हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का शुभ जन्मदिन

आज हम इस्लाम की उस महान महिला का जन्म दिन मना रहे हैं जिसने इस्लामी इतिहास के निर्णायक चरण में ईश्वरीय धर्म की उमंगों का भरपूर ढंग से बचाव किया और अपने अद्वितीय व अटल इरादे से सत्य के प्रकाश को बुझने नहीं किया। जमादिउल अव्वल की पांच तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी और हज़रत अली अलैहिस्सलाम व हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की पुत्री का शुभ जन्म दिवस है। वह एक ऐसी महान व सदाचारी महिला थीं जिन्होंने करबला के अमर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

हज़रत ज़ैनब सलामुलल्लाह अलैहा का शुभ जन्म दिवस ऐसी स्थिति में मनाया जा रहा है कि सीरिया के उपनगरीय क्षेत्र सैयदा ज़ैनब में उनके रौज़े की कुछ और ही हालात हैं। यह पवित्र स्थल पिछले कुछ वर्षों से युद्ध और आशांति की भेंट चढ़ा हुआ है और तकफ़ीरी आतंकियों ने कई बार इस रौज़े पर हमला किया। यह हमले, इस्लाम से सही विचारधारा न लेने का परिणाम है। इसी विचारधारा ने करबला के तप्ते मरुस्थल में पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन और उनके निष्ठावान साथियों की हत्या और उनके शवों पर घोड़े दौड़ाये जाने और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों व महिलाओं को बंदी बनाये जाने को वैध क़रार दिया था। इस बात ने पैग़म्बरे इस्लाम के चाहने वालों और उनके परिजनों को बहुत अधिक दुख पहुंचाया और पूरी दुनिया से पैग़म्बरे इस्लाम के चाहने वाले सीरिया की ओर निकल पड़े। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के चाहने वाले स्वेच्छा से हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के रौज़े की रक्षा कर रहे हैं और वे रौज़े के रक्षक के नाम से प्रसिद्ध हुए। सीरियाई नागरिको के अतिरिक्त इराक़ी, लेबनान, अफ़ग़ानी, ईरानी, पाकिस्तानी और यूरोपीय तथा अमरीकी नागरिक, हज़रत ज़ैनब के रौज़े के रक्षक हैं। यह लोग न केवल हज़रत ज़ैनब के रौज़े के रक्षक हैं बल्कि शुद्ध इस्लाम के विचारों के प्रचारक भी हैं।

 

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस के अवसर पर हम हज़रत ज़ैनब के रौज़े की रक्षा करने वाले साहसी युवाओं और बलिदानियों की सेवा में सलाम पेश करते हैं और जो लोग रक्षा के अपने दायित्व के दौरान शहीद हुए उन्हें श्रद्धांजलि पेश करते हैं और एक बार फिर अपने श्रोताओ की सेवा में इस उपलक्ष्य में बधाई पेश करते हैं।

 

सैयद मेहदी शुजाई ने हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा पर एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है पर्दे में सूरज। ईरान के यह लेखक पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों से विशेष श्रद्धा रखते हैं। उन्होंने विभिन्न पुस्तकों में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की जीवनी पर प्रकाश डाला है। सैयद मेहदी शुजाई पर्दे में सूरज नामक पुस्तक में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं कि वर्ष छह हिजरी क़मरी था जब उनके अस्तित्व से पूरा संसार जगमगा उठा। परिवार के हर सदस्य से अधिक इमाम हुसैन उनके जन्म से बहुत ख़ुश थे। वे ख़ुशी में झूमते हुए दौड़ते हुए अपने पिता के पास गये और चिल्ला कर कहने लगे, पिता जी, पिता जी, ईश्वर ने मुझे एक बहन दी है। हज़रत फ़ातेहा ज़हरा ने कहा कि हे अली, इस लड़की का नाम क्या रखूं। हज़रत अली ने जवाब दिया कि हमारी संतानों का नाम रखने का अधिकार आपके पिता को है। मैं नाम रखने में उनसे आगे नहीं जा सकता। पैग़म्बरे इस्लाम यात्रा पर थे। जब वे वापस आए और अचानक हज़रत फ़ातेमा के घर पहुंचा। माता पिता दोनों ने एक साथ कहा कि हम अपनी बच्ची का नाम रखने के लिए आपके वापस होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने नवजात को अपने हाथों पर लिया और मुस्कुरा कर माथे को चूमा और कहा कि इसका नाम रखने का काम ईश्वर का है। मैं ईश्वर के संदेश ही प्रतीक्षा कर रहा है। जिब्राईल आए और उन्होंने कहा कि ईश्वर ने इस लड़की का नाम ज़ैनब रखा है अर्थात अपने पिता की सज्जा।

 

