इस्लाम पर अहले बैत (अ) का दृष्टिकोण
अबुल जारूद कहते हैं कि मैने इमाम बाक़िर (अ) से पूछा ऐ रसूलल्लाह के बेटे क्या आपको मालूम है कि मैं आपका चाहने वाला, आपका अनुयायी और भक्त हूँ? आपका ने कहा बेशक, मैने कहा मुझे एक सवाल पूछना है उम्मीद है कि आप जवाब अवश्य देगें इसलिये कि मैं अंधा हूँ, बहुत कम चल सकता हूँ अत: बार बार आपकी सेवा में उपस्थित नही हो सकता, आपने कहा बताओं क्या पूछना है? मैंने कहा आप मुझे उस धर्म के बारे में ज्ञान दें जिस पर आप और आपके अहलेबैत चलते हैं ताकि मैं भी उस को अपना सकूँ।
आपने फ़रमाया: तुमने सवाल तो बहुत छोटा सा किया है मगर सवाल बड़ा महान किया है। अच्छा मैं तुम्हे अपने और अपने अहलेबैत के सम्पूर्ण धर्म के बारे में बताता हूँ, देखों यह दीन अल्लाह को एक मानने, मुहम्मद (स) को अल्लाह का दूत मानते हुए उनके बताये हुए अहकाम का इक़रार करने, हमारे दोस्तो से मुहब्बत, दुश्मनों से दुश्मनी, हमारे अहकाम को मानने, हमारे क़ायम (अ) का इंतेज़ार करने और इस राह में आहतियात के साथ प्रयत्न करने का नाम है। (उसूले काफ़ी जिल्द 1 पेज 21, 10, 203)
अबू बसीर कहते हैं कि मैं इमाम बाक़िर (अ) की सेवा में हाज़िर था कि सलाम ने आपसे पूछा कि इब्ने अबी ख़ैसमा ने हम से बयान किया है कि उन्होने आपसे इस्लाम के बारे में पूछा था तो आपने फ़रमाया कि जिसने भी हमारे किबले की ओर मुँह किया, हमारी गवाही के अनुसार गवाही दी, हमारी इबदतों की तरह इबादत की, हमारे दोस्तो से मुहब्बत की, हमारे दुश्मनों से घृणा जताई वह मुसलमान है।
आपने फ़रमाया ख़ुसैमा ने बिल्कुल सही बयान किया है। मैंने कहा और ईमान के बारे में आपने उससे फ़रमाया है कि अल्लाह तआला पर ईमान, उसकी किताब की तसदीक़ और उसकी नाफ़रमानी न करना ही ईमान है। आपने कहा ख़ुसैमा ने सच बयान किया है। (उसूले काफ़ी जिल्द 2 पेज 38,5,204)
अली बिन हमज़ा ने अबू बसीर से नक़्ल किया है कि मैंने अबू बसीर को इमाम सादिक़ (अ) से सवाल करते हुए सुना कि हुज़ूर मैं आप पर क़ुर्बान, यह बताएँ कि वह कौन सा धर्म है जिसे अल्लाह तआला ने अपने बंदों के लिये आवश्यक किया है और उसके बारे में ना जानने को माँफ़ नही किया है और न ही उसके अलावा किसी और धर्म को क़बूल किया है?
