पैग़म्बर का स्वर्गवास
हज़रत अली (अ.स.) से वसीयत फ़रमाने के बाद आपकी हालत ग़ैर हो गई। हज़रत फातेमा (स.अ.) जिनके ज़ानू पर सरे मुबारक रिसालत माब (स.अ.) था फ़रमाती हैं कि हम लोग इन्तेहाईं परेशानी में थे कि नागाह एक शख़्स ने इज़्ने हुज़ूरी चाहा , मैंने दाखि़ले से मना कर दिया और कहा ऐ शख़्स यह वक़्ते मुलाक़ात नहीं है इस वक़्त वापस चला जा। इसने कहा मेरी वापसी नामुम्किन है मुझे इजाज़त दीजिए की मैं हाज़िर हो जाऊँ। आं हज़रत (स.अ.) को जो क़दरे अफ़ाक़ा हुआ तो आप (स.अ.) ने फ़रमाया ऐ फातेमा (स.अ.) इजाज़त दे दोे यह मलाकुल मौत है। फातेमा (स.अ.) ने इजाज़त दे दी और वह दाखि़ले ख़ाना हुए। पैग़म्बर की खि़दमत में पहुँच कर अर्ज़ कि मौला यह पहला दरवाज़ा है जिस पर मैंने इजाज़त मांगी है और अब आप (स.अ.) के बाद किसी के दरवाज़े पर इजाज़त तलब न करूंगा। (अजाएब अल क़सस अल्लामा अब्दुल वाहिद पृष्ठ 2882 व रौज़तुल सफ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 216 व अनवार अल क़ुलूब पृष्ठ 188)
अल ग़रज़ मलकुल मौत ने अपना काम शुरू किया हुज़ूर रसूल करीम (स.अ.) ने बतारीख़ 28 सफ़र 11 हिजरी योमे दोशम्बा ब वक्ते दो पहर खि़लअते हयात उतार दिया। (मुवद्दतुल कु़र्बा पृष्ठ 49 , 14 तबा बम्बई 310 हिजरी अहले बैत कराम में रोने का कोहराम मच गया। हज़रत अबू बकर उस वक़्त अपने घर महल्ला सख़ गए हुए थे जो मदीने से एक मील के फ़ासले पर था । हज़रत उमर ने वाक़ेए वफ़ात को नशर होने से रोका और जब हज़रत अबू बकर आ गए तो दोनों सक़ीफ़ा बनी सआदा चले गए जो मदीने से तीन मील के फ़ासले पर था और बातिल मशविरों के लिये बनाया गया था। (ग़यासुल लुग़ात) और उन्हीं के साथ अबू अबीदा भी चले गए जो ग़स्साल थे। ग़रज कि अकसर सहाबा रसूले ख़ुदा (स.अ.) की लाश छोड़ कर हंगामाए खि़लाफ़त में जा शरीक हुए और हज़रत अली (अ.स.) ने ग़ुस्लो कफ़न का बन्दोबस्त किया। हज़रत अली (अ.स.) ने ग़ुस्ल देने में फ़ज़ल इब्ने अब्बास हज़रत का पैराहन ऊँचा करने में अब्बास और क़सम करवट बदलवाने में और उसामा व शकराना पानी डालने में मसरूफ़ हो गए और उन्हीं छः आदमियों ने नमाज़े जनाज़े पढ़ी और इसी हुजरे में आपके जिस्मे अतहर को दफ़्न कर दिया गया। जहां आपने वफ़ात पाई थी। अबू तलहा ने क़ब्र खोदी। हज़रत अबू बकर व हज़रत उमर आपके ग़ुस्लो कफ़न और नमाज़ में शरीक न हो सके क्यांेकि जब यह हज़रात सक़ीफ़ा से वापस आए तो आं हज़रत (स.अ.) की लाशे मुतहर सुपुर्दे खाक की जा चुकी थी। कंज़ुल आमाल जिल्द 3 पृष्ठ 140, अर हज्जुल मतालिब पृष्ठ 670 , अल मुतर्ज़ा पृष्ठ 39 फ़तेहुलबारी जिल्द 6 पृष्ठ 4, वफ़ात के वक़्त आपकी उम्र 63 साल की थी। (तारीख़ अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 152)
वफ़ात और शहादत का असर