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने उस परिवार में अपना जीवन आरंभ कियाय जो प्रतिष्ठा और अध्यात्म की चरम सीमा पर था क्योंकि यह परिवार पैग़म्बरे इस्लाम (स), हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा जैसे महापुरुषों के अस्तित्व से सुसज्जित था। बचपन से ही हज़रत ज़ैनब, गहरी समझबूझ और परिज्ञान से ओतप्रोत आत्मा की मालिक थीं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा अभी छोटी ही थीं की उन्होंने अपनी माता हज़रत फ़ातेमा के उस ऐतिहासिक भाषण को जो इस्लामी शिक्षा का स्रोत था, याद कर लिया था और उसको बयान करने वालों में स्वयं वह भी एक थीं। वह अपनी पिता हज़रत अली ही छत्रछाया में रहकर ज्ञान, सदाचारों और सद्गुणों के शिखर पर पहुंच गयीं। जब हज़रत ज़ैनब बड़ी हुईं तो अपनी सच्चाई और होशियारी के कारण अक़ीला के नाम से प्रसिद्ध हुईं। अक़ीला अर्थात समझदार और विचारक महिला।

 

पर्दे में सूरज नामक पुस्तक में लेखक लिखते हैं कि हज़रत ज़ैनब के सद्गुण, परिज्ञान, उनकी उपसना और पवित्रता और सच्चाई का डंका पूरे इस्लामी जगत में बजने लगा। यदि कोई कहता था महिला विद्वान, यदि कोई कहता था महिला परिज्ञानी, यदि कोई कहता था महिला सद्गुणी महिला तो सभी के मन में हज़रत ज़ैनब का चित्र उभरने लगता था और सभी लोग इन सब चीज़ों का चरितार्थ हज़रत ज़ैनब को ही मानते थे। महबूबा अल मुस्तफ़ा अर्थात पैग़म्बरे इस्लामी चहेती की उपाधि, इस बात की सूचक है कि हज़रत ज़ैनब वहि के परिवार से जुड़ी हुई हैं। लोगों ने इतिहास में, अतीत में और अपनी कल्पना में आप की माता के अतिरिक्त आप जैसा किसी को नहीं पाया जो आपको अस्तित्व प्रदान करने वाली थीं और आपकी प्रशिक्षिका थीं। यही कारण है कि आपको सिद्दीक़ये सुग़रा कहा जाता है। आप अपने परिवार की चहेती थीं और दुनिया में किसी भी बेटी का सम्मान आप जैसा नहीं हो सकता।

 

जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के विवाह का समय हुआ जो उनसे विवाह की इच्छा रखने वाले बहुत से लोग थे किन्तु उनका विवाह अपने चचेरे भाई अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र से हुई जो अरब के एक धनी व्यक्ति थे किन्तु हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कभी भी भौतिक जीवन को महत्व नहीं दिया। अब्दुल्लाह के पिता हज़रत जाफ़र तय्यार मूता युद्ध में शहीद हुए थे। वे दानशीलता में प्रसिद्ध थे और बनी हाशिम के गौरव समझे जाते थे।

 

पर्दे में सूरज नामक पुस्तक में हज़रत ज़ैनब के जीवन के एक आयाम को इस प्रकार बयान किया गया है। हज़रत अली की पुत्री का रिश्ता मांगना सरल काम नहीं था, यद्यपि रिश्ता मांगने वाला हज़रत अली का भतीजा और पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार से निकटतम व्यक्ति अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र ही क्यों न हो। हज़रत अब्दुल्लाह ने किसी के माध्यम से यह संदेश हज़रत अली तक पहुंचाया और उनसे पुत्री का रिश्ता मांगा। हज़रत अब्दुल्लाह का रिश्ता ले जाने वाले बूढ़े व्यक्ति ने पैग़म्बरे इस्लाम के कथन का हवाला देते हुए कहा कि हमारी बेटियां हमारे बेटों के लिए और हमारे बेटे, हमारी बेटियों के लिए हैं। उस बूढ़े व्यक्ति ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को और अधिक भावनात्मक करते हुए कहा कि यदि आप उचित समझें तो मेहरे फ़ातेमी का अनुसरण करें अर्थात जितनी मेहर हज़रत फ़ातेमा की थी उतनी ही मेहर हज़रत ज़ैनब की भी रखी जाए।

 

हज़रत अली ने जब इस रिश्ते के बारे में हज़रत ज़ैनब से उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने लज्जा से अपना सिर छुका लिया और केवल इतना कहा कि इस शर्त के साथ कि यह शादी मुझे मेरे हुसैन से अलग न करे, कहा नहीं करेगी। आप ने कहा मेरा हुसैन जहां जाएगा, मैं उसके साथ जाऊंगी, स्वीकार है, कहा, हां स्वीकार है। हुसैन जिस यात्रा पर जाएगा मैं भी उनके साथ जाऊंगी। कहा कि हां स्वीकार है, उसके बाद हज़रत अली ने कहा बधाई हो और उसके बाद अन्य लोग आए और उन्होने विवाह की बधाई पेश की।

 

