मारेफत के साथ ज़ियारते इमाम हुसैन (अ.स.) का सवाब
पहली हदीस
इमाम काज़िम (अ.स.) फरमाते है कि जिस शख्स ने इमाम हुसैन (अ.स.) की मारेफत रखते हुऐ उनकी ज़ियारत की तो परवरदिगारे आलम उसके अगले और पिछले तमाम गुनाह माफ कर देगा।
दूसरी हदीस
हारून बिन खारजा कहते है कि मैंने इमाम सादिक़ (अ.स.) से कहा कि लोग ख्याल करते है कि जिसने इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ियारत की उसको हज और उमरे का सवाब मिलेगा।
इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमायाः अल्लाह की क़सम जिसने उनके हक़ की मारेफत रखते हुऐ उनकी जियारत की तो उसके अगले और पिछले तमाम के तमाम गुनाह माफ कर दिये जाऐगे।
तीसरी हदीस
इमाम काज़िम (अ.स.) फरमाते है कि कम से कम जो फुरात के किनारे इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ियारत का सवाब दिया जाऐगा जबकि जाइर उनके हक़, हुरमत और विलायत की मारेफत रखता हो तो उसके तमाम अगले और पिछले गुनाह माफ कर दिये जाऐगे।
चोथी हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स क़ब्रे इमाम हुसैन (अ.स.) पर उनके हक़ की मारेफत रखते हुऐ आऐगा तो अल्लाह उसके तमाम अगले और पिछले गुनाह माफ कर देगा।
पाँचवी हदीस
इमाम काज़िम (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स इमाम हुसैन के हक़ की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो अल्लाह उसके तमाम अगले और पिछले गुनाह माफ कर देगा।
छठी हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक़ की मारेफत रखते हुऐ, इनकी इमामत का यक़ीन रखते हुऐ उनकी ज़ियारत करने आऐगा तो अल्लाह तआला उसके तमाम अगले और पिछले गुनाह माफ कर देगा।
सातवी हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स भी इमाम हुसैन (अ.स.) के हक़ की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो अल्लाह तआला उसके तमाम अगले और पिछले गुनाह माफ कर देगा।
आठवी हदीस
इमाम काज़िम (अ.स.) से सवाल किया गया कि जो लोग कब्रे इमाम हुसैन की जियारत पर आते है उनके लिऐ क्या अज्र होता है।
इमाम ने जवाब दियाः जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो उसके उसके अगले और पिछले सब गुनाह माफ कर दिये जाऐंगे।
नवी हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो अल्लाह तआला उसके तमाम अगले और पिछले गुनाह माफ कर देगा।
दसवीं हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो उसके उसके अगले और पिछले सब गुनाह माफ कर दिये जाऐंगे।
ग्यारवी हदीस
इमाम काज़िम (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो उसके उसके अगले और पिछले सब गुनाह माफ कर दिये जाऐंगे।
बारहवी हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ब्र पर उनके हक की मारेफत रखते हुऐ आऐगा तो उसके उसके अगले और पिछले सब गुनाह माफ कर दिये जाऐंगे।
तेरहवी हदीस
फाइद कहते है कि मै इमाम मूसा काज़िम की खिदमत मे हाज़िर हुआ और अर्ज़ कीः मै आप पर क़ुरबान जाऊ। मैं इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ियारत करने गया था मैंने वहा देखा कि लोग इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ब्रे मुबारक की ज़ियारत कर रहे है और उनमे वो लोग भी शामिल है जो आप की मारेफत रखते है और वो भी जो आपकी मारेफत नही रखते और आपकी विलायत का इक़रार नही करते, यहाँ तक कि औरते भी अपनी सवारीयो पर सवार होकर ज़ियारत के लिऐ आती है और इन बातो की वजह से उन्होंने शोहरत पा ली है कि इस खानदान के दोस्त है। इस शोहरत को देख कर मैं ज़ियारत से पीछे हट गया। अब मैं क्या करूँ।
रावी का बयान है कि ये सुनकर इमाम कुछ देर खामोश रहे और मुझे कोई जवाब नही दिया फिर मेरी तरफ मुतवज्जे हो कर फरमायाः ऐ इराक़ी। अगर वो अपने आप को मशहूर करते है तो तुम अपने आपको मशहूर न करो।
अल्लाह की क़सम। जो इमाम हुसैन (अ.स.) के हक़ की मारेफत रखते हुऐ उनके पास आऐगा अल्लाह तबारका व तआला उसके पिछले और अगले तमाम गुनाहो को माफ फरमाऐगा।
चोदहवी हदीस
मुसन्ना हन्नात इमाम काज़िम (अ.स.) से रिवायत करते है कि आप (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनके पास आऐगा तो उसके अगले और पिछले सब गुनाह माफ कर दिये जाऐंगे।
पंद्रहवी हदीस
इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते है कि जो शख्स भी इमाम जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनकी कब्र पर आऐगा तो वो उस शख्स की तरह होगा कि जिसने रसूले अकरम (स.अ.व.व.) के साथ तीन हज किये।
सोलहवी हदीस
मौहम्मद इब्ने अबुजरीर रिवायत करते है कि मैंने इमाम रज़ा (अ.स.) को अपने वालिद से ये फरमाते हुऐ सुना है कि जो शख्स इमाम हुसैन (अ.स.) के हक की मारेफत रखते हुऐ उनकी ज़ियारत को जाऐगा तो वो परवरदिगारे आलम से उसके अर्श पर गुफ्तगु करेगा।
फिर इमाम ने ये आयत तिलावत फरमाईः बेशक परहेज़गार जन्नतो और नहरो मे (मज़े मे) होंगे। पाकिज़ा मजालिस मे (हक़ीक़ी) इक्तेदार के मालिक बादशाह (खुदा) की खास क़ुरबत मे (बैठे) होंगे।
(सूराऐ क़मर आयत न. 54-55)
(कामिलुज़ ज़ियारात)