क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे
बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी
वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर
ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी
साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’
बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम
जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम
जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम
जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।
आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।
अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।
इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात
उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।
आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब
आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।
आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।
आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त
आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।
फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना
जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।
इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।
और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।
और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।
फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।
फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।
फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।
इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।
फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।
फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।
इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।
इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।
चार माह की उम्र में मनसबे इमामत
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।
अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।
चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़
मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।
यूसुफ़े आले मोहम्मद
कुएं में
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।
इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र
आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस
के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।
इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल
जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।
मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।
उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।
मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।
फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।
अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।
फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।
ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।
इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।
फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।
इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।
इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।
अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।
अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।
अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।
अपने अक़ीदत मन्दों में हज़रत का दौरा
जाफ़र बिन शरीफ़ जरजानी का बयान करते हैं कि मैं हज से फ़राग़त के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुआ और उनसे अर्ज़ कि मौला ! अहले जरजान आपकी तशरीफ़ आवरी के ख़्वास्त गार और ख़्वाहिश मन्द हैं। आपने फ़रमाया तुम आज से 190 दिन के बाद जरजान पहुँचोगे और जिस दिन तुम पहुँचोंगे उसी दिन शाम को मैं भी पहुँचूगा। तुम उन्हें बा ख़बर कर देना। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। मैं वतन पहुँच कर लोगों को आगाह कर चुका था कि इमाम (अ.स.) की तशरीफ़ आवरी हुई। आपने सब से मुलाक़ात की और सब ने शरफ़े ज़ियारत हासिल किया। फिर लोगों ने अपनी मुशकीलात पेश की। इमाम (अ.स.) ने सब को मुतमईन कर दिया। इसी सिलसिले में नसर बिन जाबिर ने अपने फ़रज़न्द को पेश किया , जो नाबीना था। हज़रत ने उसके चेहरे पर दस्ते मुबारक फेर कर उसे बीनाई अता कि। फिर आप उसी रोज़ वापस तशरीफ़ ले गए।