आपने फ़रमाया दोबारा सवाल करो, उन्होने दोबारा सवाल किया तो आपने फ़रमाया: ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद रसूलल्लाह, की गवाही देना, नमाज़ पढना, ज़कात अदा करना, अगर मक्का जाने का ख़र्च हो तो अल्लाह के घर की ज़ियारत और हज करना, रमज़ान के महीने में रोज़े रखना। यह कह कर आप चुप हो गये और फिर दो बार कहा विलायत विलायत (उसूले काफ़ी जिल्द 2 पेज 22,11,205)
अम्र बिन हरीस 1 कहते हैं कि इमाम सादिक़ (अ) की सेवा में उपस्थित था, उस समय आप अपने भाई अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद के घर पर थे, मैंने पूछा कि मैं आप पर क़ुर्बान, यहाँ क्यों तशरीफ़ ले आये? फ़रमाया: लोगों से दूर सुकून के साथ रहने के लिये।
मैंने कहा कि मेरा दीन यह है कि मैं ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद रसूल्लल्लाह कह कर कलमा पढ़ता हूँ और गवाही देता हूँ कि क़यामत आने वाली है, इसमें किसी संदेह की गुँजाइश नही है और यह कि अल्लाह तआला सबको क़ब्रों से निकालेगा, नमाज़ क़ायम करना, ज़कात अदा करना, रमज़ान में रोज़े रखना, हज के लिये अल्लाह के घर जाना, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद हज़रत अली (अ) को वली मानना, उनके बाद इमाम हसन (अ), उनके बाद इमाम हुसैन (अ) उनके बाद इमाम अली बिन हुसैन (अ), उनके बाद इमाम मुहम्मद बिन अली (अ) फिर आपकी विलायत की गवाही देना ज़रूरी है। आप ही हज़रात हमारे इमाम और मार्गदर्शक हैं। इसी अक़ीदे और श्रध्दा के साथ जीना है और इसी के साथ मरना है और इसी को लेकर अल्लाह तआला की सेवा में हाज़िर होना है।
इमाम (अ) ने फ़रमाया: अल्लाह तआला की क़सम, यही मेरा और मेरे पूर्वजों को दीन है जिसे हम खुल्लम खुल्ला और छिपा कर हर मंज़िल पर अपने साथ रखते हैं। (उसूले काफ़ी जिल्द 1 पेज 23,14,206)
मआज़ बिन मुस्लिम कहते हैं कि मैं अपने भाई उमर को लेकर इमाम सादिक़ (अ) की सेवा में उपस्थित हुआ और कहा यह मेरा भाई उमर है, यह आपकी मुबारक ज़बान से कुछ सुनना चाहता है, इमाम (अ) ने कहा पूछो क्या पूछना है।
उसने कहा उस दीन के बारे में बताईये जिसके अलावा कोई दीन क़बूल नही किया जायेगा और जिसके ना जानने के बारे में इंसान बहाना नही बना सकता हो, इमाम (अ) ने फ़रमाया: ला इलाहा इल्लल्लाहा, मुहम्मद रसूलल्लाहा की गवाही, पाँच नमाज़ें, रमज़ान के रोज़े, अल्लाह के घर का हज और अल्लाह के समस्त आदेशों, अहकामों का इक़रार और पालन और मासूम इमामों की पैरवी करना....।
उमर ने कहा, उन इमामों के नाम भी बता दीजिये? इमाम (अ) ने फ़रमाया: अमीरुल मोमिनीन अली (अ), इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ), इमाम अली बिन हुसैन (अ), इमाम मुहम्मद बिन अली (अ), और यह पद् और नेकी अल्लाह जिसे चाहता है, उसे देता है।
उमर ने सवाल किया कि आपका क्या मक़ाम है? फरमाया: यह इमामत की ज़िम्मेदारी हमारे पहले और आख़िरी सबके लिये जारी है। (महासिन जिल्द 1 पेज 450, 1037, शरहुल अख़बार पेज 224, 209, इस हदीस में ग़ुस्ले जनाबत के बजाए तहारत का ज़िक्र है। 207)
