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कुरआने करीम से तमस्सुक

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हकीकत ये है कि हम लोग अभी कुरआने मजीद से दूर है। कुरआन और हमारे दरमियान बहुत ज़्यादा फासला है। हमारे दिल क़ुरआनी होने चाहिये, हमारे जान और रूह को क़ुरआन से मौहब्बत होनी चाहिये। अगर हमने कुरआन से लगाव पैदा कर लिया, कुरआन के मानी व मतलब को अपने दिल मे उतार लिया तो हमारी जिंदगी और हमारा समाज कुरआनी हो जाऐगा। किसी दबाव, किसी काम या किसी सियायत की ज़रूरत नही है अस्ल ये है कि हमारे दिल, रूह और हमारी मारेफत हकीकत मे कुरआनी हो जाऐ।
कुरआन के साथ मौहब्बत हमे कुरआन से करीब करती ह। ये कुरआनी प्रोग्राम, ये कुरआनी क्लासे, मुकाबले और जो हम कारीयो और हाफिज़ो से मौहब्बत करते है, ये सब मुक़द्देमा है लेकिन लाज़िम व वाजिब मुक़द्देमा है।
मैं फिर अपने जवानो से नसीहत करता हूँ कि कुरआन से दिल लगाऐ, कुरआनी जलसो मे शिरकत करे। जितनी बार आप कुरआन के साथ उठ-बैठ करेंगें हर बार जिहालत का एक परदा उठ जाया करेगा और नूरानियत का एक चश्मा आपके दिल मे जारी होगा।
कुरआन से दिली लगाव, कुरआन के साथ उठ-बैठ, कुरआन को समझना-समझाना, कुरआन के बारे मे फिक्र करना वग़ैरा लाजिम व ज़रूरी कामो मे से है।

तफसीर व तशरीह की ज़रूरत
शूरू से आखिर तक एक बार कुरआन पढ़ना लाजिम व ज़रूरी है। कुरआन को अव्वल से आखिर तक पढ़ना चाहिये। फिर दोबारा अव्वल से आखिर तक पढ़ें, ताकि ज़हने इंसान तमाम मआरिफे क़ुरआनी से आशना हो जाऐ।
अलबत्ता उस्ताद की भी ज़रूरत है ताकि हमारे लिऐ क़ुरआन की तफसीर बयान करे, आयत की मुश्किलो को बयान करे, मआरिफे आयात और उसमे छुपी बातो को हमारे लिऐ वाज़ेह करे। ये सब चीज़े लाज़िम है अगर हमने ऐसा कर लिया तो ज़माना जितना भी आगे चला जाऐ, तरक्की कर जाऐ, हम भी तरक़्की करते चले जाऐंगे और पीछे नही रहेंग़े।

क़ुरआन से इरतेबात
हम जितना ज़्यादा कुरआन से नज़दीक होगें दो चीज़े पेश आऐगीः
1.    हम क़वी से क़वीतर हो जाऐगे।
2.    हमारे आलमी दुश्मन हमारे सख्त तरीन दुश्मन हो जाऐंगे।
कोई बात नही जितना ज़्यादा कुरआन से क़रीब होंगे बशरीयत के दुश्मन भी उतना ज़्यादा नाराज़ होंगे।
तोहमत लगाऐंगे, झूठ बोलेंगे, हमारे खिलाफ अफवाहे उड़ाऐंगे, फाइनेशली और सियासी बाईकाट करेंगे और बहुत से खबीस काम हमारी क़ौम के साथ अंजाम देंगे (जैसा कि आप लोग देख रहे है।) लेकिन उनके मुकाबले मे हमारी क़ुदरत, कुव्वते बरदाशत और हमारे असर मे हर दिन ज़्यादती होती चली जाऐगी। जैसा कि आप देख रहे है कि अब हमारी क़ुदरत और ताक़त कई गुना ज़्यादा हो गई है।

अल्लाह की रस्सी
ये क़ुरआन परवरदिगारे आलम की मज़बूत रस्सी है, अगर इसको मज़बूती से थाम लिया जाऐ तो हमारे पैर जमने मे कोई कमी नही हो सकती।

