इन्तेज़ार
2
”
عَزِیزٌ
عَلَیَّ
اٴنْ
اٴرَی
الخَلْقَ
وَ
لٰا
تُریٰ
“[17
]
वास्तव में मेरे लिए सख्त है कि मैं सब को तो देखूँ लेकिन आपकी ज़ियारत न कर सकूँ।
इन्तेज़ार के रास्ते पर चलने वाला आशिक हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के नाम से संबंधित परोग्रामों में सम्मिलित होता है ताकि अपने दिल में उनकी मुहब्बत की जड़ों को और अधिक मज़बूत करे। वह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के नाम से संबंधित पवित्र स्थानों पर ज़ियारत के लिए जाता है - जैसे मस्जिदे सहला
,मस्जिदे जमकरान
,और सामर्रा का वह तहख़ाना जिसमें से आप ग़ायब हुए थे।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की ज़िन्दगी में उनकी याद का बेहतरीन जलवा यह है कि वह हर दिन अपने इमाम (अ. स.) से वादा करें और उन्हें वफ़ादारी का वचन दे और अपने उस वचन पर बाक़ी रहने का ऐलान करें।
जैसा कि हम दुआ ए अहद के इन वाक्यों में पढते हैं कि :
अल्लाहुम्मा इन्नी उजद्दिदु लहु फ़ी सबीहते यौमी हाज़ा व मा इशतु मिन अय्यामी अहदंव व अकदंव व बै-अतन लहु फ़ी उनुक़ी ला अहूलु अन्हु वला अज़ूलु अ-ब-दा अल्लाहुम्मा इजअलनी मिन अंसारिहि व आवानिहि व अद्दाब्बीना अनहु व अल-मुसारि-ईना अलैहि फ़ी क़ज़ा ए हवाइजि-हि व अल-मुमतसिलीना लि-अवामिरिही व अल-मुहाम्मीना अन्हु व अस्साबिक़ीना इला इरा-दतिहि व अल-मुस-तश-हदीना बैना यदैहि।
”
اللّٰہُمَّ
إِنِّي
اٴُجَدِّدُ
لَہُ
فِي
صَبِیحَةِ
یَوْمِي
ہَذَا
وَ
مَا
عِشْتُ
مِنْ
اٴَیَّامِي
عَہْداً
وَ
عَقْدًا
وَ
بَیْعَةً
لَہُ
فِي
عُنُقِي
لاَ
اٴَحُولُ
عَنْہ
وَ
لاَ
اٴَزُولُ
اٴَبَداً،
اللّٰہُمَّ
اجْعَلْنِي
مِنْ
اٴَنْصَارِہِ
وَ
اٴَعْوَانِہِ
،
وَالذَّابِّینَ
عَنْہُ
وَ
الْمُسَارِعِینَ
إِلَیْہِ
فِي
قَضَاءِ
حَوَائِجِہِ
،
وَ
الْمُمْتَثِلِینَ
لاٴَوَامِرِہِ
،
وَ
الْمُحَامِینَ
عَنْہُ
،
وَ
السَّابِقِینَ
إِلیٰ
إِرَادَتِہِ
،
وَ
الْمُسْتَشْہَدِینَ
بَیْنَ
یَدَیْہِ
“ [18
]
ऐ अल्लाह ! मैं आज की सुब्ह और जब तक ज़िन्दा रहूँ
,हर सुब्ह उन की बैअत का अहद (प्रतिज्ञा) करता हूँ और उनकी यह बैअत मेरी गर्दन पर रहेगी न मैं इससे हट सकता हूँ और न कभी अलग हो सकता हूँ। ऐ अल्लाह ! मुझे उनके मददगारों
,उनका बचाव करने वालों
,उनकी ज़रूरतों को पूरा करने में तेज़ी से काम करने वालों
,उनके हुक्म की इताअत (आज्ञा पलन) करने वालों
,उनकी तरफ़ से बचाव करने वालों
,उनके मक़सदों की तरफ़ आगे बढ़ने वालों और उनके सामने शहीद होने वालों में से बना दे।
अगर कोई इंसान हमेशा इस अहद (प्रतिज्ञा) को पढ़ता रहे और दिल की गहराई से इसमें वर्णित शब्दों व वाक्यों का पाबन्द रहे तो कभी भी अपने इमाम की तरफ़ से लापरवाही नही करेगा। बल्कि वह हमेशा अपने इमाम की तमन्नाओं को पूरा करने और उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करेगा। सच तो यह है कि ऐसा ही इंसान उस हक़दार इमाम (अ. स.) के ज़हूर के वक़्त उनके मोर्चे पर हाज़िर होने की योग्यता रखता है।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
