तहारत
जनाबत (संभोग) के अहकाम
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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- al-shia.org
इंसान दो चीज़ों के द्वारा जुनुब हो जाता है। या तो वह संभोग करे या उसकी मनी (वीर्य) स्वयं निकल जाये चाहे सोते हुए या जागते हुए, कम मात्रा में हो या अधिक मात्रा में, मस्ती के साथ निकले या बिना मस्ती के, चाहे इंसान उसे स्वयं निकाले या खुद निकल जाये।
जनाबत का ग़ुस्ल
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
ग़ुस्ले जनाबत वाजिब नमाज़ पढ़ने और ऐसी ही दूसरी इबादतों के लिए वाजिब हो जाता है, लेकिन नमाज़े मय्यित,सजदा-ए-सह्व, सजद-ए-शुक्र और कुरआने मजीद के वाजिब सजदों के लिए ग़ुस्ले जनाबत ज़रूरी नही है।
ग़ुस्ल के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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- al-shia.org
चाहे ग़ुस्ल तरतीबी हो या इरतेमासी, ग़ुस्ल से पहले पूरे बदन का पाक होना ज़रूरी नही है। बल्कि अगर पानी में डुबकी लगाने या ग़ुस्ल के इरादे से बदन पर पानी डालने से बदन पाक हो जाये तो ग़ुस्ल सही है।
इस्तेहाज़ा
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
औरतों को जो ख़ून आते हैं, उनमें से एक ख़ून इस्तेहाजः है। जिस वक़्त औरत को यह ख़ून आरहा होता है, उसे मुस्तेहाज़ः कहते हैं।
ग़ुस्ले मसे मय्यित
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
अगर कोई इंसान किसी ऐसे मुर्दा इंसान के बदन को छुए जो ठंडा हो चुका हो और जिसे अभी ग़ुस्ल न दिया गया हो तो उसे चाहिए कि ग़ुस्ले मसे मय्यित करे। मुर्दा जिस्म को चाहे जान बूझ कर छुआ जाये या अचानक जिस्म का कोई हिस्सा मय्यित से लग जाये..........
निफ़ास
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
बच्चे का पहला हिस्सा, माँ के पेट से बाहर आने के वक़्त से, जो ख़ून औरत को आए अगर वह दस दिन से पहले या दसवें दिन के खात्मे पर बन्द हो जाए तो वह ख़ूने निफ़ास है और निफ़ास की हालत में औरत को (नफ़्सा) कहते हैं।
ग़ुस्ले मैयित की कैफ़ियत
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
मैयित को तीन ग़ुस्ल देने वाजिब हैं। पहला ग़ुस्ल उस पानी से जिसमें बेरी के पत्ते मिले हों, दूसरा उस पानी से जिसमें काफ़ूर मिला हो और तीसरा ख़ालिस पानी से।
कफ़न के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
एहतियात की बिना पर ज़रूरी है कि लुंग ऐसी हो जो नाफ़ से घुटनों तक तमाम बदन को छुपा ले और बेहतर यह है कि सीने से पाँव के नीचे तक पहुँचे और एहतियात की बिना पर क़मीस ऐसी हो जो काँधों के सिरों से आधी पिंडलियों तक तमाम बदन को छुपा ले .........