क़ुरआन से उन्स व मौहब्बत
 क़ुरआन से उन्स व मौहब्बत हमारे दिलो को मआरिफ और क़ुरआन मे पोशीदा राज़ो से हमे आगाह करती है। इस्लामी दुनिया मे आज जो कुछ भी कमीयाँ महसूस हो रही है वो क़ुरआने मजीद से दूर होने की वजह से हैं। कुरआन हिकमत की किताब है, कुरआन इल्म की किताब है। किताबे हयात है। उम्मतो और क़ौमो की हक़ीक़ी हयात क़ुरआन के मआरिफ और उसके अहकाम पर अमल पैरा होने मे है। अगर लोग अदालत चाहते है और ज़ुल्म से बेज़ार है तो ज़ुल्म से जंग और मुक़ाबले का रास्ता सिर्फ क़ुरआन ही बताता है। अगर लोग इल्म की तलाश मे है और मारेफत और इल्म को ज़रीये अपनी ज़िन्दगी को रोनक़ बख्शना चाहते है और अपनी ऐशो इशरत का सामान इकट्ठा करना चाहते है तो उसका रास्ता भी क़ुरआन के ज़रीऐ ही मालूम हो सकता है। अगर लोग खुदा वंदे आलम से राब्ता और क़ुरबत चाहते है तो क़ुरआन की ही तरफ आना होगा। मुसलमानो के अंदर अख़लाकी कमीयाँ और कमज़ोरीयाँ, पिछड़ापन, गलत रफतारी की वजह क़ुरआन से दूरी है।
क़ुरआने मजीद का काम ये है कि हम को माददी और मआनवी ऐतेबार से बुलंदी अता करे और क़ुरआन ये काम करता है। जो लोग तारीख़ (इतिहास) को जानते हैं उन्होंने इसके नमूने तारीख मे देखे हैं और आज हम भी इसका नमूना अपनी निगाहो से देख रहे है।
अगर हमने एक क़दम भी क़ुरआन की तरफ बढ़ाया है तो खुदा ने हम को इज़्ज़त दी, हयात दी और हमको आगाही व बसीरत से नवाज़ा और कुव्वत व ताक़त से सरफराज़ किया है।

क़ुरआन मजीद से गफलत
इंटरनेशनल क़ुरआनी क्वीज़ से मालूम होता है कि क़ुरआन व हदीस इत्तेहाद व एकता का सरचश्मा है। हम मुसलमानो के यहा वहदत और इत्तेहाद के बहुत से असबाब पाऐ जाते है। जिस मे से एक और शायद सबसे अहम क़ुरआने करीम है। सारे मुसलमान क़ुरआने मजीद के लिऐ एकजुट है, क़ुरआन से दर्स लेना चाहते है, अपने आपको क़ुरआन से क़रीब करना चाहते है, ये बेहतरीन मौक़ा है।
इस्लाम दुश्मन ताक़तो की कोशिश ये रही है कि किसी तरह मुसलमानो के दरमियान फासला पैदा कर दिया जाऐ, इख्तेलाफ फैलाऐ और इनको आपस मे एक दूसरे के मुक़ाबले मे ला खड़ा करे। ये क़ुरआन से ग़फलत का नतीजा है।
जब तमाम मुसलमान इस आसमानी किताब, आसमानी पैग़ाम, खुदा वंदे आलम के बेहतरीन हदिये को तहे दिल से मानते है तो इससे बेहतर इज्तेमाअ और इत्तेहाद(एकता) के लिऐ क्या चीज़ हो सकती है?
हम इस मानवी और इलाही दस्तरखान के क़रीब आऐ और इज़्ज़त और क़ुदरत के सरचश्मे से फायदा उठाऐ।
आज हर लिहाज से सख्त बेदारी की सख्त ज़रूरत है और क़ुरआने करीम की बरकतो को हासिल करने के लिऐ पूरे तन, मन, धन से कोशिश से कोशिश करना लाज़मी है।
खुदा वंदे आलम हम सबको खादेमीने क़ुरआन मे शुमार करे। (आमीन)

 

 

 

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S. S. Vakil:Quran e Karim se tamssuk
2018-03-03 19:58:20
Mashallah Jazakallah
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