ग़ैबत सुग़रा व कुबरा और आपके सुफ़रा
आपकी ग़ैबत की दो हैसियतें थीं। एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 69 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा केज़माने में आपका एक नायबे ख़ास होता था, जिसके ज़ेरे एहतमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब ख़ुम्स व ज़क़ात और दिगर मराहिल उसी के वास्ते से तै होते थे। ख़ुसूसी मक़ामात पर उसी के ज़रिये और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्र किये जाते थे।
हज़रत उस्मान बिन सईद अमरी
सब से पहले जिन्हें नायबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई, उनका नामे नामी, व इस्मे गिरामी उस्मान बिन सईद अमरी था। आप हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के मोतमिद और मुख़लिस असहाब में से थे। आपका ताल्लुक़ क़बीला -ए- बनी असद से था। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी और आप सामरा के क़रिय -ए- असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आपको बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किया गया।
मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद
हज़रत उस्मान बिन सईद अमरी की वफ़ात के बाद इमाम अलैहिस्सलाम ने आपके फ़रज़न्द मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ किया। आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने वफ़ात से 2 माह क़ब्ल अपनी क़ब्र ख़ुदवा दी थी। आपका कहना था कि मै यह इस लिए कर रहा हूँ कि मुझे इमाम अलैहिस्सलाम ने बता दिया है और मैं अपनी तारीख़े वफ़ात से भी वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल सन् 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीब बमक़ाम दरवाज़ा -ए- कूफ़ा सरे राह दफ़्न हुए ।
हुसैन बिन रूह (र0)
मुहम्मद बिन उस्मान की वफ़ात के बाद हज़रत इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रूह (र0) इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाइज़ हुए। जाफ़र बिन मुहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद मुहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने जनाब हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम अलैहिस्सलाम का पैग़ाम पहुँचाया था। जनाब हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिम थी। आप महल्ले नौ बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर तमाम इस्लामी मुमालिक का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िर्क़ों के नज़दीक मोतमिद, सिक़ा और सालेह क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326, हिजरी में हुई और आप महल्ले नौ बख़्त कूफ़े में दफ़न हुए।
अली बिन मुहम्मद अल समरी
हुसैन बिन रौह (र0) की वफ़ात के बाद इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से जनाब अली बिन मुहम्मद अल समरी इस ओहदा -ए- जलील पर फ़ाइज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राइज़ अंजाम दे रहे थे, जब वक़्त क़रीब आया तो आपसे कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इन्तेज़ाम करेंगें। आपने फ़रमाया कि अब आईन्दा यह सिलसिला न रहेगा।
(मजालेसुल मोमेनीन, सफ़ा 89 व जज़ीर ?ए- ख़िज़रा, सफ़ा 6, व अनवार उल हुसैनिया, सफ़ा 55) मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नुबूव्वत के सफ़ा 214 में लिखते है कि मुहम्मद समरी के इन्तेक़ाल से 6 दिन पहले इमाम अलैहिस्सलाम का एक फ़रमान नाहिया मुक़द्दसा से बरामद हुआ। जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिल ?ए- सिफ़ारत के ख़त्म होने का तज़किरा था। इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ख़त के अल्फ़ाज़ यह हैं।
بسم الله الرحمن الرحيم يا علي يابن محمداعظم الله اجرا خوائنك فيك فعنك ميت ما بينك و بين سنت ايام فاعظم امرك ولا ترض الي احد يا قوم مقامك بعد وفاتك فقد وقعت الغيبة التامة فلا ظهور الي بعد باذن الله تعالي و ذلك بعدة العامد
तर्जमाः- ऐ अली बिन मुहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम है कि तुम 6, दिन में वफ़ात पाने वाले हो, तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये आपना कोई क़ायम मक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिए कि ग़ैबत कुबरा वाक़े हो गई होगी और इज़्ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर ना मुमकिन होगा। या ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा। ग़रज़ कि 6, दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मुहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गये और फ़िर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्र नही हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई।