इस्लाम और सेक्स

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इस्लाम और सेक्स लेखक:
कैटिगिरी: अख़लाक़ी किताबें

इस्लाम और सेक्स

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी
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इस्लाम और सेक्स

इस्लाम और सेक्स

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

पिछली बहसों से यह बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि इस्लाम धर्म (अर्थात प्रकृति के अनुसार धर्म) ने हराम कारी और बलात्कारी पर सख़्त पाबन्दी लगाने के साथ-साथ हमेशा के लिए निकाह या सामायिक निकाह के द्वारा स्त्री और पुरूष को एक दूसरे के जाएज़ स्थानों से आन्नद और मज़ा उठाने की इजाज़त दी है। अतः आराम व सुकून हासिल करने और प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हर सूरत में स्त्री और पुरूष की और पुरूष को स्त्री की ज़रूरत है। यही वजह है कि परवर्दिगार-ए-आलम ने बाबा आदम (अ.) को पैदा करने के साथ-साथ उनकी बची हुई मिट्टी से ही उनकी पत्नी अम्मा हव्वा (अ ,) को पैदा किया ताकि दोनों एक साथ रहें सहें और फिर उन ही दो पति-पत्नी से बहुत से स्त्री और पुरूष दुनिया में फैला दिये। क़ुर्आन में हैः-

“ ए लोगो , अपने उस पालने वाले से डरो जिसने तुम सब को (केवल) एक शख़्स से पैदा किया और (वह इस तरह कि पहले) उन (की बाक़ी मिट्टी) से उनकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया और (केवल) उन्ही दो (मियाँ बीवी) से बहुत से मर्द और औरतें दनिया में फैला दिये ”।( 83)

या

वह खुदा ही तो है जिसने तुम को एक शख़्स (आदम) से पैदा किया और उस (की बची हुवी मिट्टी) से उसका जोड़ा भी बना डाला ताकि उसके साथ रहे सहे। फिर जब इन्सान अपनी बीवी से संभोग करता है तो बीवी एक हल्के से हमल (गर्भ) से हामिलः (गर्भवती) हो जाती है , फिर उसे लिए-लिए चलती फिरती है , फिर जब वह अधिक दिन होने से भारी हो जाती है तो दोनो (मियाँ बीवी) अपने परवरदिगार से दुआ करने लगे कि अगर तू हमें नेक (सन्तान) अता फर्माये तो हम तेरे शुक्र ग़ुज़ार होंगे।( 84)

अर्थात पुरूष को स्त्री की आव्यश्कता है जिस से वह संभोग करे ताकि स्त्री गर्भवती हो , सन्तान पैदा हो और आदम की नस्ल बाक़ी रहे।

इसी लिए परवर्दिगार-ए-आलम ने पुरूष (नर) और स्त्री (मादा) दो क़िस्मों ( 85) को पैदा किया है ताकि दोनों मिलकर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के साथ साथ नस्ल को बाक़ी रखने की ज़िम्मेदारी निभाते रहें। क्योंकि दोनों की मनी (वीर्य) के मिलने से ही गर्भ करार पा सकता है , अकेले नही। और यही वीर्य रीढ़ और सीने की हडडियों में प्राकृतिक तौर पर बनता रहता है। जिसके लिए क़ुर्आन मे मिलता है किः-

तो इन्सान को देखना चाहिए कि वह किस चीज़ से पैदा हुआ है वह उछलते हुवे पानी (वीर्य) से पैदा हुआ है जो पीठ (अर्थात रीढ़ की हडडी) और सीने के (ऊपर वाले) हड्डियों के बीच से निकलता है। ( 86)

यह रीढ़ और सीने की हड्डियों से निकलने वाला पानी क्रामनुसार पुरूष और स्त्री का वीर्य होता है। ( 87) जो गर्भशय (रहिम) में एकत्र ( 88) हो जाता है , बाद में वह जमा हुआ खून हो जाता है , फिर वह जमा हुवा खून गोश्त का लोथड़ा बनता है , गोश्त के लोथड़े में हड्डियाँ पैदा होती है , उन हड्डियों में गोश्त चढ़ता है। अन्त में वह स्त्री या पुरूष की क़िस्म में पैदा हो जाता है।

क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता हैः-

क्या वह (आरम्भ में) वीर्य का एक क़तरा न था जो गर्भशय में डाली जाती है फिर लोथड़ा हुआ , फिर खुदा ने उसे बनाया , फिर उसे ठीक किया , फिर उसकी दो क़िस्में बनायी (एक) मर्द और (एक) औरत। ( 89)

कुर्आन में इन्सान की पैदाइश से सम्बन्धित नुत्फे (वीर्य) से लेकर पैदाइश तक की सभी बातें इस तरह मिलती हैं।

और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया फिर हमने उसको एक सुरक्षित जगह (औरत के गर्भाशय) में नुत्फा बना कर रखा फिर हमने नुत्फे को जमा हुआ खून बनाया , फिर हम ही ने जमे हुए खून को गोश्त का लोथड़ा बनाया फिर हम ही ने लोथड़े की हड्डियाँ बनायी , फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया , फिर हम ही ने उसको (रूह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया तो (सुबहानल्लाह) खुदा बा बरक़त है जो सब बनाने वालों से बेहतर है। ( 90)

लेकिन इस पूरी कार्यवाही के लिए स्त्री और पुरूष का शारीरिक मिलाप और नुत्फ़े का ठहरना (जो प्राकृतिक तौर पर होता है) ज़रूरी है। अतः नस्ल को बढ़ाने और प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्त्री और पुरूष दोनों एक दूसरे की ज़रूरत है जो आपस में धर्म का विरोध करके अधार्मिक , नापाक और बुरे रिश्ते को या धार्मिक उसूल व क़ानून की पाबन्दी कर के शरई (धार्मिक) , पाक व पाकीज़ा रिश्ते को क़ायम कर सकते हैं।

इस्लामी शरीअत ने शरई (धार्मिक) और पाक व पाकीज़ा रिश्ता क़ायम करने के लिए ही निकाह (हमेशा के लिए या कुछ समय के लिए) का आदेश दिया है और यह ज़िम्मेदारी पुरूष पर डाली है कि वह औरत को निकाह करने के लिए पसन्द करे।

पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स.) ने इर्शाद फर्मायाः-

जो शख़्स मेरी सुन्नत को दोस्त रखता है उसे चाहिए कि निकाह करे और जो मेरी सुन्नत का पैरो है यह समझ ले कि ख्वासत्गारी-ए-ज़न (अर्थात औरत को चाहना) मेरी सुन्नत में दाखिल है।( 91)

और इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) से मनकूल है किः-

औरतों को ज़्यादा अज़ीज़ रखना पैग़म्बरों के अख़्लाक़ में दाखिल था। ( 92)

या इसी तरह इमाम अली-ए- रिज़ा (अ ,) से मनक़ूल है किः-

तीन चीज़ पैग़म्बरों की सुन्नत में दाखिल है। अव्वल खुशबूँ सूघँना , दूसरे जो बाल बदन पर ज़रूरत से ज़्यादा है उनको दूर करना , तीसरे औरतों से ज़्यादा मानूस होना और उनसे ज़्यादा मुक़ारबत करता (अर्थात समीप होना) संभोग करना। ( 93)

औरतों से संभोग से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) से मनक़ूल हैः-

उसमान बिन मज़ऊन की पत्नी हज़रत रसूल अल्लाह (स.) की ख़िदमत (के पास) आयी और यह अर्ज़ की , या रसूल अल्लाह। उस्मान दिन-दिन भर रोज़े रखते हैं , रात भर नमाज़ पढ़ते हैं और मेरे पास नही आते। हज़रत ग़ज़बनाक़ (ग़ुस्सा) हो कर उस्मान के पास तशरीफ लाए और इर्शाद फ़र्मायाः-

ए उस्मान खुदा ने हमें रोहबानियत (अर्थात काम वासना से बचने के लिए सब से अलग-अलग रहना , सारी उम्र ब्रहमचारी रहना) क लिए नही भेजा है। मै रोज़ा भी रखता हूँ , नमाज़ भी पढ़ता हूँ और अपनी औरतों से मुबाशिरत भी करता हूँ। जो शख़्स मेरे दीन को चाहता हो (पसन्द करता हो) उसे चाहिए कि मेरी सुन्नत पर अमल भी करे और जहाँ मेरी और सुन्नत हैं यह भी है कि औरतों से मुबाशिरत और निकाह किया करें।( 94)

और औरतों से मुबाशिरत (संभोग) के सवाब से सम्बन्धित मिलता हैः-

एक औरत ने हज़रत रसूल-ए-खुदा (स ,) की ख़िदमत में हाज़िर हो कर शिकायत की कि मेरा पति मेरे पास नही आता। हज़रत ने फर्माया कि तू अपने आप को ख़ुश्बू से मोअत्तर किया कर (अर्थात अपने ख़ुश्बू लगाया कर) ताकि वह तेरे पास आए। उस ने अर्ज़ की (कहा) मैने हर ख़ुश्बू से खुद को मोअत्तर कर के देख लिया है वह बहर सूरत (हर हाल में) दूर ही रहा। आँन हज़रत (स ,) ने फर्माया कि अगर उसे तुझ से मुकारिबत करने का सवाब मालूम होता तो वह हरगिज़ दूर नही रहता। फिर इर्शाद फर्माया कि अगर वह तेरी जानिब मुतवज्जेह होगा (अर्थात तेरी तरफ लगाव पैदा करेगा) तो फ़रिशते उसे अहाता कर (घेर) लेगें और उसे इतना सवाब मिलेगा गोया तलवार ख़ैंच कर खुदा की राह में जिहाद किया है और जिस वक्त तुझ से जिमाअ (संभोग) करेगा उस के गुनाह इस तरह झड़ जायेंगे जैसे मौसम-ए-खिज़ां (पतझड़) में पत्ते झड़ जाते हैं और जिस वक्त गुस्ल (स्नान) करेगा तो कोई गुनाह उसके ज़िम्मे (ऊपर) बाक़ी न रहेगा। ( 95)

अतः हर पुरूष के खुश व खुरम (प्रसन्न) रहने , आराम व सुकून से ज़िन्दगी बिताने , हराम कारियों से बचने और सवाब हासिल करने के लिए स्त्री का होना अनिवार्य है जिस के बिना पुरूष अधूरा रहता है। उसकी ज़िन्दगी सूनी और वीरान रहती है। उसको घर जंगल और कैद खाना महसूस होता है। उसकी रूह (आत्मा) मर चुकि होती है और वह चलती फिरती लाश की तरह हो जाता है। इसी लिए जदीद (आधुनिक) फ़ारसी शायरः परवीन ऐतिसामी ने कहाः

दर आन सराय कि ज़न नीस्त उन्स व शफ़कत नीस्त

दर आन वुजूद कि दिल मुर्द , मुर्दः अस्त रवान ( 96)

अर्थात जिस घर में औरत नही है वहाँ उन्स व शफ़कत (सहानुभूति और कृपा दृष्टि) नही है (क्योंकि) जिसका दिल मर जाता है उसकी रूह (आत्मा) भी मर जाती है (और औरत घर की जान होती है जिस के बिना घर-घर नही होता) मक़ान रहता है। एक ऊर्दू शायर ने क्या खूब कहा हैः

मेरे खुदा मुझे इतना तो मोअतबर कर दे

मै जिस मकान में रहता हूँ उसको घर कर दे

गोया मर्द का औरत की इच्छा करना मुर्दः दिली की निशानी है ------- लेकिन वास्तविकता यह है कि जवानी में मर्द प्राकृतिक तौर पर औरत की इच्छा करता है। इसलिए ज़रूरी है कि मर्दों को औरतों की किस्मों (के प्रकार) से सम्बन्धित मालूमात हो ताकि उन्हे औरत के चुनने (इंतिख़ाब) में आसानी हो सके।

स्त्रियों के प्रकार

पंडित कोका ने सेक्सी हिसाब से औरतों के चार प्रकार बताये हैं।

1. पदमनी

2. चितरनी

3. संखनी

4. हस्तनी

इसकी पहचान के बारे में है किः-

1. पदमनीः

यह सब से अच्छी औरत है। इसके बाद चितरनी , संखनी और हस्तनी है। इसकी आँख कंवल की तरह , बदन छुरैरा , आवाज़ मीठी और लच्छेदार , बाल लम्बे , आँखें सुडौल और खूबसूरत , इस औरत के बदन से नीलूफर जैसी खूशबू आती है। इसकी आँखों की चमक की एक झलक भी बर्दाशत नही हो सकती। इसका चेहरा एक खिला हुआ फूल मालूम होता है। यह औरत अच्छे वस्त्र पहनती और साफ सुथरी रहती है।

पदमनी नेकी का पुतला , दूसरों से नरमी के साथ पेश आने वाली , हर किसी पर दया करने वाली , अपने पति की ख़िदमत करने वाली और वफादार पत्नी होती है।

जिस घर में वह रहती है , वहाँ अम्न , सलामती , और खुशी का दौर दौरा रहता है। खुशहाली , नेकी और दौलतमंदी के निशान मिलते है , दुख , ग़म और बीमारी उस घर से कोसों दूर रहती है और वह घर देवताओं का घर मालूम होता है।

यह लम्बे कद की होती है , सीना खूबसूरत होता है , अख़लाक और मुरव्वत की जीती जागती तस्वीर है। पाकीज़ा और साफ सुथरे ख्यालात वाली और सेक्सी इच्छाओं से दूर रहती हैं। ऍसी औरत प्रेम बहुत कम करती हैं और अगर प्रेम करें तो यह रोग ज़िन्दगी भर उसके लिए अज़ाब (पाप) बन जाता है और वह मर मिटती है।

2.चितरनी

चितरनी खूबसूरत , औसत कद वाली , खूबसूरती को पसन्द करने वाली और दान दक्षिणा और इबादत इसको पसन्द। अपने पति की वफादार , अच्छी बात करने वाली और सदैव अच्छे शब्द ही उसके मुहँ से निकलते हैं। यह पदमनी के बाद सब से ऊँची और श्रेष्ठ है। शरीर न बहुत दुबला न बहुत मोटा , बाल लम्बे , सीना चौड़ा , जलन करने वाली , पेट बड़ा , चंचल चित्त , (अर्थात कभी कुछ सोचे कभी कुछ) मज़ाक करने वाली , चंचल तबीयत , गाने बजाने को चाहने वाली , रंगीन वस्त्रों को पसन्द करने वाली , सेक्स में संतुलन को बनाये रखने वाली होती हैं। कुछ प्रेम को पसन्द करती हैं। संभोग के लिए पति से राज़ी हो जाती हैं खुद भी स्वाद उठाती है और दूसरो को स्वाद और आन्नद उठाने का मौक़ा देती है। चटपटी और मज़ेदार चीज़ खाना पसन्द करती हैं और खुदा का खौफ दिल में रखती है।

3.संखनी

यह तीसरे दर्जे की औरत है , लम्बे कद की लाग़र (कमज़ोर) कलाई और पिंड़लियाँ दुबली और पतली , हाथ पैर लम्बे होते हैं। हर एक से लड़ती झगड़ती है। मक्कारः चापलूस , झूठी और जल्दबाज़ होती है। मैला कुचैली रहती है। नशे वाली चीज़ो पर जान देने वाली होती है। तेज़ आवाज़ से हंसती है , मर्द को ज़्यादा चाहती और सेक्स की ओर ज़्यादा लगाव होता है। पति से कम डरती और दूसरे पुरूषों से मुलाक़ात में नही हिचकिचाती। सेक्सी मिलाप के लिए बेचैन रहती है। भूख और प्यास को बर्दाशत नही कर सकती। चलने का अन्दाज़ अनोखा लेकिन दिल पकड़ लेने वाला होता है। प्रेमियों की तादाद बढ़ाने में फख्र महसूस करती है। छाती सुडौल और शरीर स्मार्ट होता है।

4.हस्तनी

यह चौथे दर्जे की औरत है। थिरकती औक मटकती हुई चलती है। सेक्स से भरी हुई और दुनियां के स्वादों की आरज़ू करने वाली , मोटे शरीर वाली , बहुत छोटे या लम्बे कद की , गरदन छोटी , आँखें जलते हुए अंगारे की तरह सुर्ख , नथने बड़े , शरीर के बाल खड़े रहते है और लगभग शरीर के हर हिस्से पर बाल बहुत पैदा होते हैं। होंठ मोटे , छाती बड़ी , शरीर से शराब की बू आती है और सेक्स की ज़्यादती की वजह से अप्राकृतिक तराक़ों को अपनाती है। यह बुरी ज़बान , बुरे क़िरदार और बेलगाम होती है। मर्दों की बेइज़्ज़ती में फख्र महसूस करती है। न उसे अपनी इज़्ज़त का ख्याल होता है और न वह दूसरों की इज़्ज़त का ख्याल करती है। चाल में मर्दों का अन्दाज़ ज़्यादा होता है। सेक्स की ग़ुलाम होती है। हर वक़्त सेक्सी आवारगी का शिकार रहती है। ग़ैर मर्दों से सेक्सी इच्छा कि पूर्ति के लिए मिलती रहती है। अपनी बातों में सेक्सी अंगों का वर्णन करती रहती है। ऐसी औरत कभी-कभी बच्चों से बहुत प्यार करती है और कभी कभी उन्हें देखना भी पसन्द नही करती। ऍसी औरत अपने पति को ग़ुलाम से ज़्यादा नही समझती। ऍसी औरत किसी की भी वफादार नही हो सकती------ मक्कार और दग़ाबाज़ होती है।

मगर औरतों की उपर्युकत किस्मों में – दोशीज़ा – पुस्तक के लेखक ने इन्कार किया है और लिखा है कि इस तरह से औरतों की बहुत सी क़िस्में हो जाएगी। क्योंकि दुनियां में शारीरिक रूप से केवल चार किस्में नही हो सकतीं और यह बात सही है। इस लिए केवल दो ही क़िस्म मानी जा सकती हैं।

1.अच्छी

2.बुरी

बहरहाल मर्द को चाहिए कि वह अच्छी और बुरी औरत की पहचान कर के ही अपने मिज़ाज और इच्छा के अनुसार औरत को चुने। क्योंकि औरत गुलूबन्द (गले का हार) की तरह हुआ करती है जिस को मर्द अपने गले में ज़िन्दगी भर के लिए बांध लेता है। इसी लिए इमाम-ए-जाफऱ-ए-सादिक़ (अ ,) ने फर्मायाः-

औरत उस गले की हार कि तरह है जो तुम अपनी गर्दन में बांधते हो और यह देख लेना तुम्हारा काम है कि कैसा गले का हार तुम अपने लिए पसन्द करते हो।( 98)

आप ने यह भी फर्मायाः-

पाकदामन और बदकार औरत किसी तरह बराबर नही हो सकती। पाकदामन की कद्र और क़ीमत सोने चाँदी से कहीं ज़्यादा है बल्कि सोना चाँदी उसके मुकाबले में कुछ भी नही है और बदकार औरत ख़ाक (मिट्टी) के बराबर भी नही बल्कि ख़ाक उस से कहीं बेहतर है और मेरे जद्दे अमजद (दादा) रसूल-ए-खुदा (स ,) ने फर्माया है कि अपनी बेटी अपने हम कफ़ों और हम मिस्ल (जैसे) को दो और अपने हम कफ़ों और अपने मिस्ल ही से बेटी लो और अपने नुत्फ़े (वीर्य) के लिए ऍसी औरत तलाश करो जो उसके लिए मौज़ूँ (मुनासिब , उचित) हो ताकि उसके लाएक़ (हुनरमन्द) औलाद पैदा हो। ( 99)

पाक दामन औरतों से शादी करने से सम्बन्धित ही रसूल-ए-खुदा (स.) ने फ़र्मायाः-

पाकदामन औरत से शादी करो कि ज़्यादा औलाद पैदा हो और खूबसूरत औरत जिस से औलाद न पैदा होती हो न मरो। क्योंकि मुझे क़यामत के दिन और पैग़म्बरों की उम्मत पर तुम्हारे ही कारण से मुबाहात (गर्व) करनी होगी। ( 100)

एक और हदीस मे फर्मायाः-

ऍसी कुँवारी औरतों को निकाह के लिए पसन्द करो जिन के मुँह से खूशबू अधिक आती हो , जिनके गर्भाशय मे वीर्य को कुबूल करने की खुसूसियत अधिक हो , जिनकी छातियों पर दूध अधिक होने की उम्मीद हो , जिनके गर्भाशय में औलाद अधिक पैदा हो। क्या तुम्हें यह मालूम नही कि मै कल क़यामत के दिन तुम्हारी अधिकता पर फ़ख्र व मुबाहात (गर्व) करूँगा यहाँ तक कि वह बच्चा भी गिनती मे आ जाएगा जो पूरा नही हुआ हो और गिर गया हो------।( 101)

औरत के चयन अर्थात उससे निकाह करने से ही सम्बन्धित हज़रत अली (अ.) ने औरतों के कुछ गुणों की ओर इस तरह इशारा किया हैः-

जिस औरत को निकाह के लिए चुना जाए उसमें यह गुण होना चाहिए। रंग गेहूँआ , माथा चौड़ा , आँखें काली , कद औसत दर्जे का , सुरीन (चूतड़) भारी। अगर किसी को ऐसी औरत दिखाई दे और वह उस से निकाह भी करना चाहता हो और महर देने को न हो तो वह महर की रक़म मुझ से ले जाए। ( 102)

जहाँ हज़रत अली (अ.) ने अच्छी , खूबसूरत ( 103) और हसीन औरत के गुणों से सम्बन्धित रंग , माथा , आँखें , कद और चूतड़ का वर्णन किया है वही रसूल-ए-खुदा (स.) ने भी औरतों की खूबसूरती से सम्बन्धित कुछ निशानियाँ बताई हैं। मिलता हैः-

हज़रत रसूल-ए-खुदा (स.) किसी मशशातः (स्त्रियों का बनाव- सिंगार करने वाली स्त्रियों) को किसी औरत को निकाह के लिए पसन्द करने के लिए भेजते थे तो यह फर्माते थे कि उसकी गर्दन को सूंघ लेना कि उससे खूशबू आती हो , टख्ने और ऐड़ी के बीच का हिस्सा गोश्त से भरा हुआ हो। ( 104)

और इमाम-ए-जाफर-ए-सादिक़ (अ ,) ने फर्मायाः-

जिस समय तुम किसी औरत से निकाह करना चाहो तो उसके बालों के बारे में मालूमात कर लो , क्योंकि बालों की खूबसूरती आधा हुस्न है। ( 105)

यह भी फर्माया किः-

औरत की सब से बड़ी खूबसूरती यह है कि उसका अंदामेनिहानी (योनि) कम हो उस से जन्ना (पैदा करना) दुशवार (मुश्किल) न हो और बहुत बड़ा दोष यह है कि महर अधिक हो और जन्ना उस से दुशवार हो। ( 106)

जहाँ औरतों के गुणों और खूबसूरती से सम्बन्धित उपरोक्त सभी बातें आइम्मः-ए-मासूमीन (अ ,) ने बताई हैं वहीं क़ुर्आन-ए-करीम के सूरः-ए-नूर में मिलता हैः-

ए रसूल (स ,) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्म की जगहों की हिफाज़त (सुरक्षा) करें और अपने बनाव-सिंगार (की जगहों) को (किसी पर) प्रकट (ज़ाहिर) न होने दें। ( 107)

अर्थात आँखों को नीची रखना , शर्म की जगहों की हिफाज़त करना , बनाव-सिंगार (सीने से ऊपर की खूबसूरती) को ज़ाहिर न होने देना ही औरतों के बहतरीन (अच्छे) गुण और खूबसूरती की निशानियाँ हैं। इसके अतिरिक्त हज़रत अली (अ ,) ने नहजुल बलागा में औरतों के तीन गुणों से सम्बन्धित इर्शाद फर्मायाः-

औरतों की बेहतरीन औरतों की बदतरीन आदतों में तकब्बुर (घमण्ड) , बुज़दिली और कनजूसी है। अतः औरत जब घमण्डी होगी तो अपना नफ्स (जिस्म , आत्मा) किसी के काबू में न देगी और कंजूस होगी तो अपने और शौहर (पति) के माल की हिफाज़त करेगी और अगर बुज़दिल (कमज़ोर दिल) होगी तो हर उस चीज़ से डरेगी जो उसकी राह (रास्ता) रोके। ( 108)

