27 रजब पैग़म्बरे अकरम का ऐलाने नबूवत

बेअसते पैग़म्बरे अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी की आधिकारिक घोषणा का दिन है। इस दिन ईश्वर ने अपनी कृपा व दया के अथाह सागर के माध्यम से मनुष्य को निश्चेतना और पथभ्रष्टता के अंधकार से निकाला।

 

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम को यह भारी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी की आधिकारिक घोषणा मानव इतिहास की बहुत ही निर्णायक घटना है। ऐसी महान घटना जिसके घटने से अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही सल्लम के पवित्र मुख से पवित्र क़ुरआन की आयतें जारी हुईं और पवित्र क़ुरआन ने इस महान घटना को महान उपकार और अनुकंपा की संज्ञा दी।

 

पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 में आया है कि निःसन्देह, ईश्वर ने ईमान वालों पर उपकार किया उस समय जब उसने उन्हीं में से एक को पैग़म्बर बनाकर भेजा ताकि वह उन्हें ईश्वर की आयतें पढ़कर सुनाए और उन्हें (बुराइयों से) पवित्र करे तथा उन्हें किताब व तत्वदर्शिता की शिक्षा दे। निःसन्देह इससे पूर्व वे खुली हुई पथभ्रष्टता में थे।

 

मित्रो हम ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने हमारे मार्गदर्शन के लिए ऐसा दूत भेजा जिसने मनुष्य की प्रवृति को जागरूक और उसकी आत्मा को पवित्र ईश्वरीय शिक्षाओं से अवगत कराया। उस ईश्वर का आभार जिसने अपनी अनुकंपाएं वहि अर्थात ईश्वरीय आदेश और उसके मार्गदर्शन के माध्यम से समस्त लोगों को प्रदान कीं। इस सुखद अवसर पर हम आपकी सेवा में हार्दिक बधाईयां प्रस्तुत करते हैं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही सल्लम की पैग़म्बरी की आधिकारिक घोषणा मानव इतिहास में नया अध्ययन है जिसे उस समय की महा क्रांति की संज्ञा दी जा सकती है। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की आधारिक घोषणा के समय विश्व में जारी परिवर्तनों से अवगत होने से उनकी पैग़म्बरी का महत्त्व अधिक स्पष्ट हो जाता है।

 

बेअसते पैग़म्बर के समय विश्व पतन का शिकार और संकटग्रस्त था। अज्ञानता, लूटपाट, अत्याचार, कमज़ोरों और वंचितों के अधिकारों की अनदेखी, पथभ्रष्टता, भेदभाव, अन्याय और मानवता और शिष्टाचार से दूरी, उस समय के समाजों में फैला हुआ था। इसी मध्य अरब प्रायद्वीप विशेषकर पवित्र नगर मक्का की स्थिति, सांस्कृतिक, राजनैतिक व सामाजिक दृष्टि से सबसे बुरी व सबसे विषम थी। अज्ञानी अरब हाथ से बनाई लकड़ी व मिट्टी की मूर्ति के आगे नतमस्तक होते थे और इन बे जान मूर्ति को प्रसन्न करने के लिए बलि चढ़ाते थे और उनसे सहायता मांगते थे और हर समझदार व बुद्धिमान व्यक्ति को आश्चर्य व खेदप्रकट करने पर विवश कर देते थे।

 

ईश्वर पवित्र क़ुरआन की कुछ आयतों में उस काल में प्रचलित कुछ अमानवीय संस्कारों और बुराइयों की ओर संकेत करते हुए अज्ञानता की काल में प्रचलित अमानवीय परंपराओं की पोल खोलता है। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के हवाले से अरब जगत में उस काल की अनुचित स्थिति के बारे में आया है कि एक दिन क़ैस बिन आसिम पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पास आया और कहता है कि या रसूल अल्लाह, मैंने अज्ञानता के काल में अपनी आठ जीवित लड़कियों को जीवित ज़मीन में गाड़ दिया। जब आसिम इब्ने क़ैस अपनी आठ जीवित लड़कियों को जीवित ज़मीन में गाड़ने की घटना बयान कर रहा था तो पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे पर परिवर्तन आया और तेज़ी से उनकी आंखों से आंसू जारी हो गये और उन्होंने अपने निकट बैठे लोगों से कहा कि यह निर्दयता है और जो दूसरों पर दया नहीं करेगा, ईश्वर की दया का पात्र नहीं हो सकता।

