फक़ीहे आले मौहम्मद हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील

हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील बिन अबीतालिब बिन अब्दुल मुत्तलिब हज़रत अली के भतीजे हैं और आपकी बेटी हज़रत रोक़य्या जिनकी माता का नाम कलबिया था के पति हैं। 60 हिजरी में आपकी शहादत हुई और आप बनी हाशिम की वह हस्ती हैं जिनको सैय्यदुश शोहदा (अ) ने सेक़ा  यानी जिसपर भरोसा किया जाए की उपाधि दी, आप मुजतहिद, आलिम और बहादुर थे, मक्के में आपका निवास था।


जब कूफ़े के लोगों ने इमाम हुसैन (अ) को पत्रों के माध्यम से सूचित किया कि वह आपकी बैअत करने के लिये तैयार हैं तो आपने हज़रत मुस्लिम को कूफ़ा भेजा कि आप जाकर इमाम हुसैन (अ) की तरफ़ से लोगों से बैअत लें, लेकिन यज़ीद ने उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद को कूफ़े भेजा और उबैदुल्लाह ने लोगों को हुसैन (अ) की बैअत करने से रोक दिया और लोगों ने मुस्लिम का साथ छोड़ दिया, जिसके बाद मुस्लिम को शहीद कर दिया गया।


कूफ़ियों के पत्र
जब बाहर हज़ार पत्र जिसमें बाईस हज़ार से अधिक लोगों के हस्ताक्षर थे कूफ़े वालों की तरफ़ से इमाम हुसैन (अ) के पास पहुँचे तो आपने उनके पत्रों का उत्तर देने का इरादा किया जिसके बाद अपनी तरफ़ से एक प्रतिनिधि कूफ़े भेजा जो वहां के वातावरण और लोगों के दिलों का हाल ले सके। जिसके बाद आपने कूफ़े वालों के एक पत्र लिखा और अपने भाई हज़रत मुस्लिम को अपना सफ़ीर एवं प्रतिनिधि बनाकर कूफ़े भेजा।


हज़रत की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह थी कि आप इस बात का पता लगाएं कि क्या शहर के अधिकतर बड़े और पढ़ेलिखे लोग इमाम हुसैन (अ) का साथ देने और अपने पत्रों में लिखी गई बातों पर खरा उतरने के लिये तैयार हैं या नही?


मुस्लिम रात्रि में कूफ़ा पहुँचे, और एक भरोसेमंद शिया के घर ठहरे, मुस्लिम के कूफ़ा पहुँचने की सूचना कूफे के गलियों और कूचों में फैल गई, शिया उनके पास आते थे और इमाम हुसैन (अ) की बैअत करते थे इतिहास में है कि बारह, अठ्ठारह या इब्ने कसीर के अनुसार चालीस हज़ार लोगों ने मुस्लिम की बैअत की।


कूफ़े से मुस्लिम का ख़त इमाम हुसैन के लिये
कूफ़े के हालात का चालीस दिनों तक निरिक्षण करने के बाद हज़रत मुस्लिम ने इमाम हुसैन (अ) को एक पत्र लिखा जिसका सार यह था “जो मैं कह रहा हूँ वह वास्तविक्ता है कूफ़े के लगभग सभी लोग आपका साथ देने के लिये तैयार हैं, आप फ़ौरन कूफ़े के लिये चल पड़िये” इमाम हो जब कूफ़े वालों की भावनाओं का पता चला तो आपने कूफ़े की तरफ़ चलने का इरादा किया।


इब्ने ज़ियाद का कूफ़ा आगमन
इब्ने ज़ियाद बसरा के 500 लोगों के साथ भेस बदल कर और चेहरा छिपाकर कूफ़े में आया। कूफ़े को लोगों ने चूँकि यह सुन रखा था इमाम हुसैन (अ) उनकी तरफ़ आ रहे हैं, वह उबैदुल्लाह को देखकर यह समझे कि इमाम हुसैन (अ) कूफ़े आ गए हैं और सभी उसकी सवारी के आसपास एकत्र हो गए और बहुत ही जोश के साथ उसका स्वागत किया, इब्ने ज़ियाद भी कुछ बोले बिना दारुए एमारा की तरफ़ चलता रहा यहां तक की दारुल एमारा तक पहुँच गया। नोमान बिन बशीर (कूफ़े का गवर्नर) जो यह समझ रहा था कि यह इमाम हुसैन (अ) हैं, ने आदेश दिया कि महल के द्वारों को बंद कर दिया जाए और स्वंय महल की छत पर चढ़ कर चिल्लायाः यहां से दूर हो जाओ, मैं तुमको सत्ता नहीं दूँगा, और तुमसे युद्ध भी नहीं करना चाहता हूँ।