हज़रत अली (अ ,) उपरोक्त इर्शाद से औरतों की अच्छी आदतों के साथ साथ मर्दों की बुरी आदतों के बारे में भी पता चल जाता हैः अतः हर औरत , उसके माता पिता या संरक्षक को चाहिए कि वह मर्द को चयन करते समय मर्दों की बुरी आदतों को मुख्य रूप से ध्यान दें ताकि बाद में औरत परेशानियों में न घिर सके।

चूँकि प्राकृतिक और क़ुदरती तौर पर जवानी में हर औरत के लिए मर्द की आव्यश्कता है इसलिए आव्यश्क है कि हर औरत , उसके माता पिता या संरक्षकों को मर्दों की किस्मों (प्रकार) के बारे में ज्ञान हो ताकि चयन में आसानी हो सके।

पुरूषों के प्रकार

पंडित कोका ने सेक्स के अनुसार मर्दों की भी चार क़िस्में ( 109) बतायी हैं।

1.शाश

2.म्रग

3.बर्श

4.आशू

इनकी पहचान के बारे में है कि

1.शाश

बातचीत से गम्भीरता , सहनशीलता और सहिष्णुता को ज़ाहिर करता है। सच्चाई पर जान को देता और हमेशा अच्छी बात ज़बान से निकालता है। हमेशा नेक और अच्छे लोगों से मिलना पसन्द करता है। वह खुद खूबसूरत और तन्दुरूस्त होता है और ईश्वर की प्रार्थना को वह दिल से पसन्द करता है। उसका कद न बहुत लम्बा होता है और न बहुत छोटा। वह अपने बड़ो और अपने से उच्च कोटि के लोगों को बहुत अदब (आदर) करता है। वह हमेशा दूसरों के साथ नेकी करना पसन्द करता है। उसकी आवाज़ गहरी और मीठी होती है। उसके दिल का आईना कभी मैला नही होता। वह अपनी बीवी से टूट कर प्रेम (मुहब्बत) करता है और उसे ही अपने जीवन का मक़सद (तात्पर्य) समझता है। रात को भी उसके ज़ानू पर सर रखकर सोने का आदी होता है। यह मर्दों की सब से ऊँची किस्म है। जो औरतों की सब से ऊँची और अच्छी क़िस्म –पदमनी- के पति बनने के योग्य होते हैं।

2.मग्र

इसका चेहरा खिला हुआ , हंसता और मुस्कराता हुआ मालूम होता है। अंग लम्बे शरीर मज़बूत , राग और नाच को पसन्द करता है। इसकी आँखें सदैव बेचैनी को प्रकट करती हैं। वह भोजन अधिक खाता है। महमानदारी को पसन्द करता है। मज़हबी प्रोग्रामों और इबादतों में शामिल होता है , वह औरत को चाहता है और प्रत्येक दिन संभोग करना अपना पैदाईशी हक़ समझता है। इस क़िस्म के मर्द –चितरनी- क़िस्म की औरतों के पति बनने के योग्य होते हैं।

3.बर्श

यह खूबसूरत होता है। इसके रिश्तेदार बहुत होते हैं। अक़्लमंद और स्वभाव का अच्छा होता है-------जिसकी टाँगें छोटी और शरीर खूब मज़बूत हो , जिसकी शर्म व हया कम हो वह भी बर्श क़िस्म का है। जो औरत को देखकर तुरन्त प्रभावित होता है और जो गुनाह वाली ज़िन्दगी से बिल्कुल न घबराता हो वह भी बर्श क़िस्म में है। वह व्यक्ति जो कम सोने वाला लेकिन सेक्स का गुलाम हो वह भी बर्श क़िस्म में है। इस क़िस्म के मर्द हर वक़्त सेक्सी परेशानियों का शिकार रहते हैं। शराब और बलात्कार इनकी कमज़ोरी होती है। इस क़िस्म के मर्द –संखनी- क़िस्म की औरत के पति बनने योग्य होते हैं।

4.आशू

इसके शरीर की खाल खुरदरी होती है। हमेशा बुराई की ओर आकर्षित , बे ख़ौफ , ऊँचे कद का , तेज़ चलने वाला होता है। जिस शख्स का रंग काला हो , दूसरों की बुराई को तलाश करता हो , सेक्स से भरा हुआ और शीघ्र प्रभावित होने वाला हो , नेकी और शराफत का दुश्मन हो वह भी आशू क़िस्म से है। चोरी , शराब , बलात्कार का आदी होता है। नींद की खुशी और आराम से कभी पूरा फायदः नही उठाता , जिस्म मोटा होता है और जितने भी ज़्यादा उसे बुरे काम करने हों उसका जी नही भरता। औरत उसकी कमज़ोरी होती है वह औरत के एक इशारे पर क़ुर्बान हो जाता है। इस प्रकार के मर्द –हस्तनी- क़िस्म की औरतों के पति बनने के योग्य होते हैं।

लेकिन मर्दों की भी वर्णित सभी क़िस्मों से इन्कार किया जा सकता है क्योंकि इस आधार पर मर्दों की भी औरतों की तरह बहुत सी क़िस्म हो जाएगी और यह वास्तविकता भी है कि दुनियां में शारीरिक रूप से केवल चार क़िस्में नही हो सकतीं। इसलिए औरतों की तरह मर्दों की भी केवल दो ही क़िस्मों को माना जा सकता है।

1.अच्छे

2.बुरे

अच्छे मर्दों की पहचान के लिए इस्लाम की कानूनी किताब क़ुर्आन-ए-करीम के सूरः-ए-नूर में मिलता हैः-

(ए रसूल (स ,)) ईमानदारों से कह दो कि अपनी निगाहों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (लिंगों) की हिफ़ाज़त (सुरक्षा) करें यही उसके लिए ज़्यादा सफ़ाई की बात है। ( 110)

