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इबादत के आसार

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1. दिल की नूरानियत

इबादत के आसार में से एक अहम असर यह है कि इबादत दिल को नूरानियत और सफ़ा अता करती है और दिल को तजल्लियाते ख़ुदा का महवर बना देती है। इमाम अलैहिस सलाम इस असर के बारे में फ़रमाते हैं:

इन्नल लाहा तआला जअलज ज़िक्रा जलाअन लिल क़ुलूब। (1)

ख़ुदा ने ज़िक्र यानी इबादत को दिलों की रौशनी क़रार दिया है। भरे दिल उसी रौशनी से क़ुव्वते समाअत और सुनने की क़ुव्वत हासिल करते हैं और नाबीना दिल बीना हो जाते हैं।

2. ख़ुदा की मुहब्बत

इबादत का दूसरा अहम असर यह है कि यह मुहब्बते ख़ुदा का ज़रिया है। इंसान महबूबे खुदा बन जाता है और ख़ुदा उस का महबूब बन जाता है। इमाम अलैहिस सलाम नहजुल बलाग़ा में फ़रमाते हैं:

ख़ुश क़िस्मत है वह इंसान है जो अपने परवरदिगार के फ़रायज़ को अंजाम देता है और मुश्किलात व मसायब को बरदाश्त करता है और रात को सोने से दूरी इख़्तियार करता है। (2)

इमाम अलैहिस सलाम के फ़रमान का मतलब यह है कि इंसान उन मुश्किलात को ख़ुदा की मुहब्बत की वजह से तहम्मुल करता है और मुहब्बते ख़ुदा दिल के अंदर न हो तो कोई शख़्स इन मुश्किलात को बर्दाश्त नही करेगा। जैसा कि एक और जगह पर इस अज़ीमुश शान किताब में फ़रमाते हैं:

बेशक इस ज़िक्र (इबादत) के अहल मौजूद हैं जो दुनिया के बजाए उसी का इंतेख़ाब करते हैं। (3)

यानी अहले इबादत वह लोग हैं जो मुहब्बते ख़ुदा की बेना पर दुनिया के बदले यादे ख़ुदा को ज़्यादा अहमियत देते हैं और दुनिया को अपना हम्म व ग़म नही बनाते बल्कि दुनिया को वसीला बना कर आला दर्जे की तलाश में रहते हैं।

3. गुनाहों का मिट जाना

गुनाहों का मिट जाना यह एक अहम असर है। इबादत के ज़रिये गुनाहों को ख़ुदा वंदे करीम अपनी उतूफ़त और मेहरबानी की बेना पर मिटा देता है। चूँ कि गुनाहों के ज़रिये इंसान का दिल सियाह हो जाता है और जब दिल उस मंज़िल पर पहुच जाये तो इंसान गुनाह को गुनाह ही नही समझता। जब कि इबादत व बंदगी और यादे ख़ुदा इंसान को गुनाहों की वादी से बाहर निकाल देती है। जैसा कि इमाम अलैहिस सलाम फ़रमाते हैं:

बेशक यह इबादत गुनाहों को इस तरह झाड़ देती है जैसे मौसमें ख़ज़ाँ में पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं। (4)

बाद में इमाम अलैहिस सलाम फ़रमाते हैं कि रसूले ख़ुदा (स) ने नमाज़ और इबादत को एक पानी के चश्मे से तशबीह दी है जिस के अंदर गर्म पानी हो और वह चश्मा किसी के घर के दरवाज़े पर मौजूद हो और वह शख़्स दिन रात पाँच मरतबा उस के अंदर ग़ुस्ल करे तो बदन की तमाम मैल व आलूदगी ख़त्म हो जायेगी, फ़रमाया नमाज़ भी इसी तरह ना पसंदीदा अख़लाक़ और गुनाहों को साफ़ कर देती है।

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1. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 222
2. नहजुल बलाग़ा ख़ुतब 45
3. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 222
4. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 199

 

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