इस्लाम का सर्वोच्च अधिकारी? (भाग 14 - अंतिम भाग)
अभी तक इस सीरीज़ में हमने इस्लाम के ऐसे धर्माधिकारियों की बात की जो शहीद हो चुके हैं और यह दुनिया उन्हें खो चुकी है। अब सीरीज़ के इस अन्तिम भाग हम इस्लाम के ऐसे धर्माधिकारी की बात करेंगे जो आज भी इस दुनिया में मौजूद है। और रहती दुनिया तक बाक़ी रहेगा क्योंकि अल्लाह का वादा है कि जब तक ये दुनिया क़ायम है ज़मीन पर हमेशा अल्लाह का एक बंदा मौजूद होगा जो इस ज़मीन का मालिक होगा और धर्म को स्थापित करने वाला होगा। उसी की वजह से यह ज़मीन और इस पर धर्म क़ायम रहेगा वरना खत्म हो जायेगा। जैसा कि कुरआन की सूरह ज़खरुफ आयत 28 में है, उन्होंने (इब्राहीम ने) इस पैगाम (इस्लाम) को अपनी औलादों में कलमा बाक़िया यानि बाक़ी रहने वाली चीज़ क़रार दिया।
इसकी व्याख्या करते हुए इमाम जाफर सादिक़(अ.) फरमाते हैं कि इस बाक़ी रहने वाले कलमे से मतलब वह इमामत है जो इमाम हुसैन(अ.) की औलाद में क़यामत तक बाक़ी रहेगी। इस तरह कुरआन की ये आयत आखिरी इमाम(अ.) के बारे में खबर देती है। जो इस दुनिया के खात्मे तक ज़मीन पर मौजूद होगा। ये इमाम पैगम्बर मोहम्मद(स.) और इमाम हुसैन(अ.) की नस्ल से होगा। दुनियाए इस्लाम उस इमाम को इमाम मेहदी(अ.) के नाम से जानती है।
देखा जाये तो हज़रत इब्राहीम की नस्ल उनके दो बेटों से चली। हज़रत इस्माईल और हज़रत इस्हाक़। इनमें से हज़रत इस्हाक़ के सिलसिले में हज़रत ईसा(अ.) आज भी जिंदा हैं। जबकि हज़रत इस्माईल के सिलसिले में इमाम मेहदी(अ.) जिंदा हैं।
इससे पहले के भागों में हमने पैगम्बर मोहम्मद(स.) की उन भविष्यवाणियों का ज़िक्र किया जिनमें पैगम्बर ने अपने बाद इस्लाम के बारह धर्माधिकारियों की खबर दी थी। इनमें से ग्यारह के बारे में हम विस्तार से पिछले भागों में बता चुके हैं। अब अय्यून अखबारुलरज़ा किताब 2, हदीस 230 के मुताबिक बारहवें इमाम(अ.) के आने की भविष्यवाणी पैगम्बर मोहम्मद(स.) इन अलफाज़ में दे चुके हैं , ‘उस वक्त तक क़यामत बरपा न होगी यहाँ तक कि हममें से एक शख्स हक़ के लिये उठेगा और ये उस वक्त होगा जब अल्लाह उसे इजाज़त फरमायेगा। अगर क़यामत आने में एक दिन भी बाक़ी रह जायेगा तो अल्लाह उस दिन को इतना बड़ा कर देगा कि उसकी हुकूमत क़ायम हो जाये। वह तमाम दुनिया को उसी तरह अद्ल व इंसाफ से भर देगा जैसी वह ज़ुल्म व बेइंसाफी से भर चुकी होगी। जो उनकी पैरवी करेगा निजात पायेगा और जो पीछे रहेगा हलाक़ हो जायेगा। बन्दगाने खुदा! खुदा से डरते रहो। तुम्हें बर्फ से गुज़र कर भी उनके पास जाना पड़े तो भी चले जाओ। क्योंकि वह खुदा का और मेरा खलीफा होगा।
उपरोक्त हदीस अलफाज़ के थोड़े हेरफेर के साथ सहीह तिरमिदी, सिनान अबू दाऊद, मुसनद अहमद बिन हम्बल जैसी तमाम किताबों में मिलती है। इस्लाम के कुछ फिरके समझते हैं कि अभी उस बारहवें इमाम(अ.) का जन्म नहीं हुआ है लेकिन कुछ बड़े फिरकों जैसे कि शियों का पुख्ता यकीन है कि बारहवें इमाम(अ.) का जन्म ग्यारह सौ साल पहले ही हो चुका है और वे इस दुनिया में मौजूद हैं लेकिन लोगों की आँखों से ओझल हैं। इसके पीछे एक दलील ये है कि इस्लामी धर्माधिकारी का जन्म हमेशा उसी घर में होता है जो गुनाहों से पूरी तरह पाक हो। और आज के दौर में ऐसा घर कहीं बचा हुआ नहीं दिखाई देता।
