शिकवा
क्यूँ ज़याँ - कार बनूँ सूद - फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र - ए - फ़र्दा न करूँ महव - ए - ग़म - ए - दोश रहूँ
नाले बुलबुल के सुनूँ और हमा - तन गोश रहूँ
हम - नवा मैं भी कोई गुल हूँ कि ख़ामोश रहूँ
जुरअत - आमोज़ मिरी ताब - ए - सुख़न है मुझ को
शिकवा अल्लाह से ख़ाकम - ब - दहन है मुझ को
है बजा शेवा - ए - तस्लीम में मशहूर हैं हम
क़िस्सा - ए - दर्द सुनाते हैं कि मजबूर हैं हम
साज़ ख़ामोश हैं फ़रियाद से मामूर हैं हम
नाला आता है अगर लब पे तो माज़ूर हैं हम
ऐ ख़ुदा शिकवा - ए - अर्बाब - ए - वफ़ा भी सुन ले
ख़ूगर - ए - हम्द से थोड़ा सा गिला भी सुन ले
थी तो मौजूद अज़ल से ही तिरी ज़ात - ए - क़दीम
फूल था ज़ेब - ए - चमन पर न परेशाँ थी शमीम
शर्त इंसाफ़ है ऐ साहिब - ए - अल्ताफ़ - ए - अमीम
बू - ए - गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम
हम को जमईयत - ए - ख़ातिर ये परेशानी थी
वर्ना उम्मत तिरे महबूब की दीवानी थी
हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मस्जूद थे पत्थर कहीं माबूद शजर
ख़ूगर - ए - पैकर - ए - महसूस थी इंसाँ की नज़र
मानता फिर कोई अन - देखे ख़ुदा को क्यूँकर
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तिरा
क़ुव्वत - ए - बाज़ू - ए - मुस्लिम ने किया काम तिरा
बस रहे थे यहीं सल्जूक़ भी तूरानी भी
अहल - ए - चीं चीन में ईरान में सासानी भी
इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी
इसी दुनिया में यहूदी भी थे नसरानी भी
पर तिरे नाम पे तलवार उठाई किस ने
बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किस ने
थे हमीं एक तिरे मारका - आराओं में
ख़ुश्कियों में कभी लड़ते कभी दरियाओं में
दीं अज़ानें कभी यूरोप के कलीसाओं में
कभी अफ़्रीक़ा के तपते हुए सहराओं में
शान आँखों में न जचती थी जहाँ - दारों की
कलमा पढ़ते थे हमीं छाँव में तलवारों की
हम जो जीते थे तो जंगों की मुसीबत के लिए
और मरते थे तिरे नाम की अज़्मत के लिए
थी न कुछ तेग़ज़नी अपनी हुकूमत के लिए
सर - ब - कफ़ फिरते थे क्या दहर में दौलत के लिए
क़ौम अपनी जो ज़र - ओ - माल - ए - जहाँ पर मरती
बुत - फ़रोशीं के एवज़ बुत - शिकनी क्यूँ करती
टल न सकते थे अगर जंग में अड़ जाते थे
पाँव शेरों के भी मैदाँ से उखड़ जाते थे
तुझ से सरकश हुआ कोई तो बिगड़ जाते थे
तेग़ क्या चीज़ है हम तोप से लड़ जाते थे
नक़्श - ए - तौहीद का हर दिल पे बिठाया हम ने
ज़ेर - ए - ख़ंजर भी ये पैग़ाम सुनाया हम ने
तू ही कह दे कि उखाड़ा दर - ए - ख़ैबर किस ने
शहर क़ैसर का जो था उस को किया सर किस ने
तोड़े मख़्लूक़ ख़ुदावंदों के पैकर किस ने
काट कर रख दिए कुफ़्फ़ार के लश्कर किस ने
किस ने ठंडा किया आतिश - कदा - ए - ईराँ को
किस ने फिर ज़िंदा किया तज़्किरा - ए - यज़्दाँ को
कौन सी क़ौम फ़क़त तेरी तलबगार हुई
और तेरे लिए ज़हमत - कश - ए - पैकार हुई
किस की शमशीर जहाँगीर जहाँ - दार हुई
किस की तकबीर से दुनिया तिरी बेदार हुई
किस की हैबत से सनम सहमे हुए रहते थे
मुँह के बल गिर के हू - अल्लाहू - अहद कहते थे
आ गया ऐन लड़ाई में अगर वक़्त - ए - नमाज़
क़िबला - रू हो के ज़मीं - बोस हुई क़ौम - ए - हिजाज़
एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज़
न कोई बंदा रहा और न कोई बंदा - नवाज़
बंदा ओ साहब ओ मोहताज ओ ग़नी एक हुए
तेरी सरकार में पहुँचे तो सभी एक हुए
महफ़िल - ए - कौन - ओ - मकाँ में सहर ओ शाम फिरे
मय - ए - तौहीद को ले कर सिफ़त - ए - जाम फिरे
कोह में दश्त में ले कर तिरा पैग़ाम फिरे
और मालूम है तुझ को कभी नाकाम फिरे
दश्त तो दश्त हैं दरिया भी न छोड़े हम ने
बहर - ए - ज़ुल्मात में दौड़ा दिए घोड़े हम ने
सफ़्हा - ए - दहर से बातिल को मिटाया हम ने
नौ - ए - इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया हम ने
तेरे काबे को जबीनों से बसाया हम ने
तेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया हम ने
फिर भी हम से ये गिला है कि वफ़ादार नहीं
हम वफ़ादार नहीं तू भी तो दिलदार नहीं
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त - ए - मय - ए - पिंदार भी हैं
उन में काहिल भी हैं ग़ाफ़िल भी हैं हुश्यार भी हैं
सैकड़ों हैं कि तिरे नाम से बे - ज़ार भी हैं
रहमतें हैं तिरी अग़्यार के काशानों पर
बर्क़ गिरती है तो बेचारे मुसलामानों पर
बुत सनम - ख़ानों में कहते हैं मुसलमान गए
है ख़ुशी उन को कि काबे के निगहबान गए
मंज़िल - ए - दहर से ऊँटों के हुदी - ख़्वान गए
अपनी बग़लों में दबाए हुए क़ुरआन गए
ख़ंदा - ज़न कुफ़्र है एहसास तुझे है कि नहीं
अपनी तौहीद का कुछ पास तुझे है कि नहीं
ये शिकायत नहीं हैं उन के ख़ज़ाने मामूर
नहीं महफ़िल में जिन्हें बात भी करने का शुऊर
क़हर तो ये है कि काफ़िर को मिलें हूर ओ क़ुसूर
और बेचारे मुसलमाँ को फ़क़त वादा - ए - हूर
अब वो अल्ताफ़ नहीं हम पे इनायात नहीं
बात ये क्या है कि पहली सी मुदारात नहीं
क्यूँ मुसलामानों में है दौलत - ए - दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब
तू जो चाहे तो उठे सीना - ए - सहरा से हबाब
रह - रव - ए - दश्त हो सैली - ज़दा - ए - मौज - ए - सराब
तान - ए - अग़्यार है रुस्वाई है नादारी है
क्या तिरे नाम पे मरने का एवज़ ख़्वारी है
बनी अग़्यार की अब चाहने वाली दुनिया
रह गई अपने लिए एक ख़याली दुनिया
हम तो रुख़्सत हुए औरों ने सँभाली दुनिया
फिर न कहना हुई तौहीद से ख़ाली दुनिया
हम तो जीते हैं कि दुनिया में तिरा नाम रहे
कहीं मुमकिन है कि साक़ी न रहे जाम रहे
तेरी महफ़िल भी गई चाहने वाले भी गए
शब की आहें भी गईं सुब्ह के नाले भी गए
दिल तुझे दे भी गए अपना सिला ले भी गए
आ के बैठे भी न थे और निकाले भी गए
आए उश्शाक़ गए वादा - ए - फ़र्दा ले कर
अब उन्हें ढूँड चराग़ - ए - रुख़ - ए - ज़ेबा ले कर
दर्द - ए - लैला भी वही क़ैस का पहलू भी वही
नज्द के दश्त ओ जबल में रम - ए - आहू भी वही
इश्क़ का दिल भी वही हुस्न का जादू भी वही
उम्मत - ए - अहमद - ए - मुर्सिल भी वही तू भी वही
