नमाज़े ग़ुफ़ैला
783. मश्हूर मुस्तहब नमाज़ों में से एक नमाज़े ग़ुफ़ैला है जो मग़्ऱिब और इशा की नमाज़ के दरमियान पढ़ी जाती है। इसकी पहली रक्अत में अलहम्द के बाद किसी दूसरी सूरत के बजाए यह आयत पढ़नी ज़रूरी हैः- व ज़न्नूने इज़् ज़हबा मुग़ाज़िबन फ़ज़न्ना अंल्लन तक़्दिरा अलैहे फ़नादा फ़िज़्ज़ुलुमाते अंल्ला इलाहा अल्ला अन्ता सुब्हानाका इन्नी कुन्तो मिनज़ ज़ालिमीना फ़स्तजब्ना लहू व नज्जैनाहो मिनल ग़म्मे व कज़ालिका नुंजिल मोमिनीन। और दूसरी रक्अत में अलहम्द के बाद बजाए किसी और सूरत के यह आयत पढ़ेः- व इन्दहू मफ़ातिहुल ग़ैबे ला यअलमुहा इल्ला हुवा व यअलमो मा फ़िल बर्रे वल बहरे व मा तस्क़ुतो मिंव वरक़तिन इल्ला यअलमुहा व ला हब्बतिन फ़ी ज़ुलुमातिल अर्ज़े व ला रत्बिंव व ला याबिसिन इल्ला फ़ी किताबिम मुम्बीन। और इसके क़ुनूत में यह पढ़ेः- अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलुका बे मफ़ातिहिल ग़ैबिल्लती ला यअतमुहा इल्ला अन्ता अन तुस्वल्लिया अला मोहम्मदिंव व आले मोहम्मदिंव व अन तफ़्अलबी कज़ा व कज़ा। और क़ज़ा व कज़ा के बजाए अपनी हाजतें बयान करे और उसके बाद कहेः- अल्लाहुम्मा अन्ता वलीयो नेमती वल क़ादिरो अला तलेबती तअलमु हाजती फ़असअलुका बे हक़्क़े मोहम्मदिंव व आले मोहम्मदिन अलैहे व अलैहिममुस्सलामु लम्मा क़ज़ैतहा ली। क़िब्ले के अहकाम
784. रव़ानए कअबः जो मक्कए मुर्कार्रमा में है वह हमारा क़िब्ला है लिहाज़ा (हर मुसलमान के लिये) ज़रूरी है कि उसके सामने खड़े होकर नमाज़ पढ़े। लेकिन जो शख़्स उससे दूर हो अगर वह इस तरह खड़ा हो कि लोग कहें कि क़िब्ले की तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ रहा है तो काफ़ी है। और दूसरे काम जो क़िब्ले की तरफ़ मुंह कर के अंजाम देने ज़रूरी हैं मसलन हैवानात को ज़िब्हा करना उनका भी यही हुक्म है।
785. जो शख़्स खड़ा होकर वाजिब नमाज़ पढ़ रहा हो ज़रूरी है कि उसका सीना और पेट क़िब्ले की तरफ़ हो। बल्कि उसका चेहरा क़िब्ले से बहुत ज़्यादा फिरा हुआ नहीं होना चाहिये और एहतियाते मुस्तहब यह है कि उसके पांव की उंगलिया भी क़िब्ले की तरफ़ हों।
786. जिस शख़्स को बैठकर नमाज़ पढ़नी हो ज़रूरी है कि उसका सीना और पेट नमाज़ के वक़्त क़िब्ले की तरफ़ हो, बल्कि उसका चेहरा भी क़िब्ले से बहुत ज़्यादा फिरा हुआ न हो।
787. जो शख़्स बैठकर नमाज़ न पढ़ सके ज़रूरी है कि दायें पहलू के बल यूं लेटे कि उसके बदन का अगला हिस्सा क़िब्ले की तरफ़ हो और अगर यह मुम्किन न हो तो ज़रूरी है कि बायें पहलू के बल यूं लेटे कि उसके बदन का अगला हिस्सा क़िब्ला की तरफ़ हो। और जब तक दायें पहलू के बल लेट कर नमाज़ पढ़ना मुम्किन हो एहतियाते लाज़िम की बिना पर बायें पहलू के बल लेट कर नमाज़ न पढ़ें। और अगर यह दोनों सूरतें मुम्किन न हों तो ज़रूरी है कि पुश्त के बल यूं लेटे कि उसके पांव के तल्वे क़िब्ले की तरफ़ हों।
