बेअसते रसूले इस्लाम
मुवर्रेख़ीन का बयान है कि आं हज़रत (स अ व व ) इसी आलमे तनहाई में मशग़ूले इबादत थे कि आपके कानों में आवाज़ आई या मोहम्मद (स अ व व ) आपने इधर उधर देखा कोई दिखाई न दिया , फिर आवाज़ आई फिर आपने इधर उधर देखा , नागाह आपकी नज़र एक नूरानी मख़लूक़ पर पड़ी वह जनाबे जिब्राईल थे उन्होंने कहा इक़रा पढ़ो , हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया माइक़रा क्या पढ़ूं ? उन्होनें अर्ज़ की इक़रा बइस्मे रब्बेकल लज़ी ख़लक़ फिर आपने सब कुछ पढ़ दिया क्यो कि आपको इल्में क़ुरआन पहले से हासिल था। जिब्राईल (अ.स.) के इस तहरीक़े इक़रा का मक़सद यह था कि नुज़ूले क़ुरआन की इब्तेदा हो जाए। उस वक़्त आपकी उम्र 40 साल 1 दिन की थी। उसके बाद जिब्राईल ने वज़ू और नमाज़ की तरफ़ इशारा किया व अरकात की तादाद की तरफ़ भी हुज़ूर को मुतवज्जे किया चुनान्चे हुज़ूरे आला ने वज़ू किया और नमाज़ पढ़ी आपने सब से पहले जो नमाज़ पढ़ी वह ज़ोहर की थी। फिर हज़रत वहां से अपने घर तशरीफ़ लाये और ख़दीजातुल कुबरा और अली बिन अबी तालिब से वाक़िया बयान फ़रमाया। इन दोनों ने इज़हारे ईमान किया और नमाज़े अस्र इन दोनों ने ब जमाअत अदा की। यह इस्लाम की पहली नमाज़े जमाअत थी जिसमें रसूले करीम (स अ व व ) इमाम और ख़दीजा (स अ व व ) और अली (अ.स.) मासूम थे। आप दरजाए नबूवत पर बदोफ़ितरत ही से फ़ायज़ थे। 27 रजब को मबऊसे रिसालत हुए।(हयातूल कु़लूब , किताब अलमुनतक़ा , मवाहिबुल दुनिया) इसी तारीख़ के नुज़ूले क़ुरआन की इब्तेदा हुई।
हाशिया हज़रत अली बिन अबी तालिब के साबेकु़ल इस्लाम होने के बारे में इतनी ज़्या रवायत व शवाहिद मौजूद है कि अगर उन्हें जमा किया जाय तो एक किताब बन सकती है। हज़रते रसूले करीम (स अ व व ) ने खुद इसकी तसदीक़ फ़रमाई है चुनान्चे दार क़त्नी ने अबू सईद हजरी से इमाम अहमद ने हज़रत उमर से हाकिम ने माअज़ से अक़्ली ने हज़रत आयशा से रवायत की है कि हज़रत रसूले ख़ुदा (स अ व व ) ने अपनी ज़बाने मुबारक से इरशाद फ़रमाया है कि मुझ पर ईमान लाने वालों में सब से पहले अली (अ.स.) हैं। हज़रत अली (अ.स.) खुद इरशाद फ़रमाते हैं :-
سبقتکم الی الاسلام طفلا صغیرا ما بلغت او ان حلمی
मैंने तुम सब से पहले इस्लाम की तरफ़ बढ़ कर उसका ख़ैर मक़दम किया है। यह वाक़िया है उस वक़्त का जब कि मैं बालिग़ भी न हुआ था। शैख़ अल इस्लाम हाफ़िज़ इब्ने हजर असकलानी , तकरीब अल तहज़ीब मुद्रित देहली के पृष्ठ 84 पर कुछ अक़वाल लिखने के बाद लिखते हैं अलमरजाअनहा अव्वलीन असलम तरजीह उसी को है कि आपने सब से पहले इस्लाम ज़ाहिर किया। अल्लामा अब्दुल रहमान इब्ने ख़ल्दून लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा के बाद हज़रत अली इब्ने अबी तालिब ईमान लाये।(तारीख़ इब्ने ख़ल्दून पृष्ठ 295 मुद्रित लाहौर) मुवर्रीख़ अबुल फ़िदा लिखते हैं कि जनाबे ख़दीजा के अव्वल ईमान लाने में और मुसलमान होने में किसी को इख़्तेलाफ़ नहीं , मगर इख़्तिलाफ़ उनके बाद में है कि बीबी ख़दीजा (स अ व व ) के बाद कौन पहले ईमान लाया। साहेबे सीरत और बहुत से अहले इल्म बयान करते हैं कि मर्दों मे सब से पहले हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ.स.) 9, 10 या 11 बरस की उम्र में सब से पहले मुसलमान हुए। अफ़ीक़ कन्दी की रवायत से भी इसी की तस्दीक़ होती है जिसमें उन्होंने चशमदीद गवाह की हैसियत से वज़ाहत की है कि मैंने रसूले ख़ुदा (स अ व व ) को नमाज़ पढ़ते हुए बेअसत के फ़ौरन बाद इस आलम में देखा कि उनके पीछे जनाबे ख़दीजा और हज़रत अली (अ.स.) खड़े थे उस वक़्त कोई ईमान न लाया था। इस रवायत को अल्लामा बिन अब्दुल जज़री क़रतबी ने इस्तेयाब जिल्द 2 पृष्ठ 225 मुद्रित हैदराबाद दकन में अल्लामा इब्ने असीर जरज़ी ने असद उलग़ाबा जिल्द 3 पृष्ठ 414 मुद्रित मिस्र में अल्लामा इब्ने जरीर तबरी ने तारीख़े क़दीर जिल्द 2 पृष्ठ 212 मुद्रित मिस्र में अल्लामा इब्ने असीर ने तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 20 में दर्ज किया है।
साहेबे तफ़रीह अल अज़किया ने सबीहतुल महफ़िल से नक़्ल किया है कि दोशम्बे को रसूले ख़ुदा (स अ व व) मबऊसे रिसालत हुए हैं और उसी दिन आखि़रे वक़्त हज़़रत अली (अ.स.) मुशर्रफ़ बा इस्लाम हुए हैं। यही कुछ रौज़तुल अहबाब जिल्द 1 पृष्ठ 83 में भी है। अल्लामा अब्दुल बर ने दावा किया है कि बिल इत्तेफ़ाक़ साबित है कि ख़दीजा के बाद सब से पहले हज़रत अली (अ.स.) मुशर्रफ़ ब इस्लाम हुए हैं। अल्लामा इक़बाल कहते है।
मुस्लिम अव्वल शहे मर्दाने अली -- इश्क़ रा सरमायाए ईमाने अली
वाज़े हो कि हज़रत अली (अ.स.) अज़ल से ही मुसलमान और मोमिन थे , उनके लिये इस्लाम लाने का जुम्ला मुनासिब नहीं है लेहाज़ा जहां कहीं भी तारीख़ में उनके बारे में इस्लाम या ईमान लाने का जुम्ला है इससे इज़हारे इस्लाम वा ईमान समझना चाहिए।