हज में महिलाओं की भूमिका
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है...
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है। हज एक ऐसा मंच है जो महिलाओं को समाजिक स्तर पर नये अनुभव प्राप्त करने और अन्य लोगों के साथ व्यवहार की शैलियों से परिचित कराता है।
इस्लाम के सब से बड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में हज अधिवेशन, वर्ष में एक बार आयोजित होता है। हज के नियम व संस्कार कुछ इस प्रकार से हैं कि उसमें, लिंगभेद, जाति , पद व सामाजिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी लोगों को समान समझा गया है। सभी को हज के संस्कार करना होते हैं और स्वार्थ व अहंकार से निकलना होता है ताकि ईश्वर से निकट हुआ जा सके और स्वंय को एक नये मनुष्य के रूप में ढाला जा सके। हज संस्कारों में महिलाओं की प्रभावशाली व सराहनीय भूमिका स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ईश्वरीय धर्म के प्राचीन इतिहास में जिन महिलाओं को ईश्वर पर आस्था, उसके प्रति ज्ञान व उसकी पहचान का प्रतीक समझा गया, उनके साथ हज संस्कारों को कुछ इस प्रकार से जोड़ दिया गया है कि आज भी हज के बहुत से संस्कार और नियमों में उनकी झलक देखी जा सकती है।
हज अत्यन्त प्राचीन संस्कार है। मक्का नगर में काबा, पृथ्वी के पहले मुनष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के युग में बनाया गया था और उस समय से अब तक, एकेश्वरवादियों और ईश्वर में आस्था रखने वालों का उपासनास्थल रहा है। हज़रत इब्राहीम के युग में कि जब हज के अधिकांश संस्कारों की आधारशिला रखी गयी, सब से मुख्य भूमिका हज़रत हाजेरा नामक एक महान महिला ने निभाई। वे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पत्नी और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता हैं। उनकी महानता वास्तव में उन परीक्षाओं, संघर्षों, ईश्वर पर भरोसा और उसमें आस्था का परीणाम है जो उनके जीवन में जगह जगह देखने को मिलती है जिनकी याद मक्का के वातावरण और हज के संस्कार से दिलायी गयी है। मक्का के सूखे मरुस्थल में ईश्वर पर भरोसा और अपने पुत्र इस्माईल के लिए एक घूंट पानी के लिए इधर इधर व्याकुलता में हज़रत हाजरा का दौड़ना ईश्वरीय चिन्हों में गिना गया है। हज में हाजियों को सफ़ा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के मध्य दौड़ कर हज़रत हाजरा के उसी संघर्ष को याद करना और ईश्वर पर भरोसे में का पाठ लेना होता है। हज़रत हाजेरा ने यह सिखा दिया कि अकेलेपन और बेसहारा हो जाने के बाद किस प्रकार से कृपालु ईश्वर से आशा रखनी चाहिए।
यह कहा जा सकता है कि हज़रत इब्राहीम के साथ हज़रत हाजेरा की जीवनी, वास्तव में उपासना और ईश्वर पर आस्था का इतिहास है। निसंदेह हर मनुष्य किसी न किसी प्रकार इस तरह की परीक्षा का सामना करता है और यह परीक्षा कभी कभी बहुत कठिन होती है। इस स्थिति में संकटों और समस्याओं से निकलने के लिए, हज़रत इब्राहीम और हज़रत हाजेरा जैसे आदर्शों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। कु़रआने मजीद के सूरए मुमतहेना की आयत नंबर चार में कहा गया है कि तुम ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए अत्यन्त सराहनीय व अच्छी बात यह है कि इब्राहीम और उनके साथ रहने वालों का अनुसरण करो।
