अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इमामे अली(अ)

इमाम अली अ.स. एकता के महान प्रतीक

 इमाम अली अ.स. एकता के महान प्रतीक

जब इमाम अली अ.स. से एक यहूदी ने इमामत और ख़िलाफ़त पर आपत्ति जताते हुए कटाक्ष किया कि तुम लोगों ने अपने पैग़म्बर स.अ. को दफ़्न करने से पहले ही उनके बारे में मतभेद शुरू कर दिए, तो आपने जवाब दिया कि, हमारा मतभेद पैग़म्बर स.अ. को लेकर बिल्कुल नहीं था, बल्कि हमारा मतभेद उनकी हदीस के मतलब को लेकर था, लेकिन तुम यहूदियों के पैर दरिया से निकल कर सूखे भी नहीं थे और तुम लोगों ने हज़रत मूसा अ.स. से कह दिया था कि बुत परस्तों की तरह हमारे लिए भी ख़ुदा का प्रबंध करो और फिर जवाब में हज़रत मूसा अ.स. ने तुम लोगों के बारे में कहा था कि तुम लोग कितने जाहिल और अनपढ़ हो।  

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इमाम अली की निगाह मे कसबे हलाल की जद्दो जहद

इमाम अली की निगाह मे कसबे हलाल की जद्दो जहद आपके नज़दीक कसबे हलाल बेहतरीन सिफ़त थी। जिस पर आप खुद भी अमल पैरा थे।

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इमाम अली (अ) द्वारा ग़रीबी हटाने के लिए किये जाने वाले कार्य

इमाम अली (अ) द्वारा ग़रीबी हटाने के लिए किये जाने वाले कार्य हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने निर्धनता के उन्मूलन के लिए बहुत कोशिश की ताकि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच खायी कम हो जाए। निर्धनता उन्मूलन का एक उपाया सार्थक रोज़गार का सृजन है।

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अमीरुल मोमिनीन अ. स.

अमीरुल मोमिनीन अ. स. आप का जन्म रजब मास की 13वी तारीख को हिजरत से 23वर्ष पूर्व मक्का शहर के विश्व विख्यात व अतिपवित्र स्थान काबे मे हुआ था। आप अपने माता पिता के चौथे पुत्र थे।    

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इमाम अली और यहूदी

इमाम अली और यहूदी आपने फ़रमाया के रसूले अकरम (स 0) ने उन्हें सरदारे जवानाने जन्नत क़रार दिया है और तुम उनकी गवाही को रद कर रहे हो ? काज़ी ने अपना फैसला यहूदी के हक़ मे दिया।

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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 2

नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 2 नहजुल बलाग़ा वह किताब है जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कुछ कथनों, पत्रों और भाषणों को एकत्रित किया गया है। इस किताब को पवित्र कुरआन का भाई कहा जाता है।

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नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली के विचार

नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली के विचार नहजुल बलाग़ा वह किताब है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के उच्च विचारों के एक छोटे से भाग को बयान करती है।

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ग़दीर पर रसूले इस्लाम (स.अ.) का विशेष ध्यान

 ग़दीर पर रसूले इस्लाम (स.अ.) का विशेष ध्यान रसूले इस्लाम को मालूम था कि इस सफ़र के अंत में उन्हें एक महान काम को अंजाम देना है जिस पर दीन की इमारत तय्यार होगी और उस इमारत के ख़म्भे उँचे होंगे कि जिससे आपकी उम्मत सारी उम्मतों की सरदार बनेगी, पूरब और पश्चिम में उसकी हुकूमत होगी मगर इसकी शर्त यह है कि वह सब अपने सुधरने के बारे में सोच-विचार करें

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हज़रत अली (अ) की वसीयत

हज़रत अली (अ) की वसीयत ''ऐ मेरे बेटे अगरचे मैने उतनी उमर नही पाई जितनी मुझसे पहले वालों की हुआ करती थी लेकिन मैंने उनके आमाल पर ग़ौर किया

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हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने कहा कि हे अली, जिब्राईल ने मुझे तुम्हारे बारे में एक एसी सूचना दी है जो मेरे नेत्रों के लिए प्रकाश और हृदय के लिए आनंद बन गई है।

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इमाम अली की ख़ामोशी

इमाम अली की ख़ामोशी इन लोगों के मरने से कि जो मूर्ती पूजा, शिर्क, यहूदियत या ईसाईयत के सामने इस्लाम की ताक़त थे इनके मरने से इस्लाम की ताक़त कमज़ोरी में

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मौलूदे काबा

मौलूदे काबा वसीये रसूल, ज़ोजे बतूल, इमामे अव्वल, पिदरे आइम्मा, मोलूदे काबा हज़रत अली अलैहिस्सलाम की तारीख़े विलादत बा सआदत, तेरह रजब के मौक़े पर हम शियायाने अहलेबैत......

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जंगे सिफ़्फ़ीन

 जंगे सिफ़्फ़ीन

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जंगे जमल

 जंगे जमल उम्मुल मोमेनीन हज़रत उम्मे सलमा का ख़त आ गया। जिसमें लिखा था कि आयशा हुक्मे ख़ुदा व रसूल स. के खि़लाफ़ आपसे लड़ने के लिये मक्के से रवाना हो गई हैं , मुझे अफ़सोस है कि मैं औरत हूँ , हाजि़र नहीं हो सकती ,

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दावते ज़ुल अशीरा का वाक़ेया और ऐलाने रिसालत व वज़ारत

 दावते ज़ुल अशीरा का वाक़ेया और ऐलाने रिसालत व वज़ारत हज़रत अली ए मुर्तज़ा की गरदन पर हाथ मुबारक रख कर इरशाद फ़रमाया कि यह मेरा भाई है और मेरा वसी है और मेरा ख़लीफ़ा है तुम्हारे बीच इसकी सुनो और इताअत क़ुबूल करो।

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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार-28

नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार-28 नमाज़, रोज़ा, हज, और जेहाद की भांति अम्र बिलमारूफ को भी धार्मिक आदेशों में समझा जाता है और उनके मध्य इसे विशेष स्थान प्राप्त है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर का दायेरा विस्तृत है और इसमें सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र सभी शामिल हैं।

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इमाम अली (अ) में क़ुव्वते कशिश भी और क़ुव्वते दिफ़ा भी

इमाम अली (अ) में क़ुव्वते कशिश भी और क़ुव्वते दिफ़ा भी तमाम लोगों को अपना दोस्त व मुरीद बना लेते हैं ज़ालिम को भी मज़लूम को भी नेक इंसान को भी और बद इंसान को भी और कोई उनकी दुश्मन नही है

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