सरवरे कायनात की वफ़ात का असर यूँ तो तमाम लोगों पर हुआ असहाब भी रोए और हज़रत आयशा ने भी मातम किया। (मसनदे अहमद बिन हम्बल जिल्द 6 पृष्ठ 274 व तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 122 व तारीखे़ तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 197) लेकिन जो सदमा हज़रत फ़ातेमा (स.अ.) को पहुँचा इसमें वह मुनफ़रिद थीं। तारीख़ से मालूम होता है कि आपकी वफ़ात से आलमे अलवी और आलमे सिफ़ली भी मुत्तसिर हुए और उनमें जो चीज़ें हैं उनमें भी असरात हुवैदा हुए हैं। अल्लामा ज़मख़्शरी का बयान है कि एक दिन आं हज़रत (स.अ.) ने उम्मे माअबद के वहां क़याम फ़रमाया । आपके वज़ू के पानी से एक पेड़ निकला जो बेहतरीन फल लाता रहा। एक दिन मैंने देखा कि इसके पत्ते झड़े हुए हैं और मेवे गिरे हुए हैं। मैं हैरान हुई कि नागहाँ ख़बरे वफ़ात सरवरे आलम पहुँची। फिर तीस साल बाद देखा गया कि इस में तमाम कांटे उग आए थे। बाद में मालूम हुआ कि हज़रत अली (अ.स.) ने शहादत पाई। फिर मुद्दत मदीद के बाद इसकी जड़ से ख़ून ताज़ा उबलता हुआ देखा गया बाद में मालूम हुआ हज़रत इमामे हुसैन (अ.स.) ने शहादत पाई। इसके बाद वह सूख गया। (अजाएब अल क़सस पृष्ठ 159 बा हवालाए रबीउल अबरार ज़मख़्शरी)
आं हज़रत (स.अ.) की शहादत का सबब
यह ज़ाहिर है कि चाहरदा मासूमीन (अ.स.) में से कोई भी ऐसा नहीं जिसने शहादत न पाई हो। हज़रत रसूले करीम (स.अ.) से लेकर इमामे हसन असकरी (अ.स.) तक सब ही शहीद हुए हैं। कोई ज़हर से शहीद हुआ है कोई तलवार से शहीद हुआ। इनमें से एक औरत भी थीं हज़रत फ़ातेमा बिन्ते रसूल (स.अ.) वह ज़र्बे शदीद से शहीद हुईं। इन चैदाह मासूमों में लगभग तमाम की शहादत का सबब वाज़े है लेकिन हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) की शहादत के सबब से अकसर हज़रात न वाक़िफ़ हैं इस लिये मैं इस पर रौशनी डालता हूँ।
हुज्जतुल इस्लाम इमाम अबू हामिद मोहम्मद अल ग़ज़ाली की किताब सिरूल आलमीन के पृष्ठ 7 तबा बम्बई 1214 हिजरी और किताब मिशक़ात शरीफ़ के हिस्सा 3 पृष्ठ 58 से वाज़े है कि आपकी शहादत ज़हर के ज़रिए से हुई है और बुख़ारी शरीफ़ की जिल्द 3 तबा मिस्र 1314 हिजरी के हिस्सा अल्लददू पृष्ठ 127 किताब अल तिब से मुस्तफ़ाद और मुस्तमिबत होता है कि आं हज़रत को दवा में मिला कर ज़हर दिया गया था ।
1.तारीख़े तबरी जिल्द 4 पृष्ठ 436 में है कि अन्सार ने जब हज़रत अली (अ.स.) की बैअत करना चाही तो हज़रत उमर ने हज़रत अबू बकर का हाथ पकड़ कर बैअत कर ली और कहा कि आप भी क़रशी हैं और हम में सज़ावार तर हैं।
मेरे नज़दीक रसूले करीम (स.अ.) के बिस्तरे अलालत पर होने के वक़्त के वाक़ेआत व हालात के पेशे नज़र दवा में ज़हर मिला कर दिया जाना गै़र मुतवक़्क़ा नहीं है। अल्लामा मोहसिन फ़ैज़ किताब अलवाफ़ी की जिल्द 1 के पृष्ठ 166 में बा हवाला तहज़ीबुल एहकाम तहरीर फ़रमाते हैं कि हुज़ूर मदीने में ज़हर से शहीद हुए हैं। अलख़ मुझे ऐसा मालूम होता है कि ख़ैबर में ज़हर ख़ूरानी की तशहीर अख़फ़ाए जुर्म के लिए की गई थी।