फिर ये आज़ुर्दगी - ए - ग़ैर सबब क्या मअ
'नी
अपने शैदाओं पे ये चश्म - ए - ग़ज़ब क्या मअ
'नी
तुझ को छोड़ा कि रसूल - ए - अरबी को छोड़ा
बुत - गरी पेशा किया बुत - शिकनी को छोड़ा
इश्क़ को इश्क़ की आशुफ़्ता - सरी को छोड़ा
रस्म - ए - सलमान ओ उवैस - ए - क़रनी को छोड़ा
आग तकबीर की सीनों में दबी रखते हैं
ज़िंदगी मिस्ल - ए - बिलाल - ए - हबशी रखते हैं
इश्क़ की ख़ैर वो पहली सी अदा भी न सही
जादा - पैमाई - ए - तस्लीम - ओ - रज़ा भी न सही
मुज़्तरिब दिल सिफ़त - ए - क़िबला - नुमा भी न सही
और पाबंदी - ए - आईन - ए - वफ़ा भी न सही
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
सर - ए - फ़ाराँ पे किया दीन को कामिल तू ने
इक इशारे में हज़ारों के लिए दिल तू ने
आतिश - अंदोज़ किया इश्क़ का हासिल तू ने
फूँक दी गर्मी - ए - रुख़्सार से महफ़िल तू ने
आज क्यूँ सीने हमारे शरर - आबाद नहीं
हम वही सोख़्ता - सामाँ हैं तुझे याद नहीं
वादी - ए - नज्द में वो शोर - ए - सलासिल न रहा
क़ैस दीवाना - ए - नज़्ज़ारा - ए - महमिल न रहा
हौसले वो न रहे हम न रहे दिल न रहा
घर ये उजड़ा है कि तू रौनक़ - ए - महफ़िल न रहा
ऐ ख़ुशा आँ रोज़ कि आई ओ ब - सद नाज़ आई
बे - हिजाबाना सू - ए - महफ़िल - ए - मा बाज़ आई
बादा - कश ग़ैर हैं गुलशन में लब - ए - जू बैठे
सुनते हैं जाम - ब - कफ़ नग़्मा - ए - कू - कू बैठे
दौर हंगामा - ए - गुलज़ार से यकसू बैठे
तेरे दीवाने भी हैं मुंतज़िर - ए - हू बैठे
अपने परवानों को फिर ज़ौक़ - ए - ख़ुद - अफ़रोज़ी दे
बर्क़ - ए - देरीना को फ़रमान - ए - जिगर - सोज़ी दे
क़ौम - ए - आवारा इनाँ - ताब है फिर सू - ए - हिजाज़
ले उड़ा बुलबुल - ए - बे - पर को मज़ाक़ - ए - परवाज़
मुज़्तरिब - बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू - ए - नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना - ए - मिज़राब है साज़
नग़्मे बेताब हैं तारों से निकलने के लिए
तूर मुज़्तर है उसी आग में जलने के लिए
मुश्किलें उम्मत - ए - मरहूम की आसाँ कर दे
मोर - ए - बे - माया को हम - दोश - ए - सुलेमाँ कर दे
जींस - ए - ना - याब - ए - मोहब्बत को फिर अर्ज़ां कर दे
हिन्द के दैर - नशीनों को मुसलमाँ कर दे
जू - ए - ख़ूँ मी चकद अज़ हसरत - ए - दैरीना - ए - मा
मी तपद नाला ब - निश्तर कद - ए - सीना - ए - मा
बू - ए - गुल ले गई बैरून - ए - चमन राज़ - ए - चमन
क्या क़यामत है कि ख़ुद फूल हैं ग़म्माज़ - ए - चमन
अहद - ए - गुल ख़त्म हुआ टूट गया साज़ - ए - चमन
उड़ गए डालियों से ज़मज़मा - पर्दाज़ - ए - चमन
एक बुलबुल है कि महव - ए - तरन्नुम अब तक
उस के सीने में है नग़्मों का तलातुम अब तक
क़ुमरियाँ शाख़ - ए - सनोबर से गुरेज़ाँ भी हुईं
पत्तियाँ फूल की झड़ झड़ के परेशाँ भी हुईं
वो पुरानी रविशें बाग़ की वीराँ भी हुईं
डालियाँ पैरहन - ए - बर्ग से उर्यां भी हुईं
क़ैद - ए - मौसम से तबीअत रही आज़ाद उस की
काश गुलशन में समझता कोई फ़रियाद उस की
लुत्फ़ मरने में है बाक़ी न मज़ा जीने में