788. नमाज़े एहतियात, भूला हुआ सज्दा और भूला हुआ तशहहुद क़िब्ले की तरफ़ मुंह कर के अदा करना ज़रूरी है और एहतियाते मुस्तहब की बिना पर सज्दाए सहव भी क़िब्ले की तरफ़ मुंह कर के अदा करे।
789. मुस्तहब नमाज़ रास्ता चलते हुए और सवारी की हालत में पढ़ी जा सकती है और अगर इंसान इन दोनों हालतों में मुस्तहब नमाज़ पढ़े तो ज़रूरी नहीं कि उसका मुंह क़िब्ले की तरफ़ हो।
790. जो शख़्स नमाज़ पढ़ना चाहे ज़रूरी है कि क़िब्ले की सम्त का तअय्युन करने के लिये कोशिश करे ताकि क़िब्ले की सम्त के बारे में यक़ीन या ऐसी कैफ़ियत जो यक़ीन के हुक्म में हो, मसलन दो आदिल आदमियों की गवाही हासिल कर ले और अगर ऐसा न कर सके तो ज़रूरी है कि मुसलमानों की मस्जिद के मेहराब से या उनकी क़ब्रों से या दूसरे तरीक़ों से जो गुमान पैदा हो उसके मुताबिक़ अमल करे हत्ता की अगर किसी ऐसे फ़ासिक़ या काफ़िर के कहने पर जो साइंसी क़वायद के ज़रीए क़िब्ले का रूख पहचानता हो क़िब्ले के बारे में गुमान पैदा करे तो वह भी काफ़ी है।
791. जो शख़्स क़िब्ले की सम्त के बारे में गुमान करे अगर वह उस से क़वी तर गुमान पैदा कर सकता हो तो अपने गुमान पर अमल नहीं कर सकता। मसलन अगर मेहमान साहबे ख़ाना के कहने पर क़िब्ले की सम्त के बारे में गुमान पैदा कर ले लेकिन किसी दूसरे तरीक़े से ज़्यादा क़वी गुमान पैदा कर सकता हो तो उसे साहबे ख़ाना के कहने पर अमल नहीं करना चाहिये।
792. अगर किसी के पास क़िब्ले का रूख़ मुतअय्यन करने का कोई ज़रीआ न हो (मसलन कुतुब नुमा) या कोशिश के बावजूद उसका गुमान किसी एक तरफ़ न जाता हो तो उसका किसी भी तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ना काफ़ी है और एहतियाते मुस्तहब यह है कि अगर नमाज़ का वक़्त वसी हो तो चार नमाज़ें चारों तरफ़ मुंह कर के पढ़े (यानी वही एक नमाज़ चार मर्तबा एक एक सम्त की जानिब मुंह करके पढ़े)।
793. अगर किसी शख़्स को यक़ीन या गुमान हो कि क़िब्ला दो में से एक तरफ़ है तो ज़रूरी है कि दोनों तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़े।
794. जो शख़्स कई तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ना चाहता हो अगर वह ऐसी दो नमाज़े पढ़ना चाहे जो ज़ोहर और अस्र की तरह यके बाद दीगरे पढ़नी ज़रूरी हैं तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि पहली नमाज़ मुख़्तलिफ़ सम्तों की तरफ़ मुंह करके पढ़े और बाद में दूसरी नमाज़ शुरू करे।
795. जिस शख़्स को क़िब्ले की सम्त का यक़ीन न हो अगर वह नमाज़ के अलावा कोई ऐसा काम करना चाहे जो क़िब्ले की तरफ़ मुंह करके करना ज़रूरी है मसलन अगर वह कोई हैवान ज़िब्हा करना चाहता हो तो उसे चाहिये की गुमान पर अमल करे और अगर गुमान पैदा करना मुम्किन न हो तो जिस तरफ़ मुंह करके वह काम अंजाम दे वह दुरूस्त है।