इब्ने ज़ियाद ने उत्तर दियाः द्वार खोलो।


जो व्यक्ति उसके पीछे खड़ा था उसने इब्ने ज़ियाद की आवाज़ सुन ली और लोगों से कहाः यह हुसैन (अ) नहीं हैं यह मरजाना का बेटा है। नोमान ने द्वार खोले और वह दारुल एमारा में चला गया और लोग भी छंट गए।


हानी बिन उरवा
मुस्लिम जानते थे कि देर या जल्दी उबैदुल्ला गली गली, घर घर उनकी तलाश करेगा और उनको गिरफ़्तार करने एवं हत्या करना चाहेगा, इसलिये आपने अपना स्थान बदलने और किसी ऐसे के घर जाने का फ़ैसला किया जिसके पास कूफ़े में अधिक शक्ति और बल हो ताकि उसकी शक्ति और रसूख़ से अपने कार्य को आगे बढ़ाने और अत्याचारी हुकूमत के विरुद्ध सहायता ले सकें। इसलिये आप ने हानी बिन उरवा के घर का चुनाव किया और हानी ने भी आप को पनाह दी, हानी बिन उरवा कूफ़े के सम्मानित लोगों और बड़े शियों में से थे और आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सहाबी माने जाते थे।


हानी की गिरफ़्तारी
जब इब्ने ज़ियाद को अपने दास के माध्यम से मुस्लिम के छिपे होने के स्थान का पता चला तो उसने शक्ति, धमकी और लालच के माध्यम से उनके मेज़बान हानी को गिरफ़्तार करने का प्लान बनाया ताकि इस प्रकार वह मुस्लिम और दूसरे बड़े लोगों को गिरफ़्तार कर सके।


हानी जो कि मुस्लिम के मेंज़बान थे जानते थे कि उबैदुल्लाह उनको गिरफ़्तार करना चाहता है, इसलिये आपने बीमारी का बहाना कर लिया और उसके दरबार में जाने से मना कर दिया। इब्ने ज़ियाद ने कुछ लोगों को हानी के पास भेजा, और अंत में यह लोग हानी को लेकर इब्ने ज़ियाद के पास पहुँचे। उसने जब हानी को देखा तो कहा कि अपने पैरों से चल कर मौत की तरफ़ आए हो, और हज़रत मुस्लिम के बारे में पूछाः हानी ने उनको पनाह देने से इंकार कर दिया। तब उबैदुल्लाह ने अपने दास मअक़ल को आवाज़ लगाई, हानी उसको देखकर समझ गए कि इंकार का कोई लाभ नहीं है, उबैदुल्लाह ने कोड़े से उनके चेहरे और सर पर मारा और उनके चेहरे को ख़ूनी कर दिया उसके बाद आदेश दिया कि इनको जेल में डाल दिया जाए।


तौआ, शेरदिल महिला
परदेसी मुस्लिम कूफ़े की गलियों में घूम रहे थे, नहीं पता कि कहां जाएं, एकेलेपन के साथ साथ हर पल यह ख़तरा मंडरा रहा ता कि उनको गिरफ़्तार करके शहीद कर दिया जाए। आपने एक गली में एक महिला को देखा जो अपने घर के द्वार पर खड़ी थी, मुस्लिम पर प्यास हावी हुई, आप उस महिला के पास गए और पानी मांगा, वह महिला जिसका नाम तौआ था ने एक प्याला पानी मुस्लिम को दिया, मुस्लिम पानी पी कर वहीं बैठ गए, तौआ पानी का प्याला ले कर घर के अंदर चली गईं और जब कुछ देर के बाद वापस पलटी तो देखा कि वह आदमी वहीं बैठा हुआ है। उससे कहाः हे अल्लाह के बंदे, उठों और अपने घर चले जाओ, अपनी पत्नी और बच्चों के पास जाओ, मुस्लिम न उठे तो उसने दोबारा यही कहा और तीसरी बार कहा कि तुम्हारा मेरे घर के द्वार पर बैठना हलाल नहीं है।


मुस्लिम अपने स्थान से उठे और कहाः मेरा इस शहर में कोई नहीं है जो मेरी सहायता करे।


तौआ ने प्रश्न कियाः तुम कौन हो?