मरने के बाद के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
मुस्तहब है कि मरने के बाद मैयित की आँखें और होंट बन्द कर दिये जायें और उसकी ठोडी को बाँध दिया जाए और उसके हाथ,पाँव सीधे कर दिये जायें। अगर मौत रात को हुई हो तो जहाँ मौत हुई हो वहाँ चिराग़ जलाए (रोशनी कर दे) और जनाज़े में शिरकत के लिए मोमिनीन को ख़बर दे और
मोहतज़र के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
जो मुसलमान मोहतज़र हो, यानी अपनी ज़िन्दगी की अख़िरी साँसे ले रहा हो, चाहे वह मर्द हो या औरत, छोटा हो या बड़ा, एहतियात की बिना पर उसे इस तरह चित लिटाना चाहिए कि उसके पैरों के तलवें क़िबले की तरफ़ हों जायें।
वह कार्य जो मुजनिब के लिए मकरूह हैं।
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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- alshia.org
खाना, पीना लेकिन अगर हाथ मुँह धो लिये जायें और कुल्ली कर ली जाये तो मकरूह नही है। और अगर सिर्फ़ हाथ धो लिये जायें तो तब भी कराहत कम हो जायेगी।
वह कार्य जो मुजनिब पर हराम है।
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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- al-shia.org
• क़ुरआने करीम के अलफ़ाज और अल्लाह के नामों को छूना चाहे वह किसी भी ज़बान में लिखे हो। और बेहतर यह है कि पैगम्बरो, इमामों
तयम्मुम के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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अगर एक इंसान पेशानी या हाथों की पुश्त के ज़रा से हिस्से का भी मसह न करे तो उस का तयम्मुम बातिल है। चाहे उसने ऐसा जान बूझ कर किया हो या भूल या मसला न जानने की बिना पर। लेकिन बाल की खाल निकालने की भी ज़रूरत नही है। अगर यह कहा जा सके कि तमाम पेशानी और हाथों का मसा हो गया है तो इतना ही काफ़ी है।
निजासात के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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क़ुराने करीम की तहरीर और वरक़ों को नजिस करना अगर बेहुरमती में शुमार होता हो तो हराम है और अगर नजिस हो जाये तो फ़ौरन पानी से धोना ज़रूरी है बल्कि अगर क़ुरान के वरक़ या तहरीर को नजिस करना बेहुरमती न भी समझा जाये तब भी एहतियाते वाजिब की बिना पर उसका नजिस करना हराम और पाक करना वाजिब है।
निजासत साबित होने के तरीक़े
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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- alshia.org
इंसान को ख़ुद यक़ीन व इतमिनान हो कि वह चीज़ नजिस है। अगर किसी चीज़ के नजिस होने के बारे में सिर्फ़ गुमान हो तो उस चीज़ से परहेज़ करना लाज़िम नही है। लिहाज़ा चाय की दुकानों और होटलों में जहाँ पर लापरवाह किस्म के ऐसे लोग खाते पीते हैं जो निजासत व पाकीज़गी का लिहाज़ नही रखते उस वक़्त तक खाना खाने और चाय पीने में कोई हरज नही है जब तक इंसान को यह यक़ीन न हो जाये कि जो खाना उसके लिए लाया गया है नजिस है।
किन किन चीज़ो पर तयम्मुम हो सकता है।
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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(692) मिट्टी, रेत, ढेले और रोड़ी या पथ्थर पर तयम्मुम करना सही है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि अगर मिट्टी मयस्सर हो तो किसी दूसरी चीज़ पर तयम्मुम न किया जाये और अगर मिट्टी न हो तो रेत या ढ़ेले पर और रेत और ढेला भी न हो तो फिर रोड़ी या पथ्थर पर तयम्मुम किया जाये।
इरतेमासी वुज़ू
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267 इरतेमासी वुज़ू यह है कि इंसान अपने चेहरे व हाथों को वुज़ू की नियत से पानी में डुबो दे। इरतेमासी तरीक़े से धुले हुए हाथों की तरी से मसाह करने में कोई हरज नही है लेकिन ऐसा करना ख़िलाफ़े एहतियात है।
बर्तनों के अहकाम
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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मजबूरी की हालत में सोने चाँदी के बरतों में, इतना खाने पाने में कोई हरज नहीं
हैज़ (महावारी)
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- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
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औरतों के रहम (गर्भाश्य) से हर महीने कुछ दिनों तक जो ख़ून निकलता है, उसे हैज़ कहते हैं और जिस औरत को यह ख़ून आ रहा होता है उसे हाइज़ कहते हैं।