हदीस में आया है कि मामून ने फ़ज़्ल बिन सहल को इमाम रज़ा (अ) के पास भेजा और कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप हलाल व हराम, सुन्नत व आदाब सब का एक जगह पर लिख कर पेश करे दें क्योकि आप लोगों के लिये अल्लाह की हुज्जत (वली, दूत) और इल्म का ख़ज़ाना हैं। आपने क़लम व क़ाग़ज़ मँगाया और फ़ज़्ल से कहा कि लिखो कि हमारे लिये यह काफ़ी है कि हम इस बात की गवाही दें कि अल्लाह तआला के अलावा कोई ख़ुदा नही है, वह अकेला है, बेनियाज़ है, उसके कोई बीवी बच्चे नही हैं, वह हमेशा बाक़ी रहने वाला है, वह सुनने और देखने वाला है, क़वी व क़ायम, बाक़ी व नूर है, हर शय का जानने वाला और हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है। ऐसा धनवान है जो कभी ग़रीब नही होता, ऐसा इंसाफ़ करने वाला है जो कभी अत्याचार नही करता, सारी चीज़ों का पैदा करने वाला है, उसके जैसा कोई नही है, उसका कोई साथी नही है।
फिर इस बात की गवाही दें कि मुहम्मद (स) उसके बंदे, रसूल (दूत), ईमानदार, चुनिंदा, रसूलों के सरदार, आख़िरी नबी, दुनिया में सबसे आला इंसान है, उनके बाद कोई नबी नही है। उनकी शरीयत के क़ानून में कोई बदलाव संभव नही है। वह जो कुछ अल्लाह की तरफ़ से लायें हैं सब हक़ है, हम सबकी पुष्टि करते हैं और उनसे पहले के नबियों और रसूलों और अल्लाह की ओर से भेजे गये समस्त मार्गदर्शकों की पुष्टि करते हैं। उसकी किताब के सच्ची होने की भी पुष्टि करते हैं जिसमें कहीं से भी असत्य का गुज़र नही हो सकता न सामने से और न ही छुप कर और वह हकीम व हमीद अल्लाह की तरफ़ से भेजी गई किताब है।
यह किताब तमाम किताबों की रक्षा करने वाली और शुरु से आखिर तक हक़ है, हम उसके ज़ाहिर व बातिन, आम व ख़ास, नासिख़ व मंसूख़ और अख़बार सब पर ईमान रखते हैं, कोई इंसान भी उसका उदाहरण पेश नही कर सकता है।
और इस बात की गवाही देते है कि रसूले अकरम (स) के बाद अल्लाह का वली, मुसलमानों की देखरेख के ज़िम्मेदार, क़ुरआन के प्रवक्ता, अल्लाह के आदेशों और अहकामों के जानने वाले, ख़लीफ़ा, वसी, हारुन नबी जैसा सम्मान रखने वाले अली बिन अबी तालिब, अमीरुल मोमिनीन, इमामुल मुत्तक़ीन, क़ायदिल ग़ुर्रिल मुहज्जेलीन, यासूबुद्दीन और वसियों में सबसे श्रेष्ठ हैं और उनके बाद इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ) हैं और आज तक यह सिलसिला जारी है, यह सब अल्लाह के नबी की औलाद, अल्लाह की किताब और उसके रसूल (स) की सुन्नत के सबसे बड़े आलिम हैं, सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाले हैं और हर ज़माने में इमामत व ख़िलाफ़त के सबसे ज़्यादा हक़दार हैं, वही उरवतुल वुसक़ा हैं और वही मार्गदर्शन करने वाले मार्गदर्शक हैं, वही अल्लाह की तरफ़ से दुनिया वालों के लिये भेजे गये हैं, यहाँ तक ज़मीन और उस पर बसने वालों का सिलसिला अल्लाह तक पहुच जाये कि वही इस दुनिया का मालिक है और जिसने भी इन लोगों का विरोध किया वह भटका हुआ और भटकाने वाला है, हक़ को छोड़ देने वाला और मार्गदर्शन के रास्ते भटक जाने वाला है, यही लोग क़ुरआन की व्याख्या करने वाले और उसके प्रवक्ता हैं जो उनको पहचाने और उनकी मुहब्बत के बिना मर जाये उसकी मौत ज़ाहिलियत की मौत होगी। (तुहफ़ुल उक़ूल पेज 415, 208)