क़ुर्आन-ए-करीम के सूरः-ए-नूर में मर्द और औरत से सम्बन्धित मिलने वाली एक के बाद एक दो आयतों से अच्छे मर्दों और अच्छी औरतों की पहचान आसानी के साथ की जा सकती है। जिन में अच्छाई की दो पहचानें निगाहों को नीची रखना और शर्मगाह (लिंग) की हिफ़ाज़त करना , मर्द और औरत दोनों के लिए एक जैसी है। इस के अतिरिक्त औरत की एक पहचान और है कि वह अपने जिस्म के छिपे हुए बनाव ( 111) सिंगार को प्रकट न करे। यह वह पहचानें है जो हर धर्म , क़ौम और समाज में किसी न किसी तरह से ज़रूर पाई जाती हैं।

यही वजह (कारण) है कि दुनियां में हर शरीफ़ और नेक औरत (शहरी हो या देहाती) अपनी शर्म की इस तरह हिफ़ाज़त करती है कि किसी मर्द की निगाह उस पर नही पड़ सकती ------- उसकी शर्मगाह का प्रयोग करना तो बहुत दूर की बात है। इसके जीवित नमूनों को रेलवे लाइनों के किनारे झाङियों या खेतों में टट्टी फिरने के लिए बैठी हुई औरतों को देखा जा सकता है जो बहुत तेज़ गति से जाने वाली ट्रनों के गुज़रने पर भी अपनी शर्मगाहों को छुपायें रखती हैं। ताकि किसी की निगाह (द्रष्टि) शर्मगाह पर न पड़े। (यहाँ मर्दों का वर्णन नही है क्योंकि वह तेज़ गति से चलने वाली या धीमी गति से चलने वाली या कभी-कभी रूकी हुई ट्रेन होने पर भी टट्टी फिरते समय अपनी शर्मगाह को नही छिपाते। जो प्राकृतिक मज़हब (धर्म) इस्लाम के कानून की रौशनी में ग़लत है।)

यही नेक और शरीफ औरतें निगाहों के पर्दे (अर्थात निगाहें नीची रखने) के लिए घूँघट , चादर या नक़ाब ( 112) डाले रहती हैं ताकि मर्द से आँखें चार न हों और यही औरत अपने सीने की खूबसूरती को प्रकट नही होने देतीं। बल्कि यह भी देखने में आता रहता है कि केवल नाम मात्र की आधुनिक औरतें भी अचानक मर्द को देखने पर अपनी निगाहों को हटा कर अपने सीने की खूबसूरती को छुपाना चाहती हैं। जो फ़ौरन दुपट्टा या कपड़े को बराबर करना हाथ का सीने पर आ जाना या इस तरह से सिमटना कि सीना छुप सके , से प्रकट हो जाता है। औरत यह अमल (कृत्य , काम) कुदरती और प्राकृतिक रूप से होता है जो प्रत्येक औरत में एक जैसा है। (यहाँ कुछ उन औरतों का वर्णन नही है जो प्राकृति से मुकाबला करके अपनी छुपी हुवी खूबसूरती को प्रकट करने में एक हद तक जीत जाती हैं और गर्व महसूस करती हैं।)

जहाँ तक औरत और मर्द को अपनी-अपनी निगाहें नीची रखने का आदेश दिया गया है वह शायद इसी लिए है कि दोनों की आँखें चार न हों ------- क्योंकि आँखें चार होते ही अधिकतर संभावना इस बात की होती है कि मुहब्बत , प्रेम और लगाव पैदा हो जाए ----- जिसमें पूरी ग़लती आँखों की ही होती है। जिसकी आखरी हद बलात्कारी और हरामकारी है। क्योंकि आँखें बिजली की तरह होती है , उसका प्रभाव गहरा और बहुत देर तक बाक़ी रहने वाला होता है और यही मनुष्य के ख़्यालों और इरादो को बहुत खूबसूरती के साथ प्रकट कर देती है ---- इसीलिए इस्लाम ने आँखें (निगाह) नीची रखने का आदेश दिया है। साथ ही साथ मर्द और औरत दोनों को यह भी हुक़्म (आदेश) दिया है कि अपनी-अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ------ यह वास्तविकता है कि यदि अपनी-अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त की हिफाज़त नही होगी तो अधार्मिक कार्य बलात्कार , गुदमैथुन और हरामकारी का होना ज़रूरी है। क्योंकि यही शर्मगाहें आज़ाए तनासुल ( 113) (अर्थात नर और मादा का मिलकर संतान उतपन्न करने वाले अंग) होती है। जो बच्चों की पैदाईश और पूरी तरह से सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए एक दूसरे अर्थात औरत और मर्द के लिए ज़रूरी है। इसलिए ज़रूरी है कि अच्छे मर्द या औरत की इच्छा पैदा होने पर क़ुर्आन की बतायी हुई सभी वर्णित पहचानों को ज़रूर ध्यान में रखना चाहिए।

चयन और निकाह से सम्बन्ध में ही क़ुर्आन ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में बताया है किः-

और मुशरिक (अर्थात वह शख्स जो ईश्वर को एक नही मानता) औरतों से जब तक वह ईमान न लाए निकाह न करो हालाँकि ईमान वाली लौड़ी मुशरिक बीवी से बेहतर है चाहे वह बीवी तुम को कितनी भी अच्छी मालूम होती हो। और मुशरिक जब तक ईमान न ले आए उनके निकाह में (मुसलमान औरतें) न दो। क्योंकि मोमिन ग़ुलाम (आज़ाद) मुशरिक से बेहतर है चाहे वह (मुशरिक) तुम को अच्छा ही मालूम हो। वह तुम को नर्क की ओर बुलाते हैं और अल्लाह अपने हुक्म से स्वर्ग और मग़फिरत (मोक्ष मुक्ति) की ओर बुलाता है और लोगों के लिए अपने आदेश (अहकाम) खोल कर बयान करता है कि वह नसीहत (सदुपदेश) हासिल (ग्रहण) करें। ( 114)

क़ुर्आन में यह भी मिलता है किः-

बलात्कार करने वाले मर्द तो बलात्कार करने वाली ही औरत या मुशरिकः (अर्थात वह औरत जो ईश्वर को एक नही मानती) से निकाह करेगा और बलात्कार करने वाली औरत भी केवल बलात्कार करने वाले ही मर्द या मुशरिक से निकाह करेगी और सच्चे ईमानदारों पर तो इस तरह के सम्बन्ध हराम हैं। ( 115)

अर्थात वैवाहिक जीवन के लिए अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा साथी होना चाहिए।