कुछ मज़ा है तो यही ख़ून - ए - जिगर पीने में
कितने बेताब हैं जौहर मिरे आईने में
किस क़दर जल्वे तड़पते हैं मिरे सीने में
इस गुलिस्ताँ में मगर देखने वाले ही नहीं
दाग़ जो सीने में रखते हों वो लाले ही नहीं
चाक इस बुलबुल - ए - तन्हा की नवा से दिल हों
जागने वाले इसी बाँग - ए - दिरा से दिल हों
यानी फिर ज़िंदा नए अहद - ए - वफ़ा से दिल हों
फिर इसी बादा - ए - दैरीना के प्यासे दिल हों
अजमी ख़ुम है तो क्या मय तो हिजाज़ी है मिरी
नग़्मा हिन्दी है तो क्या लय तो हिजाज़ी है मिरी
शुआ-
ए-
उम्मीद
सूरज ने दिया अपनी शुआओं को ये पैग़ाम
दुनिया है अजब चीज़ कभी सुब्ह कभी शाम
मुद्दत से तुम आवारा हो पहना - ए - फ़ज़ा में
बढ़ती ही चली जाती है बे - मेहरी - ए - अय्याम
ने रेत के ज़र्रों पे चमकने में है राहत
ने मिस्ल - ए - सबा तौफ़ - ए - गुल - ओ - लाला में आराम
फिर मेरे तजल्ली - कदा - ए - दिल में समा जाओ
छोड़ो चमनिस्तान ओ बयाबान ओ दर - ओ - बाम
सर-
गुज़िश्त-
ए-
आदम
सुने कोई मिरी ग़ुर्बत की दास्ताँ मुझ से
भुलाया क़िस्सा - ए - पैमान - ए - अव्वलीं में ने
लगी न मेरी तबीअत रियाज़ - ए - जन्नत में
पिया शुऊर का जब जाम - ए - आतिशीं मैं ने
रही हक़ीक़त - ए - आलम की जुस्तुजू मुझ को
दिखाया ओज - ए - ख़याल - ए - फ़लक - नशीं मैं ने
मिला मिज़ाज - ए - तग़य्युर - पसंद कुछ ऐसा
किया क़रार न ज़ेर - ए - फ़लक कहीं मैं ने
निकाला काबे से पत्थर की मूरतों को कभी
कभी बुतों को बनाया हरम - नशीं मैं ने
कभी मैं ज़ौक़ - ए - तकल्लुम में तूर पर पहुँचा
छुपाया नूर - ए - अज़ले ज़ेर - ए - आस्तीं मैं ने
कभी सलीब पे अपनों ने मुझ को लटकाया
किया फ़लक को सफ़र छोड़ कर ज़मीं मैं ने
कभी मैं ग़ार - ए - हीरा में छुपा रहा बरसों
दिया जहाँ को कभी जाम - ए - आख़िरीं मैं ने
सुनाया हिन्द में आ कर सुरूद - ए - रब्बानी
पसंद की कभी यूनाँ की सरज़मीं मैं ने
दयार - ए - हिन्द ने जिस दम मिरी सदा न सुनी
बसाया ख़ित्ता - ए - जापान ओ मुल्क - ए - चीं मैं ने
बनाया ज़र्रों की तरकीब से कभी आलम
ख़िलाफ़ - ए - मअ
'नी - ए - तालीम - ए - अहल - ए - दीं मैं ने
लहू से लाल किया सैकड़ों ज़मीनों को
जहाँ मैं छेड़ के पैकार - ए - अक़्ल - ओ - दीं मैं ने
समझ में आई हक़ीक़त न जब सितारों की
इसी ख़याल में रातें गुज़ार दीं मैं ने
डरा सकीं न कलीसा की मुझ को तलवारें
सिखाया मसअला - ए - गर्दिश - ए - ज़मीं मैं ने
कशिश का राज़ हुवैदा किया ज़माने पर
लगा के आईना - ए - अक़्ल - ए - दूर - बीं मैं ने
किया असीर शुआओं को बर्क़ - ए - मुज़्तर को
बना दी ग़ैरत - ए - जन्नत ये सरज़मीं मैं ने
मगर ख़बर न मिली आह राज़ - ए - हस्ती की
किया ख़िरद से जहाँ को तह - ए - नगीं मैं ने
हुई जो चश्म - ए - मज़ाहिर - परस्त वा आख़िर
तो पाया ख़ाना - ए - दिल में उसे मकीं मैं ने
साक़ी-
नामा
हुआ ख़ेमा - ज़न कारवान - ए - बहार
इरम बन गया दामन - ए - कोह - सार
गुल ओ नर्गिस ओ सोसन ओ नस्तरन
शहीद - ए - अज़ल लाला - ख़ूनीं कफ़न
जहाँ छुप गया पर्दा - ए - रंग में
