस हिस्से को ग़ुस्ल देने से पहले छुआ जाये तो क़ौले क़वी की बिना पर ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब नही है, चाहे उस हिस्से में हड्डी भी मौजूद हो।
535. जिस हड्डी को ग़ुस्ल न दिया गया हो उसे मस करने पर ग़ुस्ले मसे मय्यित वाजिब नही होता, चाहे वह हड्डी ज़िन्दा इंसान के बदन से जुदा हुई हो या मुर्दा इंसान के बदन से और दाँत के बारे में भी यही हुक्म है चाहे वह ज़िन्दा इंसान के बदन से जुदा हुआ हो या मुर्दा इंसान के बदन से।
536. ग़ुस्ले मसे मय्यित भी ग़ुस्ले जनाबत की तरह ही किया जाता है। लेकिन जिस इंसान ने मय्यित को मस किया हो अगर वह नमाज़ पढ़ना चाहे तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि वह वुज़ू भी करे।
537. अगर कोई इंसान कई मय्यितों को छुए या एक ही मय्यित को कई बार छुए तो उसके लिए एक ही ग़ुस्ल काफ़ी है।
538. जिस इंसान ने मय्यित को मस करने के बाद ग़ुस्ल न किया हो उसके लिए मस्जिद में ठहरने, बीवी से जिमाअ (संभोग) करने और सजदे वाली आयतों को पढ़ने में कोई हरज नही है। लेकिन नमाज़ और उस जैसी दूसरी इबादतों के लिए ग़ुस्ल करना ज़रूरी है।