बहरहाल शादी एक नेअमत (अर्थात ईश्वर की दी हुवी दौलत) है जो औरत और मर्द को एक दूसरे के जाएज़ (उचित) स्थानों से सेक्सी इच्छा की पूर्ति की पूरी आज़ादी देती है , बुराईयों से बचा कर पाकदामनी और पर्हेज़गारी पैदा करती है , दोनो (अर्थात मर्द औऱ औरत) में प्राकृतिक मुहब्बत और प्यार होने की वजह से अच्छी ज़िन्दगी की बुनियाद पड़ती है , दोनों को सच्चा आराम व सुकून मिलता है--- जो शादी (अर्थात बीबी) के बिनी सम्भव नही। इसीलिए क़ुर्आन-ए-करीम में मिलता है किः-

और उसी (की कुदरत) की निशानियों में एक यह (भी) है कि उस से तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स (जाति) की बीवीयाँ पैदा कीं , ताकि तुम उन के साथ रह कर चैन करो और तुम लोगों के बीच प्यार और मुहब्बत पैदा कर दिया , इसमें शक नही कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिए (खुदा की कुदरत की) वास्तव में बहुत सी निशानियाँ हैं। ( 116)

यह बिल्कुल सच है , यह खुदा की शान और क़ुदरत कि ------ वह मर्द और औरत जिन्होंने एक दूसरे को निकाह से पहले कभी देखा भी नही होता है वह निकाह (अर्थात धार्मिक तरीक़े से शादी) होते ही आपस में ऐसी मुहब्बत और लगाव पैदा कर लेते हैं कि जो माँ , बाप , भाई , बहन , परिवार के लोगों और दोस्तों से नही होती ------- मर्द और औऱत (अर्थात पति और पत्नी) में यह प्राकृतिक मुहब्बत और लगाव खुदा अपनी क़ुदरत से पैदा करता है जिसके द्वारा खुदा मर्द और औरत से नस्ल बढ़ाने का काम भी लेना चाहता है। इसीलिए रसूल-ए-खूदा (स ,) की हदीस हैः-

निकाह करो , नस्ल बढ़ाओ और याद रखो कि जिन बच्चों का गर्भ गिर जायेगा (न कि गिराया जायेगा) वह भी क़यामत (आखिरत) के दिन एक एक जन गिने जायेगें। ( 117)

इसी निकाह के लिए क़ुर्आन-ए-करीम में यहाँ तक मिलता है किः-

और औरतों से अपनी इच्छा के अनुसार दो-दो और तीन-तीन और चार-चार निकाह करो फिर अगर तुम्हें इसका ख़्याल (डर) हो कि तुम (कई बीवीयों में) न्याय न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तिफ़ा करो (अर्थात एक को पर्याप्त समझो)। ( 118)

लेकिन कुछ इस्लाम के विरोधी इस्लाम के उपर्युकत कानून (अर्थात एक से अधिक औरतों से निकाह करने) को बुलहवसी (लोलुपी , लालची) और अय्याशी (भोग-विलास का शौकीन) का नाम देते हैं। जबकि इस्लाम प्रकृति पर आधारित धर्म है। इसने मर्द को प्राकृतिक इच्छाओं पर दो , तीन और चार औरतों तक से निकाह करने की इजाज़त (अनुमति) दी है। यह हक़ीक़त है कि औरत एक मर्द के साथ सेक्सी तकलीफ और परेशानी को महसूस किये बिना ज़िन्दगी (जीवन) व्यतीत कर सकती है। लेकिन मर्द के लिए एक औरत के साथ जीवन व्यतीत करना कुछ मौकों पर अत्याधिक मुशकिल (कठीन) हो जाता है। जैसे अगर मर्द तन्दुरूस्त और पूरी तरह से सही है तो उसे बीवी की हर समय आव्यश्कता है। इसके अतिरिक्त औरत को हर महीने तीन से दस दिन तक खून-ए-हैज़ (मासिक धर्म का खून) आने के बीच पति की कोई आव्यश्कता नहीं पड़ती। हर महीने इस निश्चित दिनों के अतिरिक्त औरत के ज़िन्दगी में कुछ और लम्बे-लम्बे

ठहराव (जैसे गर्भावस्था , बच्चे का जन्म और खून-ए-निफास अर्थात औरत के शरीर से बच्चा जनने के बाद निकलने वाला चालीस दिन तक खून , के ज़माने में) ऐसे आते रहते है जिनमें उसका मर्द से दूर रहना ही ज़रूरी होता है -------- लेकिन प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मर्द को औरत की आव्यश्कता रहती है। जिसको वह दूसरी , तीसरी या चौथी औरत से पूरा कर सकता है। इसके अतिरिक्त चूँकि मर्द और औरत के शारीरिक मिलाप का तात्पर्य केवल स्वाद और आनन्द हासिल करना नही बल्कि नस्ल को बढ़ाना है। इसीलिए एक मर्द की कई बीवीयाँ होने पर यह तो सम्भव है कि नौ महीने में कई बच्चे ----------------------------------- (यदि औरत में गर्भ ग्रहण करने की योग्यता मौजूद हो तो) पैदा हो जाए। लेकिन एक औरत कई मर्द रख कर भी इस बात पर क़ादिर (समर्थ) नहीं हो सकती की वह नौं महीने के समय में एक से अधिक ( 119) बच्चों को पैदा कर सके। अतः बच्चों की अधिकता के लिए मर्द को दूसरी या तीसरी चौथी औरत की आव्यश्कता हो सकती है।

यह भी एक खास और मुख्य बात है कि इस्लाम ने एक मर्द को चार (तीन या पाँच नही) औरतों की अनुमति क्यों दी है ? इसको सैय्यद मुस्तफ़ा हसन रिज़वी ने अपनी किताब –रसूल (स.) और तअद्दुद अज़वाज- में एक उदाहरण के द्वारा इस प्रकार समझाया हैः-