हक़ीक़त यही है कि बारहवें इमाम के बारे में रसूल(स.) की भविष्यवाणी उस वक्त सच होकर सामने आयी जब 29 जुलाई 869 ई. (15 शाबान 255 हिजरी) फज्र के वक्त ग्यारवें इमाम हसन अस्करी(अ.) के घर सामरा में उनके फर्ज़न्द(अ.) की पैदाइश हुई। उस वक्त अब्बासी बादशाह मोत्तमिद व मुअतनर इमाम(अ.) के घर की हर पल निगरानी करा रहे थे। क्योंकि वह रसूल(स.) के घराने को हमेशा के लिये इस दुनिया से मिटा देना चाहते थे। उन्हें रसूल(स.) की उपरोक्त भविष्यवाणी का भी यक़ीन था। और ये डर सताये हुए था कि इस्लाम का ये आखिरी धर्माधिकारी उनकी हुकूमतों समेत ज़ुल्म की तमाम हुकूमतों का तख्ता पलट देगा और दुनिया में हुए तमाम अत्याचारों का बदला लेगा। लिहाज़ा वह ऐसे बच्चे को जिंदा ही नहीं रहने देना चाहते थे। लेकिन उनकी तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं और आखिरी धर्माधिकारी के दुनिया में आने की उन्हें भनक भी न लग पायी। यहाँ तक कि इमाम हसन अस्करी(अ.) की पत्नी जो कि एक रोमन शहज़ादी थीं, ने जब बच्चे को जन्म दिया तो उससे पहले उनमें गर्भावस्था के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते थे।
फिर कुछ खास लोगों के अलावा बारहवें इमाम (अ.) को किसी ने भी नहीं देखा। जब ग्यारहवें इमाम हसन अस्करी(अ.) की शहादत हुई तो उनके भाई जाफर ने नमाज़ जनाज़ा पढ़ानी चाही। उस वक्त पाँच साल का एक बच्चा सामने आया, उसने चाचा को हटाकर खुद नमाज़ पढ़ाई मय्यत को दफनाने के बाद वहाँ से गायब हो गया। उसके बाद बादशाह के हुक्म से इमाम हसन अस्करी(अ.) के घर की सघन तलाशी ली गयी लेकिन वह बच्चा कहीं नहीं मिला। दरअसल यही बारहवें इमाम मेहदी (अ.) थे। सामरा में वह गुफा आज भी मौजूद है जहाँ इमाम मेहदी (अ.) गायब होकर बादशाह के सिपाहियों के हत्थे नहीं लगे थे। उसके बाद से वह आज भी जिंदा हैं ये बात इस्लाम के शिया सुन्नी वगैरा तमाम फिरकों की किताबों में मिलती है।
कुछ किताबों में ये मिलता है कि ग्यारहवें इमाम हसन अस्करी(अ.) ने अपनी शहादत से पहले खास असहाब से बारहवें इमाम मेहदी (अ.) की मुलाकात करवा दी थी। इन असहाब में शामिल हैं, याक़ूब बिन मनक़ूश, मोहम्मद बिन उस्मान उमरी, अबी हाशिम, मूसा बिन जाफर बिन वहब बगदादी वगैरा। एक सहाबी अबू हारून का कथन है कि मैंने बचपन में बारहवें इमाम मेहदी (अ.) को देखा है। उनका चेहरा चैदहवीं के चाँद की तरह चमकता था।
ग्यारहवें इमाम हसन अस्करी(अ.) की शहादत के बाद बारहवें इमाम मेहदी (अ.) की इमामत का दौर शुरू हुआ। इस पूरे दौर को दो हिस्सों में बाँटा जाता है। पहले हिस्से में लगभग पचहत्तर बरस तक इमाम(अ.) गायब तो थे लेकिन उनका सम्पर्क पूरी तरह अवाम से नहीं टूटा था। बल्कि अपने कुछ खास नायबों के ज़रिये वे अवाम के सम्पर्क में थे और उनके मसलों को हल करते थे। उन खास नायबों में पहले हज़रत उस्मान बिन सईद उमरी थे। फिर हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान फिर हज़रत हुसैन बिन रूह और फिर हज़रत अली बिन मोहम्मद इमाम मेहदी(अ.) के नायब बने।