जो इंसान चालीस दिन तक सुब्ह के वक़्त अपने अल्लाह से यह अहद (प्रतिज्ञा) करे
,ख़ुदा उसे हमारे क़ाइम (अ. स.) के मददगारों में शामिल कर देगा और अगर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से पहले उसे मौत आ गई तो ख़ुदा वन्दे आलम उसे क़ब्र से उठायेगा ताकि वह हज़रत क़ाइम (अ. स.) की मदद करे।
हार्दिक एकता
इन्तेज़ार करने वाले गिरोह के हर इंसान को चाहिए कि वह अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के अलावा अपने इमाम हज़रत महदी (अ. स.) के उद्देश्यों व मक़सदों के बारे में एक ख़ास योजना तैयार करे। इसस से भी अधिक स्पष्ट रूप में इस तरह कहा जा सकता है कि इन्तेज़ार करने वालों के लिए ज़रुरी है कि वह उस रास्ते पर चलने की कोशिश करें जिस से उन का इमाम राज़ी व खुश हो।
अतः इन्तेज़ार करने वालों के लिए ज़रुरी है कि वह अपने इमाम से किये हुए बादों पर बाक़ी रहें ताकि इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के रास्ते हमवार हो जायें।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) अपने एक पैग़ाम में ऐसे लोगों के बारे में यह निम्न लिखित ख़ुश ख़बरी सुनाते हैं :
अगर हमारे शिया (ख़ुदा वन्दे आलम उन्हें अपनी आज्ञ पालन की तौफ़ीक प्रदान करे) अपने किये हुए वादों पर एक जुट हो जायें तो हमारी ज़ियारत की नेमत में देर नहीं होगी और पूरी व सच्ची पहचान व शनाख़्त के साथ जल्द ही हमारी मुलाक़ात हो जायेगी...[
19]
यह वादे वही है जिनका वर्णन अल्लाह की किताब और अल्लाह के नबियों व वलियों की हदीसों में हुआ है। हम यहाँ पर उनमें से कुछ निम्न लिखित महत्वपूर्ण चीज़ों की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।
1.जहाँ तक हो सके मासूम इमामों (अ. स.) की पैरवी करने की कोशिश करना और इमामों (अ. स.) के चाहने वालों से दोस्ती और उन के दुशमनों से दूरी व नफ़रत।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत करते हैं कि उन्होंने फरमाया :
खुश नसीब है वह इंसान जो मेरे क़ाइम को इस हाल में देखे कि उन के क़ियाम (आन्दोलन) से पहले ख़ुद उनकी और उन से पहले इमामों की पैरवी करे और उनके दुशमनों से दूरी व नफ़रत का ऐलान करे
,ऐसे इंसान मेरे दोस्त और मेरे साथी हैं और क़ियामत के दिन मेरे नज़दीक़ मेरी उम्मत के सब से महान इंसान होंगे...[
20]
2.इन्तेज़ार करने वालों को दीन में होने वाले परिवर्तनों
,बिदअतों और समाज में फैलती हुई अश्लीलताओं व बुराईयों से लापरवा नहीं रहना चाहिए
,बल्कि अच्छी सुन्नतों और अख़लाक़ी मर्यादाओं को ख़त्म होता देख उन्हें दोबारा ज़िन्दा करने की कोशिश करनी चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत है कि उन्होंने फ़रमाया : इस उम्मत के आखरी ज़माने में एक गिरोह ऐसा आयेगा कि उसका सवाब सर्व प्रथम इस्लाम क़बूल करने वालों की बराबर होगा और वह अम्र बिल मअरुफ और नही अनिल मुन्कर (अच्छे काम करने की सिफ़ारिश करना और बुरे कामों से रोकना) करेंगे और बुराईयाँ फैलाने वालों से जंग करेंगे...[