लहू की है गर्दिश रग - ए - संग में
फ़ज़ा नीली नीली हवा में सुरूर
ठहरते नहीं आशियाँ में तुयूर
वो जू - ए - कोहिस्ताँ उचकती हुई
अटकती लचकती सरकती हुई
उछलती फिसलती सँभलती हुई
बड़े पेच खा कर निकलती हुई
रुके जब तो सिल चीर देती है ये
पहाड़ों के दिल चीर देती है ये
ज़रा देख ऐ साक़ी - ए - लाला - फ़ाम
सुनाती है ये ज़िंदगी का पयाम
पिला दे मुझे वो मय - ए - पर्दा - सोज़
कि आती नहीं फ़स्ल - ए - गुल रोज़ रोज़
वो मय जिस से रौशन ज़मीर - ए - हयात
वो मय जिस से है मस्ती - ए - काएनात
वो मय जिस में है सोज़ - ओ - साज़ - ए - अज़ल
वो मय जिस से खुलता है राज़ - ए - अज़ल
उठा साक़िया पर्दा इस राज़ से
लड़ा दे ममूले को शहबाज़ से
ज़माने के अंदाज़ बदले गए
नया राग है साज़ बदले गए
हुआ इस तरह फ़ाश राज़ - ए - फ़रंग
कि हैरत में है शीशा - बाज़ - ए - फ़रंग
पुरानी सियासत - गरी ख़्वार है
ज़मीं मीर ओ सुल्ताँ से बे - ज़ार है
गया दौर - ए - सरमाया - दार गया
तमाशा दिखा कर मदारी गया
गिराँ ख़्वाब चीनी सँभलने लगे
हिमाला के चश्मे उबलने लगे
दिल - ए - तूर - ए - सीना - ओ - फ़ारान दो - नीम
तजल्ली का फिर मुंतज़िर है कलीम
मुसलमाँ है तौहीद में गरम - जोश
मगर दिल अभी तक है ज़ुन्नार - पोश
तमद्दुन तसव्वुफ़ शरीअत - ए - कलाम
बुतान - ए - अजम के पुजारी तमाम
हक़ीक़त ख़ुराफ़ात में खो गई
ये उम्मत रिवायात में खो गई
लुभाता है दिल को कलाम - ए - ख़तीब
मगर लज़्ज़त - ए - शौक़ से बे - नसीब
बयाँ इस का मंतिक़ से सुलझा हुआ
लुग़त के बखेड़ों में उलझा हुआ
वो सूफ़ी कि था ख़िदमत - ए - हक़ में मर्द
मोहब्बत में यकता हमीयत में फ़र्द
अजम के ख़यालात में खो गया
ये सालिक मक़ामात में खो गया
बुझी इश्क़ की आग अंधेर है
मुसलमाँ नहीं राख का ढेर है
शराब - ए - कुहन फिर पिला साक़िया
वही जाम गर्दिश में ला साक़िया
मुझे इश्क़ के पर लगा कर उड़ा
मिरी ख़ाक जुगनू बना कर उड़ा
ख़िरद को ग़ुलामी से आज़ाद कर
जवानों को पीरों का उस्ताद कर
हरी शाख़ - ए - मिल्लत तिरे नम से है
नफ़स इस बदन में तिरे दम से है
तड़पने फड़कने की तौफ़ीक़ दे
दिल - ए - मुर्तज़ा सोज़ - ए - सिद्दीक़ दे
जिगर से वही तीर फिर पार कर
तमन्ना को सीनों में बेदार कर
तिरे आसमानों के तारों की ख़ैर
ज़मीनों के शब ज़िंदा - दारों की ख़ैर
जवानों को सोज़ - ए - जिगर बख़्श दे
मिरा इश्क़ मेरी नज़र बख़्श दे
मिरी नाव गिर्दाब से पार कर
ये साबित है तो इस को सय्यार कर
बता मुझ को असरार - ए - मर्ग - ओ - हयात
कि तेरी निगाहों में है काएनात
मिरे दीदा - ए - तर की बे - ख़्वाबियाँ
मिरे दिल की पोशीदा बेताबियाँ
मिरे नाला - ए - नीम - शब का नियाज़
मिरी ख़ल्वत ओ अंजुमन का गुदाज़
उमंगें मिरी आरज़ूएँ मिरी
उम्मीदें मिरी जुस्तुजुएँ मिरी
मिरी फ़ितरत आईना - ए - रोज़गार
ग़ज़ालान - ए - अफ़्कार का मुर्ग़ - ज़ार
मिरा दिल मिरी रज़्म - गाह - ए - हयात
गुमानों के लश्कर यक़ीं का सबात
यही कुछ है साक़ी मता - ए - फ़क़ीर
इसी से फ़क़ीरी में हूँ मैं अमीर
मिरे क़ाफ़िले में लुटा दे इसे