हज़रत अली बिन मोहम्मद के बाद इमाम मेहदी (अ.) की इमामत का दूसरा दौर शुरू हुआ जिसमें नायबों का सिलसिला खत्म हो गया और इमाम मेहदी (अ.) पूरी तरह ग़ैबत के पर्दे में चले गये। इस बारे में हज़रत अली बिन मोहम्मद को इमाम(अ.) का पैगाम अपने इंतिकाल के छः दिन पहले इन अलफाज़ में मिला, ‘ऐ अली बिन मोहम्मद, खुदा वन्दे आलम तुम्हारे बारे में तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को सब्र अता करे। तुम्हें मालूम हो कि तुम छः दिन में वफात पाने वाले हो। तुम अपने इंतिज़ामात कर लो और आइंदा के लिये अपना कोई सिलसिला तलाश न करो। इसलिए कि बड़ी ग़ैबत शुरू हो गयी है और खुदा की मर्ज़ी के बगैर ज़हूर नामुमकिन होगा। ये ज़हूर बहुत लंबे अर्से के बाद होगा।
इस तरह इमाम मेहदी(अ.) की ग़ैबत का लंबा दौर शुरू हुआ जो आज भी चल रहा है। हालांकि इस दौर में भी इमाम(अ.) घनी बादली में सूरज की तरह कभी कभी नज़र आये और फिर छुप गये। कुछ निशानियों से इमाम(अ.) के चाहने वालों ने उन्हें पहचाना।
मसलन हर दौर में काबे और उसके पत्थर हज्रे अस्वद का असली वारिस इमाम(अ.) ही होता है। और उसके अलावा कोई भी काबे के पत्थर को उसकी जगह पर नहीं लगा सकता। सन 921 ई (307 हि.) में ऐसी ही घटना हुई जब काबे की निगरानी करने वालों ने हज्रे अस्वद को निकाल लिया था। वे उसे दुरुस्त करके फिर से लगाना चाहते थे। उस दौर में अबुलकासिम नामक आलिम ने जब ये सुना तो अपने वफादार नौकर को वहाँ एक खत के साथ भेजा और कहा कि जो उस पत्थर को लगाये उसे ये खत दे देना। नौकर ने देखा कि वहाँ मौजूद बहुत सारे लोगों ने कोशिश की लेकिन उस पत्थर को लगा नहीं सके। इतने में एक खूबसूरत जवान एक तरफ से आया और उसने उस पत्थर को उसकी जगह पर लगा दिया। जब वह वापस जाने लगा तो अबुलकासिम का नौकर उसके पीछे लग गया। रास्ते में उस जवान ने पलट कर नौकर को उसके नाम से पुकारा और कहा कि अपने मालिक का खत मुझे दे दे और उनसे कहना कि उन्होंने मुझसे अपनी उम्र के बारे में पूछा है तो अभी वो तीस साल और जिंदा रहेंगे। नौकर ने आकर आलिम से ये बात बतायी। अबुलकासिम समझ गये कि हज्रे अस्वद को लगाने के लिये इमाम मेहदी(अ.) ही आये थे। उसके बाद अबुलकासिम तीस साल जिंदा रहे।
कुछ लोग एतराज़ करते हैं कि अगर इमाम गायब है तो वह इमाम कैसा? क्योंकि गायब होकर वह लोगों की हिदायत नहीं कर सकता। लेकिन यह सोचना गलत है कि खुदा का बनाया इमाम गायब होकर हिदायत नहीं कर सकता। क्योंकि वह तो पूरे सिस्टम की ही हिदायत कर रहा है। यानि उसी की वजह से ज़मीन के तमाम सिस्टम सुचारू तरीके से चल रहे हैं। और ज़मीन उसी तरह जिंदा है जैसे कि इंसान अपनी आत्मा के साथ जिंदा होता है। खुदा का बनाया इमाम इंसानों के साथ साथ दुनिया की हर मख्लूक़ जानदार व बेजान सबकी हिदायत करता है और इसीलिए ज़मीन का सिस्टम क़ायम रहता है।
एक सवाल और पैदा होता है कि अगर इमाम के पास इतनी ही ताकत है कि दुनिया के तमाम सिस्टम्स उसके इशारों पर कायम हैं तो उसे किसी के डर से छुपने होने की ज़रूरत क्या है। वह सिर्फ इशारा कर दे तो दुनिया के तमाम ज़ालिम मिट जायें।