21]
3.ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की यह ज़िम्मेदारी है कि दूसरों के साथ सहयोग व मदद को अपनी योजनाओं का आधार बनायें और इन्तेज़ार करने वाले समाज के लोगों को चाहिए कि संकुचित दृष्टिकोण और स्वार्थता को छोड़ कर समाज के ग़रीब व निर्धन लोगों पर ध्यान दें और उनकी ओर से लापरवाही न करें।
शिओं के एक गिरोह ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) से कुछ नसीहतें करने की अपील की तो इमाम (अ. स.) ने फरमाया :
तुम में जो लोग मालदार हैं उन्हें चाहिए कि ग़रीबों की मदद करें और उनके साथ प्यार व मोहब्बत भरा व्यवहार करें और तुम सबको चाहिए कि आपस में एक दूसरे के बारे में अपने मन में अच्छे विचार रखो...[
22]
उल्लेखनीय बात यह है कि इस आपसी सहयोग व मदद का दाएरा अपने इलाक़े से मख़सूस नहीं है बल्कि इन्तेज़ार करने वालों की अच्छाईयाँ और नेकियाँ दूर दराज़ के इलाक़ों में भी पहुँचती है
,क्यों कि इन्तेज़ार के परचम के नीचे किसी भी तरह की जुदाई और अपने पराये का एहसास नहीं होता।
4.इन्तेज़ार करने वाले समाज के लिए ज़रुरी है कि समाज में महदवी रंग व बू पैदा करें। हर जगह उनके नाम और उनकी याद का परचम लहरायें और इमाम (अ. स.) के कलाम व किरदार को अपनी बात चीत और व्यवहार के ज़रिये सार्वजनिक करें। इस काम के लिए अपनी पूरी ताक़त के साथ कोशिश करनी चाहिए
,जो इस काम को करेंगे
,उन पर अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) का ख़ास करम होगा।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) के सहाबी
,अब्दुल हमीद वास्ती
,इमाम (अ. स.) की खिदमत में अर्ज़ करते हैं :
हम ने अम्र फरज (ज़हूर) के इन्तेज़ार में अपनी पूरी ज़िन्दगी वक्फ़ कर दी है और यह काम कुछ लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।
इमाम (अ. स.) ने जवाब में फरमाया :
ऐ अब्दुल हमीद ! क्या तुम यह सोचते हो कि जिस इंसान ने ख़ुद को ख़ुदा वन्दे आलम के लिए वक्फ़ कर दिया है
,ख़ुदा वन्दे आलम ने उस बन्दे के लिए मुशकिलों से निकलने का कोई रास्ता नहीं बनाया है
?!ख़ुदा की क़सम उसने ऐसे लोगों की मुश्किलों का हल बनाया है
,ख़ुदा वन्दे आलम रहमत करे उस इंसान पर जो हमारे अम्र (विलायत) को ज़िन्दा रखे...[
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आखरी बात यह कि इन्तेज़ार करने वाले समाज को यह कोशिश करनी चाहिए कि वह समस्त सामाजिक पहलुओं में दूसरे समाजों के लिए नमूना बने और इंसानियत को निजात व मुक्ति देने वाले के ज़हूर के लिए तमाम ज़रूरी रास्तों को हमवार करे।
इन्तेज़ार के प्रभाव
कुछ लोगों का यह विचार है कि विश्व स्तर पर सुधार करने वाले (इमाम (अ. स.) का इन्तेज़ार