 

उस काल में अरब में जितनी पथभ्रष्टता फैली हुई थी शायद विश्व के किसी अन्य स्थान पर उस तरह पथभ्रष्टता फैली हो। यही कारण है कि इस्लाम धर्म के उदय होने से पूर्व उस काल को अज्ञानता का काल कहते हैं और उस समय के लोगों को बद्दू अरब कहा जाता है। उस काल के अरब न केवल पढ़ते लिखते नहीं थे बल्कि हर प्रकार के ज्ञान व तकनीक से दूर थे और बुद्धि व तर्क से परे भविष्यवाणी करते थे और कुरीतियों का अनुसरण करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम ऐसे ही लोगों को सुधारने के लिए भेजे गये थे ताकि न केवल उस धरती पर बल्कि पूरे इतिहास में पूरी दुनिया के लिए मुक्ति की नौका हों। अब जब हम पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के संदेश से थोड़ी सा परिचित हो गये तो हमारे लिए यह वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है कि उनका निमंत्रण आरंभ से ही बुद्धि और तर्क पर आधारित रहा था। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम ने सभी से यह मांग की है कि चिंतन मनन करें और उसी को स्वीकार करें जिसकी बुद्धि व तर्क पुष्टि करें।

 

इस बात के दृष्टिगत कि पैग़म्बरे इस्लाम उस जाति के मध्य जीवन व्यतीत कर रहे थे जिनका जीवन कुरीतियों से भरा हुआ था किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के लिए सबसे गौरव की बात भी यही थी कि उन्होंने भ्रांतियों और कुरीतियों से संघर्ष किया क्योकि एकेश्वरवाद की विचार के फैलने के लिए आवश्यक था कि बुद्धि और तर्क की छत्रछाया में अज्ञानता से संघर्ष किया था। निसंदेह पैग़म्बरे इस्लाम के लक्ष्यों में से एक कुरीतियों का विरोध और तर्क व बुद्धि को प्रचलित करना था।

 

पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी ताकि लोग वास्तविकता के उपासक हो न कि भ्रांति और कुरीतियों के। इतिहास में उल्लेख है कि उनके एक मात्र पुत्र हज़रत इब्राहीम का जब स्वर्गवास हुआ तो वह बहुत रोये। उनके स्वर्गवास के दिन सूरज ग्रहण लग गया और कुरीतियों का शिकार लोग इस घटना को दुख की महान निशानी समझ बैठे और उन्होंने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र के निधन के कारण सूरज ग्रहण लगा है। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने यह बातें सुनी तो मिंबर पर आये और कहने लगे कि सूर्य और चंद्रमा दोनों ही ईश्वर की महान निशानियां हैं और उसके आदेशों का कहना मानते हैं और कभी भी किसी के जीने या मरने से इनको ग्रहण नहीं लगता।

 

यद्यपि यह घटना, पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के हवाले से लोगों की आस्थाओं को सुदृढ़ करती किन्तु वे कदपि इस बात से राज़ी नहीं हुए कि उनकी स्थिति कुरीतियों के माध्यम से लोगों के दिलों में मज़बूत हो। पैग़म्बरे इस्लाम नहीं चाहते थे कि लोगों की कुरीतियों सहित उनकी कमज़ोरियों से उनके मार्गदर्शन के लिए लाभ उठाएं बल्कि वे चाहते थे कि वे पूरी जागरूकता और पूरे ज्ञान से इस्लाम धर्म को स्वीकार करें क्योंकि ईश्वर पवित्र क़ुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि लोगों को तत्वदर्शिता और उपदेश के माध्यम से ईश्वर की ओर बुलाओ।

 

चिंतन मनन उन विषयों में से था जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत अधिक बल दिया था। वे कहते थे कि ईश्वर ने अपने बंदों को बुद्धि से बढ़कर कोई चीज़ प्रदान नहीं की है।

 