लुटा दे ठिकाने लगा दे इसे
दमा - दम रवाँ है यम - ए - ज़िंदगी
हर इक शय से पैदा रम - ए - ज़िंदगी
इसी से हुई है बदन की नुमूद
कि शोले में पोशीदा है मौज - ए - दूद
गिराँ गरचे है सोहबत - ए - आब - ओ - गिल
ख़ुश आई इसे मेहनत - ए - आब - ओ - गिल
ये साबित भी है और सय्यार भी
अनासिर के फंदों से बे - ज़ार भी
ये वहदत है कसरत में हर दम असीर
मगर हर कहीं बे - चुगों बे - नज़ीर
ये आलम ये बुत - ख़ाना - ए - शश - जिहात
इसी ने तराशा है ये सोमनात
पसंद इस को तकरार की ख़ू नहीं
कि तू मैं नहीं और मैं तू नहीं
मन ओ तू से है अंजुमन - आफ़रीं
मगर ऐन - ए - महफ़िल में ख़ल्वत - नशीं
चमक उस की बिजली में तारे में है
ये चाँदी में सोने में पारे में है
उसी के बयाबाँ उसी के बबूल
उसी के हैं काँटे उसी के हैं फूल
कहीं उस की ताक़त से कोहसार चूर
कहीं उस के फंदे में जिब्रील ओ हूर
कहीं जज़ा है शाहीन सीमाब रंग
लहू से चकोरों के आलूदा चंग
कबूतर कहीं आशियाने से दूर
फड़कता हुआ जाल में ना - सुबूर
फ़रेब - ए - नज़र है सुकून ओ सबात
तड़पता है हर ज़र्रा - ए - काएनात
ठहरता नहीं कारवान - ए - वजूद
कि हर लहज़ है ताज़ा शान - ए - वजूद
समझता है तू राज़ है ज़िंदगी
फ़क़त ज़ौक़ - ए - परवाज़ है ज़िंदगी
बहुत उस ने देखे हैं पस्त ओ बुलंद
सफ़र उस को मंज़िल से बढ़ कर पसंद
सफ़र ज़िंदगी के लिए बर्ग ओ साज़
सफ़र है हक़ीक़त हज़र है मजाज़
उलझ कर सुलझने में लज़्ज़त उसे
तड़पने फड़कने में राहत उसे
हुआ जब उसे सामना मौत का
कठिन था बड़ा थामना मौत का
उतर कर जहान - ए - मकाफ़ात में
रही ज़िंदगी मौत की घात में
मज़ाक़ - ए - दुई से बनी ज़ौज ज़ौज
उठी दश्त ओ कोहसार से फ़ौज फ़ौज
गुल इस शाख़ से टूटते भी रहे
इसी शाख़ से फूटते भी रहे
समझते हैं नादाँ उसे बे - सबात
उभरता है मिट मिट के नक़्श - ए - हयात
बड़ी तेज़ जौलाँ बड़ी ज़ूद - रस
अज़ल से अबद तक रम - ए - यक - नफ़स
ज़माना कि ज़ंजीर - ए - अय्याम है
दमों के उलट - फेर का नाम है
ये मौज - ए - नफ़स क्या है तलवार है
ख़ुदी क्या है तलवार की धार है
ख़ुदी क्या है राज़ - दरून - हयात
ख़ुदी क्या है बेदारी - ए - काएनात
ख़ुदी जल्वा बदमस्त ओ ख़ल्वत - पसंद
समुंदर है इक बूँद पानी में बंद
अंधेरे उजाले में है ताबनाक
मन ओ तू में पैदा मन ओ तू से पाक
अज़ल उस के पीछे अबद सामने
न हद उस के पीछे न हद सामने
ज़माने के दरिया में बहती हुई
सितम उस की मौजों के सहती हुई
तजस्सुस की राहें बदलती हुई
दमा - दम निगाहें बदलती हुई
सुबुक उस के हाथों में संग - ए - गिराँ
पहाड़ उस की ज़र्बों से रेग - ए - रवाँ
सफ़र उस का अंजाम ओ आग़ाज़ है
यही उस की तक़्वीम का राज़ है
किरन चाँद में है शरर संग में
ये बे - रंग है डूब कर रंग में
इसे वास्ता क्या कम - ओ - बेश से
नशेब ओ फ़राज़ ओ पस - ओ - पेश से
अज़ल से है ये कशमकश में असीर
हुई ख़ाक - ए - अदाम में सूरत - पज़ीर
ख़ुदी का नशेमन तिरे दिल में है
फ़लक जिस तरह आँख के तिल में है
ख़ुदी के निगह - बाँ को है ज़हर - नाब
वो नाँ जिस से जाती रहे उस की आब