,इंसानों को निष्क्रिय और लापरवाह बना देता है। जो लोग इस इन्तेज़ार में रहेंगे कि एक विश्वस्तरीय समाज सुधारक आयेगा और ज़ुल्म
,अत्याचार व बुराईयों को ख़त्म कर देगा
,तो वह बुराइयों के सामने हाथ पर हाथ रखे बैठे रहेंगे और ख़ुद कोई क़दम नहीं उठायें बल्कि खामोश बैठे ज़ुल्म व सितम का तमाशा देखते रहेंगे।
यह दृष्टिकोण बहुत सादा व निराधार है और इसमें गहराई से काम नहीं लिया गया है। क्योंकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के इन्तेज़ार
,उसकी विशेषताओं
,उसके पहलुओं और इन्तेज़ार करने वाले की विशेषताओं के बारे में जिन बातों का वर्णन हुआ है उनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का इन्तेज़ार इंसान को निष्क्रिय और लापरवाह नहीं बनाता है
,बल्कि उनकी गतिविधियों को तेज़ करने व उन्हें परिपक्व बनाने में सहायक है।
इन्तेज़ार
,इन्तेज़ार करने वालों में एक मुबारक व उद्देश्यपूर्ण जज़बा पैदा करता है। इन्तेज़ार करने वाला
,इन्तेज़ार की हक़ीक़त से जितना ज़्यादा परिचित होता जाता है
,उसकी रफ़्तार मक़सद की तरफ़ उतनी ही बढ़ती जाती है। इन्तेज़ार के अन्तर्गत
,इंसान स्वार्थता से आज़ाद हो कर ख़ुद को इस्लामी समाज का एक हिस्सा समझता है
,अतः फिर वह समाज सुधार के लिए जी जान से कोशिश करता है। जब कोई समाज ऐसे सोगों से सुसज्जित हो जाता है तो उस समाज में अच्छाईयों व मर्यादाओं का राज हो जाता और समाज के सभी लोग नेकियों की तरफ़ कदम बढ़ाने लगते हैं। जिस समाज में सुधार
,उम्मीद
,ख़ुशी और आपसी सहयोग
,सहानुभूति व हमदर्दी का महौल पाया जाता है उसमें घार्मिक विश्वास फलते फूलते हैं और लोगों में महदवियत का नज़रीया पैदा होता है। इन्तेज़ार की बरकत से इन्तेज़ार करने वाले
,बुराईयों के दलदल में नहीं फँसते बल्कि अपने दीन और अक़ीदों की हिफ़ाज़त करते हैं। वह इन्तेज़ार के ज़माने में अपने सामने आने वाली मुश्किलों में सब्र से काम लेते हैं और ख़ुदा वन्दे आलम का वादा पूरा होने की उम्मीद में हर मुसीबत और परेशानी को बर्दाश्त कर लेते हैं। वह किसी भी वक़्त सुस्ती और मायूसी का शिकार नहीं होते।
आप ही बताईये कि ऐसा कौन सा धर्म व मज़हब है जिसने अपने अनुयायियों के सामने इतना साफ़ व रौशन रास्ता पेश किया है
? !ऐसा रास्ता जो अल्लाह की ललक में तय किया जाता हो और उस के नतीजे में हद से ज़्यादा सवाब व ईनाम मिलता हो !।
इन्तेज़ार करने वालों का सवाब
खुश नसीब है वह इंसान जो अच्छाईयों व नेकियों के इन्तेज़ार में अपनी आँखे बिछाये हुए हैं। वास्तव उन लोगों के लिए कितना ज़्यादा सवाब है जो हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विश्वव्यापी हुकूमत का इन्तेज़ार कर रहे हैं। और कितना बड़ा रुत्बा है उन लोगों का जो क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) के सच्चे मुन्तज़िर हैं।