सैद्धांतिक रूप से हर वैचारिक व्यवस्था में बुद्धि की सहायता ली जानी चाहिए। यदि हम ईश्वर के अनन्य होने, ईश्वरीय दूतों के अस्तित्व, वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश और इन जैसे विषयों को सिद्ध करना चाहें तो हमें बौद्धिक तर्कों की सहायता लेनी पड़ेंगी। ग़लत आस्था से सही आस्था को पहचानने के लिए बुद्धि ही है जो मनुष्य की सहायता करती है धार्मिक शिक्षाओं की छत्रछाया में वास्तविकता तथा भ्रांति के मध्य सीमा को निर्धारित करती है। पवित्र क़ुरआन के प्रसिद्ध व्याख्याकर्ता सैयद अल्लामा तबातबाई पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में बुद्धि के स्थान के महत्त्व के बारे में कहते हैं कि यदि ईश्वरीय पुस्तक में संपूर्ण चिंतन मनन करें और उसकी आयतों को ध्यानपूर्वक पढ़ें तो हमें तीन सौ से अधिक आयतें मिलेंगी जो लोगों को चिंतन मनन और बुद्धि के प्रयोग का निमंत्रण देती हैं, या ईश्वरीय दूतों को वे तर्क सिखाएं हैं जिससे सत्य को सिद्ध करने और असत्य को समाप्त करने के लिए प्रयोग किया गया है। ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन की एक भी आयत में अपने बंदों को यह आदेश नहीं दिया है कि बिना समझे ईश्वर या उसकी ओर से आई हर चीज़ पर ईमान लाओ या आंखें बंद करके आगे बढ़ते रहें।

 

चिंतन मनन के निमंत्रण के सथ पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम ने ज्ञान प्राप्ति पर बहुत अधिक बल दिया है। उनका कहना था कि ज्ञान प्राप्त करो चाहे तुम्हें चीन ही क्यों न जाना पड़े। वे ज्ञान की प्राप्ति पर इतना अधिक बल देते थे कि उनके हवाले से बयान हुआ है कि एक युद्ध में उन्होंने अनकेश्वरवादी बंदियों की स्वतंत्रता के लिए यह शर्त रखी कि वे मुसलमानों को शिक्षा दें। वर्तमान समय में यह बहुत ही आश्चर्य ही बात है कि आज कुछ पथभ्रष्ट लोग इस्लाम धर्म के नाम पर और पैग़म्बरे इस्लाम की परंपराओं को जीवित करने के बहाने कुछ शिक्षण संस्थाओं पर आक्रमण करते हैं और इस्लाम के नाम पर घिनौने अपराध करते हैं। हाल ही में नाइजेरिया के चरमपंथी संगठन बोको हराम ने छात्राओं के एक बोर्डिंग स्कूल पर धावा बोलकर ढाई सौ से अधिक छात्राओं का अपहरण कर लिया। इन लड़कियों का केवल यह अपराध है कि ये छात्रा हैं। दुनिया का कौन व्यक्ति या कौन सी बुद्धि उनके इस घृणित कार्य को इस्लाम धर्म और पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण कह सकती हैं। इस खेदजनक घटना से इस्लाम धर्म का कुछ लेना देना नहीं है बल्कि यह इस्लाम धर्म के झूठे दावेदारों की पोल खोल देते हैं।

 

मुसलमानों के लिए यह गर्व की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन के हर पवित्र क्षण, लोगों के कल्याण और उनके विकास के लिए ज्ञान संबंधी प्रयास और उनके अज्ञानता के अंधकार से निकालने पर व्यतीत किए।

 

एकेश्वरवाद का निमंत्रण, भ्रांतियों से दूरी, स्वतंत्रता का निमंत्रण, न्याय की स्थापना के लिए प्रयास, दास प्रथा व बंदी प्रभा से संघर्ष, अत्याचारियों से संघर्ष, अत्याचारग्रस्त लोगों का समर्थन, ज्ञान व तकनीक की ओर प्रेरित करना, मानवीय प्रतिष्ठा और उसके नैतिक मूल्यों पर ध्यान देना, बुद्धि का सम्मान, मतभेद व अज्ञानता का विरोध, पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम की व्यापक शिक्षाओं के भाग हैं जिनमें मुसलममानों और दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लिए मूल्यवान बिन्दु निहित हैं। यह शिक्षाएं परिपूर्ण हैं और मनुष्य के लिए सीधा रास्ता है जो उसको कल्याण की ओर ले जाता है।