एक शख़्स ने आपको एक ख़त बिला रौशनाई के क़लम से लिखा। आपने उसका जवाब मरहमत फ़रमाया और साथ ही लिखने वाले का और उसके बाप का नाम भी तहरीर फ़रमाया दिया। यह करामात देख कर वह शख़्स हैरान हो गया और इस्लाम लाया और आपकी इमामत का मोतक़िद बना गया।
इमाम हसन असकरी (अ.स.) का पत्थर पर मोहर लगाना
सुक़्क़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी और इमामे अहले सुन्नत अल्लामा जामी रक़म तराज़ हैं कि एक दिन हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में एक ख़ूबसूरत सायमेनी आया और उसने एक संग पारा यानी पत्थर का टुकड़ा पेश कर के ख़्वाहिश की कि आप इस पर अपनी इमामत की तसदीक़ में मोहर कर दें। हज़रत ने मोहर लगा दी। आपका इसमे गिरामी इस तरह कन्दा हो गया जिस तरह मोम पर लगाने से कन्दा होता है।
एक सवाल के जवाब में कहा गया कि आने वाला मजमूए इब्नुल सलत बिन अक़बा बिन समआन इब्ने ग़ानम था। यह वही संग पारा लाया था जिस पर उसके ख़ान दान की एक औरत उम्मे ख़ानम ने तमाम आइम्मा ए ताहेरीन (अ.स.) से मोहर लगवा रखी थी। उसका तरीक़ा यह था कि जब कोई इमामत का दावा करता था तो वह उसको ले कर उसके पास चली जाती थी अगर उस मुद्दई ने पत्थर पर मोहर लगा दी तो उसने समझ लिया कि यह इमामे ज़माना हैं और अगर वह इस अमल से आजिज़ रहा तो वह उसे नज़र अन्दाज़ कर देती थी चूंकि उसने इसी संग पारे पर कई इमामों की मोहर लगवाई थी। इस लिये उसका लक़ब साहेबतुल साअता हो गया था।
अल्लामा जामी लिखते हैं कि जब मजमूए बिन सलत ने मोहर लगवाई तो उससे पूछा गया कि तुम हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को पहले से पहचानते थे ? उसने कहा नहीं। वाक़ेया यह हुआ कि मैं उनका इन्तेज़ार कर ही रहा था कि आप तशरीफ़ लाये लेकिन मैं चूंकि पहचानता न था इस लिये ख़ामोश बैठा रहा। इतने में एक नाशिनास नौजवान ने मेरी नज़रों के सामने आ कर कहा कि यह हसन बिन अली हैं।
रावी अबू हाशिम बयान करता है कि जब वह जवान आपके दरबार में आया तो मेरे दिल में यह आया कि काश मुझे मालूम होता कि यह कौन हैं। दिल में इस ख़्याल का आना था कि इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि मोहर लगवाने के लिये वह संग पारा लाया है जिस पर मेरे बाप दादा की मोहरें लगी हुई हैं। चुनान्चे उसने पेश किया और आपने मोहर लगा दी। वह शख़्स आयाए ‘‘ ज़ुर्रियते बाज़हा मिन बाअज़ ’’ पढ़ता हुआ चला गया।
इमाम हसन असकरी (अ.स.) के इल्मी खि़दमात
तफ़सीरे क़ुरआन
यह एक मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि जब इन्सान को सुकून नसीब न हो तो दिलो दिमाग़ अज़कारे रफ़्ता हो जाते हैं और उसमें इतनी सलाहियत नहीं रहती कि वह कोई ग़ैर फ़ानी दिमाग़ी किरदार पेश कर सके। हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) जिन्हें बिल वास्ता या बिला वास्ता ख़ुलफ़ाए अब्बासिया के सात ज़ालिमों के दस्ते इस्तेबदाद से मुताअस्सिर होना पड़ा। कभी आपके वालिदे माजिद को क़ैद किया गया , कभी नज़र बन्दी की ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर किया गया। गरज़ कि आपका कोई लम्हा ए हयात पुर सुकून नहीं गुज़रा। फिर उम्र भी आपने सिर्फ़ 28 साल की पाई थी। इन्ही वजूह से आपके कमालाते इल्मिया का कमा हक़्क़ा इज़हारो इन्केशाफ़ न हो सका। इसी बिना पर अल्लामा किरमानी लिखते हैं कि आप दुनियां में इतने दिनों ब क़ैदे हयात रहे ही नहीं कि आपके फ़ज़ाएल व मनाक़िब और उलूम व हुक्म लोगों पर ज़ाहिर हो सकें।
ताहम इन हालात में भी आपने अपने इल्मे लदुन्नी , नीज़ अपने वालिदे बुज़ुर्गवार से हासिल करदा इल्म के सहारे तबहव्वे इल्मी के साथ बड़े बड़े इल्मी कारनामों से लोगों को हैरान कर दिया। आपने मुख़ालेफ़ीने इस्लाम और अज़ीम जां शलीक़ों से अहम मनाज़िरे किये और इल्म व हुक्म के दरया बहाये हैं।
आपके इल्मी कारनामों में एक अहम कारनामा क़ुरआने मजीद की तफ़सीर है। जो तफ़सीरे इमाम हसन असकरी (अ.स.) के नाम से मौसूम व मशहूर है। यह तफ़सीर उलूमे क़ुरआनी और हुक्मे नबवी से मम्लू है।
मेरे नज़दीक इसका इन्तेसाब तशना ए तहक़ीक़ है।
आपने अपनी क़लमी सलाहियत को महले इफ़्तेख़ार में ज़िक्र फ़रमाया है। आपका कहना है कि हम वह हैं जिन्हें साहेबे क़लम क़रार दिया है। उलेमा का बयान है कि जब आप लिखते लिखते नमाज़ के लिये चले जाया करते थे तो आपका क़लम बराबर चलता रहता था और आप माफ़िज़ ज़मीर बहुक्मे ख़ुदा वन्दी सतहे क़िरतास पर मरक़ूम होता रहता था।