हम उचित समझते हैं कि इन्तेज़ार नामक इस अध्याय के अन्त में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की उच्च श्रेष्ठताओं व मान सम्मान का वर्णन करें और इस संदर्भ में मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों को आप लोगों के सामने पेश करें।
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) फरमाते हैं :
"खुश नसीब हैं क़ाइमे आले मुहम्मद के वह शिआ जो ग़ैबत के ज़माने में उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करें और उनके ज़हूर के ज़माने में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए उनकी पैरवी करें। यही लोग ख़ुदा वन्दे आलम के महबूब (प्रियः) बंदे हैं और उनके लिए कोई दुखः दर्द न होगा...। "[
24]
वास्तव में इस से बढ़ कर और क्या गर्व होगा कि उनके सीने पर ख़ुदा वन्दे आलम की दोस्ती का तम्ग़ा लगा हुआ है।वह किसी दुखः दर्द में कैसे घिर सकते हैं
,जबकि कि उनकी ज़िन्दगी और मौत दोनों की क़ीमत बहुत ज़्यादा है।
हज़रत इमाम सज्जाद (अ. स.) फरमाते हैं कि
"जो इंसान हमारे क़ाइम (अ.स.) की ग़ैबत के ज़माने में हमारी विलायत (मुब्बत) पर बाक़ी रहेगा
,ख़ुदा वन्दे आलम उसे शुहदा ए बद्र व ओहद के हज़ार शहीदों का सवाब प्रदान करेगा... "[
25]
जी हाँ ! ग़ैबत के ज़माने में अपने इमामे ज़माना (अ. स.) की विलायत पर और अपने इमाम से किये हुए वादों पर बाक़ी रहने वाले लोग
,ऐसे फौजी हैं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के साथ मिल कर अल्लाह के दुशमनों से जंग की हो और जंग के मैदान में अपने खून में नहाये हों।
वह मुन्तज़िर जो रसूल (स.) के इस महान बेटे
,इमाम ज़माना (अ. स.) के इन्तेज़ार में अपनी जान हथेली पर लिए खड़े हुए हैं
,वह अभी से जंग के मैदान में अपने इमाम के साथ मौजूद हैं।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं :
अगर तुम शिओं में से कोई इंसान हज़रत इमाम महदी अ. स. के ज़हूर के इन्तेज़ार में मर जाये तो ऐसा है जैसे वह अपने इमाम (अ. स.) के ख़ेमे में है।---- यह कह कर इमाम (अ. स.) थोड़ी देर के लिए ख़ामोश रहे फिर फरमाया : बल्कि उस इंसान की तरह है जिसने इमाम (अ. स.) के साथ मिल कर जंग में तलवार चलाई हो। इस के बाद फरमाया : नहीं
,ख़ुदा की क़सम वह उस इंसान की मिस्ल है जिसने रसूले इस्लाम (स.) के सामने शहादत पाई हो...[
26]
यह वह लोग हैं जिन को पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने सदियों पहले अपना भाई और दोस्त कहा है और उन से अपनी दिली मुहब्बत और दोस्ती का ऐलान किया है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपने असहाब के सामने अल्लाह से दुआ की : पालने वाले ! मुझे मेरे भाइयों को दिखला दे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने इस वाक्य को दो बार कहा। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के असहाब ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या हम आप के भाई नहीं हैं
?!