हज़रत हाजेरा की महानता का एक अन्य आयाम, ईश्वरीय आदेशों के सामने नतमस्तक होना है। जब उन्हें अपने बेटे इस्माईल की बलि चढ़ाने के ईश्वरीय आदेश का ज्ञान हुआ तो शैतानी बहकावा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। शैतान उनके पास गया कहने लगा कि इब्राहीम तुम्हारे बेटे को मार डालना चाहते हैं। हज़रत हाजेरा ने कहा कि क्या विश्व में एसा कोई है जो अपने ही बेटे को मार डाले? शैतान ने कहा वह दावा करते हैं कि यह ईश्वर का आदेश है। हज़रत हाजेरा ने कहा कि चूंकि यह ईश्वर का आदेश है इस लिए उसका पालन होना चाहिए। जो ईश्वर को पसन्द है मैं उसी में खुश हूं। ईश्वर के प्रति आस्था से परिपूर्ण हज़रत हाजेरा की इस बात ने उनकी महानता में चार चांद लगा दिये। आज हज़रत हाजेरा और हज़रत इस्माईल की क़ब्रें,हिजरे इस्माईल नामक स्थान पर ईश्वरीय दूतों के साथ हैं। यह स्थान काबे के पास ही गोलार्ध आकार में मौजूद है। जो हाजी काबे की परिक्रमा करना चाहते हैं उन्हें काबे के साथ ही इस स्थान की भी परिक्रमा करनी होती है इस प्रकार से वह महिला जो ईश्वरीय आदेश के कारण मरुस्थल में अकेली रही और जिसने ईश्वरीय आदेश को सह्रदय स्वीकार किया, अन्य लोगों के लिए आदर्श बन गयी। हज़रत हाजेरा पहली महिला हैं जिन्होंने काबे के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए उसके द्वार पर पर्दा डाला।
इस्लामी संस्कृति में यदि मनुष्य पवित्रता की सीढ़िया तय कर ले और महानता प्राप्त करने में सफल हो जाए तो वह अन्य लोगों के लिए आदर्श बन सकता है और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह महिला है या पुरुष। कु़रआने मजीद में चार आदर्श महिलाओं की बात की गयी है जिन्हें ईश्वर ने धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आदर्श कहा है। सूरए तहरीम की आयत नंबर ११ में कहा गया है और ईश्वर ने मोमिनों के लिए फिरऔन की पत्नी का उदाहरण दिया है जब उसने कहा हे पालनहार! तू मेरे लिए स्वर्ग में एक घर बना और मुझे नास्तिक फिरऔन, उसके चरित्र और अत्याचारी जाति से छुटकारा दिला।
इसके बाद की आयत में ईश्वर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की माता हज़रत मरयम को, जिनकी एसी विशेषताए हैं जो किसी अन्य में नहीं हैं, सभी महिलाओं व पुरुषों का आदर्श बताया गया है।
काबे के एक कोने में जिसे रुक्ने यमानी कहा जाता है, फातेमा बिन्ते असद नाम की एक अत्यन्त पवित्र महिला का चिन्ह देखा जा सकता है। वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम की माता हैं जिन्होंने अपने पुत्र के जन्म में सहायता के लिए काबे को सहारा बनाया था। इतिहासकारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा है कि अचानक काबे की दीवार फटी और फातेमा बिन्ते असद काबे के भीतर चली गयीं और तीन दिन बाद, अपने बच्चे को गोद में लिए उसी स्थान से बाहर निकलीं । यह वास्तव में ईश्वरीय संदेश के स्थान और काबे में महिलाओं के लिए एक अन्य सम्मान व गौरव है तथा इस से पवित्र महिलाओं की महानता व महत्व का भी पता चलता है।
इस्लाम के उदय के बाद कुछ तथ्य, महिलाओं के हज से परोक्ष व अपरोक्ष रूप से संबंध को दर्शाते हैं। हज़रत ख़दीजा वह एकमात्र महिला हैं जो इस्लाम के उदय के कठिन समय में पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ काबे में जाकर उपासना करती थीं। इन तीन हस्तियों ने क़ुरैश क़बीले की अनेकेश्वरवादी रीति रिवाजों के विपरीत एक नयी परंपरा की आधार शिला रखी और उसका प्रदर्शन किया। इस संस्कृति में महिला व पुरुष कांधे से कांधा मिलाकर अनन्य ईश्वर के घर काबे में जाते हैं। इस्लाम के विशेष नियमों के संकलन के यह आंरभिक क़दम, भविष्य में हज के व्यापक संस्कारों की भूमिका बने। इतिहास में महिलाओं के लिए यह भी एक गौरव लिख लिया गया है कि इस्लाम के उदय के दिनों में महिलाओं ने इस्लाम के विस्तार में पैगम्बरे इस्लाम के साथ भूमिका निभाई और काबे में इस्लामी संस्कृति की आधारशिला रखी। हज के दौरान महिलाओं द्वारा पैगम्बरे इस्लाम के समक्ष आज्ञापालन की प्रतिज्ञा भी महिलाओं की महानता का एक अन्य चिन्ह है। मक्का नगर में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ७३ साथियों के साथ मक्का के लोगों के साथ अक़बा नामक दूसरा जो समझौता किया