अब्दुल अज़ीम बिन अब्दुल्लाह हसनी का बयान है कि मैं इमाम अली नक़ी (अ) बिन मुहम्मद (अ) बिन अली (अ) बिन मूसा (अ) बिन जाफ़र (अ) बिन मुहम्मद (अ) बिन अली (अ) बिन हुसैन (अ) बिन अली (अ) बिन अबी तालिब (अ) की सेवा में हाज़िर हुआ तो आपने मुझे देख कर मरहबा (स्वागत है) कहा और फ़रमाया कि तुम हमारे सच्चे दोस्त हो।
मैंने कहा मैं आपके सामने अपनी सम्पूर्ण दीन पेश करना चाहता हूँ ताकि अगर वह सही हो तो मैं उसी पर बाक़ी रहूँ? इमाम (अ) फ़रमाया ज़रूर, मैंने कहा कि मैं इस बात को मानता हूँ कि अल्लाह एक है, उसके जैसा कोई नही है, वह अबताल और शबीह दोनो हदों से बाहर है, न जिस्म है न सूरत, न अर्ज़ है न जौहर, तमाम जिस्मों को जिस्म देने वाला और तमाम सूरतों का बनाने वाला है, अर्ज़ व जौहर का दोनो का बनाने वाला, हर चीज़ का पैदा करने वाला, मालिक, बनाने वाला और अविष्कार करने वाला है।
हज़रत मुहम्मद (स) उसके बंदे, रसूल (दूत) और आख़िरी नबी हैं, उनके बाद क़यामत तक कोई नबी आने वाला नही है, उनकी शरीयत (धर्म मार्ग) भी आख़िरी शरीयत है और उसके बाद कोई शरीयत (धर्म शास्त्र) आने वाली नही है।
और आपके बाद मार्गदर्शक, ख़लीफ़ा, इमाम, वली अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, उनके बाद इमाम हसन (अ), उनके बाद इमाम हुसैन (अ), फिर अली बिन हुसैन (अ) फिर मुहम्मद बिन अली (अ), फिर जाफ़र बिन मुहम्मद (अ), फिर मूसा बिन जाफ़र (अ) फिर अली बिन मूसा (अ) फिर मुहम्मद बिन अली उसके बाद आप।
हज़रत ने फ़रमाया कि मेरे बाद मेरा बेटा हसन (अ) और उसके बाद उसके उत्तराधिकारी के बारे में लोगों का क्या हाल होगा?
मैंने पूछा क्यों? फरमाया: इसलिये कि वह नज़र न आयेगा और उसका नाम लेना भी जायज़ नही होगा। यहाँ तक कि वह लोगों के सामने प्रकट हो जाये और ज़मीन को इंसाफ़ से उसी तरह से भर दे जिस तरह से वह पहले अत्याचार और ज़ुल्म से भर चुकी होगी।
मैंने कहा हुज़ूर मैंने उसका भी इक़रार कर लिया है और अब यह भी कहता हूँ कि जो उनका दोस्त हैं वही अपना दोस्त है और जो उनका दुश्मन है वह अपना भी दुश्मन है, उनकी बात मानना अल्लाह की बात मानना है और उनके आदेशों का उल्लघन अल्लाह के आदेशों को न मानना है।
और मेरा यह भी मानना है कि मेराज हक़ है, कब्र में होने वाला सवाल भी हक़ है, स्वर्ग व नर्क भी हक़ है, सिरात व मीज़ान भी हक़ है, क़यामत एक दिन अवश्य ही आने वाली है और ख़ुदा उस दिन सबको कब्रों से निकालेगा।
और मेरा यह भी मानना है कि अहले बैत (अ) की मुहब्बत के नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, जिहाद, अम्र बिल मारुफ़, नही अनिल मुन्कर, वाजिब हैं। हज़रत ने फ़रमाया: ऐ अबुल क़ासिम, ख़ुदा की क़सम यही वह दीन है जिसे ख़ुदावंदे आलम ने अपने बंदों के लिये पसंद किया है, तुम उस पर बाक़ी रहो, ख़ुदा वंदे आलम तुम्हे दुनिया व आख़िरत में उस पर बाक़ी रखे। (अमाली सदूक़ 278, 24, अत तौहीद 3781, कमालुद्दीन 379, रौज़तुल वायेज़ीन पेज 39, किफ़ायतुल असर 282 का अध्धयन करें।)