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया कि तुम लोग मेरे असहाब हो और मेरे भाई वह लोग हैं जो आख़िरी ज़माने में मुझ पर ईमान लायेंगे
,जबकि उन्होंने मुझे नहीं देखा होगा। ख़ुदा वन्दे आलम ने मुझे उनके नाम उनके बापों के नाम के साथ बतायें हैं। उनमें से हर एक का अपने दीन पर अडिग व साबित क़दम रहना अंधेरी रात में गोन नामक पेड़ से कांटा तोड़ने और दहकती हुई आग को हाथ में लेने से भी ज़्यादा सख्त है। वह हिदायत की मशाल हैं ख़ुदा वन्दे आलम उनको खतरनाक बुराईयों से निजात व छुटकारा देगा...[
27]
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने यह भी फरमाया :
खुश नसीब हैं वह इंसान जो हम अलेबैत के क़ाइम से इस हाल में मिले
,कि उनके क़ियाम से पहले उनकी पैरवी करते हों
,उन के दोस्तों को दोस्त रखता हों और उनके दुशमनों से दूर रहता हों व नफ़रत करता हों
,वह उनसे पहले इमामों को भी दोस्त रखता हों
,उनके दिलों में मेरी दोस्ती
,मवद्दत व मुहब्बत हो तो वह मेरे नज़दीक मेरी उम्मत के सब से आदरनीय इंसान हैं...।[
28]
अतः जो इंसान पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के नज़दीक़ इतने प्रियः व महान हैं
,वही ख़ुदा वन्दे आलम के संबोधन को सुनेगें
,ऐसी आवाज़ को जो इशक व मुहब्बत में डूबी होगी और जो ख़ुदा वन्दे आलम से बहुत अधिक नज़दीक होने का इशारा करती होगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :
एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिनों का इमाम गायब होगा
,अतः खुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी विलायत पर साबित क़दम रहे। बेशक उनका कम से कम ईनाम यह होगा कि ख़ुदा वन्दे आलम उनसे संबोधन करेगा कि ऐ मेरे बन्दो तुम मेरे राज़ और इमाम गायब पर ईमान लाये हो और तुम ने उसकी तस्दीक की है
,अतः मेरी तरफ़ से बेहतरीन ईमान की ख़ुश ख़बरी है
,तुम हक़ीक़त में मेरे बन्दे हो
,मैं तुम्हारे आमाल को क़बूल करता हूँ और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ करता हूँ
,मैं तुम्हारी बरकत की वजह से अपने बन्दों पर बारिश नाज़िल करता हूँ और उनसे बलाओं को दूर करता हूँ
,अगर तुम उन लोगों के बीच न होते तो मैं गुनहगार लोगों पर ज़रुर अज़ाब नाज़िल कर देता...।[
29]
लेकिन इन इन्तेज़ार करने वालों को किस चीज़ के ज़रिये आराम व सकून मिलेगा है
,उनके इन्तेज़ार की घड़ियां कब खत्म होगी
,किस चीज़ से उनकी आँखों को ठंडक मिलेगी
,उनके बेकरार दिलों को कब चैन व सकून मिलेगा
,क्या जो लोग उम्र भर इन्तेज़ार के रास्ते पर चले है और जो हर तरह की मुश्किलों को बर्दाश्त करते हुए इसी रास्ते पर इस लिए चलते हैं ताकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के हरे भरे चमन में क़दम रखें और अपने प्रियः मौला के साथ बैठें। वाकिअन इस से बेहतरीन और क्या अंजाम हो सकता है और इस से बेहतर और कौन सा मौक़ा हो सकता है।
हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ. स.) ने फरमाया :
खुश नसीब हैं हमारे वह शिया जो हमारे क़ाइम की ग़ैबत के ज़माने में हमारी दोस्ती की रस्सी को मज़बूती से थामे रखें और हमारे दुशमनों से दूर रहें। वह हम से हैं और हम उनसे हैं। वह हमारी इमामत पर राज़ी हैं और हमारी इमामत को क़बूल करते हैं
,अतः हम भी उनके शिआ होने से ख़ुश व राज़ी हैं
,वह बहुत ख़ुश नसीब हैं !! ख़ुदा की क़सम यह इंसान क़ियामत के दिन हमारे साथ हमारे दर्जे में होंगे...[
30]