हज़रत ज़ैनब के विचार ऊच्च और सर्वश्रेष्ठ थे और उन्होंने स्वयं को भौतिक जीवन की दिखावट से सदैव दूर रखा। इसीलिए जब इमाम हुसैन ने यात्रा का इरादा किया तो उन्होंने ने भी धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए अपने भाई इमाम हुसैन के साथ जाने का फ़ैसला किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने इस ऐतिहासिक यात्रा में अपने दोनों बेटों औन और मुहम्मद को भी लिया और अपने चहीते भाई इमाम हुसैन के साथ मदीने से करबला की ओर रवाना हो गयीं। वह करबला के अमर आंदोलन में अपने भाई और उनके कुछ साथियों के साथ भ्रष्ट और अत्याचारी ऊमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में खड़ी हो गयीं। इस महा क्रांति में हज़रत ज़ैनब की मुख्य ज़िम्मेदारी, हज़रत इमाम हुसैन और उनके निष्ठावान साथियों की शहादत के बाद शुरु हुई। उस दुखद भरे समय में हज़रत ज़ैनब ने साहस का प्रदर्शन किया और महिलाओं और बच्चों को ढारस बंधाई। उस दुखद भरे वातावरण में हज़रत ज़ैनब ने बुद्धि और आत्म विश्वास को हाथ से नहीं जाने दिया। यही कारण है कि उन्होंने तर्क और बुद्धि के हथियार से लोगों के ध्यान को इस सत्यप्रेमी आंदोलन के आयामों की ओर आकर्षित किया। कूफ़े के बाज़ार में और यज़ीद के दरबार में उनका ऐतिहासिक भाषण, उस काल में इस्लामी समाज की स्थिति की भरपूर समीक्षा थी जिसे बहुत ही सुन्दर, सूक्ष्म और प्रभावी शब्दों में बयान किया।

 

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के भाषण की विशेषता बयान करते हुए सैयद मेहदी शुजाई लिखते हैं कि दुश्मन के समस्त षड्यंत्रों पर पानी फेर दिया, ऐसा काम किया और ऐसी बातें की कि किसी के पास आश्चर्य के अतिरक्त कहने को कुछ रह ही नहीं गया। यज़ीद, यज़ीद के समर्थक, दरबारी, पर्दे के पीछे बैठी महिलाएं, सेना,सेनापति और रक्षक, यहां तकि कारवां में शामिल लोग भी हतप्रभ थे कि क्या यही वही ज़ैनब है जिसके भाई, बेटों और मानने वालों को शहीद कर दिया गया? क्या यह वही ज़ैनब है जिसको बंदी बनाया गया, यह किसी बंदी का लहजा नहीं लगता, यह किसी शक्ति और नियंत्रण का लहजा है। यह दरबार की सजावट और पूरी दुनिया से राजदूतों को दरबार में एकत्रित करने का उद्देश्य, ज़ैनब को पराजित करना था किन्तु ज़ैनब न केवल पराजित नहीं हुईं बल्कि पूरी शक्ति और पूरे विश्वास के साथ दुश्मन को तोड़ मरोड़ कर दूर फेंक दिया।

 

हज़रत ज़ैनब को यह बात भलिभांति पता थी कि हुसैन एक क्षेत्र या एक युग से विशेष नहीं है। हज़रत ज़ैनब को यह पता था कि इमाम हुसैन के आंदोलन के आयामों को इस प्रकार बयान किया जाए कि यह आंदोलन इतिहास में सदैव के लिए अत्याचार ग्रस्त और परेशानियों में ग्रस्त राष्ट्रों के लिए प्रेरणादायक हो जाए और इस प्रकार हो जाए। वास्तविकता यह है कि जब मनुष्य सत्य के समर्थन और सत्य को स्थापित करने के लिए स्वयं को न्योछावर कर देता है तो वह इतिहास में सदैव के लिए अमर हो जाता है और उसका मार्ग और उसकी शैली, आगामी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती हैं। यही कारण है कि आज हज़रत ज़ैनब का नाम और उनकी जीवन शैली ने बहुत से लोगों को प्रभावित किया है।

 

जर्मनी की रहने वाली सुश्री कारीन ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद अपना नाम ज़ैनब रखा। वे इसका कारण बयान करते हुए कहती हैं कि इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन में हज़रत ज़ैनब की भूमिका ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया है। ज़ैनब एक ऐसी महान महिला थी जो ज्ञान, सद्गुण, आत्मविश्वास और साहस से संपन्न थीं और उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के दौरान इन्हीं विशेषताओं का सहारा लेते हुए इमाम हुसैन के संदेश को पहुंचाया। हज़रत ज़ैनब का जीवन हमारे लिए बहुत शिक्षाजनक है और जब भी हमारे सामने कुछ समस्याएं होती हैं तो मुझे तुरंत जनाबे ज़ैनब याद आने लगती है। हज़रत ज़ैनब का नाम लेते ही मेरी सारी समस्याए दूर हो जाती है और मुझे एक विशेष प्रकार की भीतरी शांति का आभास होता है, यही कारण है कि मैंने इस्लाम स्वीकार करने के बाद अपना नाम ज़ैनब रखा है।