अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

हुसैन अलैहिस्सलाम की भूमिका

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धार्मिक मूल्यों के पुनर्जीवन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की भूमिका

मोहर्रम के दिन आरंभ होते ही इतिहास के अमर आंदोलन की याद मन में पुनरजीवित हो जाती है। हर वर्ष मोहर्रम के आगमन पर पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों के चाहने वालों का मन भावुक हो उठता है।

 

ये वे दिन हैं जिनमें कर्बला की भूमि पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का अमर आंदोलन आरंभ हुआ था। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों के प्रेम में डूबे हुए मन उनके लिए श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। और बारम्बार यह कहते हैः हे अबा अब्दिल्लाह सलाम हो आप पर और उन आत्माओं पर जो आप के साथ हैं। सलाम हो आप सब पर जब तक मैं हूं और यह दिन रात बाक़ी हैं।


ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हब सब पर कृपा करे कि हम न्याय और सत्य का ध्वज फहराने वालों के आचरण व स्वभाव को समझ सकें और सत्य के मार्ग पर अडिग रह सकें। अब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एतिहासिक अमर आंदोलन के कुछ आयामों को आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं। आशा है आपको हमारा यह प्रयास भी पसंद आएगा। अत्याचार व भ्रष्टाचार से संघर्ष ईश्वरीय दूतों व महापुरुषों का सबसे बड़ा दायित्व था और उन सभी की संयुक्त आकांक्षा थी कि ईश्वरीय धर्म की स्थापना हो और लोग स्वतंत्रता के साथ कल्याण के मार्ग पर चलें।

 

निःसंदेह पवित्र भावना वह तत्व है जोज्ञ किसी आंदोलन को अमर व पवित्र बनाती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन भी उन आंदोलनों में है जो ईश्वरीय धर्म को बचाने के लिए चलाया गया। इसलिए यह महाआंदोलन तेरह सौ वर्षों से अधिक समय बीतने के बावजूद आज भी अमर है और मानव समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।


इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन कई गहरे आयाम लिए हुए है। ऐतिहासिक व सामाजिक मामलों के समीक्षकों का मानना है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन में अनेक तत्व प्रभावी रहे हैं। मूल रूप से यह कहा जा सकता है कि ये सभी तत्व धर्म को बचाने के उच्च लक्ष्य के लिए समर्पित थे।

 

हम तक इस्लाम की जो अनुपम शिक्षाएं पहुंची हैं वे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों के प्रयास का फल है। इस्लाम उन सुधारवादी आंदोलनों का ऋणी है जिनके द्वारा विभिन्न कालों में इस धर्म से अलग से जोड़े गए गलत संस्कार हटाए गए और मानवता के सामने नए क्षितिज खुले।

 

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के स्वर्गवास के बाद उनके परिजनों ने पूरे इतिहास में धर्म को बचाने और उससे अलग से जोड़े गए ग़लत संस्कारों को हटाने का दायित्व उठाया तथा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों में से हर एक ने अपने समय की परिस्थितियों के अनुसार इस दायित्व का निर्वाह किया।

ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के स्वर्गवास के पश्चात समाज पर धीरे धीरे अज्ञानता का अंधकार छाने लगा और मुसलमानों की लापरवाही से धार्मिक मूल्यों में फेर बदल की परिस्थिति उत्पन्न हो गई।


यज़ीद के शासन काल में धर्म में फेर बदल अपनी चरम सीमा पर थी और इस बात का भय व्याप्त था कि कहीं इस्लाम की शिक्षाएं अज्ञानता के घटाटोप बादलों में छिप न जाएं। धार्मिक मूल्यों का आधार लड़खड़ा चुका था और सामाजी संस्कृति व विचार क्षतिग्रस्त हो गए थे।

 

जातीवाद और धन संचय का प्रचलन, धार्मिक विचारों व मूल्यों की ओर से लापरवाही, और शासकों के बढ़ते अत्याचार व भ्रष्टाचार उस काल में धर्म को पहुंचने वाली मुख्य हानि थी जिनसे इस्लामी जगत के लिए बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो गईं। यह सब परिस्थितियां इस बात का कारण बनीं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ख़तरनाक तत्वों की पहचान पर आधारित आंदोलन आरंभ करें और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के धर्म को बचाएं और समाज का सुधार करें।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को इस्लाम के भविष्य की ओर से बड़ी चिंता थी। वह उस समय के मुस्लिम जगत की स्थिति से इतना क्षुब्ध थे कि उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहाः क्या नहीं देख रहे हो कि सत्य का पालन नहीं हो रहा है और कोई असत्य से हटना नहीं चाहता? इन परिस्थितयों में ईश्वर पर विश्वास रखने वाले को चाहिए कि वह ऐसे जीवन पर मृत्यु को प्राथमिकता दे।


इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उस संवेदनशील परिस्थिति में बसरा नगर के प्रभावी लोगों को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बसरा के प्रभावी लोगों से आग्रह किया कि वे ईश्वरीय किताब क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के आचरण के बारे में सोचें और सामाजिक वास्तविकताओं की ओर से लापरवाही न करें।

 

क्योंकि अच्छे संस्कार समाप्त हो गए और उनके स्थान पर अज्ञानता के संस्कार आ गए हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने पत्र में एक स्थान में कहते हैः मैं आप सब को ईश्वरीय किताब और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को अपनाने का आहवान करता हूं क्योंकि ग़लत संस्कार फिर से प्रचलित हो गए हैं यदि इस संदेश पर ध्यान दिया और स्वीकार किया तो आपको कल्याण के मार्ग पर ले चलूंगा।


इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन का उद्देश्य इस्लाम को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाना था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय धर्म को जीवित करने की प्रक्रिया में समाज के आम व विशेष लोगों को जागरुक बनाने पर बल दिया है। इस्लामी जगत का नेतृत्व करने वाले के कर्तव्य में ये भी है कि वे जनचेतना के स्तर को बढ़ाएं और समाज में आवश्यक जागरुकता पैदा करें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब मक्के से कूफ़ा के लिए निकलते हैं तो मार्ग में फ़र्ज़दक़ नामक शायर से परिस्थितियों का चित्रण इन शब्दों में करते हैः हे फ़र्ज़दक़ ये लोग ईश्वरीय आदेशों के पालन को छोड़ कर शैतान के अनुयाई हो गए हैं।

 

धरती पर भ्रष्टाचार फैला रहे हैं। ईश्वरीय आदेशों की अनदेखी कर मदिरापान कर रहे हैं और निर्धनों व वंचितों की धन संपत्ति हड़प लिया है। इसलिए धर्म की सहायता और उसे सम्मान दिलाने के लिए ईश्वर के मार्ग में जेहाद के लिए निकल पड़ना उचित क़दम है।पूरे इतिहास में धर्म को बचाने वाले इस्लामी मूल्यों से समाज के दूर होने का आभास कर लेते थे जिसे आम लोग समझ नहीं पाते थे। धर्म से समाज की यह दूरी राजनैतिक व आर्थिक मंच पर भी दिखाई पड़ती थी।

 

धर्म से समाज की दूरी की स्थिति में सुधारवादी आंदोलन के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे समाज में वैचारिक व व्यावहारिक स्तर पर गहरे परिवर्तन लाएं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की नीति व आंदोलन में यह बात दिखाई देती है कि वे पहले लोगों को प्रवचन देते हैं और सत्य व असत्य को समझाते हैं ताकि वैचारिक परिवर्तन उत्पन्न हो किन्तु जब वह देखते हैं कि यह शैली उपयोगी नहीं है तो लोगों के सामने किसी प्रकार का बहाना न रह जाए अपनी ओर से और प्रयास करते हैं यहां तक कि उनके पास अत्याचार के विरुद्ध डट जाने के अतिरिक्त कोई और मार्ग नहीं रह जाता।



इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम समाज में फैले ग़लत संस्कारों के विरुद्ध आंदोलन को स्वंय पर अनिवार्य समझते थे। इसलिए वे एक दूरदर्शी व परिस्थितियों से अवगत समाज सुधारक के रूप में लोगों की चेतना को झिंझोड़ने के प्रयास में थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कथन, व्यवहार और निर्णय उनकी गहरी सूझबूझ के सूचक हैं।

 

इमाम हुसैन के कथनों में सज्जनता व आत्म सम्मान पर बल दिया गया है। वह अपने आंदोलन के हर चरण में इन आकांक्षाओं का उल्लेख करते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एक सुंदर वास्तविकता का चित्रण किया और वह यह कि जब अत्याचार व बुराई समाज में फैल जाए और भलाई का दिया बुझने लगे तो धार्मिक संस्कारों को बचाने के लिए उठना चाहिए चाहे इस मार्ग पर प्राण की आहूति ही क्यों न देनी पड़े।

 

इसलिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस्लामी जगत को बचाने के एक मात्र विकल्प के रूप में कर्बला आंदोलन को चुना। उन्होंने उद्देश्य तक पहुंचने के लिए अपने आंदोलन में अपने परिवार के बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को साथ लिया ताकि उस समय और उसके बाद के लोगों के लिए इस्लाम का सही रूप बच सके।

 

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