था उस समय ७३ लोगों में कई महिलाएं शामिल थीं। इन लोगों ने आज्ञापालन की प्रतिज्ञा के लिए पैगम्बरे इस्लाम से समय मांगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने मिना के मैदान में आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का समय निर्धारित किया। उन लोगों ने १३ ज़िलहिज्जा की रात पैगम्बरे इस्लाम से बात की और मक्का के नास्तिकों की अत्याधिक संवेदनशीलता के बावजूद आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का यह कार्यक्रम आयोजित हुआ और बैअतुन्निसा के नाम से विख्यात हुआ। इस से हज में महिलाओं की भागीदारी जो उस समय तक प्रचलित नहीं थी, औपचारिक रूप से होने लगी। उसके बाद से महिलाएं भी पुरुषों के साथ काबे के पास पैगम्बरे इस्लाम की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा करती और विभिन्न स्तरों पर उपस्थित रहतीं।
हज करने वालों को जो अंतिम काम करना होता है उसे तवाफुन्निसा अर्थात स्त्रीपरिक्रमा कहा जाता है इस प्रकार से हज के संस्कार में महिलाओं का उल्लेख मुख्य रूप से किया गया है और यह वास्तव में उन लोगों का उत्तर है जो महिलाओं के बारे में इस्लामी नियमों की आलोचना करते हैं। इस स्त्रीपरिक्रमा के बहुत से आयाम हैं। प्रोफेसर हश्मतुल्लाह क़ंबरी इस संदर्भ में कहते हैं कि तवाफुन्निसा या स्त्रीपरिक्रमा का सब से साधारण संदेश यह है कि वह हाजी को ईश्वर द्वारा महिलाओं को प्रदान चार पदों के सम्मान और उसकी भावनाओं की सराहना की ओर बुलाता है। सब से पहला माता का है, माता, त्याग प्रेम व बलिदान का साक्षात रूप होती है। इसी लिए जब माता या माता पिता के अधिकारों की बात होती है तो ईश्वरीय मार्गदर्शक सब से पहले माता के अधिकारों पर ध्यान दिये जाने पर बल देते हैं। क्योंकि माता का स्थान, प्रशिक्षण में केन्द्रीय स्थान होता है। वह ईश्वर की कृपा की वर्षा का रूप होती है और उसके इस स्थान को सभी धर्मों में स्वीकार किया गया है। उसके बाद बहन का पद है। भाई के लिए बहन का प्रेम अदभुत होता है । तीसरा पद पत्नी का होता है जो वास्तव में अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। एक महिला, विवाह के ईश्वरीय आदेश का पालन करते हुए वास्तव में अपना सब कुछ दांव पर लगा देती है और एक एसे जीवन में क़दम रखती है जिसके बारे में उसे कुछ ही पता नहीं होता है कि आगे क्या होने वाला है। यह महान आत्मा व त्याग का प्रदर्शन है। चौथा पद बेटी का होता है। माता पिता से बेटी के असीम प्रेम को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । इन भावनाओं और त्याग व बलिदान का क्या मूल्य हो सकता है? हाजियों को महिला की इन पवित्र भावनाओं का सम्मान करना होता है।
इस प्रकार से महिलाओं के बारे में इस्लामी दृष्टिकोण अत्याधिक व्यापक और विशेष हैं और उसमें महिलाओं की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक भूमिकाओं को महत्व दिया गया है। महिलाओं के विषय में जो वस्तु इस्लाम को अन्य मतों से भिन्न करती है वह उनके सम्मान की रक्षा के लिए उसमें मौजूद अंतर व भिन्नता की विचारधारा है । यह अंतर व भिन्नता भेदभाव के अर्थ में कदापि नहीं है । हज ने हज़रत हाजेरा व हज़रत इब्राहीम के काल से लेकर अब तक महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किये हैं और दोनों के मानवीय व लैंगिक पहलुओं पर पूरी तरह से ध्यान दिया है। हज आज भी एक एसा उत्सव व कार्यक्रम है जहां महिलाओं को, सामाजिक स्तर पर नये अनुभव व अन्य लोगों के साथ व्यवहार की शैली सीखने की ओर बुलाया जाता है। इसी लिए हज महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनकी योग्यताओं में विकास के लिए कुरआन की संस्कृति के पुनर्जगारण का एक अवसर समझा जाता है।
(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)