वही नाँ है उस के लिए अर्जुमंद
रहे जिस से दुनिया में गर्दन बुलंद
ख़ुदी फ़ाल - ए - महमूद से दरगुज़र
ख़ुदी पर निगह रख अयाज़ी न कर
वही सज्दा है लाइक़ - ए - एहतिमाम
कि हो जिस से हर सज्दा तुझ पर हराम
ये आलम ये हंगामा - ए - रंग - ओ - सौत
ये आलम कि है ज़ेर - ए - फ़रमान - ए - मौत
ये आलम ये बुत - ख़ाना - ए - चश्म - ओ - गोश
जहाँ ज़िंदगी है फ़क़त ख़ुर्द ओ नोश
ख़ुदी की ये है मंज़िल - ए - अव्वलीं
मुसाफ़िर ये तेरा नशेमन नहीं
तिरी आग इस ख़ाक - दाँ से नहीं
जहाँ तुझ से है तू जहाँ से नहीं
बढ़े जा ये कोह - ए - गिराँ तोड़ कर
तिलिस्म - ए - ज़मान - ओ - मकाँ तोड़ कर
ख़ुदी शेर - ए - मौला जहाँ उस का सैद
ज़मीं उस की सैद आसमाँ उस का सैद
जहाँ और भी हैं अभी बे - नुमूद
कि ख़ाली नहीं है ज़मीर - ए - वजूद
हर इक मुंतज़िर तेरी यलग़ार का
तिरी शौख़ी - ए - फ़िक्र - ओ - किरदार का
ये है मक़्सद गर्दिश - ए - रोज़गार
कि तेरी ख़ुदी तुझ पे हो आश्कार
तू है फ़ातह - ए - आलम - ए - ख़ूब - ओ - ज़िश्त
तुझे क्या बताऊँ तिरी सरनविश्त
हक़ीक़त पे है जामा - ए - हर्फ़ - ए - तंग
हक़ीक़त है आईना - ए - गुफ़्तार - ए - ज़ंग
फ़रोज़ाँ है सीने में शम - ए - नफ़स
मगर ताब - ए - गुफ़्तार रखती है बस
अगर यक - सर - ए - मू - ए - बरतर परम
फ़रोग़ - ए - तजल्ली ब - सोज़द परम
हज़रात-
ए-
इंसाँ
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी
कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
कोई देखे तो है बारीक फ़ितरत का हिजाब इतना
नुमायाँ हैं फ़रिश्तों के तबस्सुम - हा - ए - पिन्हानी
ये दुनिया दावत - ए - दीदार है फ़रज़ंद - ए - आदम को
कि हर मस्तूर को बख़्शा गया है ज़ौक़ - ए - उर्यानी
यही फ़रज़ंद - ए - आदम है कि जिस के अश्क - ए - ख़ूनीं से
किया है हज़रत - ए - यज़्दाँ ने दरियाओं को तूफ़ानी
फ़लक को क्या ख़बर ये ख़ाक - दाँ किस का नशेमन है
ग़रज़ अंजुम से है किस के शबिस्ताँ की निगहबानी
अगर मक़्सूद - ए - कुल मैं हूँ तो मुझ से मावरा क्या है
मिरे हंगामा - हा - ए - नौ - ब - नौ की इंतिहा क्या है
हिन्दुस्तानी बच्चों का क़ौमी गीत
चिश्ती ने जिस ज़मीं में पैग़ाम - ए - हक़ सुनाया
नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गाया
तातारियों ने जिस को अपना वतन बनाया
जिस ने हिजाज़ियों से दश्त - ए - अरब छुड़ाया
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
यूनानियों को जिस ने हैरान कर दिया था
सारे जहाँ को जिस ने इल्म ओ हुनर दिया था
मिट्टी को जिस की हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिस ने दामन हीरों से भर दिया था
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमाँ से
फिर ताब दे के जिस ने चमकाए कहकशाँ से
वहदत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकाँ से
मीर - ए - अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
बंदे कलीम जिस के पर्बत जहाँ के सीना
नूह - ए - नबी का आ कर ठहरा जहाँ सफ़ीना
रिफ़अत है जिस ज़मीं की बाम - ए - फ़लक का ज़ीना
