अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

ज़ुल्म के ख़िलाफ़ क़याम

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दुनिया में हर ख़ैर की बक़ा के लिये क़याम दरकार हैं इस जहान में किसी भी तरह का ख़ैर बग़ैर क़याम के नही रह सकता। इसी लिये हमारे तमाम अँबिया व औलिया ने शर पसंदी के ख़िलाफ़ हमेशा क़याम किया है जब कि उनके पास किसी तरह की दुनियावी ताक़त नही होती थी लेकिन फिर भी ज़ुल्म के मुक़ाबले में ख़ामोश नही रहते थे वह सिर्फ़ इतना ही नही कि बल्कि चेहर ए ज़ुल्म को बेनक़ाब करेक रुसवा व ज़लील कर दिया करते थे। यही वजह थी कि बड़े बड़े सलातीने ज़मन उनके क़याम से लरज़ उठते थे उनकी दरबारी ताक़तें तज़बज़ुब व इज़तेराब में पड़ जाती थी उनके ताज ठोकरों में आकर ज़र्रात का बुत बन जाते थे।

इसी लिये हज़रत अली (अ) ने फ़रमाया: ग़ालिब वह है जिसका ग़लबा खैर के वसीले से हो और वह शख़्स मग़लूब है जो शर के ज़रिये ग़ालिब हो। हाँलाकि ज़ाहिरी दुनिया की सारी ताक़तें ज़ालिम के साथ दिखाई देती हैं चाहे बातिन में उसके ख़िलाफ़ होती हों।

लिहाज़ा जब इमाम हुसैन (अ) ने अपने ज़माने में ज़ुल्म को सर उठाते देखा तो अपने बुज़ुर्ग वार के तरीक़ ए कार को अपनाते हुए उसके ख़िलाफ़ तारीख़ साज़ क़याम किया और ज़ुल्म व तख़्त व सल्तनत को हिला कर रख दिया। हज़रत इमाम हुसैन (अ) ने मदीने से निकलते वक़्त क़याम के असबाब इन अल्फ़ाज़ में फ़रमाए: जब कि अपने और ग़ैरों ने बहुत मशवरे भी दिये कि आप यह क़याम न कीजि़ये लेकिन आपकी दूर सर निगाहों ने बातिन का मुआयना करके इस तरह उनके जज़्बात का जवाब दिया:

हाँ जान लो ख़ुदा की क़सम मैं एक ज़र्रा भी उनके ज़ालिमाना और इस्तिबदादी रवय्ये का मुस्बत जवाब नही दूँगा यहाँ तक कि अपने ही ख़ून में रंगीन कर दिया जाऊँ और दीदारे ख़ुदा के लिये चला जाऊँ, आख़िरकार आपने क़याम किया और अपने ज़माने को दर्स भी दे दिया कि अगर इंसान चाहे तो तन्हा भी ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर सकता है बहुत से बहुत यह होगा कि वह मर जायेगा लेकिन उसकी आवाज़ क़यामत तक की आने वाली नस्लों के कानों तक टकराती रहेगीं। जबकि आज सारी दुनिया ने ज़ुल्म व बरबरियत के सामने अपने सर को झुका लिया था लेकिन जिन माओं को मीरास में उम्मे रबाब का हौसला नसीब हुआ था जब उन्होने अपने बच्चों को नामे अली असगऱ की लोरियाँ दीं और ख़ाके शिफ़ा को घुट्टी में मिला कर पिला दिया तो उनकी रगों में जज़्ब ए हुसैनी ज़ोर मारने लगा और उनकी माओं ने उनके सर पर हुसैनी कफ़न बाँध कर मैदान में भेजा तो वही ज़ु्ल्म व बरबरियत को शिकस्त देने से माद्दी दुनिया मायूस हो जायेगी।

अपनी शिकस्त का ऐलान करते हुए नज़र आया लिहाज़ा मकतबे हुसैनी के हर बच्चे को ज़ुल्म के ख़िलाफ़ और मज़लूमियत की हिमायत के लिये आवाज़ बुलंद करने पर हमेशा आमादा रहना चाहिये।

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