बहवाला ए असबात अल हदाया उर आमली। अल्लामा शेख़ मुफ़ीद का कहना है कि आप इल्म फ़ज़ल , ज़ोहदो तक़वा अक़्लो असमत , शुजाअतो करम आमालो इबादत में अफ़ज़ल अहले ज़माना थे।
सुक़्क़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी
का बयान है कि हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह तमाम ज़बानों से वाक़िफ़ थे। आप तुर्की , रूमी ग़रज़ कि हर ज़बान में तकल्लुम किया करते थे। ख़ुदा ने आपको हर ज़बान से बहरावर फ़रमाया था और आप इल्मे रजाल , इल्मे अन्साब , इल्मे हवादिस में कमाल रखते थे।
अब्दुल्लाह इब्ने मोहम्मद का बयान है कि मैंने हज़रत को भेड़िये से बात चीत करते हुए ख़ुद सुना है।
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) का ईराक़ के एक अज़ीम फ़लसफ़ी को शिकस्त देना
मुवर्रेख़ीन का बयान है कि ईराक़ के अज़ीम फ़लसफ़ी इस्हाक़ कन्दी को ख़ब्त सवार हुआ कि क़ुरआन मजीद में तनाक़ज़ साबित करे और यह बता दे कि क़ुरआने मजीद की एक आयत दूसरी आयत से और एक मज़मून दूसरे मज़मून से टकराता है। उसने इस मक़सद की तकमील के लिये किताब ‘‘ तनाक़ुज़े कु़रआन ’’ लिखना शुरू की और इस दर्जा मुनहमिक़ हो गया कि लोगों से मिलना झुलना और कहीं आना जाना सब तर्क कर दिया।
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को जब इसकी इत्तेला हुई तो आपने उसके ख़ब्त को दूर करने का इरादा फ़रमाया। आपका ख़्याल था कि उस पर कोई ऐसा एतराज़ कर दिया जाये कि जिसका वह जवाब न दे सके और मजबूरन अपने इरादे से बाज़ आ जाये। इत्तेफ़ाक़न एक दिन आपकी खि़दमत में उसका एक शार्गिद हाज़िर हुआ। हज़रत ने फ़रमाया कि तुम में कोई ऐसा नहीं है जो इस्हाक़ कन्दी को ‘‘ तनाकुज़ अल क़ुरआन ’’ लिखने से बाज़ रख सके। उसने अर्ज़ कि मौला ! मैं उसका शार्गिद हूँ भला उसके सामने लब कुशाई कर सकता हूँ। आपने फ़रमाया कि अच्छा यह तो कर सकते हो कि जो मैं कहूँ वह उस तक पहुँचा दो। उसने कहा कर सकता हूँ। हज़रत ने फ़रमाया कि पहले तो तुम उस से मवानस्त पैदा करो और उस पर एतेबार जमाओ। जब वह तुम से मानूस हो जाये और तुम्हारी बात तवज्जो से सुन ने लगे तो उससे कहना कि मुझे एक शुबहा पैदा हो गया है , आप उसको दूर फ़रमा दें। जब वह कहे कि बयान करो तो कहना कि ‘‘ इन्ना एताका हज़ल मुताकल्लिम बे हज़ारूल क़ुरआन हल यह बज़ूअन यकून मुरादा बेमा तकल्लुम मिन्हा अनल मआनी अल लती क़द ज़न सतहा इन्का ज़ेबतहा इलैहा ’’ अगर इस किताब यानी क़ुरआन का मालिक तुम्हारे पास इसे लाये तो क्या हो सकता है कि इस कलाम से जो मतलब उसका हो वह तुम्हारे समझे हुए मआनी व मतालिब के खि़लाफ़ हो। ज बवह तुम्हारा यह एतेराज़ सुनेगा तो चुंकि ज़हीन आदमी है फ़ौरन कहेगा बेशक ऐसा हो सकता है। जब वह यह कहे तो तुम उससे कहना कि फिर किताब ‘‘ तनाक़ुज़ अल क़ुरआन ’’ लिखने से क्या फ़ायेदा ? क्यों कि तुम उसके जो मानी समझ कर उस पर जो एतेराज़ कर रहे हो हो सकता है िकवह ख़ुदाई मक़सूद के खि़लाफ़ हो। ऐसी सूरत में तुम्हारी मेहनत ज़ाया और बरबाद हो जायेगी। क्यों कि तनाक़िज़ तो जब हो सकता है कि तुम्हारा समझा हुआ मतलब सही और मक़सूदे ख़ुदा वन्दी के मुताबिक़ हो और ऐसा यक़ीनी तौर पर नही ंतो तनाक़िस कहां रहा ? अल ग़रज़ वह शार्गिद इस्हाक़ कन्दी के पास गया और उसने इमाम (अ.स.) के बताए हुए उसूल पर उससे मज़कूरा सवाल किया। इस्हाक़ कन्दी यह एतेराज़ सुन कर हैरान रह गया और कहने लगा कि सवाल को दोहराओ। उसने फिर दोहराया। इस्हाक़ थोड़ी देर के लिये महवे तफ़क्कुर हो गया और दिल में कहने लगा कि बे शक इस क़िस्म का एहतेमाल ब एतेबारे लुग़त और ब लेहाज़े फ़िकरो तदब्बुर मुम्किन है। फिर अपने शार्गिद की तरफ़ मुतावज्जे हो कर बोला ! मैं तुम्हें क़सम देता हूँ , तुम मुझे सही सही बताओ कि तुम्हें यह एतेराज़ किसने बताया है ? उसने जवाब दिया , मेरे शफ़ीक़ उस्ताद यह मेरे ही ज़हन की पैदावार है। इस्हाक़ ने कहा हरगिज़ नहीं , यह तुम्हारे जैसे इल्म वाले के बस की चीज़ नहीं है। तुम सच कहो कि तुम्हें किसने बताया और इस एतेराज़ की तरफ़ किसने रहबरी की है ? शार्गिद ने कहा सच तो यह है कि मुझे हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने फ़रमाया था और मैंने उन्हीं के बताये हुए उसूल पर सवाल किया है।
इस्हाक़ कन्दी बोला ‘‘ एलान जेहत बेह ’’ अब तुम ने सच कहा है। ऐसे ऐतराज़ और ऐसी अहम बातें ख़ानादाने रिसालत ही से बरामद हो सकती हैं। ‘‘ सुम अनह दुआ बिन नार व अहरक़ जीमए मा काना अनफ़हा ’’ फिर उसने आग मंगाई और किताब ‘‘ तनाक़ज़ अल क़ुरआन ’’ का सारा मसवेदा नज़रे आतश कर दिया।