जन्नत की ज़िंदगी है जिस की फ़ज़ा में जीना
मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है
हिमाला
ऐ हिमाला ऐ फ़सील - ए - किश्वर - ए - हिन्दुस्तान
चूमता है तेरी पेशानी को झुक कर आसमाँ
तुझ में कुछ पैदा नहीं देरीना रोज़ी के निशाँ
तू जवाँ है गर्दिश - ए - शाम - ओ - सहर के दरमियाँ
एक जल्वा था कलीम - ए - तूर - ए - सीना के लिए
तू तजल्ली है सरापा चश्म - ए - बीना के लिए
इम्तिहान - ए - दीदा - ए - ज़ाहिर में कोहिस्ताँ है तू
पासबाँ अपना है तू दीवार - ए - हिन्दुस्ताँ है तू
मतला - ए - अव्वल फ़लक जिस का हो वो दीवाँ है तू
सू - ए - ख़ल्वत - गाह - ए - दिल दामन - कश - ए - इंसाँ है तू
बर्फ़ ने बाँधी है दस्तार - ए - फ़ज़ीलत तेरे सर
ख़ंदा - ज़न है जो कुलाह - ए - मेहर - ए - आलम - ताब पर
तेरी उम्र - ए - रफ़्ता की इक आन है अहद - ए - कुहन
वादियों में हैं तिरी काली घटाएँ ख़ेमा - ज़न
चोटियाँ तेरी सुरय्या से हैं सरगर्म - ए - सुख़न
तू ज़मीं पर और पहना - ए - फ़लक तेरा वतन
चश्मा - ए - दामन तिरा आईना - ए - सय्याल है
दामन - ए - मौज - ए - हवा जिस के लिए रूमाल है
अब्र के हाथों में रहवार - ए - हवा के वास्ते
ताज़ियाना दे दिया बर्क़ - ए - सर - ए - कोहसार ने
ऐ हिमाला कोई बाज़ी - गाह है तू भी जिसे
दस्त - ए - क़ुदरत ने बनाया है अनासिर के लिए
हाए क्या फ़र्त - ए - तरब में झूमता जाता है अब्र
फ़ील - ए - बे - ज़ंजीर की सूरत उड़ा जाता है अब्र
जुम्बिश - ए - मौज - ए - नसीम - ए - सुब्ह गहवारा बनी
झूमती है नश्शा - ए - हस्ती में हर गुल की कली
यूँ ज़बान - ए - बर्ग से गोया है उस की ख़ामुशी
दस्त - ए - गुल - चीं की झटक मैं ने नहीं देखी कभी
कह रही है मेरी ख़ामोशी ही अफ़्साना मिरा
कुंज - ए - ख़ल्वत ख़ाना - ए - क़ुदरत है काशाना मिरा
आती है नद्दी फ़राज़ - ए - कोह से गाती हुई
कौसर ओ तसनीम की मौजों को शरमाती हुई
आईना सा शाहिद - ए - क़ुदरत को दिखलाती हुई
संग - ए - रह से गाह बचती गाह टकराती हुई
छेड़ती जा इस इराक़ - ए - दिल - नशीं के साज़ को
ऐ मुसाफ़िर दिल समझता है तिरी आवाज़ को
लैला - ए - शब खोलती है आ के जब ज़ुल्फ़ - ए - रसा
दामन - ए - दिल खींचती है आबशारों की सदा
वो ख़मोशी शाम की जिस पर तकल्लुम हो फ़िदा
वो दरख़्तों पर तफ़क्कुर का समाँ छाया हुआ
काँपता फिरता है क्या रंग - ए - शफ़क़ कोहसार पर
ख़ुश - नुमा लगता है ये ग़ाज़ा तिरे रुख़्सार पर
ऐ हिमाला दास्ताँ उस वक़्त की कोई सुना
मस्कन - ए - आबा - ए - इंसाँ जब बना दामन तिरा
कुछ बता उस सीधी - साधी ज़िंदगी का माजरा
दाग़ जिस पर ग़ाज़ा - ए - रंग - ए - तकल्लुफ़ का न था
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश - ए - अय्याम तू
नोटः ये किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क के ज़रीऐ अपने पाठको के लिऐ किताबी शक्ल मे जमा की गई है और इस किताब टाइप वग़ैरा की ग़लतीयो पर काम नही किया गया है।
अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क ( 05.12.2016 )