एक सेहतमन्द , तन्दुरूस्त और सहीह-अल-कवा मर्द ने पहली जनवरी को शादी की और इत्तिफ़ाक़ (संयोग) से उसी दिन उसकी बीवी को गर्भ ठहर गया। तीन महीने में यह पूरी तरह मालूम हो सकेगा कि वास्तव में उसकी बीवी गर्भवस्था में है। अब पहली अप्रैल से पति को पत्नी से कम से कम नौ महीने तक अलग रहना ज़रूरी (अनिवार्य) है। लेकिन चूँकि उसकी सहत और तन्दुरूस्ती उसे बराबर नौ महीने तक अकेले रहने की अनुमति (इजाज़त) नही दे सकती इस लिए उसके लिए ज़रूरी होगा कि वह पहली अप्रैल को दूसरी शादी कर ले। अगर इत्तेफाक से उसी दिन दूसरी बीवी का भी गर्भ ठहर गया तो जून की आख़िर तक उसे दूसरी बीवी से भी अनिवार्य रूप से अलग हो जाना पड़ेगा। पहली जुलाई को वह मजबूर (विवश) मजबूर हो कर दूसरी शादी करेगा। अगर उसी दिन तीसरी बीवी को भी गर्भ ठहर गया तो अब पहली अकतूबर से पूरी तरह अलग होने की सूरत में वह चौथी शादी करने पर मजबूर हो जाएगा और अगर उस चौथी बीवी के भी गर्भ ठहर गया तो उस बीवी से दिसम्बर के आख़िर तक फ़ायदा उठाने के बाद पहली जनवरी को फिर उसे नई बीवी की आव्यश्कता होगी। लेकिन उस समय तक उसकी पहली बीवी अपने गर्भावस्था के दिन , बच्चे को जनना और बच्चे को जनने के बाद आने वाले खून-ए-निफ़ास के दिनों को पूरी तरह से पूरा कर के और तन्दुरूस्त होकर इस योग्य हो चुकी होगी कि वह बिल्कुल नए सिरे से पुनः बीवी होने की पूरी ज़िम्मेदारियों को निभा सकती है। उन चार बीवीयों में यह बात सदैव जारी रह सकती है और कभी पाँचवी बीवी की ज़रूरत नही हो सकती। अगर इस्लाम एक ही समय में चार से ज़्यादा बीवीयाँ करने की अनुमति दे देता तो वह बुलहवसी (लोलुप , लालच) और अय्याशी (भोग- विलास का शौक़) पर तैय्यार करने के समानार्थक (मुतरादिफ़) होता। जिस तरह से चार से अधिक बीवीयाँ करने की अनुमति इफ्रात (बहुतात) की हद में आती है। उसी तरह अगर इस्लाम एक पत्नी को केवल एक पति के लिए ही उचित समझता तो वह तफ्रीत (कमी) की हद में आ जाती। ( 120)

यह हर मुसलमान मर्द को याद रखना चाहिए कि इस्लाम धर्म ने जहाँ उन्हे चार औरतों तक की शादी करने की अनुमति दी है वहीं एक मुश्किल शर्त भी लगाई है किः-

अगर तुम्हें इसका डर हो कि तुम (कई बीवीयों में) न्याय न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तिफ़ा करो (अर्थात एक ही को पर्याप्त समझो) ( 121)

अर्थात नयाय और इंसाफ़ न कर पाने की हालत में चार क्या दो औरतों की भी अनुमति नही है --------- लेकिन मर्द के लिए प्राकृतिक सेक्सी ईच्छाओं की पूर्ति के लिए एक औरत का होना हर हाल में ज़रूरी है। जो माँ , बहन , बेटी , फुफी , खाला , भतीजी , भानजी हरगिज़ नही हो सकती क्योंकि इनके हराम होने का स्पष्ट और साफ ऐलान इस्लाम की क़ानूनी किताब क़ुर्आन-ए-करीम में इस तरह मौजूद हैः-

(मुसलमानों , निम्नलिखित) औरतें तुम पर हराम की गयीं , तुम्हारी मायें , (दादी , नानी आदि सब) और तुम्हारी बेटीयाँ (पोतियाँ , नवासियाँ आदि) और तुम्हारी बहने और तुम्हारी फुफियाँ और खालाऐं और भतीजियाँ और भानजियाँ और तुम्हारी वह मायें जिन्होने तुम को दूध पिलाया है और तुम्हारी रिज़ाई (दूध शरीक) बहनें और तुम्हारी बीवीयों की मायें (सास) और वह लड़कियाँ जो तुम्हारी गोद में पल चुकी हों और उन औरतों के पेट से (पैदा हुई हों) जिन से तुम संभोग कर चुके हो हाँ अगर तुम ने उन बीवीयों से (केवल निकाह किया हो) संभोग न किया हो तो (उन) लड़कियों से (निकाह करने में) तुम पर कुछ गुनाह (पाप) नहीं और तुम्हारे सुल्बी (अर्थात एक नुत्फे से पैदा हुवे) लड़कों (पोतों नवासों आदि) की बीवीयों (बहुऐं) और दो बहनों से एक साथ निकाह करना। मगर जो कुछ हो चुका (वह मआफ़ है) बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला महरबान है। ( 122)

यहाँ इस बात का उल्लेख करना ज़रूरी है कि जिस तरह उपर्युक्त औरतें मर्दों पर हराम हैं उसी तरह उनके विपरीत (म़ुकाबिल) मर्द , बाप दादा , नाना बेटा , पोता नवासा भाई , चचा , मामूँ , भतीजा , भानजा आदि औरतों पर हराम हैं।

जब क़ुर्आन-ए-करीम और आइम्मः-ए-ताहिरीन (अ ,) की हदीसों मे हराम व हलाल और अच्छे व बुरे , मर्द और औरत की पहचान हो गयी है तो लाज़मी है कि हर मुलसमान मर्द और औरत हराम व हलाल और अच्छे व बुरे को ध्यान में रखते हुए ही अपने जीवन साथी को तलाश करे। क्योंकि साथी मिलने (अर्थात शादी होने) पर एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत होती है जो अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी। जिससे ज़िन्दगी आराम व सुकून में भी व्यतीत हो सकती है और आज़ाब में भी ------- और आराम व सुकून से जीवन व्यतीत करने के लिए लाज़मी है कि नई ज़िन्दगी करने वाले दोनो साथी क़दम-क़दम पर बीना शीकायत और ऐतिराज़ के साथ निभाने का वायदा करें------ और यही ज़िन्दगी के सच्चे साथी की निशानी है। जिसका आरम्भ शादी का पैग़ाम देने से होता है।