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जंगे ओहद

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जंगे बद्र का बदला लेने के लिये अबू सुफ़ियान ने तीन हज़ार ( 3000) की फ़ौज से मदीने पर चढ़ाई की। एक हिस्से का अकरमा इब्ने अबी जेहेल और दूसरे का ख़ालिद बिन वलीद सरदार था। आं हज़रत (स अ व व ) के साथ पूरे एक हज़ार आदमी भी न थे। ओहद पर लड़ाई हुई जो मदीने से 6 मील की दूरी पर है। आं हज़रत (स अ व व ) ने मुसलमानों को ताकीद कर दी थी कि कामयाबी के बाद भी पुश्त (पीछे) के तीर अंदाज़ों का दस्ता अपनी जगह से न हटे , मुसलमानों की जीत होने को थी ही कि तीर अंदाज़ों का वही दस्ता जिसके हटने को मना किया था ख़ुदा और रसूल (स अ व व ) के हुक्म की खि़लाफ़ वरज़ी करके माले ग़नीमत (जंग जीतने पर प्राप्त धन दौलत) की लालच में अपनी जगह से हट गया जिसके नतीजे में निश्चित जीत हार में बदल गई। हज़रत हमज़ा असद उल्लाह शहीद हो गये , मैदान में भगदड़ पड़ गई , बड़े बड़े पहलवान और अपने को बहादुर कहने वाले मैदाने जंग छोड़ कर भाग गये और किसी ने रसूले इस्लाम (स अ व व ) की ओर ध्यान न दिया। तारीख़ में है कि तमाम सहाबा रसूले ख़ुदा (स अ व व ) को मैदाने में जंग में छोड़ कर भाग गये। बरवायते अल याक़ूबी की पृष्ठ 39 की रवायत के अनुसार केवल तीन सहाबी रह गये जिनमें हज़रत अली (अ.स.) और दो और थे। बुख़ारी की रवायत के अनुसार हज़रत अबू बकर और हज़रत उमर और हज़रत उस्मान भी भाग निकले। दुर्रे मन्शूर जिल्द 2 पृष्ठ 88 कंज़ुल आमाल जिल्द 1 पृष्ठ 238 में है कि हज़रत अबू बकर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गये थे वह कहते हैं कि मैं चोटी पर इस तरह उचक रहा था जैसे पहाड़ी बकरी उचकती है। क़ुराने मजीद में है कि यह सब भाग रहे थे और रसूल (स अ व व ) चिल्ला रहे थे कि मुझे अकेला छोड़ कर कहां जा रहे हो मगर कोई पलट कर नहीं देखता था।(पारा 4 रूकू 7 आयत 153 ) एक दुश्मन ने गोफ़ने में पत्थर रख कर आं हज़रत (स अ व व ) की तरफ़ फेंका जिसकी वजह से आपके दो दांत शहीद हो गये और माथे पर काफ़ी चोटें आईं। तलवारे लगने के कारण कई घाव भी हो गये और आप (स अ व व ) एक गढ़े में गिर पड़े। जब सब भाग रहे थे , उस समय हज़रत अली (अ.स.) जंग कर रहे थे और रसूल (स अ व व ) की हिफ़ाज़त भी कर रहे थे। आखि़र कार कुफ़्फ़ार को हटा कर आं हज़रत (स अ व व ) को पहाडी़ पर ले गये। रात हो चुकी थी दूसरे दिन सुबह के वक़्त मदीने को रवानगी हुई। इस जंग में 70 मुसलमान मारे गये और 70 ही ज़ख़्मी हुए और कुफ़्फ़ार सिर्फ़ 30 क़त्ल हुये जिनमें 12 काफ़िर अली के हाथ क़त्ल हुये। इस जंग में भी अलमदारी का ओहदा (पद) शेरे ख़ुदा हज़रत अली (अ.स.) के ही सुपुर्द था।

मुवर्रेख़ीन का कहना है कि हज़रत अली (अ.स.) महवे जंग रहे आपके जिस्म पर सोलह ज़र्बे लगीं और आपका एक हाथ टूट गया था। आप बहुत ज़ख़्मी होने के बावजूद तलवार चलाते और दुश्मनों की सफ़ों को उलटते जाते थे।(सीरतुन नबी जि 0 1 पृष्ठ 277 ) इसी दौरान में आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया अली तुम क्यो नहीं भाग जाते ? अर्ज़ की मौला क्या ईमान के बाद कुफ्ऱ इख़्तेयार कर लूँ।(मदारिज अल नबूवत) मुझे तो आप पर क़ुर्बान होना है। इसी मौक़े पर हज़रत अली (अ.स.) की तलवार टूटी थी और जु़ल्फ़ेक़ार दस्तयाब हुई थी।(तारीख़ तबरी जिल्द 4 पृष्ठ 406 व तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 58 )