इसका जवाब ये है कि इमाम ज़मीन पर अल्लाह का नायब होता है। तो ज़ाहिर है जो अल्लाह की मर्ज़ी होती है वही उसका मिजाज़ होता है। और अल्लाह की मर्ज़ी ये है कि लोग अपनी मर्ज़ी से उसकी राह पर चलें व उसकी इबादत करें। वह किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता। उसकी रहमत से वह भी फायदा उठाते हैं जो उससे इंकार करते हैं और उसके प्यारे बंदों पर अत्याचार करते हैं। तसव्वुर कीजिए अगर अल्लाह सामने होता तो? फिर लोगों में उसका खौफ रहता, जैसे कि किसी बादशाह की हुकूमत में होता है। फिर लोग दिल से नहीं बल्कि ज़बरदस्ती उसकी इबादत करते। इस तरह की इबादत भी एक तरह का ज़ुल्म होती। और यकीनन खुदा ज़ालिम नहीं है।
तो अगर खुदा का नायब यानि इमाम छुपा हुआ न होता तो दो में से एक बात होती। या तो इमाम ज़ालिमों पर ग़ालिब आ जाता। तो फिर ज़ालिम ज़बरदस्ती खुदा की इबादत करने पर मजबूर हो जाते। और खुदा को ज़बरदस्ती की इबादत मंज़ूर नहीं। या फिर दूसरी बात ये होती कि इमाम लोगों को उनके हाल पर छोड़ देता। तो फिर ज़ालिम उसपर ग़ालिब आने की कोशिश करते। अब अगर इमाम उनसे जिहाद करके ग़ालिब आ जाता तो खुदा की हुज्जत क़ायम न होती और अगर ज़ालिम इमाम के ऊपर ग़ालिब आ जाते तो करबला जैसा हादसा फिर हो जाता और ज़मीन पर कोई धर्माधिकारी बाकी न रह जाता। इस तरह खुदा की मसलहत इसी में थी कि इमाम(अ.) गायब रहकर दुनिया की हिदायत करे।
यहाँ एक सवाल और भी लोग उठा सकते हैं कि जब आखिरी इमाम को छुपाकर रखना खुदा की मसलहत है तो पहले के इमामों को ज़ाहिर क्यों किया गया? इसका जवाब बहुत आसान है। दरअसल बाक़ी इमामों को ज़ाहिर करने के पीछे भी खुदा की हुज्जत ही थी ताकि दुनिया ये न कहे कि अगर वो ज़ाहिर होते तो हम उनसे हिदायत हासिल कर लेते। लेकिन उन इमामों के साथ दुनिया ने जो सुलूक किया उसके बाद उन्हें ये कहने का कोई हक़ नहीं रह गया कि आखिरी इमाम(अ.) को खुदा ने छुपाकर क्यों रखा। हालांकि ग़ैब के पर्दे में रहने के बावजूद सख्त ज़रूरत पड़ने पर इमाम(अ.) अपने चाहने वालों की मदद भी करते हैं।
इस ज़माने के इमाम(अ.) के लिये पहले इमाम अली(अ.) ने भी भविष्यवाणी की है। किताब नहजुल बलागा के खुत्बा 148 में इमाम अली(अ.) फरमाते हैं, ‘वह लोगों से पोशीदा होगा। खोज लगाने वाली पैहम नज़रें जमाने के बावजूद भी उसके नक़्शे कदम को न देख सकेंगे।’ यानि इमाम हमारी नज़रों के सामने से गुज़रेंगे लेकिन हमारी आँखें उन्हें देखने से लाचार होंगी। जब इमाम(अ.) खुद चाहेंगे तभी उन्हें कोई देख सकेगा।
इमाम मेहदी(अ.) के सामने आने से पहले दुनिया पूरी तरह बदलकर लगभग बरबादी के कगार पर खड़ी होगी। किताबों में इमाम मेहदी(अ.) के सामने आने से पहले के कुछ हालात इस तरह बयान किये गये हैं:
रिश्वत और शराबखोरी आम होगी - वज़ीर झूठे होंगे - सहक़ यानि औरतें औरतों के ज़रिये शहवत की आग बुझायेंगी - सदक़ा व खैरात से नाजायज़ फायदा उठाया जायेगा - पश्चिम से सूरज निकलेगा - एक सुर्खी ज़ाहिर होगी जो आसमान और सूरज पर गालिब आ जायेगी - लोग सवारियों से टकराकर मरेंगे - शाम(सीरिया) तबाह व बरबाद हो जायेगा - शाम (सीरिया) में चीनी घुस जायेंगे - कुछ गिरोह सुअर और बन्दर की सूरत में बदल जायेंगे - बुराई का हुक्म अपने बच्चों को दिया जायेगा और अच्छाई से रोका जायेगा - मस्जिदें आबाद मगर हिदायत से खाली होंगी - लड़के औरतों की तरह उजरत पर इस्तेमाल होंगे - औरतें अपने शौहरों को मर्दों के साथ बदफेअली पर मजबूर करेंगी - जज फैसले में रिश्वत लेंगे - क़ब्र से कफन चुराकर बेचा जायेगा - लाश का मज़ाक उड़ाया जायेगा - ऐसे हाकिम होंगे कि जब उनसे कोई बात करेगा तो क़त्ल कर दिया जायेगा - सूदखोरी खुलेआम होगी - दरिन्दे इंसानों से बातें करने लगेंगे - इंसान की रानें बोलने लगेंगी और वह उसके घर के लोगों ने जो कुछ किया होगा घर के मालिक से बताने लगेंगी - मस्जिदों से आवाज़ें ऊंची होंगी - एक यमनी बादशाह ‘हसन’ नामी यमन से खुरूज करेगा - हज का रास्ता बन्द कर दिया जायेगा - अहले नाक़स ‘नुसैरी’ की हुकूमत पूरी दुनिया पर छा जायेगी - हिन्द तिब्बत की वजह से तबाह होगा और तिब्बत की तबाही चीन की वजह से होगी - दुनिया में हब्शियों की हुकूमत क़ायम हो जायेगी
हम देख सकते हैं कि इन भविष्यवाणियों में से बहुत सी आज के दौर में सच होती दिख रही हैं, और बहुत सी आइंदा हक़ीक़त बनकर सामने आ जायेंगी, आसार कुछ ऐसे ही नज़र आ रहे हैं। इस तरह खुदा का वादा पूरा होकर रहेगा, ज़ुल्म व ज़्यादतियों के दौर में इमाम(अ.) का ज़हूर होगा जो ज़ालिमों से जंग करेगा और हक़ व अदालत की रविश क़ायम करेगा। किताबों के मुताबिक जब इमाम(अ.) ज़ाहिर होंगे तो आप चालीस साल के जवान होंगे। जिस्मानी ताकत इतनी होगी कि मज़बूत पेड़ों को अपने बाज़ुओं की ताकत से उखाड़ देंगे। रफ्तार इतनी तेज़ कि चन्द कदमों में पूरी दुनिया नाप लेंगे।
आपके अहदे हुकूमत में मुकम्मल अमन व सुकून होगा। बकरी और भेड़िया, गाय और शेर, इंसान और साँप, जुंबील और चूहे सब एक दूसरे से बेखौफ होंगे। तमाम लोग पाकबाज़ होंगे। आजिज़ों, ज़ईफों की दादरसी होगी। ज़ुल्म दुनिया से मिट जायेगा। दीन के मुरदा दिल में ताज़ा रूह पैदा हो जायेगी। दुनिया के तमाम मज़हब खत्म हो जायेंगे। सिर्फ खुदा का बताया हुआ धर्म होगा और उसी का डंका बजता होगा। खुदा की तरफ से शहरे मक्का के हरे भरे मैदान में मेहमानी होगी। सारी दुनिया खुशियों से भर जायेगी। दुनिया के तमाम मज़लूम बुलाये जायेंगे और उनपर ज़ुल्म करने वाले हाज़िर किये जायेंगे। इमाम हुसैन(अ.) के खून का मुकम्मल बदला लिया जायेगा और इस तरह इमाम मेहदी(अ.) ‘दम तोड़ चुकने वाली किताब व सुन्नत को फिर से जिंदा कर देंगे।
मनाक़िब अहलेबैत के मुताबिक जब आखिरी धर्माधिकारी ज़हूर करेंगे तो वह मिस्र की तरफ जायेंगे। उस शहर की जामा मस्जिद में मेंबर पर बैठेंगे और लोगों के सामने खुत्बा पढ़ेंगे। फिर बहुत जल्द ज़मीन को इंसाफ की खुशखबरी दी जायेगी। आसमान बारिश बरसायेगा, दरख्त फल देंगे। ज़मीन तमाम नबातात उगायेगी। ज़मीन को उसपर रहने वालों के लिये ज़ीनत बख्शी जायेगी। लोग दरिन्दों से महफूज़ हो जायेंगे। यहाँ तक कि दरिन्दे रास्ते में जानवरों की तरह चरेंगे। इल्म व दानिश लोगों के दिलों में जगह बनायेगी। यहाँ तक कि कोई मोमिन इल्म में अपने भाई का मोहताज नहीं होगा।
--समाप्त--