रोज़ा
जिन पर रोज़ा रखना वाजिब नही
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जो शख्स बुढ़ापे की वजह से माहे रमज़ानुल मुबारक के रोज़े न रखे
रोज़े के अहकाम
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- लेखक:
- आयतुल्लाह सीसतानी साहब
- स्रोत:
- आयतुल्लाह सीसतानी साहब
इंसान के लिए रोज़े की नियत का दिल में गुज़ारना या मसलन यह कहना कि “मैं कल रोज़ा रखूँगा” ज़रूरी नहीं है बल्कि उस का इरादा करना काफ़ी है कि वह अल्लाह तआ़ला की रिज़ा के लिए अज़ान सुबह से मग़रिब तक कोई ऐसा काम नही करेगा जिस से रोज़ा बातिल होता हो और यह यक़ीन करने के लिए कि इस तमाम वक़्त में वह रोज़े से रहा है ज़रूरी है कि कुछ देर अज़ान से पहले और कुछ देर मग़रिब से बाद भी ऐसे काम करने से परहेज़ करे जिन से रोज़ा बातलि हो जाता है।
वह सूरतें जिन में फक़त रोजे की क़जा वाजिब है
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
रोज़े को बातिल करने वाला काम तो न किया हो लेकिन रोज़े कि नियत न करेया रिया करे(यानी लोगों पर ज़ाहिर करे कि रोज़े से हूँ) या रोज़ा न रखने का इरादाकरे। इसी तरह अगर ऐसे काम का इरादा करे जो रोजे को बातिल करता हो तो एहतियातेलाज़िम की बिना पर उस दिन के रोज़े की क़ज़ा रखना ज़रूरी है।
मुसाफ़िर के रोज़ों के अहकाम
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
जिस मुसाफ़िर के लिए सफ़र में चार रकअती नमाज़ के बजाये दो रकअती पढ़ना ज़रूरी है उसे रोज़ा नही रखना चाहिये लेकिन वह मुसाफ़िर जो पूरी नमाज़ पढ़ता हो, मसलन जिस का पेशा ही सफ़र हो या जिस का सफ़र किसी नाजायज़ काम के लिए हो ज़रूरी है कि सफ़र में रोज़ा रखे।
पहली तारीख़ साबित होने का तरीक़ा
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
एक ऐसा गिरोह जिस के कहने पर यक़ीन या इतमिनान हो जाये यह कहे कि हमनेचाँद देखा है और इस तरह हर वह चीज़ जिस की बदौलत यक़ीन या इतमीनान हो जाये।
मुस्तहब रोज़े
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
हराम और मकरूह रोज़ों के अलावा जिन का ज़िक्र किया जा चुका है साल के तमाम दिनों के रोज़े मुस्तहब है और बाज़ दिनों के रोज़े रखने की बहुत ताकीद की गई है जिन में से चंद यह हैः
छुटे हुऐ रोज़े के अहकाम
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
अगर कोई दीवाना अच्छा हो जाये तो उस के लिए आलमे दीवानगी के रोज़ों की क़ज़ा वाजिब नही।
हराम और मकरूह रोज़े
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- लेखक:
- हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली सीसतानी साहब
ईदे फ़ित्र और ईदे क़ुरबान के दिन रोज़ा रखना हराम है और यह भी कि जिस दिन के बारे में इंसान को यह इल्म न हो कि शाबान की आख़री तारीख़ है या रमज़ानुल मुबारक की पहली तो अगर उस दिन पहली रमज़ानुल मुबारक की नियत से रोज़ा रखे तो हराम है।
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