नादे अली का नुज़ूल भी एक रवायत की बिना पर इसी जंग में हुआ था। मुवर्रेख़ीन का कहना है कि आं हज़रत (स अ व व ) के ज़ख़्मी होते ही किसी ने यह ख़बर उड़ा दी कि आं हज़रत (स अ व व ) शहीद हो गये। इस ख़बर से आपके फ़िदाई मक़ामे ओहद पर पहुँचे जिनमें आपकी लख़्ते जिगर हज़रत फातेमा (स अ व व ) भी थीं।

क्सीर तवारीख़ में है कि दुश्मनाने इस्लाम की औरतों ने मुस्लिम लाशों के साथ बुरा सुलूक किया। अमीरे माविया की मां ने मुसलमान लाशों के नाक कान काट लिये और उनका हार बना कर अपने गले में डाला और अमीर हमज़ा का जिगर निकाल कर चबाया। इसी लिये मादरे माविया हिन्दा को जिगर ख़्वारा (जिगर खाने वाली) कहते हैं।

मदीना मातम कदा बन गया

अल्लामा शिब्ली लिखते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) मदीने में तशरीफ़ लाये तो तमाम मदीना मातम कदा था। आप जिस तरफ़ से गुज़रते थे घरों से मातम की आवाज़ें आती थीं। आपको इबरत हुई कि सबके रिश्तेदार मातम दारी का फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं लेकिन हमज़ा का कोई नौहा ख़्वां नहीं है। रिक़्क़त के जोश में आपकी ज़बान से बे इख़्तेयार निकला अमा हमज़ा फ़लाबोवा क़ी लहा अफ़सोस हमज़ा को रोने वाला कोई नहीं। अन्सार ने अल्फ़ाज़ सुने तो तड़प उठे। सबने जा कर अपनी औरतों को हुक्म दिया कि वह हुज़ूर के दौलत कदे पर जा कर हज़रत हमज़ा का मातम करें। आं हज़रत (स अ व व ) ने देखा तो दरवाज़े पर परदा नशीनान की भीड़ थी और हमज़ा का मातम बलन्द था। इनके हक़ में दुआए ख़ैर की और फ़रमाया कि मैं तुम्हारी हमदर्दी का शुक्र गुज़ार हूँ।(सीरतुन नबी जिल्द न 0 1 पृष्ठ न 0 283 ) यह जंग मंगल के दिन 15 शव्वाल 3 हिजरी में हुई। हज़रत इमाम हसन (अ.स.) पैदा हुए और रसूले ख़ुदा (स अ व व ) का निकाह हफ़सा बिन्ते उम्र के साथ हुआ। और ग़ज़्वाए (अहमर अल असद) के लिये आप बरामद हुये। हज़रत अली (अ.स.) अलमबरदार थे।

आपका कमेंन्टस

यूज़र कमेंन्टस

Mahmud Ali:Ali
2023-04-24 01:55:53
Nare haidari
Saniya zehra:Mashallah
2022-08-12 21:50:45
Allah aap ko Or tofiq de.
Isufali Nuruddin:Sachhi Hakiat ..Al hamdolillah
2022-08-05 14:45:21
Truth .Very Very Nice.. Jazakallah
Raza Hassan Rizvi:Syed
2022-06-15 01:48:11
Jazak Allah, Masha Allah, Good Information with Good Reference
Abid hussai:Hussain
2022-04-08 13:20:58
Achhi jankari
Saleem raza:Ohod
2021-08-25 23:28:45
Bahut hi sahi malumat hui ye pad kar
Shahid Ali khan:Madad Maula
2021-08-06 16:10:05
Bahoot achhi jankari hai
Shiran khan:Guzwahe uhoid
2021-06-03 22:15:46
Siratunnabi
Shiran khan:Guzwahe uhoid
2021-06-03 22:15:21
Rbl
Azhar ali:Dum madr beda paar
2020-12-04 23:01:01
Love mohammad & ali
Khadim Abbas:Raju
2020-09-08 20:58:03
Nare haidari yaàa aliiiii
Amir warsi rain:Allah tofeeq de or jankari krne ki
2020-07-18 08:33:05
Allah tofeeq de or ilm hasil krne ki
Naeem:Ahmad
2020-04-09 22:22:50
Allah tofeek de
Sarfaraz Ansari:arbiya
2018-03-26 19:18:13
It's good
Gyasuddin:Very good
2018-03-18 11:06:19
Very nice
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