उत्तर दिया मैं मुस्लिम बिन अक़ील हूँ, तौआ जो कि पैग़म्बर के ख़ानदान की चाहने वाली थीं ने घर के दरवाज़ों को खोल दिया और मुस्लिम की मेहमान नवाज़ी की।


मुस्लिम को गिरफ़्तार करने के लिये उबैदुल्ला की धमकी
अगरचे मुस्लिम अकेले हो चुके थे लेकिन फिर भी उबैदुल्लाह हज़रत मुस्लिम और उनके साथियों के भय से महल से नहीं निकलता था। उसने अपने साथियों को आदेश दिया कि मस्जिद जाएं और देखें की वहां मुस्लिम और उसके साथी हैं कि नहीं, उसके साथी मस्जिद पहुँचे, एक एक कोना देखा और जब उनको विश्वास हो गया कि यहां मुस्लिम य उनका की साथी नहीं है तो उबैदुल्लाह मस्जिद पहुँचा और उसने कूफ़े के सम्मानित लोगों को मस्जिद में बुलाया और कहाः “जिसके भी घर में मुस्लिम मिले और उसने हमको सूचित नहीं किया तो उसकी जान और माल दूसरो पर हलाल है, और जो भी उनको हमारे पास लाए उनके दियत जितना माल उसका होगा।”


उबैदुल्लाह की धमकी और लालच ने अपना काम दिखाया और तौआ के बेटे बिलाल ने भय और माल मिलने के लालच में सुबह महल पहुँचा और मुस्लिम के छिपे होने के स्थान का पता बता दिया।


उबैदुल्लाह ने जब यह सुना तो मोहम्मद बिन अशअस को आदेश दिया कि सत्तर लोगों के साथ जाए और मुस्लिम को गिरफ़्तार करे।


मुस्लिम को अमान दिया जाना और गिरफ़्तारी
उबैदुल्लाह के सिपाहियों के साथ जंग में मुस्लिम ने 45 लोगों को मौत के घाट उतार दिया कि अचानक चेहरे पर तलवार का वार हुआ, अगरचे मुस्लिम घायल थे लेकिन फिर भी किसी में उनके सामने आने की हिम्मत नहीं थी, वह लोग बुज़दिलों की भाति घरों की छतों पर चढ़ गए और वहां से मुस्लिम पर पत्थर और लकड़ियां फेंकने लगे, उन पर आग फेंकी, लेकिन फिर भी मुस्लिम को संभालना आसान नहीं था और बार बार उन पर हमला कर रहे थे।


जब अशअस ने देखा कि इस प्रकार मुस्लिम को गिरफ़्तार करना संभव नहीं है तो उसने छल से काम लिया और कहाः मुस्लिम! क्यों अपने आप को मार रहे हो! हम तुमको अमान देते हैं, और इब्ने ज़ियाद तुमको नहीं मारेगा।


मुस्लिम ने कहाः तुम वादा तोड़ने वालों की अमान का क्या विश्वास? अशअस ने अमान देने की बात दोबारा दोहराई, और इस बार मुस्लिम ने घायल होने और ख़ून बह जाने के कारण होने वाली कमज़ोरी के कारण उनकी अमान को स्वीकार कर लिया।


एक सवारी लाई गई है हाथों को बांध कर मुस्लिम को उसपर बिठाया गया और आपको उबैदुल्लाह के सामने लाया गया।


हज़रत मुस्लिम की शहादत
मुस्लिम को मारने का कार्य बक्र बिन हमरान अहमरी को सौंपा गया जो कि युद्ध में सर और कांधे पर हज़रत मुस्लिम की तलवार के घायल हुआ था, उसको आदेश दिया गया कि वह मुस्लिम को दारुल एमारा की छत पर ले जा कर उनकी गर्दन को काटकर उसके शरीर को नीचे फेंक दे।


मिसलिम को दारुल एमारा की छत पर ले जाया जा रहा था और आपकी ज़बान पर अल्लाह का नाम था, आप तकबीर कह रहे थे अल्लाह की प्रशंसा कर रहे थे, पैग़म्बर और फ़रिश्तों पर सलवात भेज रहे थे और कह रहे थेः “हे ईश्वर तू ही हमारे औऱ इन धोखेबाज़ों के बीच फैसला कर जो हमारी सहायता से पीछे हट गए”।


बहुत से लोग महल के बाहर खड़े अंत की प्रतीक्षा कर रहे थे, मुस्लिम को बाज़ारे कफ़्फ़ाशान (जूते वालों का बाज़ार) की तरफ़ चेहरा करके बिठाया गया, तलवार मारकर उसने सर को बदन से अलग किया गया, और इस बहादुर शहीद का शरीर ऊपर से नीचे फेंक दिय गया और लोग ख़ुशी से चिल्लाने और शोर मचाने लगे।